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जर्मनी: अक्षय ऊर्जा स्रोतों से बनाई 50 फीसदी बिजली

५ जनवरी २०२१

जर्मनी ने 2020 में अपने पर्यावरण लक्ष्यों को पूरा कर लिया है. सरकार की नीतियों के साथ साथ कोरोना महामारी का भी इसमें योगदान रहा है.

कार्बन उत्सर्जन
जर्मनी कार्बन न्यूट्रल बनना चाहता हैतस्वीर: picture-alliance/SvenSimon/F. Hoemann

2007 में अंगेला मैर्केल ने वादा किया था कि 2020 तक देश कार्बन उत्सर्जन को 40 फीसदी तक घटाएगा और वाकई 2020 में 1990 की तुलना में उत्सर्जन 42.3 फीसदी कम रहा. यानी जर्मनी ने अपना लक्ष्य पूरा कर लिया. आंकड़े दिखाते हैं कि 2020 में जर्मनी ने 72 करोड़ टन CO2 का उत्सर्जन किया. 2019 की तुलना में यह आठ करोड़ टन कम था - कुल मिला कर दस फीसदी की कमी. इसमें पांच करोड़ टन यानी लगभग दो तिहाई हिस्सा तो कोरोना महामारी के कारण कम हुआ. महामारी के दौरान कई कारखाने बंद रहे जिस कारण ऊर्जा की खपत भी कम हुई.

जर्मनी को कहां से मिली कितनी बिजली

सबसे अच्छा असर बिजली के उत्पादन में देखा गया जहां अक्षय ऊर्जा स्रोतों से 50 फीसदी से ज्यादा बिजली की पैदावार हुई. 27 फीसदी बिजली पवन ऊर्जा से, दस फीसदी सौर ऊर्जा से, नौ फीसदी बायोमास ईंधन से बनी और चार फीसदी पनबिजली से. इसके अलावा 13 फीसदी परमाणु ऊर्जा, 12 फीसदी प्राकृतिक गैस, और 24 फीसदी कोयले से बनी बिजली रही. पिछले साल की तुलना में बिजली उत्पादन में कोयले के इस्तेमाल में कुल 48 फीसदी की कमी दर्ज की गई है.

इसके अलावा कोरोना महामारी के कारण उड़ानें बंद होने का भी फायदा मिला है. 2019 की तुलना में 2020 में केरोसीन की बिक्री 55 प्रतिशत गिरी है. इसी तरह कारों और ट्रकों में इस्तेमाल होने वाले पेट्रोल और डीजल की बिक्री भी नौ प्रतिशत कम हुई. इस तरह से कुल मिला कर साल भर में करीब डेढ़ करोड़ टन कार्बन डाय ऑक्साइड उत्सर्जन घटा है.

धरती के बढ़ते तामपान को सीमित रखना एक बड़ी चुनौती है

जर्मनी ने 2035 तक कार्बन न्यूट्रल बनने का लक्ष्य रखा है. मौजूदा आंकड़ों को देखते हुए ऐसा जरूर लगता है कि जर्मनी सही राह पर है लेकिन जानकारों का मानना है कि महामारी के खत्म होते ही हालात एक बार फिर पहले जैसे हो सकते हैं और ऐसे में ना ही जर्मनी कार्बन न्यूट्रल बनने का सपना पूरा कर सकेगा और ना पेरिस संधि के अपने वादे को पूरा कर सकेगा.

चांसलर अंगेला मैर्केल ने देश में ई-कारों को प्रचलित करने का भी लक्ष्य रखा था जो पूरा ना हो सका. जर्मनी एक बड़ा ऑटो बाजार है और मर्सिडीज, फोल्क्सवागेन, बीएमडब्ल्यू जैसी घरेलू कारों को टेस्ला इत्यादि की ई-कारें अब भी टक्कर नहीं दे पा रही हैं.

आईबी/एके (डीपीए, एएफपी)

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