आसिया बीबी को अदालत ने भले ही बेगुनाह करार दिया हो लेकिन उनके लिए बिना डर के जीना अब भी मुमकिन नहीं है. आसिया बीबी ने जर्मनी आने की इच्छा जताई है. लेकिन क्या ऐसा हो सकेगा?
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आसिया बीबी के वकील सैफुल मलूक ने जर्मन अखबार "बिल्ड" से बातचीत में कहा है कि बीबी अपने परिवार के साथ जर्मनी आना चाहती हैं. 31 अक्टूबर को पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने आसिया बीबी के हक में फैसला सुनाया था और उन्हें ईशनिंदा के आरोप से बरी किया था. खबरों के अनुसार बीबी अभी भी पाकिस्तान में ही है. बीबी के वकील सैफुल मलूक फैसले के एक दिन बाद ही नीदरलैंड्स के लिए रवाना हो गए. उन्होंने कट्टरपंथियों से अपनी जान पर खतरे का अंदेशा जताया है.
पाकितान में ईशनिंदा के मामले नए नहीं हैं लेकिन आसिया बीबी के मामले ने दुनिया भर में सुर्खियां बटोरी. 2015 में बीबी की बेटी ने पोप फ्रांसिस से मुलाकात की और उन्होंने वैटिकन में बीबी के लिए प्रार्थना भी की. कई यूरोपीय देश बीबी और उसके परिवार को अपने यहां रखने के लिए तैयार हैं लेकिन अब तक यह साफ नहीं है कि उसे पाकिस्तान छोड़ने की इजाजत कब मिल सकेगी.
डॉयचे वेले के इस्लामाबाद संवादाता हारून जंजुआ का कहना है कि प्रधानमंत्री इमरान खान की सरकार हर मुमकिन कानूनी जरूरत को पूरा कर लेना चाहती है और उसके बाद ही बीबी देश से बाहर आ सकेगी. उनके अनुसार बीबी को फिलहाल सरकार ने सुरक्षा मुहैया कराई हुई है और किसी सुरक्षित जगह पर रखा है.
दरअसल सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अगले दिन ही एक पुनर्विचार याचिका दायर कर दी गई थी. अदालत आने वाले दिनों में इस पर सुनवाई करेगी और उससे पहले बीबी का देश के बाहर निकलना मुमकिन नहीं है. जानकारों को उम्मीद है कि अदालत इस याचिका को खारिज नहीं करेगी, बल्कि एक बड़ी बेंच के सामने सुनवाई के लिए भेजेगी.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद पाकिस्तान में हिंसा भड़क गई थी. ऐसे में इमरान खान की सरकार ने कट्टरपंथियों के साथ एक समझौता किया ताकि खून खराबे को रोका जा सके. इसके लिए खान की काफी आलोचना भी हुई. हाल ही में इमरान खान ने मीडिया को आश्वासन दिया है कि जहां तक कानून व्यवस्था की बात है, तो किसी भी तरह की ढील नहीं बरती जाएगी. उन्होंने कहा, "मैं यह साफ करना चाहता हूं कि सरकार अदालत के फैसले का समर्थन करती है और हम किसी तरह का समझौता नहीं करेंगे."
इससे पहले बीबी के वकील ने डॉयचे वेले से बातचीत में कहा था कि खान ने सिर्फ दिखावे के लिए कट्टरपंथियों के साथ समझौता किया था. उन्होंने कहा, "कट्टरपंथियों को यह मुद्दा खत्म करने का एक तरीका चाहिए था और खान ने उन्हें वो दिया लेकिन इसका मतलब यह बिलकुल नहीं था कि सरकार ने उनके आगे घुटने टेक दिए थे."
मलूक ने डॉयचे वेले को बताया कि पाकिस्तान में ईशनिंदा के मामलों पर भरोसा नहीं किया जा सकता, "पाकिस्तान में ईशनिंदा के लगभग सभी मामले झूठे होते हैं. लोग इसका गलत फायदा उठाते हैं. अगर किसी के खिलाफ ईशनिंदा का आरोप है भी, तो उसकी बिना किसी डर के निष्पक्ष रूप से सुनवाई होनी चाहिए."
पिछले कुछ सालों में पाकिस्तान में कई ईसाई और अन्य अल्पसंख्यकों की ईशनिंदा के आरोप में हत्या की जा चुकी है. अगस्त 2012 में डाउन सिंड्रोम से पीड़ित एक बच्ची पर कुरान के पन्ने फाड़ने का इल्जाम लगाया गया था. बच्ची को फौरन हिरासत में ले लिया गया था और कई महीनों की जद्दोजहद के बाद उसे छोड़ा गया था. इस मामले के बाद आसपास के इलाके में ईसाइयों के खिलाफ हिंसा भी भड़क उठी थी. 2013 में बच्ची का परिवार देश छोड़ कर कनाडा चला गया.
इसी तरह 2014 में एक ईसाई जोड़े पर कुरान का अपमान करने का आरोप लगाया गया और उन्हें भट्टी में डाल कर जिंदा जला दिया गया. सितंबर 2017 में एक ईसाई पुरुष को मौत की सजा सुनाई गई क्योंकि वह कथित तौर पर व्हाट्सऐप पर ईशनिंदनीय संदेश फैला रहा था. पाकिस्तान में इस तरह के मामलों का कोई अंत ही नहीं है.
आसिया बीबी: एक गिलास पानी के लिए मौत की सजा
आसिया बीबी: एक गिलास पानी के लिए मौत की सजा
पाकिस्तान में 2010 में आसिया बीबी नाम की एक ईसाई महिला को मौत की सजा सुनाई गई थी. पानी के गिलास से शुरू हुआ झगड़ा उनके ईशनिंदा का जानलेवा अपराध बन गया था. लेकिन सु्प्रीम कोर्ट ने उन्हें बरी किया.
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खेत से कोर्ट तक
2009 में पंजाब के शेखपुरा जिले में रहने वाली आसिया बीबी मुस्लिम महिलाओं के साथ खेत में काम कर रही थी. इस दौरान उसने पानी पीने की कोशिश की. मुस्लिम महिलाएं इस पर नाराज हुईं, उन्होंने कहा कि आसिया बीबी मुसलमान नहीं हैं, लिहाजा वह पानी का गिलास नहीं छू सकती. इस बात पर तकरार शुरू हुई. बाद में मुस्लिम महिलाओं ने स्थानीय उलेमा से शिकायत करते हुए कहा कि आसिया बीबी ने पैंगबर मोहम्मद का अपमान किया.
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भीड़ का हमला
स्थानीय मीडिया के मुताबिक खेत में हुई तकरार के बाद भीड़ ने आसिया बीबी के घर पर हमला कर दिया. आसिया बीबी और उनके परिवारजनों को पीटा गया. पुलिस ने आसिया बीबी को बचाया और मामले की जांच करते हुए हिरासत में ले लिया. बाद में उन पर ईशनिंदा की धारा लगाई गई. 95 फीसदी मुस्लिम आबादी वाले पाकिस्तान में ईशनिंदा बेहद संवेदनशील मामला है.
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ईशनिंदा का विवादित कानून
1980 के दशक में सैन्य तानाशाह जनरल जिया उल हक ने पाकिस्तान में ईशनिंदा कानून लागू किया. मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का आरोप है कि ईशनिंदा की आड़ में ईसाइयों, हिन्दुओं और अहमदी मुसलमानों को अकसर फंसाया जाता है. छोटे मोटे विवादों या आपसी मनमुटाव के मामले में भी इस कानून का दुरुपयोग किया जाता है.
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पाकिस्तान राज्य बनाम बीबी
2010 में निचली अदालत ने आसिया बीबी को ईशनिंदा का दोषी ठहराया. आसिया बीबी के वकील ने अदालत में दलील दी कि यह मामला आपसी मतभेदों का है, लेकिन कोर्ट ने यह दलील नहीं मानी. आसिया बीबी को मौत की सजा सुनाई. तब से आसिया बीवी के पति आशिक मसीह (तस्वीर में दाएं) लगातार अपनी पत्नी और पांच बच्चों की मां को बचाने के लिए संघर्ष करते रहे.
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मददगारों की हत्या
2010 में पाकिस्तानी पंजाब के तत्कालीन गवर्नर सलमान तासीर ने आसिया बीबी की मदद करने की कोशिश की. तासीर ईशनिंदा कानून में सुधार की मांग कर रहे थे. कट्टरपंथी तासीर से नाराज हो गए. जनवरी 2011 में अंगरक्षक मुमताज कादरी ने तासीर की हत्या कर दी. मार्च 2011 में ईशनिंदा के एक और आलोचक और तत्कालीन अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री शहबाज भट्टी की भी इस्लामाबाद में हत्या कर दी गई.
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हत्याओं का जश्न
तासीर के हत्यारे मुमताज कादरी को पाकिस्तान की कट्टरपंथी ताकतों ने हीरो जैसा बना दिया. जेल जाते वक्त कादरी पर फूल बरसाए गए. 2016 में कादरी को फांसी पर चढ़ाए जाने के बाद कादरी के नाम पर एक मजार भी बनाई गई.
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न्यायपालिका में भी डर
ईशनिंदा कानून के आलोचकों की हत्या के बाद कई वकीलों ने आसिया बीबी का केस लड़ने से मना कर दिया. 2014 में लाहौर हाई कोर्ट ने निचली अदालत का फैसला बरकरार रखा. इसके खिलाफ परिवार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की. सर्वोच्च अदालत में इस केस पर सुनवाई 2016 में होनी थी, लेकिन सुनवाई से ठीक पहले एक जज ने निजी कारणों का हवाला देकर बेंच का हिस्सा बनने से इनकार कर दिया.
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ईशनिंदा कानून के पीड़ित
अक्टूबर 2018 में पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने आसिया बीबी की सजा से जुड़ा फैसला सुरक्षित रख लिया. इस मामले को लेकर पाकिस्तान पर काफी दबाव है. अमेरिकी सेंटर फॉर लॉ एंड जस्टिस के मुताबिक सिर्फ 2016 में ही पाकिस्तान में कम से 40 कम लोगों को ईशनिंदा कानून के तहत मौत या उम्र कैद की सजा सुनाई गई. कई लोगों को भीड़ ने मार डाला.
तस्वीर: APMA
अल्पसंख्यकों पर निशाना
ईसाई, हिन्दू, सिख और अहमदी पाकिस्तान में अल्पसंख्यक समुदाय का हिस्सा हैं. इस समुदाय का आरोप है कि पाकिस्तान में उनके साथ न्यायिक और सामाजिक भेदभाव होता रहता है. बीते बरसों में सिर्फ ईशनिंदा के आरोपों के चलते कई ईसाइयों और हिन्दुओं की हत्याएं हुईं.
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कट्टरपंथियों की धमकी
पाकिस्तान की कट्टरपंथी इस्लामी ताकतों ने धमकी दी थी कि आसिया बीबी पर किसी किस्म की नरमी नहीं दिखाई जाए. तहरीक ए लबैक का रुख तो खासा धमकी भरा था. ईसाई समुदाय को लगता था कि अगर आसिया बीबी की सजा में बदलाव किया गया तो कट्टरपंथी हिंसा पर उतर आएंगे. और ऐसा हुआ भी.
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बीबी को अंतरराष्ट्रीय मदद
मानवाधिकार संगठन और पश्चिमी देशों की सरकारों ने आसिया बीबी के मामले में निष्पक्ष सुनवाई की मांग की थी. 2015 में बीबी की बेटी पोप फ्रांसिस से भी मिलीं. अमेरिकन सेंटर फॉर लॉ एंड जस्टिस ने बीबी की सजा की आलोचना करते हुए इस्लामाबाद से अल्पसंख्यक समुदाय की रक्षा करने की अपील की थी.
बीबी के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए उन्होंने इस मामले से बरी कर दिया. आसिया को बरी किए जाने के खिलाफ आई अपील को सुप्रीम कोर्ट ने सुनने से इंकार कर दिया. सुप्रीम कोर्ट के फैसले का लोगों ने विरोध किया. लेकिन आसिया सुरक्षित रहीं. अब आसिया बीबी ने पाकिस्तान छोड़ दिया है. बताया जाता है वो कनाडा में रहने लगी हैं.