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जर्मनी और फ्रांस की दोस्ती के 50 साल

८ जुलाई २०१२

जर्मनी और फ्रांस के बीच 1963 में हुए एलिजी समझौते का लक्ष्य था सदियों की दुश्मनी को खत्म कर दोस्त बनना. इस समझौते को 50 साल हो गए. उसने अपनी जिम्मेदारी निभाई है. युद्ध की त्रासदी पीछे छोड़ जर्मनी और फ्रांस दोस्त बने हैं.

तस्वीर: AP

वह कंपकपाती सर्दी का दिन था जब फ्रांस के राष्ट्रपति चार्ल्स द गॉल और जर्मन चांसलर कोनराड आडेनावर फ्रांस के राष्ट्रपति भवन एलीजी पैलेस में मिले थे. 22 जनवरी 1963 की वह शाम, पैरिस अंधेरे में डूबा था. दोनों देशों के सरकार प्रमुख अपने अपने प्रतिनिधिमंडलों के साथ रोशनी से चमचमाते शाही कमरे में बातचीत की मेज पर आमने सामने बैठे थे. कुछेक आखिरी बयान और उसके बाद आडेनावर और द गॉल ने जर्मन फ्रांसीसी सहयोग संधि पर हस्ताक्षर कर दिए. ऐतिहासिक और बेहद भावनात्मक पल.

दोनों राजनेताओं ने एक दूसरे को गले लगाया. द गॉल ने आडेनावर को गाल पर चुंबन दिया. उन्हें पता था कि समझौते पर दस्तखत कर वे जर्मनी और फ्रांस के भावी इतिहास पर छाप छोड़ेंगे और यूरोप की एकता मजबूत हो रही है. इसी उम्मीद पर आडेनावर ने बाद में अपनी प्रेस कांफ्रेंस में जोर दिया. पड़ोसी देश की भाषा फ्रेंच में उन्होंने कहा, "इस समझौते के बिना यूरोपीय एकता संभव नहीं है. तरीके बदल सकते हैं, लेकिन जरूरी यह है कि दोस्त का भरोसा कभी न खोया जाए."

"डोकुमेंटे" के प्रकाशक जेरा फूसिए

मील का पत्थर

एलिजी समझौते को जल्द ही जर्मन फ्रांसीसी मैत्री संधि कहा जाने लगा. यह दोनों के देशों के इतिहास में एक निर्णायक मील का पत्थर था. उसमें तय नजदीकी ने इसमें गहरा योगदान दिया है कि दशकों के दुश्मन यूरोप में महत्वपूर्ण सहयोगी बन गए हैं. इस संधि में दोनों देशों की सरकारों ने विदेश, सुरक्षा, युवा और संस्कृति नीति के अहम सवालों पर आपस में विचार विनिमय करना तय किया. नियमित अंतराल पर सरकारी बैठकों का भी फैसला लिया गया.

जर्मन फ्रांसीसी संवाद की पत्रिका "डोकुमेंटे" के प्रकाशक जेरा फूसिए कहते हैं, "मेलजोल इसलिए भी जरूरी था कि उन्होंने साबित किया है कि यूरोप शांति में जी सकता है." फूसिए के मुताबिक 60 के दशक के आरंभ में भी ऐसे लोग थे जो दोनों देशों की खानदानी दुश्मनी की बात करते थे. "और यह बेहद जरूरी था कि कम से कम यूरोप के दो सबसे बड़े देश खानदानी दुश्मनी नहीं बल्कि दोस्ती और सहयोग की बात करने की हालत में हों."

जर्मन फ्रांसीसी संस्थान के श्टेफान जाइडेनडॉर्फतस्वीर: Deutsch-Französisches Institut

मेल मिलाप का नमूना

जर्मन फ्रांसीसी संबंधों का विकास आदर्श रहा है. खासकर जानी दुश्मनी रहे दूसरे यूरोपीय देश मेल मिलाप के मॉडल चरित्र की ओर इशारा करते हैं. जर्मन फ्रांसीसी संस्थान के श्टेफान जाइडेनडॉर्फ ने अपनी किताब में इन रिश्तों को शांति व्यवस्था के लिए नमूना बताया है. उन्होंने उन कारकों का जिक्र किया है जिन्हें दूसरे झगड़ों और पारस्परिक संबंधों पर भी लागू किया जा सकता है.

एक तरीका जिसे दूसरे देश भी अपना सकते हैं, नियमित अंतराल पर बैठकों का आयोजन है, जिसमें सभी स्तर के राजनीतिक प्रतिनिधियों को भाग लें. जाइडेनडॉर्फ ने डॉयचे वेले को बताया कि इन प्रतिनिधियों में कोई भी इन बैठकों में भाग लेने से मना नहीं कर सकता था. इसलिए इसका ऐसे संकट के समय भी महत्व होता है, जब आप एक दूसरे से मिलना या बात करना नहीं चाहते. जर्मन फ्रांसीसी संबंधों में भी अक्सर ऐसे मौके आए जब कहने को बहुत कुछ नहीं था, लेकिन इसके बावजूद यह दूसरे के रुख को जानने और यह समझने का मौका था कि बाहर प्रेस एलान का इंतजार कर रहा है. उम्मीद की वजह से समझौता करने और सहमत होने के लिए दबाव बनता है.

फ्रांस के राष्ट्रपति चार्ल्स द गॉल और जर्मन चांसलर कोनराड आडेनावरतस्वीर: picture-alliance/dpa

युवाओं से उम्मीद

संधि में तय नियमित मेलजोल को दूसरे देश भी लागू कर सकते हैं. राजनीतिक स्तर पर संपर्क के अलावा नागरिक संगठनों का एक दूसरे के यहां आना जाना भी अपनाने लायक है. युवाओं को एक दूसरे के यहां भेजने पर जोर देने का द गॉल और आडेनावर का फैसला दूरगामी महत्व का था. एलिजी समझौते में जर्मन फ्रांसीसी युवा संघ बनाने का फैसला लिया गया था. 5 जुलाई 1963 को ही इसकी स्थापना हुई. इस कार्यक्रम के तहत हर साल दोनों देशों के हजारों युवाओं की मुलाकात होती है. स्थापना के बाद से लगभग 3 लाख कार्यक्रमों में 80 लाख से ज्यादा युवा एक दूसरे देश गए हैं. इस समझौते की एक खास बात यह है कि युवा कार्यक्रम अंतरराष्ट्रीय संगठन के तौर पर बनाया गया जिसे कोई सरकार विघटित नहीं कर सकती.

सफलता की इस कहानी की शुरुआत एलिजी समझौते के विफल होने के खतरे से हुई. जर्मन संसद ने इस समझौते में एक धारा जोड़ दी जिसमें अमेरिका, ब्रिटेन और नाटो के साथ राजनीतिक, आर्थिक और रक्षा संबंधों पर जोर दिया गया था. इसके विपरीत फ्रांस जर्मनी के साथ मिलकर अमेरिका के मुकाबले यूरोप की स्थिति मजबूत करना चाहता था.

बर्लिन में चार्ल्स द गॉल स्मारकतस्वीर: AP

कहते हैं कि निराश राष्ट्रपति द गॉल ने अपने नजदीकी लोगों के बीच टिप्पणी की थी, "समझौते गुलाब और युवा लड़कियों की तरह होते हैं, जिनका अपना समय होता है." जुलाई 1963 में जब द गॉल बॉन आए तो गुलाब उपजाने के लिए प्रसिद्ध जर्मन चांसलर ने कहा, "लेकिन गुलाब बड़ा ही सख्त पौधा होता है जो हर जाड़े को झेल सकता है." द गॉल ने भी संधि से सहमति दिखाई और कहा, "गुलाब एक सुबह रहता है, लड़कियां हमेशा जवान नहीं रहतीं, लेकिन गुलाब का बाग यदि हम चाहें तो लंबे समय तक रहता है."

बाद में भी बाधाएं आईं, लेकिन दोनों देशों ने उनका सामना किया और दोस्ती के मजबूत होने तक आपसी पूर्वाग्रहों को मिटाया. डोकुमेंटे के प्रकाशक जेरा फूसिए इस प्रक्रिया को जर्मनों और फ्रांसीसियों द्वारा किया गया अनुकरणीय अनुभव मानते हैं.

रिपोर्टः राल्फ बोजेन/मझा

संपादनः एन रंजन

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