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जर्मनी का पर्यावरण पुरस्कार सौर सेल को

२९ अक्टूबर २०१२

2012 का जर्मन पर्यावरण पुरस्कार उन सौर ऊर्जा कंपनियों और शोधकर्ताओं को दिया गया है जिन्होंने सौर ऊर्जा के अधिकतम इस्तेमाल के लिए ऊंची क्षमता वाली तकनीक बनाई.

तस्वीर: Fraunhofer ISE

आंद्रेयास बेट के लिए भविष्य एक बहुत ही छोटे पिन के सिरे के आकार की चिप में है. बहुत आराम से ये भौतिकशास्त्री अपनी लैब में माचिस के डब्बे जितनी मेटल प्लेट निकालते हैं. जर्मनी के फ्राइबुर्ग शहर में प्रयोग करने वाले आंद्रेयास गर्व के साथ इस प्लेट पर लगा बहुत छोटा फोटोवोल्टाइक सेल दिखाते हैं. बिना जानकारी के इसे देख पाना नहीं के बराबर है.

यह सोलर सेल बेट के भविष्य का सपना है. वह अपने अनुभव से कह रहे हैं. फ्रानहोफन इंस्टीट्यूट के सोलर एनर्जी सिस्टम के उपनिदेशक के तौर पर वह इन मल्टी जंक्शन सोलर सेल पर 25 साल से काम कर रहे हैं. इस साल जर्मनी का पर्यावरण अवॉर्ड उन्हें भी मिला है. जर्मन एनवायरन्मेंट फाउंडेशन का यह पुरस्कार सोइटेक सोलर के हांसयोर्ग लेर्षेनमूलर और एसएमए सोलर टेकनोलॉजी बनाने वाले गुंथर क्रैमर को भी दिया गया है.

धातु में लपेट कर सस्ती तकनीकतस्वीर: Fraunhofer ISE

जर्मन पर्यावरण पुरस्कार के तहत पांच लाख यूरो की राशि दी जाती है. यह पर्यावरण के लिए यूरोप में दिए जाने वाले सबसे बड़ा पुरस्कार है.

फिलहाल इस्तेमाल किए जाने वाले सिलिकॉन सोलर सेल सूरज से मिलने वाली रोशनी का थोड़ा ही हिस्सा ऊर्जा में बदल पाते हैं. लेकिन बेट के सोलर सेल बहुत कुछ कर सकते हैं. वह सूरज की रोशनी का पूरा स्पेक्ट्रम इस्तेमाल करते हैं. इस लक्ष्य को पाने के लिए फ्राइबर्ग यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक तीन अलग अलग पदार्थों का इस्तेमाल कर ज्यादा क्षमता वाला मल्टीजंक्शन फोटोवोल्टाइक सेल बना रहे हैं. सिलिकॉन के बजाए इन सेलों में गैलियम, इंडियम और फॉस्फाइड या गैलियम, इंडियम, आर्सेनाइड और जर्मेनियम जैसे सेमीकंडक्टर इस्तेमाल किए जाते हैं. ऐसा करने से हर पदार्थ लाइट के अलग अलग स्पेक्ट्रम से बिजली बनाता है.

बेट बताते हैं, "हम इंद्रधनुष के अनुसार एक के ऊपर एक तीन सोलर सेल या सेमी कंडक्टर स्ट्रकचर लगाते हैं." सबसे ऊपर की तह शॉर्ट ब्लू तरंगदैर्घ्य की लाइट का इस्तेमाल करती है, बीच वाली हरे और नीचे वाली पराबैंगनी वेवलेंथ वाली रोशनी काम में लेती है. इससे ही क्षमता बढ़ती है.

सोलर सेल शोध के लिए फ्रॉनहोफर संस्थानतस्वीर: DW/R. Fuchs

"कोई भी ये पता लगा सकता है कि सिलिकॉन जैसे सेमी कंडक्टरों से ज्यादा से ज्यादा 33 फीसदी क्षमता हासिल की जा सकती है." फ्रॉनहोफर इंस्टीट्यूट में बने मल्टीजंक्शन फोटोवोल्टाइक सेल के जरिए 41 फीसदी क्षमता पाई जा सकती है. इससे पहले लैब में भी इतनी कुशलता से कोई सोलर सेल सौर ऊर्जा को बिजली में नहीं बदल पाया था.

जगह कम

कई क्षेत्रों में सोलर सेल का इस्तेमाल किया जा सकता है. आजुर स्पेस सोलर पॉवर जर्मनी के हाइलब्रोन में है. यह आईएसई तकनीक के जरिए कम्यूनिकेशन सैटेलाइटों को बिजली सप्लाई देने के लिए मल्टीफंक्शन सोलर सेलों का इस्तेमाल कर रहा है.

एक गोल चकती पर एक हजार सोलर सेल फिट हो जाते हैं. यह परत एक डीवीडी जितना बड़ा होता है. क्लाउस डीटर राश आजुर स्पेस सोलर पॉवर के प्रबंध निदेशक हैं. उन्हें गर्व है कि ऐसे डेढ़ लाख परत या वेफर उनकी कंपनी में हर साल बनते हैं. लेकिन इन्हें बनाना टेढ़ी खीर था. "हम पहले दूसरे एलईडी उत्पादन वाला तरीका इस्तेमाल करते थे. लेकिन बाद में हमें पता चला कि यह ठीक नहीं है." इसलिए सॉफ्टवेयर और प्रोडक्शन लाइन बदलनी पड़ी. अब 40 करोड़ असैनिक सैटेलाइट मेड इन हाइलब्रोन के लेबल वाले फोटोवोल्टाइक सेल से ऊर्जा लेते हैं.

आसमान में इस्तेमाल होने वाले इन सेलों को धरती पर खरीदे जा सकने वाली कीमत में लाने के लिए वैज्ञानिकों को थोड़ी ट्रिक लगानी पड़ी. आंद्रेयास बेट ने फ्राइबर्ग यूनिवर्सिटी की लैबोरेटरी में बताया कि उन्होंने क्या किया. उन्होंने कई फोटोवोल्टाइक सेल वाली प्लेट को एक चौकोर डब्बे में रख दिया. इसके बाद उन्होंने इस पर एक धातु का वेफर लगा दिया. वह बताते हैं, इस तरकीब में सूरज की रोशनी को एक ऑप्टिकल लेंस से संक्रेदित किया जाता है और फिर से छोटी सेमी कंडक्टर सतह पर भेजा जाता है. "चूंकि मैं एक सस्ते लैंस से रोशनी को एक ऐसी जगह भेजता हूं जहां महंगे सेमी कंडक्टर लगे हैं, मैं सस्ती बिजली बना पता हूं."

हालांकि सफलता के लिए सबसे जरूरी है साफ आसमान और सीधी सूरज की रोशनी. तभी ऑप्टिकल लैंस सही काम कर सकता है.

रिपोर्टः रिचर्ड फुक्स/एएम

संपादनः मानसी गोपालकृष्णन

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