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जर्मनी की मदद से ईरान का बुशेर परमाणु संयंत्र

६ सितम्बर २०११

ईरान के पहले परमाणु संयंत्र का निर्माण तीस साल पहले शुरू हुआ लेकिन अब वहां काम शुरू हो गया है. राजनीतिक और तकनीकी कारणों से लटकता रहा काम. जर्मन कंपनी सीमेन्स की मदद से खड़ा हुआ है यह प्लांट.

An Iranian security guard walks past a gate of the Bushehr nuclear power plant as its reactor building is seen in background, just outside the city of Bushehr 750 miles (1,245 kilometers) south of the capital Tehran, Iran, Friday, Aug. 20, 2010. Russia's nuclear chief said Thursday that the planned startup of Iran's first nuclear power plant will demonstrate that Iran is entitled to peaceful use of nuclear energy under international supervision. Sergei Kiriyenko said at a meeting with Prime Minister Vladimir Putin that the uranium fuel will be loaded into the reactor in Iran's southern port of Bushehr on Saturday. (AP Photo/Vahid Salemi)
तस्वीर: AP

1957 में ईरान की सरकार ने अमेरिका के साथ एटम्स फॉर पीस नाम के एक प्रोजेक्ट के तहत परमाणु समझौता किया था. अमेरिका ने 1967 में 5 मेगावॉट का छोटा शोध रिएक्टर भेजा जो आईएईओ सेफगार्ड्स के अंतर्गत आता है. 1974 में ईरान का परमाणु ऊर्जा संगठन एईओआई बनाया गया. इस संगठन ने मध्यपूर्व का सबसे ज्यादा महत्वाकांक्षी परमाणु प्रोग्राम विकसित किया. 90 के दशक तक 28 पॉवर रिएक्टर बनाने की बात थी.

1974 से जर्मन कंपनी सीमेन्स की मदद से बुशेर में रिएक्टर बनाए जा रहे थे. सीमेन्स की सहायक कंपनी क्राफ्टवर्क यूनियन 1200 और 1300 मेगावॉट वाले दो रिएक्टर बना रही थी. फ्रांस से आए दो अन्य रिएक्टर Darkhouin में भेजे गए. इसी के साथ ईरान ने अमेरिका, जर्मनी और फ्रांस के साथ कम संवर्धित यूरेनियम के आयात का समझौता भी किया.

तस्वीर: picture alliance / dpa

क्रांति और युद्ध की छाया में

1979 में इस्लामी क्रांति के कारण बुशेर के परमाणु संयंत्र का काम रुक गया. उस समय पहला रिएक्टर 85 फीसदी ही बन सका था. 1984 से 1987 के बीच इराक ने कई बार इस जगह पर हमला किया और इसका बड़ा हिस्सा ध्वस्त हो गया. युद्ध के बाद परमाणु अप्रसार के मद्देनजर और अमेरिकी दबाव के बढ़ने के कारण जर्मनी ने संयंत्र बनाने से हाथ खींच लिए. इसलिए तेहरान को संयंत्र बनाने के लिए नए सहयोगी की जरूरत पड़ी.

रूस ने 1995 में ईरान के साथ टाइप WWER-1000 का बॉइलिंग वॉटर रिएक्टर बनाने का काम शुरू किया. यह परमाणु हथियार बनाने के लिए इस्तेमाल नहीं हो सकते थे.

30 साल और अब काम जारी

जनवरी 1997 में नए सिरे से काम शुरू हुआ और लक्ष्य था कि 2003 में संयंत्र में काम शुरू कर दिया जाएगा. लेकिन कुछ नहीं हुआ. संयंत्र के शुरू होने की तारीख आगे ही बढ़ती गई. इस स्थगन के कारण सिर्फ तकनीकी नहीं राजनीतिक भी थे. रूसी इंजीनियरों को जर्मनी के बनाए आधे संयंत्र को खत्म करना था लेकिन उनके पास इसकी जानकारी नहीं थी. और तो और तकनीक की भी कमी थी. यह सब कानूनी तौर पर तो जर्मनी से लाना मुमकिन नहीं था तो गैर कानूनी तरीके से यह किया गया. 2006 में जर्मनी के कस्टम विभाग ने 50 कंपनियों पर मुकदमा शुरू किया जिन्होंने रूसी कंपनियों को सीधे या किसी और तरीके से परमाणु संयंत्र के लिए माल पहुंचाया था. एक जर्मन कानून परमाणु संयंत्र की तकनीक का निर्यात करने पर प्रतिबंध लगाता है. 

विवादास्पद कार्यक्रम

ईरान में फिलहाल दो संयंत्रों, नातान्ज और फेर्दो में यूरेनियम का संवंर्धन किया जा रहा है. पहले इन संयंत्रों के बारे में किसी को जानकारी नहीं दी गई थी. अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा संगठन आईएईए को भी नहीं. बाद में आईएईए ने शंका जताई कि ईरान का उद्देश्य परमाणु ऊर्जा से बिजली बनाना नहीं बल्कि हथियार बनाना है.

जानकारों का कहना है कि ईरान के यूरेनियम संवर्धन से नातान्ज और फेर्दो के लिए पर्याप्त ईंधन नहीं मिलता और दूसरे रिएक्टरों के लिए भी नहीं.

अगस्त के दौरान ईरान के परमाणु संयंत्र ने काम शुरू किया. मॉस्को से परमाणु ईंधन की 160 छड़ें हुषेक लाई गई और घोषणा की गई कि अक्तूबर 2010 के आखिर में परमाणु संयंत्र से बिजली बनाने का काम शुरू हो जाएगा. 

तस्वीर: AP

आखिरी तारीख?

लेकिन इसका भी कुछ नहीं हुआ. सितंबर में मीडिया की रिपोर्टें आई कि बुशेर सहित दूसरे परमाणु संगठन के कंप्यूटरों में स्टुक्सनेट्स वायरस का हमला और उससे काफी नुकसान भी हुआ. जानकारों का मानना है कि इससे संयंत्र को काफी नुकसान हुआ लेकिन मुख्य हिस्सा बच गया है.

लेकिन अब बुशेर का संयंत्र शुरू हो गया है. रविवार  04 मई 2011 को ईरान के परमाणु संगठन ने घोषणा की कि सप्ताहांत में संयंत्र ने सीमित इलाके के लिए बिजली का उत्पादन किया. पहले 1000 मेगावॉट वाले इस रिएक्टर ने 60 मेगावॉट बिजली का उत्पादन किया. अब घोषणा की गई है कि 12 सितंबर से पूरी क्षमता के साथ काम किया जाएगा. लेकिन पर्यवेक्षकों को इस पर शंका है. राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद ने भी घोषणा की थी कि 2011 के आखिर तक परमाणु संयंत्र अपनी पूरी क्षमता के साथ काम करने लगेंगे.

रिपोर्ट: हबीब हुसैनिफार्ड/आभा एम

संपादन: महेश झा

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