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जर्मनी की सबसे बड़ी मस्जिद

२८ अक्टूबर २००८

जर्मन शहर डुइसबुर्ग के मार्क्सलोह इलाक़े में साढ़े तीन साल के निर्माण के बाद जर्मनी की सबसे बड़ी मस्जिद का औपचारिक रूप से उद्घाटन हुआ है.

मरकज़ मस्जिदतस्वीर: AP

मीनारों और गुंबद वाला देखते ही नज़र आने वाली मस्जिद जर्मनी में आम नहीं है. जब भी इस तरह के किसी मस्जिद को बनाने की बात होती है स्थानीय निवासी आशंकित हो उठते हैं, आबादी के कुछ हलकों में विरोध शुरू हो जाता है. कोलोन और बर्लिन में यही हुआ. लेकिन डुइसबुर्ग की बात अलग है.

मस्जिद के अंदर का दृश्यतस्वीर: AP

यहां शहर के निवासियों को 75 लाख यूरो के खर्च से बनी जर्मनी की सबसे बड़ी और अनोखी मस्जिद पर गर्व है. कोई आश्चर्य नहीं कि उद्घाटन समारोह में 7,000 से अधिक लोग भाग लेंगे. संस्कृतियों का मिलन नामक उद्घाटन समारोह इस केंद्रीय मस्जिद के अनोखे चरित्र को प्रदर्शित करेगा.

मार्क्सलोह का इलाक़ा खदान में लगे रहे श्रमिकों का इलाक़ा है. ख़दान तो रहे नहीं, इलाक़े की रौनक़ भी चली गई लगती है. भारी बेरोज़गारी, कम आय वाले परिवार. मार्क्सलोह के एक तिहाई निवासी प्रवासी हैं. विकास की नई परियोजनाओं के ज़रिए इलाक़े को फिर से जीवन देने की कोशिश की जा रही है. मार्क्सलोह के बहुत से लोगों के लिए मस्जिद उम्मीद का प्रतीक है, भले ही वे वहां प्रार्थना करने न जाएं.

और इस उम्मीद की वजह वह मिलन केंद्र भी है जो मस्जिद के गुंबद के नीचे स्थित है. वहां तुर्क मुसलिम समुदाय इबादत तो करेगा ही, मस्जिद विभिन्न समुदाय के लोगों को एक दूसरे से मिलने, घुलने मिलने और पारस्परिक समझ का अवसर भी देगा. मरकज़ मस्जिद में 1200 लोगों के लिए जगह है.

उसमानी स्टाइल में बने मस्जिद की एक दूसरे से जुड़ी पांच गुंबदें हैं और 34 मीटर ऊंची मीनार. शहर में शायद ही कोई विरोध हुआ. डुइसबुर्ग की समेकन प्रभारी लयला ओएजमाल कहती है कि डुइसबुर्ग में विभिन्न समुदायों के बीच सहजीवन हमेशा एक मुद्दा रहा है.

ब्रेमेन का मस्जिद - आम तौर पर पुराने दफ़्तरों में हैं मस्जिदतस्वीर: AP

मस्जिद को इलाक़े के विकास की एक परियोजना के रूप में देखा जा रहा है. सफलता की एक वजह रही मस्जिद के निर्माण के लिए एक आयोग का गठन जिसमें इलाक़े के शहर विकास अधिकारियों के अलावा, स्पोर्ट्स क्लब, स्कूल, पार्टियों और गिरजे के प्रतिनिधि शामिल थे. उनके सुझावों को भी मस्जिद की वास्तुकला में शामिल किया गया है.

और ग़ैर मुसलिम पड़ोसियों का ख्याल रखते हुए अज़ान लाउडस्पीकर पर नहीं दी जाएगी. मार्क्सलोह के तुर्क समुदाय के मुस्तफ़ा क्युच्युक कहते हैं कि मस्जिद का बनना मातृभूमि की भावना का संकेत है. वे कहते हैं कि अब हम कह सकते हैं कि अब उनके लिए भी बक्सा खोलने का समय आ गया है जिन्होंने अभी तक ऐसा नहीं किया है.

मुसलिम आप्रवासियों को अपनेपन का अहसास देने के साथ ही यह मस्जिद शीघ्र ही महत्वपूर्ण पर्यटन आकर्षण बन सकता है.

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