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जर्मनी के इन कबूतरों के सिर पर लटकी मौत की तलवार

२३ जून २०२४

जर्मनी में एक छोटे से टाउन के बाशिंदों ने कबूतरों की गंदगी से तंग आ कर उन्हें मारने के फैसले पर मुहर लगा दी है. वन्य जीवों के लिए काम करने वाले कार्यकर्ता इसे रोकने में जुटे हैं. क्या कबूतरों की जान बचेगी?

लिंबुर्ग में शहर की फुटपाथ पर दाना चुगते कबूतर
कबूतरों के खिलाफ नगर प्रशासन को कई शिकायतें मिली हैंतस्वीर: Alexandra Michel/onemorepicture/IMAGO

इस महीने की शुरुआत में एक जनमत संग्रह में जर्मनी के लिंबुर्ग टाउन के लोगों ने कबूतरों को मारने के पक्ष में बहुमत से फैसला सुनाया. हालांकि नगर प्रशासन के अधिकारी भी अभी यह तय नहीं कर पा रहे हैं कि इस फैसले पर अमल किया जाए या नहीं. नगर प्रशासन के प्रवक्ता योहानेस लाउबाख ने समाचार एजेंसी एपी को बताया, "इस पर अमल के लिए कोई समय तय नहीं किया गया है. प्रस्ताव में यह नियम दिया गया है कि अमल से पहले एक बार हर मामले की समीक्षा की जाएगी."

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700 कबूतरों का जीवन संकट में

यह मामला लगभग 700 कबूतरों के जीवन से जुड़ा है. कई सालों से इस टाउन के आम लोग और व्यापारी कबूतरों की समस्या से परेशान हैं. चिड़ियों की गंदगी से तंग आ कर यहां के निवासी, रेस्त्रां मालिक और लिंबुर्ग के नॉयमार्क्ट सेंट्रल स्क्वेयर के आसपास के दुकानदारों ने इसकी कई शिकायतें की. इन शिकायतों के बाद आखिर कबूतरों के खिलाफ कानूनी लड़ाई शुरू हुई. समाचार एजेंसी डीपीए की खबर के मुताबिक हाल में हुई गणना में इन कबूतरों की संख्या लगभग 700 है.

लिंबुर्ग के लोग कबूतरों के कारण फैलने वाली गंदगी से परेशान हैंतस्वीर: Alexandra Michel/onemorepicture/IMAGO

पिछले साल नवंबर में नगर परिषद ने लिंबुर्ग में कबूतरों की बढ़ती आबादी पर रोक लगाने के लिए बाज पालने वाले को काम पर रखने का फैसला किया था. बाज के जरिए कबूतरों की गर्दन तोड़ कर उन्हें मारने की बात सोची गई थी. हालांकि इस फैसले के बाद पशु अधिकार कार्यकर्ताओं का विरोध शुरू हुआ. ऑनलाइन हस्ताक्षर अभियान चले. इसके बाद एक जनमत संग्रह कराने की बात तय हुई.

9 जून को हुए जनमत संग्रह के बाद लिंबुर्ग के मेयर मारियस हान ने कहा कि नगरवासियों ने तय किया है, "कबूतरों की आबादी को अगले दो सालों में बाज पालने वाले की मदद से कम किया जाएगा जो जानवरों को अचेत करते और मारते हैं."

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"मौत की सजा"

हालांकि पशु अधिकार कार्यकर्ता जनमत संग्रह के नतीजों पर हैरानी जता रहे हैं. उन्होंने इसे "मौत की सजा" कहा है और इसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की बात कही है. लाउबाख ने समाचार एजेंसी एपी से बातचीत में कहा कि जनमत संग्रह के नतीजों पर अमल से पहले इसकी आखिरी समीक्षा होनी अभी बाकी है. 

2011 में कासेल की प्रशासनिक अदालत ने भी कबूतरों को मारने के मामले में एक फैसला सुनाया था. लिंबुर्ग इसी अदालत के अधिकार क्षेत्र में आता है. इस फैसले में कबूतरों को मारे जाने को उनकी आबादी के आकार, सेहत पर खतरा या इमारतों को नुकसान से जोड़ने की बात कही गई थी. लाउबाख ने कहा, "इसका मतलब है कि हमें बहुत सावधानी से देखना होगा कि क्या हम कासेल की प्रशासनिक अदालत की ओर से लगाई गई शर्तों का पालन कर रहे हैं." लाउबाख ने साफ तौर पर कहा कि यहां देखना जरूरी है कि क्या कबूतर इमारतों को नुकसान पहुंचा रहे हैं, क्या वे लोगों के स्वास्थ्य के लिए खतरा हैं या उनकी आबादी अब इतनी ज्यादा बढ़ गई है कि कदम उठाना जरूरी है.

लाउबाख ने बताया कि इस मामले की वजह से नगर के प्रतिनिधियों को मसलन मेयर और प्रशासनिक अधिकारियों को भी बहुत कुछ झेलना पड़ रहा है. उन्हें अपमानित करने और धमकियों वाले ईमेल, चिट्ठियां भेजे जा रहे हैं, फोन कर के धमकाया जा रहा है. कबूतरों के लिए काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं का रवैया इस मामले में बहुत उग्र है.

एनआर/एडी (एपी)

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