जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने नाटो और तुर्की के साथ रिश्तों पर अपने रुख पर कायम रहने के साथ, जर्मनी आने वाले शरणार्थियों की तादाद पर किसी हाल में रोक न लगाने की बात कही.
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जर्मन टीवी चैनल पर इस इंटरव्यू के साथ ही 24 सितंबर को होने वाले आम चुनाव (बुंडेसटाग) का प्रचार अभियान शुरु हो गया. सार्वजनिक चैनल एआरडी से बातचीत करते हुए चांसलर मैर्केल ने चुनाव में जीत हासिल करने का अपना इरादा जाहिर किया, "कोई नहीं कह सकता कि जीवन में क्या होगा, लेकिन मैं जरूर चाहती हूं कि मैं अगले चार साल और रहूं."
घरेलू मोर्चे पर विपक्ष ने मैर्केल के सामने शरणार्थी संकट और आर्थिक निवेश के सवाल पेश किये हैं. इसके अलावा तुर्की और नाटो के साथ संबंधों को लेकर उनके रुख पर भी विपक्ष घेरता रहा है. जर्मन संसद बुंडेसटाग चुनाव में उन्हें चुनौती देने वाले एसीपीडी नेता मार्टिन शुल्त्स ने इन मुद्दों को लेकर मैर्केल पर सवाल खड़े किये हैं. अक्सर मध्यमार्गी रवैया रखने वाली नेता मैर्केल ने इन सब मुद्दों पर अपने रुख का पुरजोर समर्थन किया.
मैर्केल की क्रिस्चियन डेमोक्रैटिक यूनियन की सहयोगी पार्टी सीएसयू की आपत्ति के बावजूद मैर्केल ने देश में प्रवेश करने वाले शरणार्थियों की संख्या पर कोई ऊपरी सीमा तय करने से इनकार किया. उन्होंने कहा, "मेरी स्थिति साफ है, मैं इसे स्वीकार नहीं करूंगी." शरणार्थियों की संख्या कम करने के लिए उन्होंने उन हालातों को बदलने के लिए कदम उठाने और नियम बनाने की बात की, जिनके कारण लोग अपना देश छोड़ कर भागने को मजबूर हो जाते हैं. सीएसयू नेता हॉर्स्ट जेहोफर पहले ही चेतावनी दे चुके हैं कि जब तक मैर्केल शरणार्थियों की संख्या पर एक सालाना सीमा नहीं तय करतीं, वे उनकी पार्टी के साथ गठबंधन में शामिल नहीं होंगे.
डिजिटाइजेशन को बढ़ावा देने के लिए इसमें निवेश बढ़ाने की जरूरत पर विपक्षी उम्मीदवार शुल्त्स के बयान का समर्थन करते हुए मैर्केल ने कहा कि समस्या पैसे की कमी नहीं बल्कि इससे जुड़ी लंबी योजना प्रक्रिया है.
तुर्की के साथ चली आ रही तनातनी पर मैर्केल ने नाटो की अहम भूमिका बतायी. उन्होंने कहा कि इस रक्षा संधि के सदस्य होने के कारण दोनों ही देश इस्लामिक स्टेट के खिलाफ लड़ाई में साथ हैं और इसे जारी रखने के लिए दोनों देशों के बीच बातचीत जरूरी है, लेकिन तुर्की में स्थित नाटो बेस में तैनात जर्मन सैनिकों से जर्मन सांसदों को ना मिलने देने को लेकर उनकी सरकार तुर्की के साथ कोई समझौता नहीं करेगी.
आरपी/एनआर (डीपीए)
जर्मनी में चुनाव लड़ने के लिए क्या चाहिए
सीडीयू और एसपीडी जैसी बड़ी पार्टियां तो चुनावी सूची में होंगी ही, लेकिन छोटी पार्टियों के लिए जर्मन आम चुनाव के बैलट में जगह बनाना बड़ी बात है. देखिए कैसे होता है ये काम.
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24 सितंबर को जब जर्मन नागरिक अपनी नई सरकार चुनने के लिए वोट देंगे तो ज्यादातर सीडीयू, एसपीडी, ग्रीन पार्टी या शायद एएफडी को वोट दें. लेकिन कई पार्टियों का नाम तो वोटर पहली बार सीधे बैलट पेपर पर ही देखते हैं.
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बैलेट पेपर में नाम लाने के लिए छोटी पार्टियों को पहला काम तो ये करना पड़ता है कि समय पर चिट्ठी 'लेटर ऑफ इंटेंट' भेज कर अपनी मंशा जाहिर करें. और दूसरा काम ये सिद्ध करना होता है कि वे असल में एक राजनैतिक दल हैं.
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ऐसी पार्टी जिसके पिछले चुनाव से लेकर अब तक बुंडेसटाग या किसी राज्य की संसद में कम से कम पांच सदस्य भी ना रहे हों, वह गैर-स्थापित पार्टी मानी जाती है. इन्हें चुनाव से पहले लिखित में 'लेटर ऑफ इंटेंट' भेजना पड़ता है. इसे "बुंडेसवाललाइटर" यानि केंद्रीय चुनाव प्रबंधक को भेजना होता है और यह पत्र चुनाव की तारीख से 97 दिन पहले मिल जाना चाहिए.
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इस लेटर ऑफ इंटेंट पर पार्टी प्रमुख और दो उप प्रमुखों के हस्ताक्षर होने चाहिए. उनके कार्यक्रमों का ब्यौरा होना चाहिए और साथ ही एक राजनीतिक दल के तौर पर उनके स्टेटस का सबूत होना चाहिए. जर्मन कानून (पार्टाइनगेजेत्स) के आधार पर चुनाव प्रबंधक और टीम तय करते हैं कि पार्टी मान्य है या नहीं. इसके लिए उनका मुख्यालय जर्मनी में होना चाहिए और कार्यकारिणी के बहुसंख्यक सदस्य जर्मन नागरिक होने चाहिए.
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इसके पहले 2013 में हुए संसदीय चुनावों में वोटरों के पास 30 से भी अधिक पार्टियों में से चुनने का विकल्प था. इनमें से केवल पांच दल ही बुंडेसटाग में जगह बना पाये. ये थे सीडीयू और उसकी बवेरियन सिस्टर पार्टी सीएसयू, एसपीडी, लेफ्ट पार्टी डी लिंके और ग्रीन पार्टी.
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आर्थिक रूप से उदारवादी मानी जाने वाली एफडीपी को बुंडेसटाग में जगह पाने के लिए जरूरी 5 फीसदी वोट भी नहीं मिल सके थे. पांच प्रतिशत की चौखट पार करने वाले को ही संसद में प्रवेश करने को मिलता है. ऐसा ही अल्टरनेटिव फॉर जर्मनी (एएफडी) के साथ भी हुआ.
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एएफडी और एफडीपी दोनों पार्टियां तो बहुत कम अंतर से पांच प्रतिशत की शर्त को पूरा करने से चूक गयीं. लेकिन कई दूसरी बहुत छोटी पार्टियां जैसे एनीमल प्रोटेक्शन पार्टी, मार्क्सिस्ट-लेनिनिस्ट पार्टी और कुछ अन्य तो कुछ हजार वोट लेकर बहुत पीछे रह गयी थीं.