जर्मनी में नागरिकता पाना आसान नहीं रहा है, लेकिन उसे गंवाना भी मुश्किल रहा है. अब आतंकी संगठनों के लिए विदेशों में लड़ने वालों की नागरिकता छीनी जा सकती है. जर्मन संसद ने नागरिकता कानून में कई सुधार किए हैं.
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जर्मनी ने आतंकवादी लड़ाकों, कई शादियां करने वालों और पहचान छुपाने वालों के लिए नागरिकता कानून में बदलाव किया है. नए कानून के अनुसार विदेशों में आतंकी संगठनों की हिंसक लड़ाई में शामिल होने वालों की नागरिकता छीनी तो जा सकती है, लेकिन इसकी एक शर्त ये होगी कि प्रभावित व्यक्ति के पास कम से कम एक और नागरिकता हो. इस कानून का असर मुख्य रूप से जर्मन नागरिकता लिए विदेशी मूल के लोगों पर होगा. सांसद मिषाएल कुफर के अनुसार इस कानून का मकसद युद्ध क्षेत्रों से आतंकवादियों और हिंसक लोगों को जर्मनी आने से रोकना है ताकि वे यहां रहने वाले लोगों के लिए खतरा न बन जाएं.
जर्मन नागरिकता कानून में बदलाव राजनीतिक विवादों के बिना नहीं हुआ है. सत्तापक्ष के सीडीयू, सीएसयू और एसपीडी पार्टियों ने इसका समर्थन किया तो विपक्षी दलों ने इसे पूरी तरह नकार दिया. धुर दक्षिणपंथी एएफडी के लिए ये कदम पर्याप्त नहीं हैं तो उदारवादी एफडीपी, वामपंथी डी लिंके और पर्यावरणवादी ग्रीन पार्टियों ने इस कदम को बढ़ा चढ़ाकर उठाया गया कदम बताया है. वामपंथी पार्टी की दलील है कि यदि एक बार नागरिकता छीनने की शुरुआत हो जाती है तो बाद में अपराधियों और राजनीतिक रूप से नापसंद लोगों की नागरिकता वापस लेने की भी मांग उठ सकती है.
नागरिकता कानून में संशोधन के साथ नागरिकता देने के नियमों में भी सख्ती लाई गई है. भविष्य में कई शादियां करने वाले लोगों को नागरिकता नहीं दी जाएगी. पिछले महीनों में युद्ध क्षेत्रों से ऐसे बहुत से शरणार्थी आए हैं जिन्होंने एक से ज्यादा शादी कर रखी है. इसके अलावा नागरिकता लेते समय पहचान की गलत सूचना देने पर नागरिकता छीनने की अवधि को पांच साल से बढ़ाकर दस साल कर दिया गया है. इस कानून पर संसद के ऊपरी सदन बुंडेसराट में शुक्रवार को ही विचार हो रहा है.
दुनिया भर में ऐसे तकरीबन डेढ़ करोड़ लोग हैं जिन्हें कोई भी देश अपना नागरिक नहीं मानता. नागरिकता विहीन लोग मूलभूत मानवीय अधिकारों के लिए तरस रहे हैं लेकिन किसी भी देश को इनकी चिंता नहीं है.
तस्वीर: Arte France & Nova Production
म्यांमार
म्यांमार एक बौद्ध बहुल देश है. साल 1982 में म्यांमार में पारित हुए एक नागिरकता कानून ने लाखों रोहिंग्या मुसलमानों को बेघर कर दिया. रोहिंग्या लोगों के खिलाफ हुई जातीय हिंसा के चलते लाखों लोग म्यांमार छोड़कर बांग्लादेश भाग गए. बांग्लादेश में तकरीबन नौ लाख रोहिंग्या लोग रह रहे हैं. इन लोगों को ना तो म्यांमार और ना ही बांग्लादेश अपना नागरिक मानता है.
तस्वीर: DW/M.M. Rahman
आइवरी कोस्ट
आइवरी कोस्ट में तकरीबन 6.92 लाख ऐसे लोग हैं जिनके पास किसी भी देश की नागरिकता नहीं है. इनमें से अधिकतर ऐसे प्रवासियों के वंशज है जो खासकर बुर्किना फासो, माली और घाना में काम करने आए थे. 20वीं शताब्दी के दौरान आइवरी कोस्ट के कॉफी और कपास के बागानों में काम करने के लिए दुनिया भर से लोगों को लाया गया था.
तस्वीर: Getty Images/AFP/I. Sanogo
थाईलैंड
पर्यटकों के बीच लोकप्रिय थाईलैंड में रहने वाले तकरीबन 4.79 लाख लोग किसी भी देश के नागरिक नहीं है. नागरिकता ना पाने वालों की श्रेणी में देश की याओ, हमोंग और करेन जैसी पहाड़ी जनजातियों के सदस्य भी शामिल हैं. ये जनजातियां म्यांमार और लाओस के साथ सटे पहाड़ी सीमा के इलाकों में रहते हैं.
तस्वीर: Reuters/S. Zeya Tun
एस्टोनिया/लातविया
जब सोवियत संघ का विघटन हुआ तो कई रूसी जनजातियां नए बाल्टिक राज्यों में फंस गई, जिन्हें बाद में "गैर-नागरिक" माना गया. आज तकरीबन 2.25 लाख गैर नागरिक लातविया में और तकरीबन 78 हजार लोग एस्टोनिया में रह रहे हैं. इनमें से अधिकतर ऐसे लोग हैं जिन्हें नागरिकता पाने में तमाम मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है और कई मौकों पर भेदभाव भी झेलना पड़ता है.
तस्वीर: Getty Images/R. Pajula
सीरिया
साल 1962 में देश के उत्तरपूर्वी इलाकों में रहने वाले हजारों कुर्दों से नागरिकता छीन ली गई. इस कदम को ह्यूमन राइट्स वॉच "अरबीकरण" की कोशिश कहता है. संयुक्त राष्ट्र के डाटा के मुताबिक सीरिया में गृहयुद्ध शुरू से पहले पहले तकरीबन तीन लाख कुर्द बिना नागिरकता के रहते थे लेकिन अब इनकी संख्या तकरीबन 1.50 लाख के करीब रह गई है.
तस्वीर: picture-alliance/AP/K. Mohammed
कुवैत
कुवैत में रहने वाली खानाबदोश बिदुएन जनजाति भी साल 1961 के बाद नागिरकता पाने में विफल रही. माना जाता है कि बिदुएन लोगों के पूर्वज बिदून कहलाते थे. अरबी में बिदून का मतलब होता है "नागरिकता विहीन." संयुक्त राष्ट्र की ओर से जारी डाटा के मुताबिक कुवैत में आज भी करीब 92 हजार बिदुएन लोग रहते हैं. इन लोगों को अकसर मुफ्त शिक्षा और कई नौकरियों से दूर रखा जाता है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/Y. Al-Zayyat
इराक
इराक में तकरीबन 47 हजार ऐसे लोग हैं जिन्हें कोई देश अपना नागरिक नहीं मानता. ऐसे लोगों में बिदून, फलस्तीनी रिफ्यूजी, कुर्द और अन्य जातीय समूह हैं जो सदियों से इराक-ईरान पर सीमा पर रहते आए हैं.
तस्वीर: picture-alliance/Y. Akgul
यूरोप
दसवीं शताब्दी में भारत में पलायन कर यूरोप पहुंचाने वाली बंजारा जनजाति रोमा के भी हजारों लोग यूरोप के कई मुल्कों में बिना नागरिकता के रह रहे हैं. चेकोस्लोवाकिया और यूगोस्लाविया के विघटन के बाद बने नए देशों ने इस बंजारा जनजाति को अपना नागरिक मानने से इनकार कर दिया. रोमा समुदाय कोसोवो और बोसनिया में भी बिना नागरिकता के रह रहा है.
तस्वीर: DW/J. Djukic Pejic
कोलंबिया
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक वेनेजुएलाई नागरिकों के तकरीबन 25 हजार बच्चे जो राजनीतिक और आर्थिक संकट के चलते कोलंबिया भाग गए उनमें से अधिकतर बगैर नागरिकता के रह रहे हैं. कोलंबिया के नागरिकता कानून के मुताबिक नागरिकता पाने के लिए मां-बाप में से कम से कम एक किसी व्यक्ति को कोलंबिया का नागरिक होना चाहिए.
तस्वीर: DW/Lucy Sherriff
नेपाल
नेपाल हमेशा कहता रहा है कि वहां कोई नागरिकता विहीन व्यक्ति नहीं है. लेकिन यूएन के डाटा के मुताबिक नेपाल में ऐसे लोगों की अच्छी खासी संख्या है जिन्हें 90 के दशक में भूटान ने अपने देश से बाहर कर दिया था. (स्रोत: संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी कार्यालय, इंस्टीट्यूट ऑन स्टेटलैसनेस एंड इनक्लूजन )