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समाज

जर्मनी में अब भी मुसलमानों के सामने कई बाधाएं

रिचर्ड कोनोर
२१ सितम्बर २०२०

लगभग दस साल पहले जर्मन राष्ट्रपति क्रिस्टियान वुल्फ ने कहा था कि इस्लाम पूरी तरह जर्मन समाज का हिस्सा है. उस समय उनके इस बयान से तीखी बहस छिड़ गई थी. लेकिन जर्मन दस साल बाद क्या स्थिति है?

Symbolbild | "Antimuslimischen Rassismus"
तस्वीर: imago images/IPON

क्रिस्टियान वुल्फ का बयान तो छोटा था लेकिन उसका असर बहुत बड़ा हुआ. जर्मन एकीकरण की 20वीं वर्षगांठ पर तत्कालीन राष्ट्रपति ने इस्लाम को जर्मनी का हिस्सा करार दिया था. उनके इस दावे ने देश में इस्लाम की भूमिका पर देशव्यापी बहस छेड़ दी थी. और यह बहस आज तक चल रही है. 2010 में दिए गए वुल्फ के बयान ने कई लोगों को क्रोधित किया तो कइयों को उनकी ये बात अंदर तक छू गई.

आज दसियों लाख मुसलमान जर्मनी को अपना घर कहते हैं. कई परिवार इस देश में दो, तीन और चार पीढ़ियों से रह रहे हैं. लेकिन कुछ लोगों के लिए जर्मन समाज की मुख्यधारा में शामिल होना, अपनी स्वीकार्यता हासिल करना आसान नहीं रहा है

गोएटिंगन यूनिवर्सिटी में इस्लाम पर काम करने वाली रीम श्पीलहाउस कहती हैं कि वुल्फ के बयान से बहुत से लोगों ने सहमति जताई. वह बताती है कि यह बयान दिए जाने के बाद के सालों में मुसलमानों के एकीकरण और उनकी स्वीकार्यता को लेकर काफी प्रगति हुई. लेकिन 2016 आते आते यह प्रक्रिया ठहर गई. श्पीलहाउस बताती हैं, "और जो प्रगति हुई, कुछ हद तक उसे हमने गंवा दिया."

यह प्रगति कहां पर हुई है? और किन क्षेत्रों में अभी प्रगति की जरूरत है? श्पीलहाउस कहती हैं कि जर्मन सरकार के पास शायद ही ऐसी कोई शक्ति है जिससे वह देशव्यापी बदलावों के लिए दबाव डाल सके, जैसे कि जर्मन सेना में मुस्लिम इमामों को नियुक्त करना. वह कहती हैं कि जर्मनी के विभिन्न राज्यों में ऐसे कानूनी प्रावधान किए गए हैं जिनके जरिए मुसलमानों को समाज में मुनासिब जगह दी जा सके. इसमें कब्रिस्तानों का इंतजाम करना, इस्लामी छुट्टियों के दिन समय देना, अस्पतालों और जेलों में आध्यात्मिक देखभाल की सुविधा मुहैया कराना और यूनिवर्सिटियों में इस्लामी धर्मशास्त्र की पढ़ाई का प्रबंध करना शामिल है. लेकिन जब बात स्कूलों में इस्लाम की शिक्षा देने की आती है तो जर्मन राज्यों का इस बारे में रुख बहुत अलग अलग है.

श्पीलहाउस इस बात का स्वागत करती हैं कि जर्मन अदालतों का रवैया भी बदल रहा है. बुनियादी धार्मिक मामलों पर फैसला देते हुए, बहुत से लोग अब धार्मिक बहुलता की अहमियत पर जोर देते हैं.

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एकता की कमी

जर्मनी में कई बड़े मुस्लिम संगठन सक्रिय हैं, जिन्हें विदेशों से आर्थिक मदद मिलती है. इनमें टर्किश इस्लामिक यूनियन फॉर रिलीजियस अफेयर (डीआईटीआईबी) का नाम सबसे अहम है. विदेशी मदद लेने की वजह से जर्मन सांसद इन संगठनों के साथ नजदीकी सहयोग करने से बचते हैं क्योंकि उन्हें बाहरी हस्तक्षेप की चिंता रहती है.

श्पीलहाउस कहती हैं कि आज जर्मनी में बहुत सारे मुस्लिम संगठन काम कर रहे हैं लेकिन ये सभी मुसलमानों का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं, हालांकि वे ऐसा दावा जरूर करते हैं. मिसाल के तौर पर जर्मन इस्लामिक कॉन्फ्रेंस में ऐसा स्पष्ट तौर पर दिखा जब अलग अलग मुस्लिम संगठनों के बीच कई बुनियादी मुद्दों पर खुली असहमति थी.

एकता की यह कमी मुसलमानों के एकीकरण के मुद्दे पर प्रगति को मुश्किल बनाती है. इसीलिए जर्मन सरकार और देश के मुस्लिम संगठनों के बीच सहयोग में बहुत बाधाएं आती हैं. मिसाल के तौर पर इस साल जुलाई में जर्मनी के विदेश मंत्री ने एक मुस्लिम वकील नूरहान सोयकान को अपने एक विभाग में सलाहकार बनाने की कोशिश की. लेकिन जल्द ही इस घोषणा की आलोचना होने लगी. सेंट्रल काउंसिल ऑफ मुस्लिम इन जर्मनी के उपाध्यक्ष सोयकान पर कई लोगों ने आरोप लगाए कि उन्होंने धार्मिक चरमपंथ को नियंत्रित करने के लिए पर्याप्त काम नहीं किया है. विवाद बढ़ता देख विदेश मंत्री को अपने कदम पीछे खींचने पड़े और सोयकान को हटा दिया गया.

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जर्मनी में युवा मुसलमान

डेनिस सादिक किर्शबाउम एक ऐसे संगठन का नेतृत्व कर रहे हैं जो युवा जर्मन मुसलमानों की भागीदारी समाज में बढ़ाने के लिए काम कर रहा है. संगठन का नाम है जुमा और इसे 2019 में स्थापित किया गया था. किर्शबाउम कहते हैं कि पारंपरिक मुस्लिम संगठन उनकी पीढ़ी के युवा लोगों को प्रभावित नहीं करते हैं. वह बताते हैं कि जर्मनी में 16 मुस्लिम युवा संगठन बनाने की योजना है और इनमें से कोई भी सिर्फ धर्म को अपनी पहचान नहीं बताता है. इन संगठनों के गठन मकसद युवा मुसलमानों को आवाज देना है.

लेकिन श्पीलहाउस कहती हैं कि इस्लामी समूहों के पास ईसाई समूहों की तुलना में कम वित्तीय और मानवीय संसाधन होते हैं. इससे उनका प्रभाव सीमित हो सकता है. इसके अलावा वह जर्मनी में "बढ़ती धार्मिक आलोचना और इस्लाम को लेकर नफरत" की भी चेतावनी देती हैं.

इस साल फरवरी में फ्रैंकफर्ट के पास हनाऊ में जब एक नस्लवादी व्यक्ति ने विदेशी मूल के नौ लोगों की गोली मार कर हत्या कर दी थी, तो पूरा जर्मनी और देश का मुस्लिम समुदाय स्तब्ध था. मुद्दों की बेहतर समझ के लिए जर्मन गृह मंत्री हॉर्स्ट जेहोफर ने विशेषज्ञों का एक विशेष समूह बनाया ताकि देश में इस्लाम को लेकर मौजूद नफरत की समस्याओं की छानबीन की जा सके.

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