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समाज

जर्मनी में आप्रवासियों के स्टार्टअप नई सोच के

१२ नवम्बर २०२०

जर्मनी में विदेशी मूल के लोगों की कंपनियां देश के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है. ऐसी ही एक कंपनी इस हफ्ते कोरोना वैक्सीन के कारण चर्चा में है.

Symbolbild Corona Impfstoff Biontech und Pfizer BNT162bt
तस्वीर: Jens Krick/Flashpic/picture alliance

इस हफ्ते जर्मनी कंपनी बियोनटेक ने कोरोना वैक्सीन पर हो रहे टेस्ट की सकारात्मक रिपोर्ट दी. कंपनी ने कहा कि वैक्सीन के 90 फीसदी से ज्यादा लोगों में सकारात्मक नतीजे रहे हैं. इस स्टडी के साथ न सिर्फ कोरोना महामारी पर काबू पाने की उम्मीदें बढ़ी हैं, नए क्षेत्रों में स्टार्ट कंपनियों के महत्व पर भी लोगों का ध्यान गया है. कंपनी को यूरोपीय संघ से 30 करोड़ वैक्सीन का ऑर्डर मिला है. कंपनी की कामयाबी में इस बात की भी चर्चा हो रही है कि बियोनटेक के संस्थापक उगुर साहीन और ओजलेम तुरेची तुर्क मूल के हैं. उगुर साहीन चार साल की उम्र में अपने तुर्क माता पिता के साथ जर्मनी आए थे. ओएजलेम तुरेची उनकी पत्नी है और कंपनी में डायरेक्टर हैं.

सरकारी बैंक केएफडब्ल्यू की एक ताजा स्टडी के अनुसार जर्मनी में आप्रवासी आबादी सिर्फ नौकरियों पर ही निर्भर नहीं हैं, वे नई स्टार्टअप कंपनियां भी बना रहे हैं और स्थानीय अर्थव्यवस्था में उनका महत्व लगातार बढ़ता जा रहा है. 2019 में आप्रवासियों के नई कंपनी बनाने के मामलों में पांच फीसदी की वृद्धि हुई और देश भर में इस साल बनी कंपनियों में उनका हिस्सा 26 प्रतिशत रहा.

ऐसे बन रहे हैं आप्रवासी कारोबारी

आर्थिक और पर्यावरण विकास को प्रोत्साहन देने वाले बैंक का कहना है कि विदेशी मूल के लोग "रोजगार बाजार में खराब मौकों, जोखिम उठाने की ज्यादा तैयारी और आदर्श लोगों के प्रभाव की वजह से आम आबादी की तुलना में ज्यादा मात्रा में स्टार्टअप शुरू कर रहे हैं." बहुत से लोग कारोबार में रिश्तेदारों या दोस्तों की कामयाबी को देखकर भी उससे प्रेरणा लेते हैं और अपना कारोबार शुरू करते हैं. बैंक का ये भी कहना है कि पुराने सर्वे दिखाते हैं कि आप्रवासियों की कंपनियां ज्यादा इनोवेटिव और विकासपरक है.

स्वरोजगार में आगे आप्रवासी (बियोनटेक के साहीन और तुरेची)तस्वीर: Stefan F. Sämmer/imago images

जर्मनी में आप्रवासी उसे कहा जाता है जिसके पास जर्मन नागरिकता या तो नहीं है, या जन्म के समय नहीं थी. केएफडब्ल्यू बैंक के अनुसार नई कंपनी शुरू करने की दर आप्रवासियों में 137 प्रतिशत है जबकि पूरी आबादी में ये दर 117 प्रतिशत है. रोजगार में सक्षम 10,000 लोगों पर नए उद्यमों की स्थापना करने वालों से ये दर बनती है. 2019 में जर्मनी में 605,000 नवउद्यमियों ने कंपनी बनाई जिनमें विदेशी मूल के लोगों की तादाद 160,000 थी. केएफडब्ल्यू की मुख्य अर्थशास्त्री फ्रीत्सी कोएलर गाइब का कहना कि आप्रवासियों के आत्मनिर्भर होने की बड़ी तैयारी से जर्मनी को सालों से लाभ हो रहा है.

जर्मनी में 2019 में आबादी का 26 प्रतिशत हिस्सा विदेशी मूल के लोगों का था. आंकड़ों के अनुसार करीब 2.1 करोड़ लोग आप्रवासी पृष्ठभूमि के हैं. इनमें से करीब 1 करोड़ अब भी विदेशी पासपोर्टधारी हैं जबकि 1.1 करोड़ जर्मन नागरिकता ले चुके हैं. इनमें से ज्यादातर लोग यूरोपीय देशों से आए हैं. 35 प्रतिशत लोग यूरोपीय संघ के देशों से हैं जबकि 13 प्रतिशत तुर्की से आए हैं.

एमजे/एके (डीपीए, रॉयटर्स)

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