सरकारी आंकड़ें बताते हैं कि किसी अन्य देश से आने वाले प्रवासियों की तुलना में पाकिस्तानी लोग जर्मनी में आसानी से रच-बस जाते हैं. साथ ही नौकरी तलाशने में भी इन लोगों को कोई खास समस्या नहीं होती.
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अकबर अली न तो जर्मन बोलना जानता था और न ही वह जर्मन समझता था. लंबे समय तक उसे लगता रहा कि शायद उसके लिए जर्मन समाज के तौर-तरीके अपनाना और इसमें घुलना-मिलना आसान नहीं होगा. लेकिन उसने जल्द ही जर्मन और यूरोपीय लोगों को भाने वाला भारतीय-पाकिस्तानी स्टाइल का खाना बनाना सीख लिया. बस फिर क्या था, नौकरी मिली और जिंदगी सरपट दौड़ने लगी. आज अली को जर्मनी के शहर बॉन में भारत-पाक खाना परोसने वाले एक रेस्तरां का किचन संभालते हुए 10 महीने बीत गए. डीडब्ल्यू से बातचीत में अली ने कहा, "भाषा का ज्ञान न होना यहां एक बड़ी समस्या है. यहां मुश्किल से ही कोई मेरी बात समझता था. यहां कोई काम न होना और न कोई सोशल लाइफ मेरे लिए जर्मनी में सबसे मुश्किल वक्त था."शरणार्थियों के स्वदेश लौटने को जर्मनी का प्रोत्साहन
काम से मिलती संतुष्टि
अली पाकिस्तान के उन 30 हजार प्रवासियों में से एक था जो 2015 में जर्मनी आए. अली उन चंद खुशकिस्मत प्रवासियों में से एक है जो जर्मनी में अपने लिए काम खोज सका. जर्मनी की फेडरल एम्प्लाइमेंट एजेंसी के तहत आने वाले इंस्टीट्यूट फॉर एम्प्लाइमेंट रिसर्च (आईएबी) के अध्ययन की मानें तो पाकिस्तानी जर्मनी में सबसे अच्छे से रचने-बसने और नौकरी पाने वाले प्रवासियों में से एक हैं. अली के लिए काम पाना न सिर्फ पैसा कमाने का एक जरिया है. बल्कि काम में लग कर वह अपने भाई की मौत का गम भी भूल जाता है.
कैसे बना जर्मनी शरणार्थियों की पहली पसंद
जब शरणार्थी यूरोप का रुख कर रहे थे तब जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने इनके लिये "ऑपन डोर पॉलिसी" अपनाई. मैर्केल की नीति ने शरणार्थियों के लिए तो राह आसान की वहीं विरोधियों को राजनीतिक जमीन दे दी. एक नजर पूरे मसले पर.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/A. Weigel
25 अगस्त 2015
जर्मनी ने सीरियाई लोगों के लिये डबलिन प्रक्रिया को निलंबित करने का निर्णय लिया. इसके तहत शरणार्थियों को यूरोपीय संघ के उन देशों में रजिस्ट्रेशन कराना पड़ता है जहां वे सबसे पहले दाखिल हुए थे. जर्मनी ने उन्हें उन देशों में वापस न भेजने का फैसला लिया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/A. Weigel
31 अगस्त 2015
जर्मन चांसलर मैर्केल ने कहा कि "हम यह कर सकते हैं". यह वही वक्त था जब शरणार्थी संकट यूरोप के लिए सबसे बड़ा नजर आ रहा था. मध्य-पूर्व में छिड़े युद्ध के कारण जर्मन सरकार ने सैकड़ों शरणार्थियों को संरक्षण प्रदान किया और मैर्केल ने इसे राष्ट्रीय कर्तव्य बताया.
तस्वीर: Getty Images/AFP/Odd Andersen
4 सितंबर 2015
जर्मनी और ऑस्ट्रिया ने हंगरी में फंसे शरणार्थियों के लिये सीमायें खोल दीं. म्यूनिख के मुख्य रेलवे स्टेशन पर जर्मन वालंटियर्स ने सैकड़ों शरणार्थियों का स्वागत किया. इसने जर्मनी की स्वागत करने की संस्कृति को उजागर किया और फिर क्या था, जर्मनी, यूरोप में शरण चाहने वालों का पंसदीदा देश बन गया.
तस्वीर: Getty Images/AFP/C. Stache
13 सितंबर 2015
जर्मनी ने आस्ट्रिया के साथ सीमा नियंत्रण मजबूत करना शुरू किया. दोनों देशों के बीच दो घंटे तक ट्रेनों को रोक दिया गया. उस वक्त जर्मनी में हजारों शरणार्थी दाखिल हो रहे थे लेकिन जर्मनी के कई छोटे शहरों के लिये इससे निपटना आसान नहीं था.
15 अक्टूबर 2015
यूरोपीय संघ और तुर्की ने तुर्की से यूरोप आने वाले शरणार्थियों की समस्या से निपटने के लिये संयुक्त एक्शन प्लान तय किया. जर्मन संसद के निचले सदन बुंडेस्टाग ने शरणार्थी कानून में परिवर्तन किया और अल्बानिया, कोसोवो और मोंटेनिग्रो को सुरक्षित देश घोषित किया. इसके बाद इन देशों के शरणार्थियों को वापस भेजना संभव हुआ.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/L. Pitarakis
दिसंबर 2015
जर्मनी ने शरणार्थियों को जगह दी थी. आम लोग सामने आकर उनकी मदद कर रहे थे, लेकिन एक हिस्से में विरोध की भावना भी पनप रही थी. 2015 के अंत तक तकरीबन 8.90 लाख शरणार्थी जर्मनी में आ चुके थे.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/M. Schreiber
मार्च 2016
स्लोवेनिया, क्रोएशिया, सर्बिया और मैसेडोनिया ने अपनी सीमाएं आप्रवासियों के लिये बंद कर दी. जर्मनी आने के लिये शरणार्थियों द्वारा इस्तेमाल किये जाने वाले बाल्कन मार्ग पर सख्ती कर दी गयी. इसी वक्त धुर दक्षिणपंथी पार्टी अल्टरनेटिव फॉर जर्मनी (एएफडी) ने तीन प्रांतीय चुनावों में सीटें जीती. यूरोपीय संघ और तुर्की ने ग्रीस पहुंचे आप्रवासियों को तुर्की वापस भेजने के लिये एक समझौते पर हस्ताक्षर किया.
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मई 2016
यूरोप में शरणार्थी बड़ी तादाद में आ गये थे, लेकिन कुछ देश उनके आने का पुरजोर विरोध कर रहे थे. इस वक्त यूरोपीय कमीशन ने एक अहम प्रस्ताव रखा. कमीशन का प्रस्ताव उन सदस्य देशों पर जुर्माना लगाने का था जो अपने कोटे के शरणार्थियों को लेने के लिए तैयार नहीं थे.
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Messinis
जुलाई 2016
इस समय तक शरणार्थियों पर कुछ छुटपुट हमलों की भी खबर आई. 19 जुलाई को एक 17 वर्षीय अफगान शरणार्थी ने जर्मनी के वुर्त्सबर्ग के निकट एक ट्रेन में 20 यात्रियों पर चाकू से हमला किया. इसके छह दिन बाद एक सीरियाई शरणार्थी ने भी विस्फोटक डिवाइस का इस्तेमाल किया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/O. Panagiotou
दिसंबर 2016
14 दिसंबर को जर्मनी ने कुछ अफगान शरणार्थियों को वापस भेज दिया. 19 दिसंबर को जर्मनी में शरण को इच्छुक ट्यूनीशिया के एक शख्स ने बर्लिन के क्रिसमस मार्केट में ट्रक से हमला कर दिया. इसमें 12 लोग मारे गये थे और 56 घायल हुए. इन घटनाओं ने मैर्केल की शरणार्थी नीति को सवालों के घेरे में ला दिया.
तस्वीर: Reuters/F. Bensch
फरवरी 2017
बर्लिन में हुए हमले के बाद चांसलर मैर्केल ने शरण लेने में असफल रहे लोगों को वापस भेजे जाने की नई योजना पेश की. इस योजना के केंद्र में अफगानिस्तान से आये लोग थे.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/K. Nietfeld
3 मार्च 2017
चांसलर अंगेला मैर्केल ने ट्यूनीशिया के साथ एक समझौता किया, इसके अंतर्गत 1500 ट्यूनीशियाई प्रवासियों को वापस भेजा जाना तय किया गया था.
तस्वीर: picture-alliance/AA/A. Landoulsi
11 अगस्त 2017
मैर्केल ने संयुक्त राष्ट्र रिफ्यूजी कमीशन के आयुक्त फिलिपो ग्रांडी से मुलाकात की और यूएनएचसीआर को 5 करोड़ यूरो की मदद का आश्वासन दिया. मैर्केल ने भूमध्य सागर के जरिये होने वाली मानव तस्करी से लड़ने वाले का भी समर्थन किया.
तस्वीर: AP
28 अगस्त 2017
मैर्केल ने यूरोपीय और अफ्रीकी नेताओं से मुलाकात कर आप्रवासियों के मुद्दे पर चर्चा की. इस मुलाकात में अफ्रीकी हॉटस्पॉट और रिसेप्शन सेंटर्स पर चर्चा हुई साथ ही शरणार्थियों के लिये अफ्रीकी विकल्प की संभावनाओं को भी खंगाला गया. (एए/वेस्ली डॉकरी)
तस्वीर: Getty Images/J. Koch
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अलीम लतीफ से मिलने से पहले तक अली पैसा कमाने और काम पाने के लिए काफी हाथ-पैर मारता रहा. लेकिन बॉन में रेस्तरां चलाने वाले लतीफ ने अली को मौका दिया. लतीफ कहते हैं, "भाषा न जानने के चलते कई बार लोगों के असली गुर सामने नहीं आ पाते. पाकिस्तानियों के लिए यहां नौकरी पाना मुश्किल है. मैंने अली को इसलिए नौकरी दी क्योंकि मैं जानता था कि उसे ट्रेनिंग देकर होशियार बनाया जा सकता है." लतीफ बताते हैं कि उनके साथ काफी ऐसे पाकिस्तानी स्टूडेंट्स काम करते हैं, जिन्हें पार्ट-टाइम नौकरी की तलाश थी. हालांकि लतीफ यह भी मानते हैं प्रवासियों को नौकरी पर रखने में काफी कागजी कार्रवाई भी करनी होती है, लेकिन उनके साथ काफी सहानुभूति भी होती है.
जर्मन-ईयू नागरिकों को तरजीह
कानूनों के मुताबिक, नौकरियों में सबसे पहले जर्मन और यूरोपीय संघ(ईयू) में शामिल देशों के नागरिकों को तरजीह दी जाती है. गैर-ईयू नागरिकों को केवल उन्हीं कामों में अनुमति मिलती है जिसके लिए जर्मन या ईयू के नागरिक न मिल रहे हों. लेकिन शरणार्थी मुद्दे के चलते 2016 में इन नियमों में थोड़ी ढील बरती गई. कुछ ऐसे ही कारणों के चलते अब पाकिस्तान से आए लोगों को भारतीय और पाकिस्तानी रेस्तरां में काम की अनुमति मिलने लगी है.
दनयाल अली रिजवान भी पाकिस्तान से आया एक ऐसा ही प्रवासी है, जो फिलहाल एक शरणार्थी केंद्र में रह रहा है. रिजवान पाकिस्तान-अफगानिस्तान की सीमा पर सटे परचिनार क्षेत्र से आता है. रिजवान ने डीडब्ल्यू को बताया कि उसने यहां एक भारतीय रेस्तरां में लगभग एक साल काम किया. इसके बाद उसे एक स्थानीय कंपनी में काम मिला. लेकिन फेडरल एम्प्लाइमेंट एजेंसी ने मुझे उसमें काम करने की अनुमति नहीं दी और उसके बाद से मेरे पास काम नहीं है. इस्लाम पढ़ना चाहते हैं जर्मनी में छात्र
कोटा हो रहा है कम
यूरोपीय संघ के जनसांख्किीय विभाग, यूरोस्टेट के मुताबिक साल 2015 से 2017 के बीच जर्मनी में करीब 28 हजार पाकिस्तानी प्रवासी आए. इनमें से करीब 15 हजार लोगों ने तो सिर्फ 2016 में ही शरणार्थी दर्जे के लिए आवेदन दिया था. इसमें से 90 फीसदी पुरुष हैं तो वहीं 10 फीसदी महिलाएं. शरणार्थी का दर्जा चाहने वाले अधिकतर पुरुष जवान हैं. इनमें से तकरीबन 74 फीसदी लोगों की उम्र 18 से 34 साल के बीच है.
जर्मन फेडरल ऑफिस फॉर माइग्रेशन एंड रिफ्यूजी (बीएएमएफ) के एक अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि अधिकतर पाकिस्तानी देश के पंजाब प्रांत से आते हैं. 2015-2017 के दौरान दिए गए कुल शरणार्थी आवेदनों में से महज 5.4 फीसदी को ही मंजूरी दी गई. इसके अलावा भाषा सिखाए जाने से लेकर अन्य मामलों में भी पाकिस्तानी लोगों को ऐसी रियायतें नहीं हैं. लेकिन इसके बावजूद पाकिस्तान से आए प्रवासी, अन्य देशों के शरणार्थियों की तुलना में जल्द काम हासिल कर पा रहे हैं.
पैसे से ज्यादा इज्जत अहम
डीडब्ल्यू से बात करने वाले 10 पाकिस्तानी प्रवासियों में से पांच ने बताया कि उन्हें 2015 के आने के साथ ही नौकरी मिल गई थी. इनमें से अधिकतर ग्रामीण और छोटे शहरों से आते हैं. इनमें से एक है उस्मान. उस्मान की उम्र महज 20 साल है, जो इनमें सबसे छोटा है. उस्मान फर्राटेदार जर्मन बोलना जानता है. वह कहता है कि काम करके वह न सिर्फ पैसे कमाता है बल्कि उसे सामाजिक प्रतिष्ठा और इज्जत भी मिलती है.
अली भी इज्जत को ज्यादा तरजीह देता है. अली कहता है, "मैं काम इसलिए भी करना चाहता हूं क्योंकि मुझे जर्मन सरकार से मिलने वाली मदद पर निर्भर नहीं रहना है. मैं खुद से पैसा कमा कर जिंदगी गुजारना चाहता हूं."
दुनिया की सबसे कड़ी सीमाएं
धरती के सीने पर खींची गई सरहदें कई बार देशों के साथ साथ दिलों को भी बांट देती हैं. दुनिया के कुछ ऐसे ही कठोर बॉर्डर...
तस्वीर: picture-alliance/dpa/A. Sultan
पाकिस्तान-भारत: 'लाइन ऑफ कंट्रोल'
1947 में ब्रिटिश शासकों से मिली आजादी के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध 1949 तक चला था. तभी से कश्मीर इलाके को दोनों देशों के बीच एक लाइन ऑफ कंट्रोल से बांटा गया. मुस्लिम-बहुल आबादी वाला पाकिस्तान अधिशासित हिस्सा और हिन्दू, बौद्ध आबादी वाला भारत का कश्मीर. इस लाइन के दोनों ओर पूरे कश्मीर को हासिल करने का संघर्ष आज भी जारी है. 1993 से अब तक यहां हुई हिंसा में 43,000 लोग मारे जा चुके हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/J. Singh
सर्बिया-हंगरी: बाल्कन रूट के केंद्र में
2015 के शरणार्थी संकट के प्रतीक बन चुके हैं ऐसे दृश्य. सर्बिया और हंगरी के बीच बिछी रेल की पटरियों पर चलकर यूरोप में आगे का सफर करते लोग. सितंबर में इस क्रासिंग को बंद कर दिया गया लेकिन यूरोप के भीतर खुली सीमा होने के कारण ऐसे और रूटों की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता.
तस्वीर: DW/J. Stonington
कोरिया का अंधा पुल
पिछले 62 सालों से दक्षिण और उत्तर कोरिया के बीच की सीमा बंद है और उस पर कड़ा सैनिक पहरा रहता है. दक्षिण कोरिया की तरफ से जाते हुए अगर आपको ऐसा साइन बोर्ड दिखे तो वहां से आगे बढ़ने के बाद आप वापस इस तरफ नहीं आ सकेंगे. 1990 के दशक के अंत से करीब 28,000 उत्तर कोरियाई अपनी सीमा पार कर दक्षिण कोरिया में आ चुके हैं.
तस्वीर: Edward N. Johnson
अमेरिका-मैक्सिको का लंबा बॉर्डर
मैक्सिको से लगी इस सीमा को अमेरिकी "टॉर्टिया वॉल" कहते हैं. यहां दीवार और बाड़ खड़ी कर करीब 1126 किलोमीटर लंबा बॉर्डर खड़ा किया गया है. पूरी पृथ्वी में इतनी कड़ी निगरानी वाली कोई दूसरी सीमा नहीं है. यहां करीब 18,500 अधिकारी बॉर्डर सुरक्षा में तैनात हैं.
तस्वीर: Gordon Hyde
हर दिन 700 को देश निकाला
कड़ी सुक्षा व्यवस्था के बावजूद गैरकानूनी तरीके से मैक्सिको से अमेरिका जाने वाले प्रवासियों की संख्या काफी बड़ी है. केवल 2012 में ही लगभग 67 लाख लोगों ने सीमा पार की. हर दिन ऐसी कोशिश करने वाले करीब 700 लोग मैक्सिको वापस लौटाए जाते हैं.
तस्वीर: DW/G. Ketels
मोरक्को-स्पेन: गरीबी और गोल्फ कोर्स
मोरक्को से लगे स्पेन के दो एन्क्लेव मेलिया और सिउटा को लोग यूरोप पहुंचने का रास्ता मानते हैं. अफ्रीका के कई देशों से लोग अच्छे जीवन की तलाश में इसी तरफ से यूरोप पहुंच कर शरण मांगने की योजना बनाते हैं. कई लोग सीमा पर बड़ी बाड़ों को चढ़ कर पार करने की कोशिश करते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
ब्राजील-बोलीविया: हरियाली किधर?
उपग्रह से मिले चित्र दिखाते हैं कि वनों की अंधाधुंध कटाई के कारण ब्राजील के अमेजन के जंगल काफी कम हो गए हैं. पिछले पचास सालों में जंगलों के क्षेत्रफल में करीब 20 फीसदी कमी आई है. हालांकि अब बोलीविया में भी वनों की कटाई एक बड़ी समस्या बन कर उभर रही है.
तस्वीर: Nasa
हैती-डोमिनिक गणराज्य: एक द्वीप, दो विश्व
देखिए एक ही द्वीप पर स्थित दो देश इतने अलग भी हो सकते हैं. डोमिनिक गणराज्य पर्यटकों की पसंद रहा है जबकि हैती दुनिया के सबसे गरीब देशों में शामिल है. बेहतर जीवन की तलाश में हैती से कई लोग डोमिनिक गणराज्य जाना चाहते हैं. बढ़ती मांग को देखते हुए 2015 में डोमिनिक गणराज्य ने आप्रवास के नियम सख्त किए हैं. तबसे करीब 40,000 हैतीवासी अपने देश वापस लौटे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/J. Bueno
मिस्र-इस्राएल: एक तनावपूर्ण शांति
एक ओर रेगिस्तान तो दूसरी ओर घनी आबादी - यह सीमा मिस्र की मुस्लिम-बहुल और इस्राएल की यहूदी-बहुल आबादी के बीच खिंची है. करीब 30 सालों से चली आ रही शांति के बाद हाल के समय में सीमा पर कुछ हिंसक वारदातों और कड़ी सैनिक निगरानी की खबर आई है. 2013 के अंत तक इस्राएल ने इस सीमा पर बाड़ लगाने का काम पूरा कर लिया था.
तस्वीर: NASA/Chris Hadfield
तीन देश, एक सीमा
दुनिया के कुछ हिस्सों में सीमाओं पर कोई दीवार, बाड़ या सैनिक निगरानी नहीं होती. जर्मनी, ऑस्ट्रिया और चेक गणराज्य की इस सीमा पर एक तीन-तरफा पत्थर इसका सूचक है. शेंगेन क्षेत्र के इन तीनों देशों के बीच खुली सीमाएं हैं. फिलहाल शरणार्थी संकट के चलते यहां अस्थाई बॉर्डर कंट्रोल लगाना पड़ा है.
तस्वीर: Wualex
इस्राएल-वेस्ट बैंक: पत्थर की दीवार
साल 2002 से इस 759 किलोमीटर लंबी सीमा पर विवादित दीवारें और बाड़ें बनाई गई हैं. येरुशलम के इस घनी आबादी वाले क्षेत्र (तस्वीर) में दोनों के बीच कंक्रीट की नौ मीटर ऊंची दीवार बनाई गई है. 2004 में अंतरराष्ट्रीय अदालत ने फलिस्तीनी क्षेत्र में दीवार खड़ी करने को अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन बताया.