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जर्मनी में इस्लाम पर जोरदार बहस

५ अक्टूबर २०१०

जर्मन राष्ट्रपति क्रिश्टियान वुल्फ का कहना है कि इस्लाम जर्मनी का हिस्सा है. चांसलर अंगेला मैर्केल उनसे सहमत हैं पर उनका कहना है कि मुसलमानों को महिलाओं और पुरुषों की समानता जैसे जर्मन आधारभूत मूल्यों का पालन करना चाहिए.

राष्ट्रपति वुल्फतस्वीर: dapd

जर्मन एकीकरण दिवस के दिन राष्ट्रपति ने अपने भाषण में ईसाई यहूदी जड़ों की याद दिलाते हुए कहा था कि इस बीच इस्लाम भी जर्मनी का हिस्सा है. राष्ट्रपति के इस बयान पर इस बीच सारा मुल्क बहस कर रहा है. राजनीतिक और धार्मिक संगठनों के अलावा मुस्लिम आप्रवासी संगठन भी इस बहस में शामिल हैं.

तस्वीर: presse

जर्मनी में मुसलमानों की केंद्रीय परिषद ने वुल्फ के भाषण का स्वागत किया है. परिषद के अध्यक्ष आयमान माजिएक ने कहा, "राष्ट्रपति के शब्द जर्मनी में सभी मुसलमानों के लिए साफ, स्पष्ट और महत्वपूर्ण संकेत है. वुल्फ का भाषण इस बात का संकेत था कि मुसलमान दोयम दर्जे के नागरिक नहीं हैं."

सत्ताधारी सीडीयू, सीएसयू और एफडीपी पार्टियों ने मुसलमानों से जर्मन मूल्यों और संविधान के पालन की अपील की है. क्रिश्टियन डेमोक्रैटिक पार्टी की प्रमुख चांसलर अंगेला मैर्केल ने कहा है कि जर्मन संविधान के मौलिक मूल्यों के साथ कोई समझौता नहीं होगा. मैर्केल ने कहा कि इस्लाम कैसा है और उसे हमारे यहां किस तरह से आगे दिया जा रहा है, इस पर बहस पूरी नहीं हुई है. उन्होंने कहा कि धर्म को पूरा आदर देते हुए सरकार को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि जर्मनी का इस्लाम जर्मन मौलिक मूल्यों को स्वीकार करे.

लिबरल फ्री डेमोक्रैटिक पार्टी ने भी धर्म और दुनियावी कानून की सीमा को मिलाए जाने के खिलाफ चेतावनी दी है. पार्टी के महासचिव क्रिश्टियान लिंडनर ने कहा, "इसमें हमारी ओर से कोई रियायत नहीं है." दक्षिणी प्रांत बवेरिया में शासन कर रहे क्रिश्टियन सोशल यूनियन पार्टी की समाज कल्याण मंत्री क्रिश्टीने हाडर्टहावर ने चेतावनी दी कि धार्मिक स्वतंत्रता का अंत धार्मिक समानता में हो सकता है.

तस्वीर: AP/DW-Montage

कोलोन के सहायक बिशप हाइनर कॉख ने भी बौद्धिक रूप से एक बताने और ईसाई और इस्लाम के कपटपूर्ण मिश्रण के खिलाफ चेतावनी दी. उनका कहना है कि इस बात को साफ किया जाना चाहिए कि कौन धर्म किस बात का समर्थन करता है.

इस बीच इस्लाम पर बहस में इस्लामशास्त्री भी शामिल हो रहे हैं. जारब्रुकेन के इस्लामशास्त्री गैर्ड-रुइडिगर पुइन ने कहा, "सारी बहस शीशे के घर वाली बहस जैसी है क्योंकि जर्मनी में इस्लाम के प्रति कोई आलोचनात्मक रवैया नहीं है." पुइन का कहना है कि इसकी वजह यह है कि किसी को पता नहीं है कि कुरान में क्या लिखा है. पुइन कहते हैं, "वहां काफिरों के बारे में एक भी अच्छी बात नहीं लिखी है, लेकिन 300 सूराओं में उन्हें धरती पर और आसमान में सबसे खराब बताते हैं." पुइन ने मुस्लिम संगठनों से उस इस्लाम से विदा लेने की मांग की है जो इस्लामी कानून को दुनियावी कानून से ऊपर बताता है. "तब इस्लाम जर्मनी का हिस्सा होगा."

जर्मन संसद के गृह नीति आयोग के प्रमुख सीडीयू सासंद वोल्फगांग बोसबाख का कहना है, "इस्लाम इस बीच जर्मनी में जीवन की हकीकत है, लेकिन ईसाई यहूदी परंपरा हमारा हिस्सा है." सीएसयू सांसद हंस-पेटर ऊल कहते हैं, "यह सच है कि इस्लाम जर्मनी का हिस्सा है, लेकिन लोगों को समाज में घुलना मिलना होगा. वे अपनी आस्था का पालन कर सकते हैं लेकिन हमारे कानूनों के दायरे में, संविधान का दर्जा शरियत से ऊपर है."

रिपोर्ट: एजेंसियां/महेश झा

संपादन: ए कुमार

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