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जर्मनी में बढ़ते ऑनर किलिंग के मामले

४ फ़रवरी २०१३

आंकड़ों के मुताबिक जर्मनी में हर साल 12 से 14 के बीच ऑनर किलिंग के मामले होते हैं. लेकिन सही संख्या इससे कहीं अधिक मानी जाती है. क्या इसमें धर्म एक कारण है? कैसे इस तरह की हत्याएं रोकी जा सकती हैं?

तस्वीर: picture-alliance/dpa

फेंडी पश्चिमी जर्मनी के डेटमोल्ड कोर्ट के कटघरे में बैठे हैं. 53 साल के इस व्यक्ति पर आरोप हैं कि उन्होंने अपने पांच लड़कों को अपनी बेटी की हत्या का आदेश दिया. पिछले साल चार भाइयों और एक बहन को अपनी बहन आरजू की हत्या के आरोप में जेल की सजा हुई. अब अदालत को पता लगाना है कि इस अपराध में पिता की क्या भूमिका थी. दोषी पाए जाने पर उन्हें आजीवन कारावास हो सकता है.

अपनी बेटी के जर्मन बॉयफ्रेंड होने से उन्हें ऐतराज था. कुर्दी मूल के परिजन याजिदी धार्मिक समुदाय हैं. उनका कहना था कि आरजू का संबंध सिर्फ एक याजिदी के साथ होना चाहिए. उसकी नवंबर 2011 में हत्या कर दी गई क्योंकि उसने अपने बॉयफ्रेंड को छोड़ने से इनकार कर दिया.

धार्मिक कारण नहीं

कई मीडिया रिपोर्टें इसे सीधे सीधे इस्लाम से जोड़ देती हैं क्योंकि मारी गई लड़कियां या परिवार अधिकतर इसी धर्म से या इस्लाम धर्म मानने वाले देशों से आते हैं. मुन्स्टर यूनिवर्सिटी में इस्लामिक स्टडी के प्रोफेसर मिलाद करीमी कहते हैं कि यह निश्चित है कि इन देशों में पारंपरिक पितृसत्तात्मक समाज के कारण ये घटनाएं होती हैं कि घर का पुरुष अपने ही रिश्तेदारों को परिवार का नाम और सम्मान बचाने के लिए मारने का हुक्म दे देता है.

ऐसा ही पितृसत्तात्मक समाज इटली और स्पेन में भी हैं, ठीक अफगानिस्तान या पाकिस्तान या तुर्की की तरह, "इस्लाम का इससे कोई लेना देना नहीं है क्योंकि इस्लाम जीवन बचाने के लिए कहता है. जीवन पवित्र है. कुरान जीवन की किताब है."

तस्वीर: picture alliance/dpa

ड्यूसेलडॉर्फ में रहने वाली वकील गुल्सेन सेलेबी ने कई बार मुस्लिम युवतियों की पैरवी की है जिनके सात हिंसा या बदतमीजी की घटनाएं हुई थीं. वह कहती हैं कि अधिकतर सामाजिक जीवन से बिलकुल कटे हुए होते हैं. वह एकदम पारंपरिक ढांचे में जीते हैं कि उन्हें यह तोड़ने का साहस ही नहीं होता, "हमें महिलाओं को दिखाना पड़ता है कि हम उनकी मदद कैसे कर सकते हैं और उन्हें मदद करने के लिए परिवार की संरचना समझना बहुत जरूरी है. यजिदी जैसे समुदायों में घुसने के लिए जरूरी है कि आप पारंपरिक पितृसत्तात्मक ढांचे का विकल्प दिखाएं."

गुल्सेन सेलेबी कहती हैं कि वह आरजू के पिता को विफल मेल मिलाप का उदाहरण मानती हैं. वह उन सभी लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं जिन्हें इस देश में मजदूरों के तौर पर दशकों पहले लाया गया, वह भी इस उम्मीद के साथ कि ये लोग काम खत्म कर अपने देश लौट जाएंगे. लेकिन वह नहीं गए क्योंकि उन्होंने अपने परिवार यहां जर्मनी में बसा लिए थे, "यह व्यक्ति अपने पुराने ढांचे में ही यहां रहता है क्योंकि किसी ने उन्हें कोई नई संरचना बताई ही नहीं. और फिर अचानक उसे पता चलता है कि उसकी बेटी नए ढांचे में रहना चाहती है जिसके बारे में वह खुद कुछ नहीं जानता. आपको डर लगता ही है जब आप किसी चीज के बारे में नहीं जानते."

लंबा रास्ता

विशेषज्ञ इस बात से सहमत हैं कि बदलाव का इकलौता रास्ता नई पीढ़ी है. बर्लिन, ड्यूसबुर्ग और जर्मनी के दूसरे शहरों में कई प्रोजेक्ट चल रहे हैं जिनके जरिए युवाओं से अपील की गई है. उन युवाओं से जो मुस्लिम पृष्ठभूमि से आते हैं. इन प्रोजेक्ट्स के जरिए कई पारंपरिक, महिला विरोधी पूर्वाग्रह खत्म किए गए हैं. करीमी कहते हैं कि इस्लाम के नए विचारकों में रूढ़ियां तोड़ने की क्षमता है." आप जानते हैं कि इतना अच्छा लगता है जब मेरा कोई छात्र आ कर कहता है कि मैंने वीकेंड में अपने माता पिता से बातचीत की. वह मुझे बिलकुल नहीं समझ पा रहे. फिर हम रात भर बहस करते रहे. यह बहुत अच्छा है. यह दिखाता है कि हम उनके माता पिता तक पहुंच पा रहे हैं."   

लेकिन सेलेबी का मानना है कि वह दिन आने में अभी वक्त लगेगा जब पश्चिमी जीवन शैली के कारण माता पिता अपने बच्चों को छोड़ने या फिर उनकी हत्या करने से दूर होंगे. शायद 30 एक साल में यह बदलाव आ सके. तब तक उनकी लड़कियों को सलाह है कि जो भी हिंसा या दमन का सामना कर रही हों जल्द से जल्द मदद की आवाज लगाएं, "सीधे युवा कल्याण अधिकारी के पास जाएं, शायद एक वकील भी ढूंढ लें. जो भी कदम आप उठाएं ऐसा मत सोचिए कि आप खुद ही अपनी मुश्किल का हल निकाल लेंगी."

रिपोर्टः मार्टिन कोख/आभा मोंढे

संपादनः ईशा भाटिया

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