एक संसदीय जांच में पता चला है कि साल 2017 से जर्मनी में मुस्लिमों के विरुद्ध होने वाली हिंसा में कमी आई है. हालांकि, लेफ्ट पार्टी के एक सांसद ने कहा है कि समाज के अंदर और ऑनलाइन घृणा अभी भी फैलाई जा रही है.
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5 जून को प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार जर्मनी में 2019 में पिछले दो सालों की तुलना में 'इस्लामोफोबिक' हमले कम हुए हैं. यह जानकारी लेफ्ट पार्टी डी लिंके द्वारा मांगी गई जानकारी के जवाब में नॉय ऑस्नाब्रुकर साइतुंग में छपी है.
2017 के पहले तीन महीनों में जर्मन पुलिस ने 221 धार्मिक हिंसा की वारदातें अपने रिकॉर्ड में दर्ज की थीं. इनमें मुस्लिमों, मस्जिद और मुस्लिमों के सामुदायिक भवनों पर हमले शामिल थे. साल 2018 की पहली तिमाही में यह संख्या कम होकर 196 और साल 2019 में और कम होकर 132 दर्ज की गई. साल भर के आंकड़े भी इन रुझानों की पुष्टि करते हैं. 2017 में साल भर में ऐसी 960 घटनाएं हुईं जबकि 2018 में 824 घटनाएं हुईं.
इस्लामोफोबिक अपराधों में धार्मिक नफरत, संपत्ति को नुकसान पहुंचाना, मुस्लिमों से भेदभाव करना, तोड़फोड़ और सेंधमारी शामिल हैं. इनमें हिंसक हमले भी शामिल हैं जिनमें अब कमी आई है. 2018 की पहली तिमाही में ऐसे हमलों में 17 लोगों को चोट लगी जबकि 2019 में यह संख्या बस चार थी.
जर्मनी में 2017 से इस्लामोफोबिक अपराधों का अलग से डाटा रखा जा सकता है.
लेफ्ट पार्टी की घरेलू राजनीतिक प्रवक्ता उला येल्पके ने कहा कि जर्मनी को सतर्क रहना होगा. हमलों में कमी होने की खबर उत्साहजनक है लेकिन अभी भी अलग-अलग माध्यमों से नफरत फैलाने की कोशिश हो रही है. उन्होंने कहा कि मुस्लिमों के प्रति नफरत जो जुर्म में बदल जाती है, अभी भी इंटरनेट पर रोज दिखाई दे रही है. वह पबों और यहां तक की सरकारी इमारतों में भी दिख जाती है. इस सबका विरोध करते रहना होगा जिससे यह खत्म हो सके.
इस्लामोफोबिया शब्द का अर्थ है इस्लाम और मुस्लिमों से पैदा हुआ डर. यह शब्द अमेरिका पर हुए 9/11 के हमले के बाद चलन में आया. 9/11 के बाद अमेरिका में हुए मुस्लिम विरोधी हमलों और साधारण मुस्लिमों से वेवजह पैदा हुए डर की वजह से यह शब्द बना.
चीन में इस्लामी चरमपंथ और अलगाववाद से निपटने के लिए मुसलमानों को इस्लाम के रास्ते से हटाकर चीनी नीति और तौर तरीकों का पाठ पढ़ाया जा रहा है. जानिए क्या होता है ऐसे शिविरों में.
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बुरी यादें
चीन में मुसलमानों का ब्रेशवॉश करने के शिविरों में ओमिर बेकाली ने जो झेला, उसकी बुरी यादें अब तक उनके दिमाग से नहीं निकलतीं. इस्लामी चरमपंथ से निपटने के नाम पर चल रहे इन शिविरों में रखे लोगों की सोच को पूरी तरह बदलने की कोशिश हो रही है.
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यातनाएं
सालों पहले चीन से जाकर कजाखस्तान में बसे बेकाली अपने परिवार से मिलने 2017 में चीन के शिनचियांग गए थे कि पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर ऐसे शिविर में डाल दिया. बेकाली बताते हैं कि कैसे कलाइयों के जरिए उन्हें लटकाया गया और यातनाएं दी गईं.
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आत्महत्या का इरादा
बेकाली बताते हैं कि पकड़े जाने के एक हफ्ते बाद उन्हें एक कालकोठरी में भेज दिया गया और 24 घंटे तक खाना नहीं दिया गया. शिविर में पहुंचने के 20 दिन के भीतर जो कुछ सहा, उसके बाद वह आत्महत्या करना चाहते थे.
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क्या होता है
बेकाली बताते हैं कि इन शिविरों में रखे गए लोगों को अपनी खुद की आलोचना करनी होती है, अपने धार्मिक विचारों को त्यागना होता है, अपने समुदाय को छोड़ना होता है. चीनी मुसलमानों के अलावा इन शिविरों में कुछ विदेशी भी रखे गए हैं.
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इस्लाम के 'खतरे'
बेकाली बताते हैं कि शिविरों में इंस्ट्रक्टर लोगों को इस्लाम के 'खतरों' के बारे में बताते थे. कैदियों के लिए क्विज रखी गई थीं, जिनका सभी जवाब न देने वाले व्यक्ति को घंटों तक दीवार पर खड़ा रहना पड़ता था.
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कम्युनिस्ट पार्टी की तारीफ
यहां लोग सवेरे सवेरे उठते हैं, चीनी राष्ट्रगान गाते थे और साढ़े सात बजे चीनी ध्वज फहराते थे. वे ऐसे गीते गाते थे जिनमें कम्युनिस्ट पार्टी की तारीफ की गई हो. इसके अलावा उन्हें चीनी भाषा और इतिहास भी पढ़ाया जाता था.
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धन्यवाद शी जिनपिंग
जब इन लोगों को सब्जियों का सूप और डबल रोटी खाने को दी जाती थी तो उससे पहले उन्हें "धन्यवाद पार्टी! धन्यवाद मातृभूमि! धन्यवाद राष्ट्रपति शी!" कहना पड़ता था. कुल मिलाकर उन्हें चीनी राष्ट्रवाद की घुट्टी पिलाई जाती है.
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नई पहचान
चीन के पश्चिमी शिनचियांग इलाके में चल रहे इन शिविरों का मकसद वहां रखे गए लोगों की राजनीतिक सोच को तब्दील करना, उनके धार्मिक विचारों को मिटाना और उनकी पहचान को नए सिरे से आकार देना है.
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लाखों कैदी
रिपोर्टों के मुताबिक इन शिविरों में हजारों लोगों को रखा गया है. कहीं कहीं उनकी संख्या दस लाख तक बताई जाती है. एक अमेरिकी आयोग ने इन शिविरों को दुनिया में "अल्पसंख्यकों का सबसे बड़ा कैदखाना" बताया है.
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गोपनीय कार्यक्रम
यह कार्यक्रम बेहद गोपनीय तरीके से चल रहा है लेकिन कुछ चीनी अधिकारी कहते हैं कि अलगाववाद और इस्लामी चरमपंथ से निपटने के लिए "वैचारिक परिवर्तन बहुत जरूरी" है. चीन में हाल के सालों में उइगुर चरमपंथियों के हमलों में सैकड़ों लोग मारे गए हैं.
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खोने को कुछ नहीं
बेकाली तो अब वापस कजाखस्तान पहुंच गए हैं लेकिन वह कहते हैं कि चीन में अधिकारियों ने उनके माता पिता और बहन को पकड़ रखा है. उन्होंने अपनी कहानी दुनिया को बताई, क्योंकि "अब मेरे पास खोने को कुछ" नहीं है.