जर्मनी में हाइड्रोजन गैस से चलने वाली दुनिया की पहली ट्रेन का टेस्ट हुआ. बहुत कम शोर करने वाली ये ट्रेन सिर्फ पानी छोड़ती है.
विज्ञापन
जर्मनी में इन दिनों हाइड्रोजन गैस से चलने वाली "हाइडरेल" का टेस्ट ट्रायल चल रहा है. ट्रेन एक फ्रेंच कंपनी ने बनाई है. मार्च से जर्मनी में ट्रेन के कई चरणों वाले परीक्षण हो रहे है. फ्रांसीसी कंपनी अलस्टॉम के येंस स्प्रोटे के मुताबिक, "नई ट्रेन पारंपरिक डीजल इंजन की तुलना में 60 फीसदी कम शोर करती है, यह पूरी तरह उत्सर्जन मुक्त है. इसकी रफ्तार और यात्रियों को ले जाने की क्षमता भी डीजल ट्रेन की परफॉर्मेंस के बराबर है."
(बिना ड्राइवर की मर्सिडीज बस)
बिना ड्राइवर की मर्सिडीज बस
यह है शहरी ट्रैफिक का भविष्य. एक बस जो अपने आप चलेगी बिना किसी ड्राइवर के. वाहन बनाने वाली सारी कंपनियां इसी दिशा में काम कर रही हैं. मर्सिडीज की यह शानदार बस देखिए...
तस्वीर: picture-alliance/dpa/I. Wagner
फ्यूचर बिना ड्राइवर
जर्मनी की ऑटोमोबिल कंपनी मर्सिडीज ने बिना ड्राइवर की बस बनाकर सड़क पर चला दी है. नीदरलैंड्स के एम्स्टरडम में इसका टेस्ट हुआ.
तस्वीर: Daimler
अभी शुरुआत है
अभी बिना ड्राइवर की जो बस चलाई जा रही है वह शिपोल एयरपोर्ट से हारलेम के बीच चलती है. 70 किलोमीटर प्रतिघंटा इसकी अधिकतम रफ्तार है.
तस्वीर: Daimler
अभी ड्राइवर बैठता है
यह बस चलती अपने आप ही है लेकिन ड्राइवर बस में मौजूद रहता है और बस नजर रखता है कि सब ठीक चल रहा है या नहीं. इसलिए कि परीक्षण के दौरान कोई खतरनाक स्थिति न बने.
तस्वीर: Daimler
दस आंखें और कुछ सेंसर
बस भले ही यह भविष्य की हो लेकिन इसका इंजन सौ साल पुराना ही है. लेकिन इस बस में 10 कैमरे लगे हैं जो आंखों का काम करते हैं. यही आंखें आगे पीछे नजर रखती हैं.
तस्वीर: Daimler
रुकना चलना रुक जाना
बस जानती है कि रेड लाइट पर रुकना है, ग्रीन होने पर चलना है. उसे अपनी लेन का भी पता है और किसी के सामने आ जाने पर स्पीड कम करने का भी.
तस्वीर: Daimler
मिनी बस भी है
यह भी एक ऐसी बस है जिसमें कोई ड्राइवर नहीं होता है. मोटर से चलने वाली इस बस को फ्रांसीसी कंपनी नव्या ने बनाया है. मर्सिडीज की बस से अलग इसे छोटी दूरियों के वाहन के तौर पर देखा जा रहा है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/I. Wagner
टैक्सियां भी तैयार हैं
नव्या की बस में टैक्सी जैसी खूबियां भी हैं. इसे यात्री वैसे ही कहीं भी बुला सकते हैं जैसे टैक्सी को बुलाया जा सकता है. इसकी स्पीड 45 किलोमीटर प्रति घंटा तक है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/I. Wagner
7 तस्वीरें1 | 7
हाइडरेल डीजल इंजन जैसी तकनीक का इस्तेमाल करती है. फर्क सिर्फ इंजन की बनावट और ईंधन का है. ट्रेन में डीजल की जगह फ्यूल सेल, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन डाले जाते हैं. ऑक्सीजन की मदद से हाइड्रोजन नियंत्रित ढंग से जलती है और इस ताप से बिजली पैदा होती है. बिजली लिथियम आयन बैटरी को चार्ज करती है और ट्रेन चलती है. इस दौरान धुएं की जगह सिर्फ भाप और पानी निकलता है.
जर्मनी के पांच राज्य फ्रांसीसी कंपनी से ऐसी 60 ट्रेनें खरीदना चाहते हैं. दो डिब्बों वाली एक ट्रेन को एक फ्यूल सेल और 207 पाउंड के हाइड्रोजन टैंक की जरूरत होगी. एक बार हाइड्रोजन भरने पर ट्रेन 650 किलोमीटर की यात्रा कर सकती है.
जर्मनी में फिलहाल 4,000 डीजल ट्रेनें हैं. योजना के मुताबिक 2018 में पब्लिक ट्रांसपोर्ट के लिए हाइडरेल उतारी जाएंगी. यूरोपीय संघ के मुताबिक इस वक्त ईयू में 20 फीसदी ट्रेनें डीजल वाली हैं. डेनमार्क, नॉर्वे, यूके और नीदरलैंड्स ने भी इन ट्रेनों को खरीदने में दिलचस्पी दिखाई है.
(एक मामूली जानवर से बदलकर इंसान सबसे महाबली कैसे बना)
मनुष्य महाबली कैसे बना?
मनुष्य खोजों और आविष्कारों की पीठ पर सवार हो इस दुनिया में एक मामूली जानवर से बदलकर सबसे महाबली बन गया. इन तस्वीरों में देखें कौन सी खोजें मील का पत्थर बनीं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/jasondecairestaylor
आग
19 लाख साल पहले पहली बार पके हुए खाने के सबूत मिले हैं. जिससे पता चलता है कि आग पर नियंत्रण करना मानव तब सीख चुका था और मानव सभ्यता में इस खोज की अहमियत किसी से छुपी नहीं है.
तस्वीर: Fotolia/ussatlantis
पहिया
तकरीबन 3500 ईसा पूर्व पहिए की खोज हुई और अब तक मानव की विकास यात्रा एक तरह से इसी पहिए पर सवार है. इसी क्रम में लकड़ी के गोल टुकड़े से होते पहिए आधुनिक शक्लें लेते गए हैं.
तस्वीर: Getty Images/D. Kitwood
कंपास
मनुष्य को महाबली बनाने में उसकी यात्राओं का अहम योगदान रहा और इसमें दिशाबोध की मदद के लिए कंपास का आविष्कार इतना ही अहम था. 9वीं से 11वीं शताब्दी के बीच चीन में इसका आविष्कार हुआ.
तस्वीर: Fotolia/Comugnero Silvana
अबाकस
आधुनिक गणित के महत्वपूर्ण सूत्रों की बुनियाद अबाकस के सरल से ढांचे में ही है. इतिहास में इसका पहली बार जिक्र 2700-2300 ईसापूर्व में मेसोपोटामिया की सभ्यता में मिलता है.
तस्वीर: Fotolia/Karin & Uwe Annas
प्रिंटिंग प्रेस
छापेखाने का आविष्कार भी मानवीय इतिहास में एक मील का पत्थर है. पहली बार 12वीं शताब्दी में चीन में सॉंग राजवंश के समय इसका आविष्कार हुआ. इसके बाद जर्मनी के योहानस गुटनबर्ग ने 1440 के करीब इसका और परिष्कृत रूप बनाया.
तस्वीर: imago
बल्ब
बल्ब के आविष्कार ने महाबली बनते मनुष्य की यात्रा को नई रोशनी दी. 1879 में थॉमस अल्वा एडिसन ने कार्बन फिलामेंट वाले बल्ब के साथ पूरी तरह प्रकाश पैदा कर सकने वाला सिस्टम बनाया.
तस्वीर: Colourbox
इंजन
1712 में थॉमस न्यूकोमेन द्वारा पिस्टन का इस्तेमाल कर बनाया एट्मॉस्फैरिक इंजन पहला भाप इंजन था. इसके बाद 1781 में जेम्स वॉट ने 10 हॉर्सपावर का इंजन बनाया जो कि लगातार काम कर सकता था.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Z. Mathe
टेलीफोन
1876 में अलेक्जेंडर ग्राहम बेल ने पहली बार अमेरिका में ऐसी मशीन का पेटेंट करवाया जो कि बहुत दूर तक आदमी की आवाज ले जा सकती थी. इस तकनीक का विकास आज के अत्याधुनिक मोबाइल फोनों तक हो चुका है.
तस्वीर: picture-alliance/JOKER
हवाई जहाज
1903 में राइट ब्रदर्स पहला हवाई जहाज उड़ाने में कामयाब हुए. तब से अब तक इस सिलसिले में अत्याधुनिक तेज रफ्तार हवाई जहाज उड़ाए जा चुके हैं.
तस्वीर: imago/United Archives
कंप्यूटर
अंग्रेज मैकेनिकल इंजीनियर चार्ल्स बावेज को कंप्यूटर का जनक कहा जाता है. 1822 में उन्होंने पहला मैकेनिकल कंप्यूटर बनाया. इसके बाद से कंप्यूटर की यात्रा सुपर कंप्यूटर तक हो चुकी है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/C. Charisius
इंटरनेट
1960 में अमेरिकी रक्षा विभाग की अडवांस रिसर्च प्रोजेक्ट्स एजेंसी के लिए लॉरेंस रॉबर्टस् के नेतृत्व में ऐजेंसी के कंप्यूटरों को जोड़ने के मकसद से एक नेटवर्क बनाया गया. यहीं आधुनिक इंटरनेट की शुरुआत हुई.