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जर्मनी: बढ़ रहे हमलों से समलैंगिक समुदाय में बढ़ी असुरक्षा

लीसा हेनेल
१६ सितम्बर २०२२

जर्मनी में ट्रांसजेंडर विरोधी हमले में एक ट्रांसजेंडर की मौत के बाद यह सवाल उठने लगा है कि देश में समलैंगिक लोग कितने सुरक्षित हैं. ऐसा पहली बार नहीं हुआ है. बीते कुछ समय में इस तरह के हमलों की कई खबरें सामने आयी हैं.

जर्मनी में ट्रांसफोबिया
जर्मनी में ट्रांसफोबियातस्वीर: Ying Tang/NurPhoto/picture alliance

जर्मनी के तीन शहर मुंस्टर, ऑग्सबर्ग, और ब्रेमेन में पिछले तीन महीने में क्वीर समुदाय के लोगों पर जानलेवा हमले की तीन घटनाएं हुई हैं. मुंस्टर में क्रिस्टोफर स्ट्रीट डेज फेस्टिवल में हुए हमले में माल्टे सी नामक ट्रांसजेंडर पुरुष की मौत हो गई. दरअसल, फेस्टिवल के दौरान समलैंगिक महिलाओं को कुछ लोग परेशान और अपमानित कर रहे थे.

माल्टे ने इन महिलाओं को बचाने के लिए हस्तक्षेप किया जिसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा. हमलावरों ने माल्टे पर ही हमला बोल दिया और उन्हें उठाकर सड़क किनारे पटक दिया. इससे माल्टे के सिर में गहरी चोट लगी और वे कोमा में चले गए. छह दिनों तक कोमा में रहने के बाद उनकी मौत हो गई.

माल्टे की मौत के बाद उन्हें दी गई श्रद्धांजलितस्वीर: Ying Tang/NurPhoto/picture alliance

इस मामले ने पूरे देश के लोगों को आक्रोशित कर दिया. जर्मनी की सत्तारूढ़ पार्टी सेंटर-लेफ्ट सोशल डेमोक्रेट पार्टी (एसपीडी) की नेता जास्किया एस्केन ने सहानुभूति जताते हुए ट्विटर पर लिखा, "यह एक क्रूर हमला है जो हमें याद दिलाता है कि क्वीर लोगों के प्रति देश में अपराध जारी है. हर हफ्ते, हर दिन.”

आंकड़ों में देखें, तो हर दिन क्वीर लोगों के खिलाफ हमले के दो मामले दर्ज किए जाते हैं. जर्मनी के गृह मंत्रालय ने भी यह स्वीकार किया है कि वास्तविक संख्या इससे ज्यादा हो सकती है. लेस्बियन एंड गे एसोसिएशन (एलएसवीडी) जैसे संगठनों के साथ-साथ पुलिस का भी मानना है कि 90 फीसदी मामले दर्ज भी नहीं होते. कई हमले क्रिस्टोफर स्ट्रीट डे के लिए आयोजित परेड के साथ मेल खाते हैं. जर्मन भाषी कई देशों में एलजीबीटीक्यू प्राइड इवेंट को क्रिस्टोफर स्ट्रीट डे के नाम से जाना जाता है. 

एलएसवीडी के संघीय बोर्ड में शामिल अल्फोंसो पेंटिसानो का मानना है कि इस तरह के हमले पहली बार नहीं हुए हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "समलैंगिक समुदाय के इस तरह खुलकर सामने आने से खतरा बढ़ जाता है. इस वजह से, क्वीर समुदाय के लोग जहां भी खुलकर ऐसी सभाएं करते हैं वहां वे खुद को जोखिम में डालते हैं. हमें यह सच्चाई स्वीकार करनी होगी.” 

हालांकि, यह सिर्फ एक भ्रम है कि यह समस्या सिर्फ सीएसडी आयोजनों तक ही सीमित है. उन्होंने आगे कहा, "ये हमले हर दिन होते हैं. दिन के हर घंटे होते हैं. सबसे व्यस्त सड़क से लेकर छोटी गलियों तक होते हैं. मेट्रो में, बस में, स्कूल के मैदान में, कंपनियों में, क्लबों में और यहां तक कि शॉपिंग सेंटरों में भी हमले होते हैं. दुर्भाग्य की बात यह है कि हम वाकई में कभी भी और कहीं भी सुरक्षित नहीं होते.”

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अधूरे आंकड़े

2020 के बाद से जर्मनी के संघीय आपराधिक पुलिस कार्यालय (बीकेए) ने "लैंगिक रुझान” श्रेणी के अलावा "लिंग / लैंगिक पहचान” श्रेणी में समलैंगिकों के प्रति अपराध के मामले दर्ज किए हैं. रिपोर्ट किए गए मामलों की संख्या में दोनों श्रेणियों में क्रमशः 66 फीसदी और 50 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है. ट्रांसजेंडर लोगों के प्रति द्वेष की वजह से हुए हमले अलग से दर्ज नहीं किए जाते हैं. हालांकि, यह हमले की एक बड़ी वजह है. 

एलएसवीडी के पेंटिसानो का मानना है कि कई ऐसी श्रेणियां हैं जिन्हें पूरी तरह से समझना मुश्किल है, क्योंकि उनमें पूरी तरह पारदर्शिता नहीं होती. वह कहते हैं, "आखिरकार, यह है तो हिंसा ही. क्या किसी पर सिर्फ इस वजह से हमला होना चाहिए कि वह ट्रांसजेंडर है या इस वजह से कि दो आदमी एक-दूसरे का हाथ पकड़कर चल रहे हैं?”

यह भी एक बड़ी समस्या है कि देश की राजधानी बर्लिन में औसत से ज्यादा मामले दर्ज किए जाते हैं. ऐसा लंबे समय से हो रहा है. हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि देश के दूसरे राज्यों में क्वीर के खिलाफ हमले नहीं होते, भले ही वे आंकड़ों में न दिखते हों.

पेंटिसानो ने कहा, "अगर मैं म्यूनिख, स्टूटगार्ट या फ्रैंकफर्ट में पुलिस के पास जाता हूं और कहता हूं कि मुझ पर हमला किया गया, क्योंकि मैं समलैंगिक हूं, तो हो सकता है कि यह केवल एक शारीरिक हमले के रूप में दर्ज किया जाए. इससे हमले के पीछे की वजह दर्ज नहीं होती. इसलिए, यह हमला आंकड़ों से गायब हो जाता है. जबकि, बर्लिन में हमले के पीछे की वजह दर्ज होती है. इस मामले में यहां की पुलिस काफी प्रशिक्षित है.”

2021 में जर्मनी के 16 राज्यों के गृह मंत्रियों की बैठक में होमोफोबिक और ट्रांसफोबिक हिंसा से निपटने के लिए एक कार्य समूह गठित करने का फैसला लिया गया.तस्वीर: lev dolgachov/Zoonar/picture alliance

राजनीति से प्रेरित हिंसा

मुंस्टर में माल्टे सी की मौत ने क्वीर विरोधी अपराधों के अपराधियों को लेकर एक नई बहस को जन्म दिया है. कई हाई-प्रोफाइल हमले युवा पुरुषों द्वारा किए गए. इनमें से कुछ मुस्लिम थे, तो कुछ की पृष्ठभूमि प्रवासी की रही है. उदाहरण के तौर पर, इस्लामवाद को नजदीक से समझने वाले मनोवैज्ञानिक और लेखक अहमद मंसूर ने मुंस्टर में हुई घटना के कथित आरोपी चेचेन के संदर्भ में जर्मन टैब्लॉइड अखबार बिल्ड को बताया, "चेचेन लोग समलैंगिकों से नफरत करते हैं. साथ ही, अफगानिस्तान और सीरिया में भी समलैंगिकों के खिलाफ नफरत की भावना है. जैसे-जैसे इन देशों के लोग जर्मनी आ रहे हैं वैसे-वैसे यहां भी होमोफोबिया बढ़ रहा है.”

बीकेए के हालिया आंकडों की समीक्षा से पता चलता है कि माल्टे सी जैसे ट्रांसजेंडर लोगों को वास्तव में विदेशी और धार्मिक विचारधाराओं के साथ ही धुर-दक्षिणपंथी सामाजिक माहौल से खतरा है. ‘लिंग/लैंगिक पहचान' श्रेणी और ‘लैंगिक रुझान' श्रेणी, दोनों में अपराध करने वाले ज्यादातर अपराधी दक्षिणपंथी विचारधारा से प्रेरित थे. हालांकि, क्वीर विरोधी हमला एक समस्या है जो समाज के सभी वर्गों को प्रभावित करता है. 

राजनीतिक प्रतिक्रिया

मुंस्टर में माल्टे सी की मौत ने राजनीतिक गलियारे तक को झकझोर कर रख दिया. देश के इतिहास में पहली बार यौन और लैंगिक विविधता की स्वीकृति के लिए जर्मनी ने कमीश्नर की नियुक्ति की है. ग्रीन पार्टी के सांसद स्वेन लेहमैन को एलजीबीटीक्यू+ के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना की देखरेख करने का जिम्मा सौंपा गया है. उन्होंने हाल ही में विभिन्न संघों को ट्रांसफोबिया और होमोफोबिया के खिलाफ एक मसौदा कार्य योजना भेजी है. वे लंबे समय से इस तरह की योजना की मांग कर रहे थे.

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एलएसवीडी के पेंटिसानो ने कहा कि इस मामले में अब तक संतोषजनक कार्य नहीं हुए हैं. जर्मनी अन्य देशों से पिछड़ रहा है. उदाहरण के लिए, रक्तदान करने वाले ट्रांसजेंडर लोगों या समलैंगिक पुरुषों के लिए खुद से निर्णय लेने का कानून. जर्मनी में अभी भी सभी ट्रांसजेंडर या समलैंगिक पुरुष खुद से रक्तदान करने का फैसला नहीं ले सकते. इसके लिए, कुछ नियम और शर्तें लागू हैं. जबकि, माल्टा या अर्जेंटीना जैसे अन्य देशों ने इस तरह के मुद्दों पर अधिक प्रगति की है.  

2021 में जर्मनी के 16 राज्यों के गृह मंत्रियों की बैठक में होमोफोबिक और ट्रांसफोबिक हिंसा से निपटने के लिए एक कार्य समूह गठित करने का फैसला लिया गया. हालांकि, इस बैठक के एक साल बाद तक इस दिशा में कोई काम नहीं हुआ.

पेंटिसानो ने कहा, "इस साल सितंबर महीने में इसकी पहली बैठक हो रही है. इसका मतलब यह है कि पूरे एक साल तक नेता सोते रहे. जर्मनी हमेशा यह दिखाता है कि वह विविधता को पसंद करने वाला देश है, लेकिन मेरे हिसाब से जर्मनी को विविधता से समस्या है. और हमें इस मुद्दे पर बात करनी होगी.” 

इस वजह से यह सवाल आज भी पेंटिसानो को परेशान करता है कि क्या कुछ हमलों को रोका जा सकता था, जैसे कि माल्टे सी की मौत.

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