जर्मनी की ग्रीन पार्टी के नेता चेम ओएज्देमीर ने डॉयचे वेले के साथ खास बातचीत में तुर्की की कड़ी आलोचना की है. उनका कहना है कि जर्मनी को अब अंकारा के लिए अपनी "भोलेपन वाली नीतियां" खत्म करनी चाहिए.
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ग्रीन नेता ओएज्देमीर की डॉयचे वेले से बातचीत ज्यादातर जर्मनी की विदेश नीति से जुड़े मुद्दों के इर्दगिर्द ही केंद्रित रही. खुद को अक्सर "अनातोलिया का श्वेबियन" बताने वाले ओएज्देमीर के माता-पिता तुर्की से जर्मनी आये थे. जर्मनी और तुर्की के बीच इस समय चल रहे तनाव पर ओएज्देमीर ने कहा कि तुर्की राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोवान "नाटो के नियमों के हिसाब से काम नहीं कर रहे हैं, बल्कि दादागिरी दिखा रहे हैं."
दोनों देशों के बीच विवाद इस बात पर है कि तुर्की अपने यहां स्थित नाटो के कोन्या एयरबेस में तैनात जर्मन सैनिकों से जर्मन सांसदों को मिलने की इजाजत नहीं दे रहा है. ओएज्देमीर ने इस बात की मांग की कि ब्रसेल्स स्थित नाटो मुख्यालय से इस मुद्दे पर साफ बयान जारी किया जाना चाहिए. इस विवाद को वे जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल और एर्दोवान के बीच का मसला नहीं बल्कि उससे भी ज्यादा नाटो और तुर्की के बीच की समस्या मानते हैं.
दूसरी तरफ लंबे समय से तुर्की को यूरोपीय संघ में शामिल किये जाने के प्रस्ताव पर ओएज्देमीर कहते हैं, "मैं उन्हें वहीं पड़े रहने दूंगा, जहां वो हैं, यानि ठंडे बस्ते में."
'तुर्की पर भटकी हुई है जर्मन नीति'
सन 2005 में चांसलर मैर्केल के सत्ता संभालने के समय से ही तुर्की को लेकर उनकी नीति को ओएज्देमीर ठीक नहीं मानते. उसके पहले सोशल डेमोक्रैट्स और ग्रीन पार्टी की गठबंधन सरकार ने तुर्की के सुधारवादी बलों का समर्थन किया था. उनका मानना है कि मैर्केल ने आते ही ईयू में तुर्की को विशेष पार्टनर देश की हैसियत देने का दबाव बनाना शुरु किया. ओएज्देमीर का कहना है कि इस कदम के कारण तुर्की में सुधारवादी शक्तियों का असमय ही खात्मा हो गया.
जर्मनी में चुनाव लड़ने के लिए क्या चाहिए
सीडीयू और एसपीडी जैसी बड़ी पार्टियां तो चुनावी सूची में होंगी ही, लेकिन छोटी पार्टियों के लिए जर्मन आम चुनाव के बैलट में जगह बनाना बड़ी बात है. देखिए कैसे होता है ये काम.
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24 सितंबर को जब जर्मन नागरिक अपनी नई सरकार चुनने के लिए वोट देंगे तो ज्यादातर सीडीयू, एसपीडी, ग्रीन पार्टी या शायद एएफडी को वोट दें. लेकिन कई पार्टियों का नाम तो वोटर पहली बार सीधे बैलट पेपर पर ही देखते हैं.
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बैलेट पेपर में नाम लाने के लिए छोटी पार्टियों को पहला काम तो ये करना पड़ता है कि समय पर चिट्ठी 'लेटर ऑफ इंटेंट' भेज कर अपनी मंशा जाहिर करें. और दूसरा काम ये सिद्ध करना होता है कि वे असल में एक राजनैतिक दल हैं.
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ऐसी पार्टी जिसके पिछले चुनाव से लेकर अब तक बुंडेसटाग या किसी राज्य की संसद में कम से कम पांच सदस्य भी ना रहे हों, वह गैर-स्थापित पार्टी मानी जाती है. इन्हें चुनाव से पहले लिखित में 'लेटर ऑफ इंटेंट' भेजना पड़ता है. इसे "बुंडेसवाललाइटर" यानि केंद्रीय चुनाव प्रबंधक को भेजना होता है और यह पत्र चुनाव की तारीख से 97 दिन पहले मिल जाना चाहिए.
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इस लेटर ऑफ इंटेंट पर पार्टी प्रमुख और दो उप प्रमुखों के हस्ताक्षर होने चाहिए. उनके कार्यक्रमों का ब्यौरा होना चाहिए और साथ ही एक राजनीतिक दल के तौर पर उनके स्टेटस का सबूत होना चाहिए. जर्मन कानून (पार्टाइनगेजेत्स) के आधार पर चुनाव प्रबंधक और टीम तय करते हैं कि पार्टी मान्य है या नहीं. इसके लिए उनका मुख्यालय जर्मनी में होना चाहिए और कार्यकारिणी के बहुसंख्यक सदस्य जर्मन नागरिक होने चाहिए.
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इसके पहले 2013 में हुए संसदीय चुनावों में वोटरों के पास 30 से भी अधिक पार्टियों में से चुनने का विकल्प था. इनमें से केवल पांच दल ही बुंडेसटाग में जगह बना पाये. ये थे सीडीयू और उसकी बवेरियन सिस्टर पार्टी सीएसयू, एसपीडी, लेफ्ट पार्टी डी लिंके और ग्रीन पार्टी.
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आर्थिक रूप से उदारवादी मानी जाने वाली एफडीपी को बुंडेसटाग में जगह पाने के लिए जरूरी 5 फीसदी वोट भी नहीं मिल सके थे. पांच प्रतिशत की चौखट पार करने वाले को ही संसद में प्रवेश करने को मिलता है. ऐसा ही अल्टरनेटिव फॉर जर्मनी (एएफडी) के साथ भी हुआ.
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एएफडी और एफडीपी दोनों पार्टियां तो बहुत कम अंतर से पांच प्रतिशत की शर्त को पूरा करने से चूक गयीं. लेकिन कई दूसरी बहुत छोटी पार्टियां जैसे एनीमल प्रोटेक्शन पार्टी, मार्क्सिस्ट-लेनिनिस्ट पार्टी और कुछ अन्य तो कुछ हजार वोट लेकर बहुत पीछे रह गयी थीं.
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फिर 2015 से शुरु हुए गंभीर शरणार्थी संकट के चलते चांसलर मैर्केल ने बार बार एर्दोवान से मुलाकात की. पूरे यूरोप को शरणार्थियों की बाढ़ से उबारने के लिए वे जल्द से जल्द एक ईयू-तुर्की समझौता करना चाहती थीं. लेकिन उस के कारण एर्दोवान को ऐसा लगा कि वे एक बहुत महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय राजनेता बन गये हैं. ओएज्देमीर उस समय तुर्की पर मैर्केल की नीति को भटकी नीति बताते हुए कहते हैं, जैसे किसी गलत व्यक्ति को गलत समय पर किसी गलत काम के लिए इनाम दिया जाये.
'जलवायु परिवर्तन के चैंपियन'
आने वाले बुंडेसटाग चुनाव को लेकर अटकलें लगायी जा रही हैं. एक संभावना यह भी है कि ग्रीन पार्टी या फिर लिबरल फ्री डेमोक्रैट्स (एफडीपी) मैर्केल की पार्टी के साथ मिलकर सरकार बना सकते हैं. सरकार में होने की स्थिति में ग्रीन पार्टी का सबसे बड़ा योगदान क्या होगा, इस सवाल पर ओएज्देमीर कहते हैं, "दुर्भाग्य से, जर्मनी जलवायु संरक्षण के मामले में अब भी कोई विश्व चैंपियन नहीं बना है."
मैर्केल प्रशासन की आलोचना करते हुए वे कहते हैं कि भले ही डॉनल्ड ट्रंप जैसों की तुलना में मैर्केल जलवायु संबंधित मुद्दों पर विश्व चैंपियन लगें, लेकिन सतह को थोड़ा खुरच कर देखें तो पता चलता है कि इससे जुड़ी उनकी नीतियां विश्वस्तरीय नहीं हैं. ओएज्देमीर ने विश्वास जताया कि "जर्मनी इससे कहीं बेहतर कर सकता है." शर्त बस इतनी हो कि हर नीति में इकोलॉजी और इकोनॉमी के बीच "अथवा" नहीं बल्कि "एवं" होना चाहिए.
'मरते दम तक नहीं भूलेगा जो'
अब 51 साल के हो चुके ओएज्देमीर 1970 के दशक में जर्मन ग्रेड स्कूल से पढ़ कर निकले आप्रवासी बच्चों के पहले कुछ बैच में थे. उस समय पुर्तगाल से आये प्रवासी परिवारों के बच्चों की ही तरह उन्हें भी क्लास में सबसे पिछली सीट पर बैठना पड़ता था. जब वे चौथी क्लास में थे तब सब बच्चों से पूछा गया कि कौन कौन हाई स्कूल जाना चाहेगा. ओएज्देमीर ने भी हाथ उठाया था और इस पर उनकी क्लास के बाकी बच्चों की प्रतिक्रिया कुछ ऐसी थी, जिसे वे मरते दम तक नहीं भूलेंगे. टीचर और सहपाठी उनके इस विचार पर भी इतने जोर जोर से हंसे थे कि उनके जैसा कोई बच्चा हाई स्कूल डिप्लोमा लेना चाहता है.
ओएज्देमीर ने बताया कि ना केवल वे उस कड़वे पल के अनुभव से आगे बढ़े, उसने उनकी महात्वाकांक्षा को और बल दिया. जब जब भी लोगों को लगा कि वे कुछ नहीं कर सकते तब भी वह अनुभव काम आया. जैसे 1994 में जब वे जर्मनी के पहले विदेशी मूल के सांसद बने और ग्रीन पार्टी की ओर से बुंडेसटाग में बैठे. हालांकि यह अलग बात है कि ओएज्देमीर वाकई कभी अपना हाई स्कूल डिप्लोमा पूरा नहीं कर पाये.
मजेदार नामों वाली जर्मनी की पार्टियां
चांसलर अंगेला मैर्केल की रूढ़िवादी सीडीयू और चुनावों में उन्हें चुनौती देने जा रहे मार्टिन शुल्त्स की सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी जैसे बड़े दल तो हैं ही, यहां जानिए अजीब नामों वाली कुछ छोटी जर्मन पार्टियों के बारे में.
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एनीमल प्रोटेक्शन पार्टी
जर्मनी में ऐसे पशु अधिकार कार्यकर्ता भी हैं जो टोड मेंढकों को सड़क पार कराने के लिए पूरा हाइवे ब्लॉक कर चुके हैं. लेकिन पर्यावरण और पशु अधिकारों के एजेंडा पर काम करने वाली बड़ी ग्रीन पार्टी ऐसी कई छोटी पार्टियों की हवा निकाल चुकी है. तभी तो 2013 में एनीमल प्रोटेक्शन पार्टी को छह करोड़ से अधिक जर्मन वोटरों में से डेढ़ लाख से भी कम वोट मिले.
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द रिपब्लिकंस
जी हां, अमेरिका की ही तरह जर्मनी में भी एक रिपब्लिकन पार्टी है. इन्हें आरईपी कहते हैं और इनका डॉनल्ड ट्रंप की पार्टी से कोई सरोकार नहीं है. जर्मनी के रिपब्लिकंस असल में दक्षिणपंथी राष्ट्रवादी हैं जो खुद को "रूढ़िवादी देशभक्त" कहते हैं और "अपनी संस्कृति और पहचान को बचाने" के लिए संघर्ष को अपना मकसद बताते हैं.
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द पार्टी
बहुत ही सीधे सादे तरीके से इस पार्टी ने अपना नाम ही पार्टी रखा. जर्मनी की व्यंग्य पत्रिका "टाइटेनिक" के संपादकों ने मिल कर 2004 में इसे स्थापित किया. इस पार्टी के प्रमुख मार्टिन जोनेबॉर्न (तस्वीर में) ने अपनी पार्टी को 2014 में यूरोपीय संसद में एक सीट भी जितायी. आने वाले बुंडेसटाग चुनावों में इन्हें बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद है. पिछले चुनाव में तो 80 हजार से भी कम वोट मिले.
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रेफरेंडम पार्टी
इस पार्टी के लिए स्विट्जरलैंड बहुत बड़ा आदर्श है. पार्टी का नारा है "रेफरेंडम के द्वारा लोकतंत्र" लाना. इनके नेता चाहते हैं कि देश के सभी राजनीतिक फैसले सीधे जनता ही ले. वे मानते हैं कि इसी तरह देश में असली लोकतंत्र की स्थापना होगी और "राजनीतिक दलों के राज" से आगे बढ़ कर सीधे वोटरों के मतलब की नीतियां बनायी जा सकेंगी.
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मार्क्सिस्ट-लेनिनिस्ट पार्टी ऑफ जर्मनी (एमएलपीडी)
भले ही एक समय पर आधा जर्मनी कम्युनिस्ट राज में रहा, लेकिन एमएलपीडी एक बहुत छोटी पार्टी है. सन 1949 से 1989 तक पूर्वी जर्मनी पर सोशलिस्ट युनिटी पार्टी का राज चला. लेकिन आज अति वामपंथी एमएलपीडी की जर्मन राजनीति में कोई भूमिका नहीं है. पिछले बुंडेसटाग चुनाव में उन्हें केवल 24 हजार वोट मिले.
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क्रिस्चियंस फॉर जर्मनी
"एलायंस सी - क्रिस्चियंस फॉर जर्मनी" नाम के अनुसार ही एक ईसाई दल है, जो 2015 में तब बनी जब दो दल क्रिस्चियन-फंडामेंटलिस्ट पार्टी ऑफ बाइबल अबाइडिंग क्रिस्चियंस और पार्टी ऑफ लेबर, एनवायर्नमेंट एंट फैमिली मिल गयीं. पार्टी बाइबल के मूल्यों का समर्थन करती है. जैसे नागरिकों की आजादी, कानून, शादी, परिवार और ईश्वर की रचनाओं का संरक्षण.
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द पेंशनर्स
2017 के बुंडेसटाग चुनाव में यह पार्टी बैटल पेपर पर नहीं दिखेगी. जर्मन पेंशनर्स पार्टी अब रिटायर हो चुकी है. 2013 चुनाव में इन्हें केवल 25 हजार वोट मिले और 2016 में पार्टी ने खुद को भंग करने का फैसला कर लिया. (कार्ला ब्लाइकर/आरपी)