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जर्मनी में नाजी जनसंहार की याद

२७ जनवरी २०१३

आउशवित्स यहूदियों, रोमा और सिंती के अलावा दूसरे नाजी विरोधियों के कत्लेआम का पर्याय बन गया है. द्वितीय विश्व युद्ध के अंतिम दौर में 27 जनवरी को आज के पोलैंड में स्थित इस नाजी यातना शिविर को आजाद कराया गया.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

जर्मनी में 1945 में हफ्तावार न्यूजरील का संगीत सबको पता था. प्रोपेगैंडा के स्वर में आवाज आ रही थी, जैसे किसी विजय की घोषणा हो, "यहां पूरे पूर्वी मोर्चे पर बाल्टिक सागर से कार्पाटेन तक 13 जनवरी की सुबह सोवियत सैनिकों ने अपना अब तक का सबसे बड़ा हमला शुरू किया है. 1000 किलोमीटर का मोर्चा जल रहा है."

खुद की मौत की सजा पर दस्तखत

मीटर दर मीटर रेड आर्मी आगे बढ़ती है, और उसके साथ आउशवित्स के यातना शिविर में बचे हुए कैदियों की रिहाई करीब आती जाती है. लेकिन ऐसा होने में अभी दो दर्दनाक हफ्ते बाकी हैं. अंत में 27 जनवरी 1945 की दोपहर, शनिवार के दिन सोवियत सैनिक आउशवित्स पहुंचे. जर्मन टुकड़ियों ने बड़ा प्रतिरोध किया. यातना शिविर को आजाद कराने में सोवियत सेना के 231 जवानों ने अपनी जान दी. वहां बचाए गए 7,500 कैदी जिंदा से ज्यादा मरे हुए दिखते हैं.

तस्वीर: Getty Images

आउशवित्स के नाजी यातना शिविर में जो कुछ हो रहा था, उसे तुंरत सार्वजनिक नहीं किया गया. मध्य अप्रैल से जीवित बचे लोगों ने ब्रिटिश रेडियो बीबीसी पर कैद में अपने अनुभव बताना शुरू किया. अपना अनुभव बताने वालों में अनीता लसकर भी थीं, "ट्रांसपोर्ट आने के समय एक डॉक्टर और एक कमांडेट रैंप पर होता था और हमारी आंखों के सामने उन्हें अलग किया जाता था. उनसे उनकी उम्र और स्वास्थ्य के बारे में पूछा जाता था." बहुत से बिन जाने अपनी कोई न कोई बीमारी बता देते थे और उसके साथ ही अपनी ही मौत के फैसले पर मुहर लगा देते थे. "उनका ध्यान बच्चों और बूढ़ों पर होता था. दांये, बायें, दायें बांये." वे बताती हैं दांएं का मतलब जिंदगी और बाएं का मतलब गैस चैंबर.

कत्लेआम के संयोजक

आउशवित्स का यातना शिविर कैदियों को यातना देने और मारने का सबसे बड़ा और सबसे खतरनाक केंद्र था. वहां नाजियों ने अपनी हत्यारी व्यवस्था को तराशा. व्यवस्थित कत्लेआम का आयोजक आडोल्फ आइषमन था. वह जर्मन राइष के सुरक्षा मुख्यालय में यहूदी मामलों के विभाग का प्रमुख था, जो कुख्यात नाजी संगठ एसएस के अधीन था. युद्ध के अंत में आइषमन वैटिकन की मदद से भागकर अर्जेंटीना चला गया.

तस्वीर: Museen der Stadt Nürnberg

मई 1960 में इस्राएली खुफिया सेवा ने उसे खोज निकाला और उसका अपहरण कर इस्राएल ले गए. वहां उस पर मुकदमा चलाया गया जिसके दौरान उसने यहूदियों की हत्या में अपनी भूमिका को कम कर बताने की कोशिश की. "मैं तत्कालीन जर्मन नेतृत्व के आदेश पर हुए यहूदियों के कत्लेआम पर अफसोस व्यक्त करता हूं और उसकी निंदा करता हूं." अपनी जिम्मेदारी को कम करते हुए उसने अदालत से कहा, "मैं मजबूत ताकतों और अकथनीय नियति के हाथों औजार भर था." लेकिन अदालत पर इसका कोई असर नहीं हुआ. उसे दोषी पाया गया और सजाए मौत दी गई. आइषमन को 1962 में फांसी दे दी गई.

क्राकाउ से 60 किलोमीटर दक्षिण पश्चिम में स्थित आउशवित्स यातना शिविर 1940 के शुरु में बना. सितंबर 1941 में शिविर के कमांडेंट रुडॉल्फ होएस ने कैदियों के मारने के लिए जहरीली गैस साइकलॉन बी के इस्तेमाल का आदेश दिया. साइकलॉन बी का इस्तेमाल डिसइंफेक्शन के लिए होता है, लेकिन उसका धुआं मिनटों में जान ले लेता है.1942 से एसएस ने पूरे यूरोप से यहूदियों को आउशवित्स भेजना शुरू किया. 1943 से यहूदियों, सिंती, रोमा और दूसरे नाजी विरोधियों की औद्योगिक हत्या शुरू हुई. कैदियों को चार गैस चैंबरों में मारा जाता था और उसके बाद बड़े शवदाहगृह में जला दिया जाता था.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

कैसे मरे आउशवित्स में कैदी

आउशवित्स में नाजियों के सारे शिकार गैस चैंबर में नहीं मारे गए. जानवरों का ट्रांसपोर्ट किए जाने वैगनों में लाए जाने वाले कैदियों को माल उतारे जाने वाले रैंप पर चुना जाता था. किसे तुरंत गैस चैंबर में मार डाला जाएगा और किसे नहीं, इसका फैसला रैंप पर ही डॉक्टर और एसएस का कमांडेंट करता था. उनमें से एक जोजेफ मेंगेले था जो बाद में 'मौत का दूत' के नाम से कुख्यात हुआ. मौत के लिए चुनने के अलावा मेंगेले बच्चों सहित सबपर बर्बर परीक्षण भी करता था.

युद्ध के बाद वह अर्जेंटीना भाग गया. बाद में वहां से पाराग्वे और ब्राजील जहां वह संभवतः 1978 में एक दुर्घटना में मारा गया. उसके बारे में बीबीसी में अनीता लसकर ने बताया था कि कैसे वह कुख्यात ब्लॉक 10 में महिला कैदियों को बुलवा कर उनपर परीक्षण करता था. "महिलाओं का बंधीकरण कर दिया जाता था, वह ऐसे परीक्षण करता जो गिनी पिग के साथ किए जाते हैं, लेकिन वह यहूदियों के साथ ऐसा कर रहा था. इसी तरह वह जुड़वां लोगों के साथ भी दातों को बाहर निकाल कर या नाकों को खोलकर परीक्षण करता."

तस्वीर: picture-alliance / akg-images

जो काम करने की हालत में नहीं होता था, उसे वापस भेज दिया था. शिविर के उस हिस्से में जो मरने के लिए चुने गए लोगों के लिए था. एसएस ने आउशवित्स में 10 लाख से ज्यादा लोगों की जान ली. करीब आती सोवियत सेना से अपने अपराधों को छुपाने के लिए एसएस ने 1944 के अंत में गैस चैंबरों को धमाका कर उड़ा दिया और ज्यादातर कैदियों को पश्चिमी इलाकों में भेज दिया. चारलोटे ग्रुनोव और अनीता लसकर को लोवर सेक्सनी के बैर्गेन बेलजेन ले जाया गया जहां से उन्हें ब्रिटिश आर्मी ने अप्रैल 1945 में आजाद कराया.

भयानक तकलीफ की याद

आउशवित्स में बचे कैदियों को सोवियत सेना की आर्टिलरी की आवाजें सुनाई देने लगी थीं. लेकिन एसएस यातना शिविर को आजाद कराए जाने को हर हालत में रोकना चाहता था. अपराधी नाजियों ने भूख और बीमारी से सूखकर कांटा हो चुके कैदियों को यातना शिविर से भगा दिया, उन्हें दिन और रात पैदल चलने को मजबूर किया. जो रुकता था उसे गोली मार दी जाती थी. मौत के मार्च पर 56,000 लोगों को जाने को मजबूर किया गया जिनमें से 15,000 के लिए वह आखिरी रास्ता साबित हुआ. उनकी लाशें रास्ते के किनारों में पड़ी रहीं.

तस्वीर: picture-alliance / akg-images

नाजियों द्वारा किए गए कत्लेआम ने, जिसे आइषमन ने मुकदमे में अकथनीय नियति बताया था, 60 लाख लोगों की जान ली. कम से कम 56 लाख यहूदी और पांच लाख रोमा और सिंती के अलावा अपंग, समलैंगिक और यहोवा के साक्षी संप्रदाय के लोग. मरने वालों में 15 लाख बच्चे थे. 1996 से जर्मनी 27 जनवरी को औपचारिक रूप से नाजी शासन के शिकारों की याद करता है.

रिपोर्ट: बिरगिट गोएर्त्स/एमजे

संपादन: ईशा भाटिया

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