यूरोप में मिनरल वॉटर का सबसे बड़ा प्राकृतिक भंडार जर्मनी में है. कुदरत यहां हर दिन करोड़ों लीटर पौष्टिक पानी छलकाती है.
हर दिन 2.2 करोड़ लीटर मिनरल वॉटरतस्वीर: Fotolia/World travel images
विज्ञापन
जर्मन प्रांत बाडेन वुर्टेमबर्ग की राजधानी श्टुटगार्ट के महानगरीय जंगल में छुपी इस प्राकृतिक जगह पर पश्चिमी यूरोप का सबसे बड़ा मिनरल वॉटर भंडार है. यहां झरने भी हैं, और ऐसी जगहें भी जहां से भूजल लगातार फव्वारों से बाहर निकलता है. यहां 19 झरनों से हर रोज 2.2 करोड़ लीटर पानी निकलता है. भूविज्ञानी राल्फ लाटेर्नजर ने पानी की इस दुनिया के संरक्षण को अपने जीवन का मकसद बना लिया है. डॉ. लाटेर्नजर कहते हैं, "यहां की खास बात अपेक्षाकृत साफ पानी का इतना बड़ा भंडार है जो यहां 5,00,000 साल से लगातार बह रहा है. ऐसा प्राकृतिक खजाना जिसे भविष्य में भी इस्तेमाल किया जा सकता है, पीने के लिए और स्वास्थ्य के लिए भी क्योंकि यहां बहुत सारा पानी चिकित्सीय गुणों वाला भी है."
प्राकृतिक मिनरल वॉटर, यानि मूल्यवान खनिज और लवणों से भरा पानी जो जीवन के लिए अमृत जैसा है. बहुत दूर तक फैले पाइपों की मदद से पानी को फव्वारों और स्पा तक पहुंचाया गया है. पानी को उसके प्राकृतिक रूप में छोड़ दिया गया है, कोई भी अतिरिक्त रसायन नहीं मिलाया गया है. इस प्राकृतिक जल का इस्तेमाल हजारों साल पुरानी स्पा परंपरा के साथ जुड़ा है. पाषाणयुग में लोग पहली बार यहां रहने लगे थे, रोमन काल में लोगों ने पास में बस्तियां बनाईं और यहां नहाते थे. यहां का पानी आज भी पेयजल के अलावा स्वास्थ्यलाभ के लिए प्राकृतिक संसाधन बना हुआ है.
कहां कहां हो रहे हैं पानी पर झगड़े
भारत में कावेरी जल विवाद हो या सतलुज यमुना लिंक का मुद्दा, पानी को लेकर अकसर खींचतान होती रही है. वैसे पानी को लेकर झगड़े दुनिया में और भी कई जगह हो रहे हैं. एक नजर बड़े जल विवादों पर.
तस्वीर: AFP/Getty Images
ब्रह्मपुत्र नदी विवाद
2900 किलोमीटर लंबी ब्रह्मपुत्र नदी चीन के तिब्बत से निकलती है. अरुणाचल प्रदेश और असम से होते हुए ये बांग्लादेश में गंगा में मिल जाती है. उर्जा के भूखे चीन के लिए जहां इस नदी का पनबिजली परियोजनाओं के लिए महत्व है, वहीं भारत और बांग्लादेश के बड़े भूभाग को ये नदी सींचती है. भारत और चीन के बीच इसके पानी के इस्तेमाल के लिए कोई द्विपक्षीय संधि नहीं है लेकिन दोनों सरकारों ने हाल में कुछ कदम उठाए हैं.
तस्वीर: DW/B. Das
ग्रांड रेनेसॉ बांध और नील नदी
2011 में अफ्रीकी देश इथियोपिया ने ग्रांड इथियोपियन रेनेसॉ बांध बनाने की घोषणा की. सूडान की सीमा के नजदीक ब्लू नील पर बनने वाले इस बांध से छह हजार मेगावॉट बिजली बन सकेगी. बांध बनाने का विरोध सूडान भी कर रहा है लेकिन मिस्र में तो इससे पानी की आपूर्ति प्रभावित होने का खतरा है. 1929 और 1959 में संधियां हुई हैं. लेकिन इथियोपिया किसी बात की परवाह किए बिना बांध बना रहा है जो 2017 तक पूरा हो सकता है.
तस्वीर: CC BY-SA 2.0/Islam Hassan
इलिसु बांध और तिगरिस नदी
तुर्की सीरियाई सरहद के पास तिगरिस नदी पर इलिसु बांध बना रहा है. इस महत्वाकांक्षी परियोजना के से सिर्फ तिगरिस बल्कि यूफ्रेटस की हाइड्रोइलेक्ट्रिक क्षमताओं का भरपूर इस्तेमाल किया जाना है. तुर्की अपनी अनातोलियन परियोजना के तहत तिगरिस-यूफ्रेटस के बेसिन में कई और बांध और हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्लांट लगाना चाहता है. लेकिन इससे सबसे बड़ा घाटा इराक का होगा जिसे अब तक इन नदियों का सबसे ज्यादा पानी मिलता था.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
सिंधु जल संधि विवाद
पानी के बंटवारे के लिए विश्व बैंक ने 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच एक संधि कराई जिसे सिंधु जल संधि के नाम से जाना जाता है. इसके तहत ब्यास, रावी और सतलज नदियों का नियंत्रण भारत को सौंपा गया जबकि सिंधु, चेनाब और झेलम का नियंत्रण पाकिस्तान को. पानी का बंटवारा कैसे हो, इसे लेकर विवाद रहा है. चूंकि पाकिस्तान के नियंत्रण वाली नदियां भारत से होकर जाती है, भारत इसका इस्तेमाल सिंचाई के लिए कर सकता है.
तस्वीर: Asif Hassan/AFP/Getty Images
शायाबुरी बांध
दक्षिण पूर्व एशियाई देश लाओस मेकॉन्ग नदी पर शायाबुरी बांध बना रहा है जिसका उसके पड़ोसी देश और पर्यावरणविद् विरोध कर रहे हैं. बांध के बाद ये नदी कंबोडिया और वियतनाम से गुजरती है. उनका कहना है कि बांध के कारण उनके मछली भंडार और लाखों लोगों की जिंदगियां प्रभावित होंगी. गरीब लाओस शायाबुरी बांध को अपनी आमदनी का जरिया बनाना चाहता है. उसकी योजना इससे बनने वाली बिजली को पड़ोसी देशों को बेचना है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
पानी पर सियासत
मध्य पूर्व में जॉर्डन नदी का बेसिन इस्राएल और अन्य देशों के बीच सियासत का एक अहम मुद्दा है. मध्य पूर्व में पानी के स्रोतों की कमी होने की वजह इस्राएल, पश्चिमी तट, लेबनान, सीरिया और जॉर्डन के बीच अकसर खींचतान होती रहती है. 1960 के दशक में पानी के बंटवारे को लेकर इस्राएल और अरब देशों के बीच तीन साल तक चले गंभीर विवाद को जल युद्ध का नाम दिया जाता है.
तस्वीर: AFP/Getty Images
6 तस्वीरें1 | 6
कारों के शहर श्टुटगार्ट के ज्यादातर झरने स्वास्थ्य लाभ के पानी के रूप में सरकारी तौर पर मान्य है. इस पानी में पाये जाने वाले खनिज तत्वों की नियमित जांच होती है ताकि तय किया जा सके कि वह कहीं दूषित तो नहीं हो गया है. यहां जमीन से फूटकर निकलने वाला पानी बीस साल पहले बारिश और भाप बनने की प्रक्रिया से गुजरकर छन छन कर जमीन के अंदर गया है. डॉ. राल्फ लाटेर्नजर कहते हैं, "ये सौभाग्य है कि पानी अपने आपको साफ करता रहता है. जर्मनी में पानी की कोई कमी नहीं है, लेकिन फिर भी भूजल और खासकर मिनरल वॉटर को भावी पीढ़ियों के लिए संरक्षित रखना बहुत जरूरी है."
जल ही जीवन है. कहीं कहीं और कभी कभार ही यह इस उदारता से छलकता रहता है, जितना कि जर्मनी के श्टुटगार्ट में. ये प्रकृति का अद्भुत वरदान है, जिसे सहेज कर रखना और जिसका सम्मान और संरक्षण जरूरी है.