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जर्मनी में भारतीय तड़का

२ अक्टूबर २०११

वक्त कई चीजें बदल देता है. यह लाइन जर्मनी में रह रहे भारतीयों पर भी ठीक बैठती है. छह दशक से हजारों किलोमीटर दूर से जर्मनी आ रहे भारतीय यहां के माहौल में रच बस गए हैं. जर्मनी भी उन्हें खुले दिल से अपना रहा है.

अंशु जैनतस्वीर: picture alliance/dpa

अंशु जैन जर्मनी के सबसे बड़े बैंक डॉयचे बैंक के प्रमुख बनने जा रहे हैं. रॉबिन दत्त फुटबॉल क्लब बायर लेवरकुजेन के मैनेजर हैं. राजू शर्मा वामपंथी पार्टी डी लिंके के कोषाध्यक्ष हैं और सेबास्टियान एडाथी मुख्य विपक्षी पार्टी एसपीडी के वरिष्ठ सांसद हैं. यह भारतीय या भारतीय मूल के वह लोग हैं जो इस वक्त जर्मनी में उच्च पदों पर आसीन हैं. जर्मनी में इस वक्त 70,000 भारतीय रह रहे हैं. 

जर्मनी के छोटे बड़े हर शहर में अब भारतीय मूल के लोग आसानी से देखे जा सकते हैं. इंडियन शॉप यानी भारतीय सामान की दुकानें भी आम बात हो चली हैं. शहरों की मुख्य गलियों में भारतीय रेस्तरां हैं. शुक्रवार या शनिवार की रात डिस्को और पबों में भारतीय गाने भी चलते हैं. कई चैनलों पर बॉलीवुड की फिल्में जर्मन जबान में आती हैं. यह बड़ा बदलाव है. आज से ठीक 60 साल पहले 1951 में पूर्वी जर्मनी की ड्रेसडन शहर में जब पहला भारतीय छात्र आया तो रेलवे स्टेशन का नजारा देखने लायक रहा. भारतीय छात्र के स्वागत में भारी संख्या में लोग स्टेशन पर पहुंचे.

तकनीक की बढ़िया पढ़ाई ने भारतीयों को हमेशा जर्मनी की ओर आकर्षित किया. 1950 और 60 के दशक में उच्च तकनीकी शिक्षा के लिए भारतीय छात्रों ने जर्मनी का रुख करना शुरू किया. कुछ छात्र लौट गए लेकिन ज्यादातर यहीं रह गए. जर्मन संस्थानों में भारतीय कामगारों को खासी तरजीह दी गई. 60 और 70 के दशक में केरल से भी बड़े पैमाने पर मलयाली कैथोलिक महिलाएं चिकित्सा संस्थानों में काम करने के लिए जर्मनी आईं. इस दौर में कृषि और तकनीक को लेकर दोनों देश काफी करीब आए. भारत के छोटे छोटे गांवों के खेतों तक जर्मन मशीनें और यहां के बीज पहुंचे. एक पौधे में दूसरे पौधे की कलम लगाना भी भारत ने जर्मनी की मदद से सीखा.

रॉबिन दत्ततस्वीर: dapd

इसके बाद दो दशकों का दौर भारत और जर्मनी के रिश्ते की कठिन परीक्षा रहा. 1980 के दशक में जब भारत में सिख अलगाववाद की आंच उठी तो कनाडा, ब्रिटेन और जर्मनी जैसे देशों ने बड़ी संख्या में सिखों को शरण दी. शरण पाने वाले ज्यादातर लोग गैर प्रशिक्षित थे, उनकी जबान भी पंजाबी थी. बहस छिड़ी की ऐसे लोग समाज में किस ढंग से अपना योगदान दे सकेंगे. 25-30 साल पहले जर्मनी आए सिख लोग अब फर्राटे से जर्मन बोलते हैं. वह छोटे बड़े कारोबार का हिस्सा हैं. उन्हें लेकर अब बहस भी नहीं होती.

बीते दस साल में भारत और जर्मनी के संबंध नए सिरे से आगे बढ़ रहे हैं. बर्लिन ने वर्किंग वीजा संबंधी नियमों में बदलाव कर भारतीय आईटी पेशेवरों का स्वागत किया है. इस वक्त भारत के करीब 20,000 आईटी विशेषज्ञ जर्मन कंपनियों में काम कर रहे हैं. विदेशियों को अपनाने के लिए जर्मनी काफी हद तक खुल चुका है. जर्मन कंपनियां भारत पहुंच चुकी हैं. दोनों देशों में कारोबार से जुड़े अधिकारी आए दिन एक दूसरे के देश का दौरा कर रहे हैं. मर्सिडीज, बीएमडब्ल्यू और फोक्सवागन जैसी कंपनियों ने भारत में निवेश किया है और कारखाने खड़े किए हैं.

एक तरफ भारतीय जर्मन माहौल में रम रहे हैं तो दूसरी तरफ जर्मन भारत की प्रति अपनी लालसा बुझाने को बेताब हैं. भारत की आध्यात्मिकता और आर्युवेद की परंपरा 18वीं सदी से जर्मनी को प्रभावित करती रही है. हर साल सैकड़ों जर्मन नागरिक भारत में योग सीखने या आर्युवेदिक इलाज कराने जाते हैं. योग इस बीच इतना लोकप्रिय हो चुका है कि जर्मनी के हर शहर में योग सिखाने वाले केंद्र खुल चुके हैं और सीखने वालों की कतई कमी नहीं है.

रिपोर्ट: ओ सिंह

संपादन: महेश झा

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