जर्मन राजनीति में भी पैसे के लेन देन को लेकर बहुत ज्यादा पारदर्शिता नहीं है. जर्मनी पर जरूरी कदम न उठाने के भी आरोप लग रहे हैं.
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काउंसिल ऑफ यूरोप की रिपोर्ट में जर्मनी से राजनीतिक प्रचार संबंधी पारदर्शिता को बेहतर बनाने की मांग की गई है. रिपोर्ट के मुताबिक जर्मनी को 20 सुझाव दिए गए थे, लेकिन सिर्फ नौ पर ही अमल किया गया. काउंसिल ऑफ यूरोप की भ्रष्टाचार विरोधी समिति की एक विशेषज्ञ के मुताबिक 7 साल पहले आखिरी बार ऑडिट हुआ था. तब से अब तक जर्मनी ने सिर्फ नौ सुझाव ही माने हैं.
राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे की रिपोर्टिंग से जुड़े सुझाव भी नजरअंदाज किए गए हैं. फिलहाल जर्मनी के राजनीतिक पार्टियों को 50,000 यूरो से ज्यादा का चंदे की जानकारी देनी पड़ती है. भ्रष्टाचार विरोधी समिति चाहती है कि कम चंदा देने वालों की भी जानकारी देनी चाहिए.
काउंसिल ऑफ यूरोपीय मुद्दों को उठाने वाला एक अंतरराष्ट्रीय मंच है. इसका यूरोपीय संघ की संस्थाओं से कोई संबंध नहीं है.
ग्रुप ऑफ स्टेट अंगेस्ट करप्शन ने जर्मनी ने गुप्त चंदे को बंद करने की अपील भी की है. फिलहाल गुप्त चंदे की रकम 500 यूरो है. ग्रुप ऑफ स्टेट अंगेस्ट करप्शन की स्थापना 1999 में हुई. इसका मकसद प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष भ्रष्टाचार को खत्म करना है. संस्था में अमेरिका और काउंसिल ऑफ यूरोप के 47 सदस्य देश शामिल हैं.
चंदों पर चलते राजनीतिक दल
लोकतंत्र में राजनीतिक दल लोगों के विचार के विकास में योगदान देते हैं और उनका समर्थन जीतकर उनके हित में प्रशासन चलाते हैं. लेकिन सदस्यों से पर्याप्त धन न मिले तो पार्टियों को चंदे पर निर्भर होना पड़ता है.
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बढ़ा खर्च
राजनीतिक दलों का खर्च बढ़ा है. वहीं उनका जनाधार खिसका है. लोकतांत्रिक संरचना के अभाव में सदस्यों की भागीदारी कम हुई है. पैसों की कमी चंदों से पूरी हो रही है, जिसका सही हिसाब किताब नहीं होता.
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जुलूस
खर्च इस तरह के जुलूसों के आयोजन पर भी है. चाहे चुनाव प्रचार हो या किसी मुद्दे पर विरोध या समर्थन व्यक्त करने के लिए रैलियों का आयोजन. नेताओं को लोकप्रियता दिखाने के लिए इसकी जरूरत होती है.
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रैलियां
लोकप्रियता का एक पैमाना स्वागत में सड़कों पर उतरने वाली भीड़ है. इस भीड़ का इंतजाम स्थानीय पार्टी इकाई को करना होता है. कार्यकर्ताओं को लाने ले जाने का भी खर्च होता है.
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छोटी पार्टियां
राष्ट्रीय पार्टियों के कमजोर पड़ने से लगभग हर राज्य में प्रांतीय पार्टियां बन गई हैं. स्थानीय क्षत्रपों को भी अपनी पार्टी चलाने के लिए पैसे की जरूरत होती है.
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कहां से आए धन
बहुत से प्रांतों में आर्थिक विकास न होने के कारण चंदा दे सकने वाले लोगों की कमी है. फिर पैसे के लिए चारा घोटाला होता है या चिटफंड घोटाला.
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पैसे की लूट
फिर सहारा स्थानीय कंपनियों का लेना पड़ता है. बंगाल में सत्ताधारी त्रृणमूल के कुछ नेता घोटालों के आरोप में जेल में हैं, जनता सड़कों पर उतर रही है.
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नजरअंदाज नियम
भारत का चुनाव आयोग दुनिया के सबसे सख्त आयोगों में एक है. उसने स्वच्छ और स्वतंत्र चुनाव करवाने में तो कामयाबी पाई है लेकिन राजनीतिक दलों को लोकतांत्रिक और पारदर्शी बनाने में नाकाम रहा है.
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पारदर्शिता संभव
भारत जैसे लोकतंत्र को चलाने वाली बहुत सी राजनीतिक पार्टियां खुद कानूनों का पालन नहीं करतीं. आम आदमी पार्टी अकेली पार्टी है जो चंदे के मामले में पारदर्शी है.
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प्राथमिकता क्या
सालों से सत्ता में रही और स्वच्छ प्रशासन के लिए जिम्मेदार रही पार्टियां या तो जुलूस, धरना, प्रदर्शन में वक्त गुजार रही है...
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दलगत राजनीति
...या फिर जीत का जश्न मनाने, नए प्रदेशों पर कब्जा करने की योजना बनाने और वहां सत्ता में आने की तैयारी करने में.
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परेशान जनता
तो देश के बड़े हिस्से को पानी, बिजली जैसी आम जरूरत की चीजें उपलब्ध नहीं है. अभी भी लोगों को पीने के पानी के लिए लाइन में खड़ा होना पड़ता है.