तुर्की की कमान अब भी रेचेप तैयप एर्दोवान के हाथों में ही रहेगी. रविवार को हुए चुनाव में एर्दोवान ने पूर्ण बहुमत से जीत हासिल की और अगले पांच साल के लिए राष्ट्रपति की कुर्सी को सुरक्षित कर लिया है.
विज्ञापन
एर्दोवान भले ही दूसरी बार देश के राष्ट्रपति बने हैं लेकिन सत्ता उनके पास 15 सालों से है. 2003 से 2014 तक वे तुर्की के प्रधानमंत्री रहे. तुर्की में उनके समर्थकों में तो जीत का जश्न देखा ही गया, साथ ही जर्मनी में भी एर्दोवान के नाम के नारे सुनाई दिए. बर्लिन और कोलोन समेत जर्मनी के कई शहरों में तुर्क मूल के लोगों को हाथ में तुर्की का झंडा लिए खुशी का इजहार करते देखा गया. रविवार रात राजधानी बर्लिन में नजारा कुछ वैसा था जैसा अकसर फुटबॉल मैच जीतने के बाद देखने को मिलता है. स्थानीय मीडिया के अनुसार तुर्क मूल के लोग अपनी गाड़ियों में सवार जोर जोर से हॉर्न बजाते हुए सड़कों पर निकले और खिड़की से सिर बाहर निकल कर, "हमारा नेता, एर्दोवान" के नारे लगाते रहे. वहीं कोलोन शहर में पुलिस को भीड़ की नारेबाजी देखते हुए कुछ देर के लिए सड़क की बंद करनी पड़ी.
राजनीतिक रूप से तुर्की दो हिस्सों में बंटा है. एक हिस्सा वो जो एर्दोवान को पूरी तरह अपना समर्थन देता है और दूसरा उनका कड़ा आलोचक है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी एर्दोवान और उनकी नीतियों की कड़ी आलोचना होती है. जर्मनी के तुर्क मूल के सांसद चेम ओएजदेमीर ने ट्वीट कर जर्मनी में मनाए जा रहे एर्दोवान की जीत के जश्न की आलोचना की. उन्होंने लिखा, "जर्मनी में एर्दोवान के समर्थक ना केवल एक तानाशाह (की जीत) का जश्न मना रहे हैं, बल्कि हमारे उदारवादी लोकतंत्र को नकार भी रहे हैं." जर्मनी की उग्र दक्षिणपंथी पार्टी एएफडी से इसकी तुलना करते हुए उन्होंने आगे लिखा, "ठीक एएफडी की तरह, हमें इसकी भी चिंता करनी चाहिए."
जर्मनी में करीब 25 लाख तुर्क मूल के लोग रहते हैं. इनमें से करीब सात लाख के पास जर्मनी की नागरिकता है. 4 लाख 75 हजार ने इस चुनाव में हिस्सा लिया. यह वोट देने के लिए योग्य लोगों का कुल 43 फीसदी था. जर्मनी और तुर्की की अगर तुलना की जाए, तो जहां तुर्की में एर्दोवान को 52.6 प्रतिशत वोट मिले, तो वहीं जर्मनी में 65.7 प्रतिशत. साथ ही संसदीय चुनावों में उनकी एकेपी पार्टी को तुर्की में 42.5 फीसदी वोट मिले हैं और जर्मनी में 56.3 फीसदी. विपक्ष के नेता मुहर्रम इंचे की सीएचपी पार्टी को जहां तुर्की में 31 फीसदी वोट मिले हैं, तो जर्मनी में महज 22 फीसदी ही. इससे पहले अप्रैल 2017 में हुए जनमत संग्रह के दौरान भी जर्मनी में रहने वाले तुर्क मूल के लोगों में 63 फीसदी ने देश की व्यवस्था को बदलने की पक्ष में मत दिया था, जबकि तुर्की में 51 फीसदी लोगों ने "हां" में अपना मत दिया था. तुर्की में इस जनमत संग्रह के बाद से राष्ट्रपति शासन वाली व्यवस्था की शुरुआत हुई.
कितना बदल गया तुर्की
बीते 15 साल में तुर्की जितना बदला है, उतना शायद ही दुनिया का कोई और देश बदला होगा. कभी मुस्लिम दुनिया में एक उदार और धर्मनिरपेक्ष समाज की मिसाल रहा तुर्की लगातार रूढ़िवाद और कट्टरपंथ के रास्ते पर बढ़ रहा है.
तस्वीर: picture-alliance/Ap Photo/Y. Bulbul
एर्दोवान का तुर्की
इस्लामी और रूढ़िवादी एकेपी पार्टी के 2002 में सत्ता में आने के बाद से तुर्की बहुत बदल गया है. बारह साल प्रधानमंत्री रहे रेचेप तैयप एर्दोवान 2014 में राष्ट्रपति बने और देश को राष्ट्रपति शासन की राह पर ले जा रहे हैं.
तस्वीर: Getty Images/V. Rys
बढ़ा रूढ़िवाद
तुर्की इन सालों में और ज्यादा रूढ़िवादी और धर्मभीरू हो गया. जिस तुर्की में कभी बुरके और नकाब पर रोक थी वहां हेडस्कार्फ की बहस के साथ सड़कों पर ज्यादा महिलायें सिर ढंके दिखने लगीं.
तस्वीर: Reuters/O. Orsal
कमजोर हुई सेना
एकेपी के सत्ता में आने से पहले तुर्की की राजनीति में सेना का वर्चस्व था. देश की धर्मनिरपेक्षता की गारंटी की जिम्मेदारी उसकी थी. लेकिन एर्दोवान के शासन में सेना लगातार कमजोर होती गई.
तस्वीर: picture-alliance/AA/E. Sansar
अमीर बना तुर्की
इस्लामी एकेपी के सत्ता में आने के बाद स्थिरता आई और आर्थिक हालात बेहतर हुए. इससे धनी सेकुलर ताकतें भी खुश हुईं. लेकिन नया धनी वर्ग भी पैदा हुआ जो कंजरवेटिव था.
तस्वीर: picture-alliance/AA/H. I. Tasel
अक्खड़ हुआ तुर्की
एर्दोवान के उदय के साथ राजनीति में अक्खड़पन का भी उदय हुआ. खरी खरी बातें बोलने की उनकी आदत को लोगों ने इमानदारी कह कर पसंद किया, लेकिन यही रूखी भाषा आम लोगों ने भी अपना ली.
तस्वीर: Reuters/M. Sezer
नए सियासी पैंतरे
विनम्रता, शिष्टता और हया को कभी राजनीति की खूबी माना जाता था. लेकिन गलती के बावजूद राजनीतिज्ञों ने कुर्सी से चिपके रहना और दूसरों की खिल्ली उड़ाना सीख लिया. एर्दोवान के दामाद और उर्जा मंत्री अलबायराक.
तस्वीर: Reuters/M. Sezer
नेतृत्व की लालसा
कमालवाद के दौरान तुर्की अलग थलग रहने वाला देश था. वह दूसरों के घरेलू मामलों में दखल नहीं देता था. लेकिन एर्दोवान के नेतृत्व में तुर्की ने मुस्लिम दुनिया का नेतृत्व करने की ठानी.
तस्वीर: Getty Images/AFP/K. Ozer
लोकतांत्रिक कायदों से दूरी
एकेपी के शासन में आने के दो साल बाद 2004 में यूरोपीय संघ ने तुर्की की सदस्यता वार्ता शुरू करने की दावत दी. तेरह साल बाद तुर्की लोकतांत्रिक संरचना से लगातार दूर होता गया है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/F. Rumpenhorst
ईयू से झगड़ा
तुर्की ने 2023 तक यूरोपीय संघ का प्रभावशाली सदस्य बनने का लक्ष्य रखा है. लेकिन अपनी संरचनाओं को ईयू के अनुरूप ढालने के बदले वह लगातार यूरोपीय देशों से लड़ रहा है.
तस्वीर: Reuters/F. Lenoir
तुर्की में धर पकड़
2016 में तख्तापलट की नाकाम कोशिश के बाद तुर्की में हजारों सैनिक और सरकारी अधिकारियों को बर्खास्त कर दिया गया है और सैकड़ों को जेल में डाल दिया गया है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Altan
एर्दोवान की ब्लैकमेलिंग?
2016 के शरणार्थी संकट के बाद एर्दोवान लगातार जर्मनी और यूरोप पर दबाव बढ़ा रहे हैं. पिछले दिनों जर्मनी के प्रमुख दैनिक डी वेल्ट के रिपोर्टर डेनिस यूशेल को आतंकवाद के समर्थन के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/A. Arnold
इस्लामिक देश होगा तुर्की?
अप्रैल 2017 में तुर्की में नए संविधान पर जनमत संग्रह हुआ, जिसने देश को राष्ट्रपति शासन में बदल दिया. अब एर्दोवान 2034 तक राष्ट्रपति रह सकेंगे. सवाल ये है कि क्या तुर्की और इस्लामिक हो जाएगा.
तस्वीर: picture-alliance/AA/R. Aydogan
12 तस्वीरें1 | 12
जर्मनी में मौजूद तुर्क मूल की इतनी बड़ी संख्या की वजह देश का इतिहास है. दरअसल 60 के दशक में बड़ी संख्या में तुर्की से लोगों को मजदूरी के लिए यहां बुलाया गया था. देश के पुनर्निर्माण में इन लोगों ने बड़ी भूमिका निभाई थी. हालांकि शुरुआत में इन्हें केवल दो साल के लिए ही बुलाया जाता था और परिवार को साथ में लाने की भी अनुमति नहीं होती थी लेकिन वक्त के साथ नियम कानून बदले और अधिकतर लोग जर्मनी में ही बस गए. आज जर्मनी में मौजूद विदेशियों का सबसे बड़ा तबका तुर्क मूक का ही है.
और ताकतवर हुए तुर्की के एर्दोवान, मिली ये शक्तियां
तुर्की में रेचेप तैयप एर्दोवान फिर पांच साल के लिए राष्ट्रपति बन गए हैं. तुर्की में पहली बार राष्ट्रपति शासन प्रणाली लागू की गई है जिसमें एर्दोवान के पास पहले से कहीं ज्यादा शक्तियां होंगी. एक नजर उनकी ताकतों पर:
तस्वीर: picture-alliance/AA/E. Aydin
पीएम पद खत्म
तुर्की में प्रधानमंत्री पद खत्म कर दिया गया है. राष्ट्रपति ही अब कैबिनेट की नियुक्ति करेगा. साथ ही उसके पास उपराष्ट्रपति नियुक्त करने का अधिकार होगा. कितने उपराष्ट्रपति नियुक्त करने हैं, यह राष्ट्रपति को तय करना है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Altan
नहीं चाहिए संसद की मंजूरी
मंत्रालयों के गठन और नियमन के लिए राष्ट्रपति अध्यादेश जारी करने में सक्षम होंगे. साथ ही नौकरशाहों की नियुक्ति और उन्हें हटाने का फैसला भी राष्ट्रपति करेंगे. इसके लिए उन्हें संसद से मंजूरी लेने की जरूरत नहीं होगी.
तस्वीर: Reuters/U. Bektas
अध्यादेश की सीमाएं
राष्ट्रपति के ये अध्यादेश मानवाधिकार या बुनियादी स्वतंत्रताओं और मौजूदा कानूनों को खत्म करने पर लागू नहीं होंगे. अगर राष्ट्रपति के अध्यादेश कानूनों में हस्तक्षेप करते हैं तो इस स्थिति में अदालतें फैसला करेंगी.
तस्वीर: picture-alliance/AA/O. Elif Kizil
आलोचकों की चिंता
आलोचकों का कहना है कि कानूनी संहिता में स्पष्टता की कमी है. साथ ही देश की न्यायपालिका में निष्पक्षता की कमी झलकती है. ऐसे में, इस बात की उम्मीद नहीं है कि अदालतें स्वतंत्र हो कर फैसले दे पाएंगी.
तस्वीर: picture alliance/abaca/Depo Photos
तो अमान्य होंगे अध्यादेश
राष्ट्रपति को कार्यकारी मामलों पर अपने अध्यादेशों के लिए संसद से मंजूरी लेने की जरूरत नहीं है. लेकिन अगर संसद ने भी उसी मुद्दे पर कोई कानून पारित कर दिया तो राष्ट्रपति का अध्यादेश फिर अमान्य हो जाएगा.
तस्वीर: picture-alliance/AA/H. Aktas
इमरजेंसी
राष्ट्रपति देश में छह महीने तक इमरजेंसी लगा सकते हैं और इसके लिए उन्हें कैबिनेट से मंजूरी हासिल नहीं करनी होगी. इमरजेंसी के दौरान राष्ट्रपति के अध्यादेश मौलिक अधिकारों और स्वतंत्रताओं पर भी लागू होंगे.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/T. Berkin
इमरजेंसी में संसद अहम
इरमजेंसी के दौरान जारी होने वाले राष्ट्रपति के अध्यादेशों पर तीन महीने के भीतर संसद की मंजूरी लेना जरूरी होगी. संसद की मंजूरी के बिना अध्यादेशों की वैधता नहीं होगी.
तस्वीर: picture-alliance/AA/E. Aydin
संसद का अधिकार
राष्ट्रपति छह महीने की इमरजेंसी तो लगा सकते हैं, लेकिन इस फैसले को उसी दिन संसद के पास भेजा जाएगा. संसद के पास इमरजेंसी की अवधि कम करने, उसे बढ़ाने या फिर इस फैसले को ही रद्द करने का अधिकार होगा.
तस्वीर: picture-alliance/AA/B. E. Gurun
बजट
तुर्की में नए सिस्टम के तहत राष्ट्रपति को ही बजट का मसौदा तैयार करना है. अब तक यह जिम्मेदारी संसद के पास थी. अगर संसद राष्ट्रपति की तरफ से प्रस्तावित बजट को नामंजूर करती, तो फिर पिछले साल के बजट को ही "पुनर्मूल्यन दर" के हिसाब से बढ़ाकर लागू कर दिया जाएगा.
तस्वीर: Getty Images/C. Mc Grath
राष्ट्रपति का शिकंजा
सरकारी और निजी संस्थाओं पर नजर रखने वाली संस्था स्टेट सुपरवाइजरी बोर्ड को प्रशासनिक जांच शुरू करने का अधिकार होगा. यह बोर्ड राष्ट्रपति के अधीन है. ऐसे में, सैन्य बलों समेत बहुत सारे समूह सीधे तौर पर राष्ट्रपति के अधीन होंगे.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/T. Bozoglu
सांसद नहीं बनेंगे मंत्री
संसद की सीटों को 550 से बढ़ाकर 600 किया जाएगा. चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम उम्र अब 25 से घटाकर 18 साल कर दी गई है. कोई भी सांसद मंत्री नहीं बन पाएगा. यानी अगर किसी व्यक्ति को मंत्री बनना है तो उसे पहले अपनी संसदीय सीट छोड़नी होगी.
तस्वीर: Getty Images/AFP/O. Bunic
समय से पहले चुनाव
राष्ट्रपति के पास संसद को भंग करने का अधिकार भी होगा. लेकिन अगर यह कदम उठाया जाता है तो इससे नई संसद के लिए चुनावों के साथ साथ राष्ट्रपति चुनाव भी निर्धारित समय से पहले कराने होंगे.
तस्वीर: Getty Images/C. McGrath
दो कार्यकाल की सीमा
राष्ट्रपति अधिकतम पांच पांच साल के दो कार्यकाल तक पद पर रह सकता है. अगर संसद राष्ट्रपति के दूसरे कार्यकाल में समय से पहले चुनाव कराने का फैसला करती है, तो मौजूदा राष्ट्रपति को अगले चुनाव में खड़े होने का अधिकार होगा.
तस्वीर: Reuters/A. Konstantinidis
संसद का ताना बाना
संसद अपना स्पीकर खुद चुनेगी. इसका मतलब है कि अगर संसद में विपक्ष का बहुमत होगा तो वहां बनने वाले कानूनों में उनके नजरिए की झलक होगी. हालांकि फिलहाल संसद में भी एर्दोवान और उनके सहयोगियों का बहुमत है.