जर्मनी में कई जगहों पर भूजल में भारी मात्रा में नाइट्रेट पाया गया है. सरकार ने अपनी रिपोर्ट में इसके लिए किसानों को जिम्मेदार ठहराया है.
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यूरोपीय संघ को भेजी गई रिपोर्ट में जर्मन सरकार ने कहा है कि देश में 28 प्रतिशत माप केंद्रों पर खाद में इस्तेमाल होने वाले नाइट्रेट की मात्रा सीमा से बहुत ज्यादा पाई गई है, जो स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है. सरकारी रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले सालों में पानी में नाइट्रेट की मात्रा में कोई महत्वपूर्ण बेहतरी नहीं हुई है.
जांच में यह भी पाया गया है कि पानी में फॉसफोरस की मात्रा भी काफी ज्यादा है जो जमीन से होकर आखिरकार उत्तर और पूर्वी सागर में पहुंच जाता है. इसकी वजह से समुद्र में काई के विकास को मदद मिलती है. समुद्र और नदियों के किनारे स्थित 65 प्रतिशत माप केंद्रों पर फॉसफोरस अत्यंत अधिक मात्रा में पाया गया.
देखिए पानी पर तैराया बांध
पानी पर तैराया बांध
1970 के दशक से ही अमेरिकी कलाकार क्रिस्टो पानी पर चलने का सपना देखा करते. अब अपनी रचना "द फ्लोटिंग पियर्स" के साथ उन्होंने उस सपने को सच कर दिखाया है.
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सुल्जानो: एक अस्थाई म्यूजियम
सुल्जानो की मेयर फियोरेला तुर्ला बहुत खुश हैं. 18 जून से 3 जुलाई 2016 के बीच उत्तरी इटली के उनके छोटे से गांव में आठ लाख पर्यटकों के आने की उम्मीद जो है. वे सब यहां क्रिस्टो के बनाए तैरते बांध को देखने पहुंचेंगे. यह तीन किलोमीटर लंबे पियर्स सुल्जानो को लेक इजियो में बसे पास के दो द्वीपों से जोड़ता है.
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स्केचों से शुरुआत
मजे की बात यह भी है कि इसे देखने आने वाले पर्यटकों से कोई फीस नहीं ली जाएगी. अमेरिकी कलाकार क्रिस्टो चाहते हैं कि हर कोई कला का आनंद ले और हर चीज को व्यावसायिक ना बना दिया जाए. वैसे इसे तैयार करने में 1.3 करोड़ यूरो का खर्च आया है, जो उन्होंने अपने स्केच और फोटो बेच कर इकट्ठा किया. इस तरह क्रिस्टो पर किसी प्रायोजक का कोई दबाव नहीं.
मेयर तो इन फ्लोटिंग पियर्स को "क्रिस्टो का चमत्कार" कहती हैं. 16 मीटर चौड़ा ये बांध तैराकी में इस्तेमाल होने वाले तैरते पीपों पर बनाया गया है. पर्यटक मुख्य शहर से टहलते हुए मॉन्टे इसोला और सैन पाओलो के द्वीपों तक जा सकेंगे. यह पानी में चलने वाली फेरी का एक अस्थाई विकल्प बन जाएगा. इसका इस्तेमाल मॉन्टे इसोला के 2,000 निवासी किया करते हैं.
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दि आर्ट कपल: क्रिस्टो और जाँ क्लोद
क्रिस्टो ने ये प्रोजेक्ट अपनी पत्नी जाँ क्लोद के साथ बनाई. हालांकि पत्नी का 2009 में देहान्त हो गया. पानी पर तैरने का आइडिया क्रिस्टो के दिमाग में 70 के दशक से ही था. उन्हें अपनी पसंद की जगह पर इसे बनाना था. और यह हो सका उत्तरी इटली के लेक इजियो इलाके में.
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कैनवास तैयार करना
जर्मनी के हामिंगकेल्न की टेक्सटाइल कंपनी सेटेक्स ने मैटीरियल बनाया. वो चमकदार नायलॉन फैब्रिक जो पूरे बांध पर बिछाया गया है. कुल 90 वर्ग किलोमीटर मैटीरियल का इस्तेमाल हुआ है. इससे बांध के तीन किलोमीटर के अलावा सुल्जानो की सड़कों और आसपास के गांवों को भी ढका गया.
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खास फैब्रिक का निर्माण
ल्युबेक की कंपनी जियो-डी लुफ्टवेर्केर को कपड़े के कई सारे थान बनाने के लिए एक साल का समय मिला था. यह पांच मीटर लंबा और 200 किलो भारी था. उन्हें यहां तक पहुंचाना अपने आप में मुश्किल काम था. इन्हें करीब 200 मोटे मोटे बैगों में भर के ट्रक पर चढ़ा कर सुल्जानो भेजा गया.
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XXL साइज की सिलाई मशीन
फैब्रिक इतना भारी था कि एक सिलाई मशीन पर दो लोग मिलकर काम करते थे. कपड़े की कटाई बिल्कुल सही हो इसके लिए अल्ट्रासाउंड लेसर तकनीक का इस्तेमाल किया गया. पीपों को एक साथ सिलने के लिए एक खास मशीन का इस्तेमाल हुआ.
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पीपे तैरते कैसे हैं
क्रिस्टो के इस विशाल आर्ट इंस्टॉलेशन के लिए पॉलीएथीलिन के बने 220,000 तैरने वाले क्यूब बनवाए गए. इनसे ही पहले तीन किलोमीटर लंबा पुल बना. फिर उसे फैब्रिक से ढका गया.
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पानी पर चले क्रिस्टो
आखिरकार क्रिस्टो ने पानी पर चलने का अपना सपना पूरा कर ही लिया. अक्टूबर 2015 की इस फोटो में क्रिस्टो पियर्स पर चल कर उसकी मजबूती का परीक्षण करते दिख रहे हैं. उन्हें इस बात की बहुत खुशी है कि इस पर चलते हुए बांध के नीचे मौजूद पानी की हरकत को महसूस किया जा सकता है.
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सुंदर, लेकिऩ नश्वर
तैरते पीपों पर फैब्रिक लग चुका है और अब इसे देखने पर्यटक पहुंच सकते हैं. 18 जून को मेहमानों को इस सुनहरे पुल पर चलने का मौका मिलेगा और अपने कदमों के नीचे पानी की हरकत को महसूस करने का भी. इस पर एक साथ अधिकतम 20,000 लोग चल सकते हैं.
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जर्मनी के पर्यावरण मंत्रालय का कहना है कि इस समस्या के लिए कृषि उद्योग जिम्मेदार है जो तरल या कृत्रिम खाद के रूप में नाइट्रेट और फॉसफोरस को खेतों में पहुंचाता है. जर्मन पर्यावरण मंत्री बारबरा हेंडरिक्स ने रिपोर्ट पर टिप्पणी करते हुए कहा है, "यह हमारे सामूहिक हित में होगा यदि हम इसके खिलाफ और ज्यादा सक्रिय हों." यह खेतों में खाद डालने के नियमों को सख्त बनाकर ही किया जा सकता है.
पर्यावरण मंत्री ने कहा कि 2016 में खाद का नया कानून बनाया गया है लेकिन वह अभी तक प्रभावी नहीं हुआ है. हेंडरिक्स का कहना है कि कृषि उत्पादन में तेजी लाना हमें महंगा पड़ रहा है क्योंकि खाद का अत्यधिक इस्तेमाल प्रजाति विविधता को खतरे में डाल रहा है. हालांकि अभी तक पीने के पानी पर इसका ज्यादा असर नहीं दिख रहा है लेकिन भविष्य में पीने के पानी की सप्लाई पर खर्च का बोझ बढ़ सकता है.
देखिए बूंद बूंद को तरसते
बूंद बूंद को तरसते
न फसल है, न फल हैं, अफ्रीका के कई इलाकों में पानी के लिए हाहाकार मचा है. 1.4 करोड़ लोगों का जीवन पानी के बिना दांव पर है. इथियोपिया में हालात बदतर होते जा रहे हैं.
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वर्षा का इंतजार
कनिस्टर खाली पड़े हैं. कहीं भी ताजा पानी की एक बूंद तक नहीं है. इथियोपिया 30 साल बाद सबसे भयानक सूखे का सामना कर रहा है. ऐसे ही हालात अफ्रीका के कुछ और इलाकों में भी हैं.
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भारी नुकसान
इथियोपिया में ज्यादातर लोग कृषि पर निर्भर हैं. अफार इलाके के एक शख्स के मुताबिक, "आखिरी बारिश रमजान के दौरान हुई थी." जुलाई 2015 के बाद से वहां एक बूंद पानी नहीं बरसा है. खेत वीरान पड़े हैं. मवेशी मर रहे हैं.
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बच्चों पर खतरा
इस सूखे ने 1984 के अकाल की ताजा कर दी है. तब इथियोपिया में लाखों लोग मारे गए थे. देश एक बार अकाल का सामना कर रहा है. सरकार के मुताबिक चार लाख बच्चों को तुरंत मेडिकल सहायता चाहिए.
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अल नीनो का असर
जिम्बाब्वे में मक्के की फसल बर्बाद हो चुकी है. मक्के की फलियां झुलस चुकी हैं. इसके लिए जलवायु के अल नीनो पैटर्न को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है. इसकी वजह से दुनिया भर में मौसम असामान्य हो गया है.
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दम तोड़ते मवेशी
ये प्यासी गाय पूरी तरह थक चुकी है. वह खड़ी भी नहीं हो पा रही है. जिम्बाब्वे के किसान किसी तरह उसे उठाकर घर तक ले जाना चाहते हैं. जानवर भी भूख प्यास से बेदम हैं.
तस्वीर: Reuters/P. Bulawayo
ये रेगिस्तान नहीं, नदी है
दक्षिण अफ्रीका में डरबन से कुछ दूर इस जगह पर हमेशा पानी रहता था. यहां ब्लैक उमफोल्जी नदी का बहाव बहुत तेज था. लेकिन अब लोग नदी की रेत को खोदकर नमी से बूंद बूंद पानी जमा कर रहे हैं.
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अकाल और महंगाई
अफ्रीकी देश मलावी में भी सूखे ने भयावह संकट खड़ा किया है. राजधानी लिलोंगवे में खाद्यान्न की कीमतें आसमान छू रही हैं. कीमतें इतनी ज्यादा हैं कि स्थानीय लोग बड़ी मुश्किल से थोड़ा बहुत खाना खरीद पा रहे हैं.
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नवंबर में यूरोपीय संघ के आयोग ने नाइट्रेट पर ईयू के नियमों की अवहेलना करने के कारण मुकदमा दायर किया था. जनवरी में जर्मन सरकार को आरोपों का जवाब देना है. जर्मनी का दोष साबित होने की स्थिति में उसे भारी जुर्माना देना होगा. नाइट्रेट पौधों को बढ़ने में मदद करता है, इसलिए उसका इस्तेमाल अक्सर खाद के रूप में किया जाता है.
लेकिन अत्यधिक नाइट्रेट के इस्तेमाल से वह जमीन के अंदर पानी में और नदियों और नालों में चला जाता है और वहां जैव विविधता को नुकसान पहुंचाता है. यूरोपीय संघ के अनुसार एक लीटर पानी में 50 मिलीग्राम नाइट्रेट की मात्रा इंसान के स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर डाल सकती है. खासकर गर्भवती महिलाओं और छोटे बच्चों के लिए वह बहुत नुकसानदेह है.