जर्मनी में जिस तरह चर्च टैक्स लिया जाता है, उसी तरह मुसलमानों से मस्जिद टैक्स लेने की बात हो रही है. सरकार और प्रगतिशील मुस्लिम नेताओं ने इस विचार का समर्थन किया है. इस कदम से मस्जिदें विदेशी मदद पर निर्भर नहीं रहेगी.
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जर्मनी के सत्ताधारी महागठबंधन के सांसदों ने कहा है कि वे जर्मन मुसलमानों पर मस्जिद टैक्स लगाने पर विचार कर रहे हैं. ठीक वैसे ही जैसे ईसाई चर्च टैक्स देते हैं. चांसलर अंगेला मैर्केल की सीडीयू पार्टी के सांसद थोर्स्टन फ्राई ने जर्मन अखबार 'डी वेल्ट' को बताया कि मस्जिद टैक्स एक अहम कदम है जिससे "जर्मनी में इस्लाम बाहरी देशों से मुक्त हो जाएगा".
जर्मनी में कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट ईसाईयों से टैक्स लिया जाता है जिससे चर्च की गतिविधियों के लिए जरूरी आर्थिक राशि मुहैया कराई जाती है. यह टैक्स सरकार जमा करती है जिसे बाद में धार्मिक अधिकारियों को सौंप दिया जाता है.
मस्जिदों के लिए फिलहाल ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है जिसके कारण वे चंदे पर निर्भर होती हैं. विदेशी संगठनों और सरकारों से मिलने वाली वित्तीय मदद कई चिंताएं भी पैदा करती है. अकसर सवाल उठते हैं कि इस तरह की मदद के सहारे चरमपंथी विचारधारा को फैलाया जा रहा है. इस बारे में जर्मनी में सक्रिय धार्मिक मामलों की टर्किश इस्लामिक यूनियन का नाम खास तौर से लिया जाता है जो सीधे तौर पर तुर्की की सरकार से जुड़ी है.
देखिए जर्मनी की सबसे विवादित मस्जिद
जर्मनी की सबसे बड़ी और सबसे विवादित मस्जिद
जर्मनी की सबसे बड़ी मस्जिद कोलोन शहर में है. कंट्रीट और कांच से तैयार इस मस्जिद को मेल मिलाप के प्रतीक के तौर पर बनाया गया था, लेकिन यह बड़े विवाद की जड़ बन गई है.
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फूल की कली
मस्जिद के निर्माण में कांच का इस्तेमाल खुलेपन का संदेश देने के लिए किया गया है, ताकि सभी धर्मों के लोग यहां आ सकें. कांच और कंट्रीट से तैयार मस्जिद का गुंबद किसी फूल की कली जैसा लगता है. मस्जिद परिसर में 55 मीटर ऊंची दो मीनारें भी हैं.
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अलग अलग संस्कृतियां
मस्जिद कोलोन शहर के एरेनफेल्ड इलाके में है. यह इलाका कभी कामगार तबके के लोगों का गढ़ था. लेकिन अब इस इलाके में नामी गिरामी कलाकार रहते हैं. यहां कई मशहूर गैलरियां और थिएटर हैं. यहां रहने वाले 35 प्रतिशत लोग विदेशी मूल के हैं.
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प्रभावशाली प्लान
मस्जिद के निर्माण में बहुत सारे मुस्लिम संगठनों ने मदद दी. इसके अलावा जर्मनी में तुर्क सरकार के धार्मिक मामलों के संगठन डिटिब से भी मदद मिली. कोलोन की नगरपालिका ने 2008 में इसे मंजूरी दी, हालांकि चांसलर मैर्केल की सीडीयू इसके खिलाफ थी.
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हट गए आर्किटेक्ट
के निर्माण का कॉन्ट्रैक्ट 2005 में जर्मन आर्किटेक्ट पॉल बोएम को मिला, जिन्हें चर्चों के निर्माण में महारथ है. उन्होंने इस इमारत को सहिष्णुता का प्रतीक समझा. लेकिन बाद में डिटिब के साथ उनके मतभेद हो गए और 2011 में वह इस प्रोजेक्ट से हट गए.
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2017 में खुले दरवाजे
मस्जिद के दरवाजे नमाजियों के लिए पहली बार 2017 में रमजान के महीने में खोले गए. लेकिन इसका आधिकारिक उद्घाटन तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैयप एर्दोवान ने सितंबर 2018 में किया. हालांकि इस मौके पर शहर में एर्दोवान के विरोध और समर्थन में बड़ी रैलियां हुईं.
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1,200 नमाजियों के लिए जगह
मस्जिद में नमाज पढ़ने के लिए ग्राउंड के अलावा एक अपर फ्लोर भी है. यहां पर एक समय में 1,200 लोग नमाज पढ़ सकते हैं. यहां पर एक इस्लामी लाइब्रेरी भी है. यहां कई दुकानें और स्पोर्ट्स सेंटर भी हैं ताकि विभिन्न धर्मों के लोगों के बीच आपसी संवाद को बढ़ाया जा सके.
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नई स्काईलाइन
शुरू में कई लोगों ने मस्जिद के निर्माण का विरोध किया था. उन्हें डर था ऊंची ऊंची मीनारों से "ईसाई शहर" कोलोन की स्काईलाइन बदल जाएगी. उस वक्त कोलोन के आर्कबिशप कार्डिनल योआखिम माइसनर ने भी इस प्रोजेक्ट को लेकर अपनी "असहजता" जाहिर की थी.
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मस्जिद का विरोध
धुर दक्षिणपंथियों ने इस मुद्दे को लपका और जर्मनी में मुसलमानों के घुलने मिलने को लेकर एक नई बहस छेड़ दी. लेखक राल्फ जोरडानो ने कहा कि यह मस्जिद "जर्मनी में तेजी से फैलते इस्लामीकरण की एक अभिव्यक्ति" होगी. मस्जिद के खिलाफ कई बड़े प्रदर्शन हुए.
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इमाम या जासूस?
2017 में जर्मन अधिकारियों ने डिटिब के इमामों की गतिविधियों को लेकर जांच शुरू की. तुर्की में शिक्षित इमाम तुर्की की सरकार के कर्मचारी होते हैं. मस्जिद के कर्मचारियों पर संदेह था कि वे तुर्की की सरकार को जर्मनी में रहने वाले तुर्कों के बारे में जानकारी देते हैं.
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अधिकारियों का अनुमान है कि आठ करोड़ से ज्यादा की आबादी वाले जर्मनी में 44 लाख से 47 मुसलमान रहते हैं. इस आंकड़े में वे सभी लोग हैं जिनके परिवार पारंपरिक तौर पर मुस्लिम हैं जबकि धार्मिक रीति रिवाजों पर पूरी तरह अमल करने वाले मुसलमानों की संख्या इससे कहीं कम हो सकती है.
जर्मनी के सत्ताधारी गठबंधन में शामिल एसपीडी पार्टी के एक सांसद बुखार्ड लिश्का इस बात पर सहमत है कि मस्जिद टैक्स से जर्मनी में इस्लाम ज्यादा आत्मनिर्भर बनेगा. पार्टी में घरेलू नीति के जुड़े मामलों के प्रमुख लिश्का मानते हैं कि यह विषय "चर्चा करने लायक" है.
बर्लिन में प्रगतिशील मस्जिद की संस्थापक सेयरान अटेस भी इस तरह के टैक्स को लेकर सहमत हैं. डी वेल्ट को उन्होंने बताया, "भविष्य में समुदाय की जो भी जरूरतें होगी, उनका भुगतान समुदाय के सदस्य कर पाएंगे."
जर्मनी की तरह ऑस्ट्रिया, स्वीडन और इटली जैसे कई यूरोपीय देशों में भी कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट संस्थानों को धन देने के लिए चर्च टैक्स लिया जाता है. हालांकि यह कहकर इसकी आलोचना भी की जाती है कि धार्मिक रीति रिवाजों को मानने वाले सभी ईसाईयों से टैक्स क्यों वसूला जाता है. चूंकि यह टैक्स सरकार जमा करती है, इसलिए आलोचकों को लगता है कि सरकार और चर्च के बीच विभाजन रेखा धुंधली हो रही है.