एक शोध के मुताबिक जर्मनी में मुसलमानों की संख्या साल 2015 की तुलना में काफी बढ़ी है और ज्यादातर मुसलमान अभी भी शिक्षा और रोजगार के लिए चुनौतियों का सामना कर रहे हैं.
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"Wir schaffen das" — "हम कर सकते हैं." यही वे मशहूर शब्द थे जिन्हें साल 2015 में जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने इस बात के संकेत देने के लिए कहे थे कि जर्मनी अपने यहां बड़ी संख्या में शरणार्थियों को रखने के लिए तैयार और सक्षम है. उस वक्त करीब दस लाख शरणार्थी यहां आए थे जिनमें से ज़्यादातर मध्य पूर्व के मुस्लिम देशों से थे.
एक अध्ययन के मुताबिक, करीब छह साल बाद जर्मनी में साल 2015 की तुलना में मुस्लिम आबादी काफी बढ़ गई है. इस तरह से वहां जनसंख्या की समरूपता में भी कमी आई है. जर्मनी में प्रवासी और शरणार्थी मामलों के मंत्रालय के प्रमुख हैंस एकहार्ड सोमर ने बुधवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, "पिछले कुछ सालों में मुस्लिम बहुल देशों से आए प्रवासियों की वजह से मुस्लिम जनसंख्या में काफी विविधता आई है."
शोध के मुताबिक, "प्रवासी पृष्ठभूमि” में जर्मनी में मुस्लिम आबादी इस वक्त 53-56 लाख के बीच है जो कि साल 2015 की तुलना में करीब नौ लाख ज्यादा है. यह तादाद जर्मनी की कुल जनसंख्या की 6.4 से 6.7 फीसदी के बीच है. "प्रवासी पृष्ठभूमि” जर्मनी में इस्तेमाल होने वाला वह शब्द है जिसका मतलब पहली पीढ़ी के शरणार्थियों या फिर उनके बच्चों से है."
हालांकि जर्मनी में ज्यादातर मुस्लिम तुर्की समुदाय के हैं जो कि दशकों से यहां रहते आए हैं, लेकिन सीरिया और इराक जैसे देशों से जब शरणार्थी बड़ी संख्या में यहां आने लगे तो जर्मनी में मुस्लिम आबादी काफी विविधतापूर्ण हो गई. शोध के दौरान प्रवासी पृष्ठभूमि के 4,500 और 500 दूसरे मुस्लिमों पर सर्वेक्षण किया गया और उसी के आधार पर आंकड़े जुटाए गए.
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धर्म उतना प्रासंगिक नहीं हो सकता
सोमर कहते हैं, "विश्लेषण दिखाता है कि एकीकरण पर धर्म के प्रभाव को कुछ ज्यादा ही बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया गया है." यह शोध जर्मन इस्लाम सम्मेलन की ओर से गृह मंत्रालय और प्रवासी मंत्रालय के सहयोग से किया गया था जिसमें साल 2019 और 2020 के दौरान किए शोध के आंकड़ों को भी ध्यान में रखा गया था. इसमें मुस्लिम आबादी की प्रवासी पृष्ठभूमि के उस आधार पर तुलना की गई थी कि उसमें कितने ईसाई हैं और कितने किसी भी धर्म को न मानने वाले हैं. इस अध्ययन से यही निष्कर्ष निकाला गया कि विभिन्न प्रवृत्तियों के लिए धर्म कोई निर्णायक कारक नहीं हो सकता.
उदाहरण के तौर पर, प्रवासी पृष्ठभूमि के 15.8 फीसदी मुसलमानों ने और प्रवासी पृष्ठभूमि के ही 17.5 फीसदी ईसाइयों ने अपनी स्कूली शिक्षा पूरी नहीं की थी. यानी औसत रूप में देखा जाए तो प्रवासी पृष्ठभूमि के 15.3 फीसदी लोगों ने स्कूली शिक्षा नहीं पूरी की. इसलिए अन्य प्रवासी समूहों के मुकाबले मुसलमानों की स्थिति कोई बहुत अलग नहीं है. लेकिन यदि प्रवासी पृष्ठभूमि से इतर देखा जाए तो यह अनुपात 3 फीसदी से भी नीचे आ जाता है.
शोधकर्ताओं में से एक कर्स्टिन टानिस कहती हैं कि हो सकता है मध्य पूर्व और उसके आस-पास के इलाकों से आने वाले शरणार्थियों को जगह बदलने की वजह से स्कूल की पढ़ाई छोड़नी पड़ी हो. ठीक इसी तरह, प्रवासी पृष्ठभूमि के 74.6 फीसदी मुसलानों के पास किसी तरह की व्यावसायिक शैक्षिक योग्यता नहीं थी जबकि प्रवासी पृष्ठभूमि के ही ईसाइयों में ऐसे 71.9 फीसदी लोग थे और सभी धर्मों के लिए सामान्य औसत 72.4 था. लेकिन बिना प्रवासी पृष्ठभूमि वाले मुसलमानों के लिए यानी जो पिछली तीन-चार पीढ़ियों से यहां रह रहे हैं, यह अनुपात सिर्फ 21.8 फीसदी है. ठीक उसी तरह, जैसे स्कूली शिक्षा न पूरी करने वाले मुसलमानों की है.
प्रवासी पृष्ठभूमि के 61 फीसदी मुस्लिम पुरुष और 41 फीसदी मुस्लिम महिलाओं के पास रोजगार है जो कि इसी पृष्ठभूमि के दूसरे समुदाय के लोगों जैसा ही है. लेकिन गैर प्रवासी पृष्ठभूमि के अन्य जर्मन नागरिकों की तुलना में यह कम है जिनमें 77 फीसदी पुरुष और 68 फीसदी महिलाओं को रोजगार मिला हुआ है.
ये बातें करती हैं भारत और जर्मनी को एक दूसरे से जुदा
भारत में कुत्ता पालने पर कोई कर नहीं देना पड़ता लेकिन जर्मनी में कुत्ता पालने पर टैक्स देना होता है. साथ ही कुत्ते का बीमा करवाना भी जरूरी है. ऐसी और कौन सी बातें हैं जो जर्मनी में भारत से बहुत अलग हैं, आइए जानते हैं.
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घरों में कूलर पंखे नहीं
जर्मनी में आधे साल ठंड का मौसम रहता है. बाकी साल में भी अधिकतकम तापमान 35 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच पाता है. यहां हर घर में हीटर लगा होता है. कुछ घरों में एयर कंडीशनर हैं लेकिन यहां सीलिंग फैन या कूलर देखने को नहीं मिलते.
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हर जगह सुरक्षा जांच नहीं
भारत में मेट्रो, रेलवे स्टेशन और मॉल हर जगह सुरक्षा जांच होती है. लेकिन जर्मनी में ऐसा नहीं है. किसी भी जगह जाने पर अलग से कोई सुरक्षा जांच नहीं होती है. एक बार जर्मनी में प्रवेश लेने पर एयरपोर्ट पर सुरक्षा जांच होती है. इसके अलावा विशेष परिस्थितियों में सुरक्षा जांच हो सकती है.
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भीड़भाड़ ही नहीं है
भारत में आप किसी गली में भी चले जाइए वहां भीड़ जरूर होती है. लेकिन जर्मनी में सार्वजनिक जगहों पर भी ऐसी भीड़भाड़ देखने को नहीं मिलती है. शाम ढलने के बाद गलियों में तो किसी का दिखना भी दुर्लभ होता है. पब्लिक ट्रांसपोर्ट में यहां सीट के लिए आमतौर पर मारामारी नहीं होती. जर्मनी की कुल जनसंख्या सवा आठ करोड़ है जो उत्तर प्रदेश की जनसंख्या के आधे से भी कम है.
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शाकाहारी को खाना खोजना पड़ेगा
भारत में एक बड़ी आबादी शाकाहारी है जबकि जर्मनी की बड़ी आबादी मांसाहारी है. यहां शाकाहारी लोगों को खाने के लिए जगह तलाश करनी पड़ती है. अधिकांश जगह शाकाहारी खाने के नाम पर उबली हुई सब्जियां मिलती हैं. पिछले समय में वीगन रेस्तरां लोकप्रिय हो रहे हैं. अब बड़े शहरों में भारतीय रेस्त्रां भी खुलने लगे हैं.
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बाएं नहीं दाएं चलें
भारत में सड़क पर बाईं तरफ चलने का नियम है और गाड़ियां दाईं तरफ स्टीयरिंग वाली होती हैं. जर्मनी और यूरोप में यह उल्टा है. यहां गाड़ियां बाईं तरफ स्टीयरिंग वाली और सड़क पर दाईं तरफ चलने का नियम है.
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देर शाम तक सूरज चमकना
जर्मनी में जून के महीने में देर शाम तक सूरज निकलता है. सुबह करीब 5 बजे से रात 10 बजे तक सूरज निकलता है. अप्रैल के महीने में एक सामान्य दिन रात साढ़े आठ बजे तक सूरज निकलता है. भारत में मई-जून की गर्मी में भी शाम साढ़े सात बजे तक ही सूरज निकलता है. रमजान के महीने में रोजा रखने वाले लोगों के लिए ये मुश्किल का समय होता है.
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कुत्ता पालने पर टैक्स
भारत में कुत्ता पालने पर कोई कर नहीं देना पड़ता लेकिन जर्मनी में कुत्ता पालने पर टैक्स देना होता है. साथ ही कुत्ते का बीमा करवाना भी जरूरी है.
भारत में एक सामान्य धारणा है कि यूरोप, अरब और अमेरिकी देशों में आईफोन और दूसरे इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस सस्ते मिलते हैं. लेकिन जर्मनी में ऐसा नहीं है. इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस यहां भारत के बराबर या मंहगे दामों पर मिलते हैं.
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बटन दबाइए सड़क पार करिए
भारत में जेब्रा क्रॉसिंग से सड़क पार करने का नियम है. इसके लिए जेब्रा क्रॉसिंग पर खड़े होकर वाहनों के रुकने का इंतजार करना होता है. जर्मनी में सड़क पर लगे ट्रैफिक सिग्नल में एक बटन लगा होता है. इस बटन को दबाने पर समय होने पर वाहनों के लिए लाल सिग्नल हो जाएगा और पैदल यात्री निकल सकेंगे. यहां पैदल और साइकिल यात्रियों को प्राथमिकता दी जाती है.
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टीवी के पैसे देने होंगे
भारत में अगर आपके घर में टीवी है और आप कोई ऐसी सर्विस इस्तेमाल करते हैं जिसके पैसे लगते हैं तो आपको उसका खर्च देना होता है. लेकिन जर्मनी में भले ही आपके घर में टीवी हो या ना हो आपको टीवी टैक्स देना होता है.
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सट्टेबाजी, लॉटरी, वैश्यावृत्ति सब वैध
भारत में सट्टेबाजी पूरी तरह अवैध है. लॉटरी और वैश्यावृत्ति के लिए अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नियम हैं. कहीं ये वैध हैं कही अवैध. लेकिन जर्मनी में ये तीनों वैध हैं.
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शराब के ठेके नहीं
भारत में सामान्य दुकानों में शराब नहीं बिकती है. इसके लिए अलग से ठेका दिया जाता है और शराब की अलग दुकानें होती है. लेकिन जर्मनी में ग्रोसरी की सामान्य दुकानों में शराब मिलती है. यहां जगह-जगह ठेका तलाशने की जरूरत नहीं है. साथ ही जर्मनी में खुले में शराब पीने पर कोई रोक नहीं है.
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मोबाइल रखना सस्ता नहीं
भारत में 4जी आने के बाद मोबाइल का खर्चा बेहद कम हो गया है. अब लगभग 500 रुपये में कंपनियां तीन महीने के अनलिमिटेड कॉलिंग और इंटरनेट के प्लान दे रही हैं. जर्मनी में ऐसा नहीं है. जर्मनी में दो जीबी 4जी इंटरनेट और 200 मिनट कॉलिंग के लिए 10 यूरो यानी करीब 800 रुपये खर्च करने होते हैं.
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एकीकरण की सफलता की कहानियां
हालांकि कुछ प्रवासी मुस्लिम, दूसरे प्रवासी समुदायों के साथ कुछ उन चुनौतियों का सामना जरूर करते हैं जो कि अन्य जर्मन नागरिकों को नहीं करना पड़ता, फिर भी शोध के परिणाम यह भी दिखाते हैं कि जर्मनी में ज्यादातर मुस्लिम अच्छी तरह से आबाद हैं और घुले-मिले हैं.
जर्मनी में पैदा हुए लगभग सभी मुसलमान बहुत अच्छी तरह से जर्मन भाषा बोलते हैं और अन्य मुसलमानों के संदर्भ में यह संख्या करीब 79 प्रतिशत है. करीब 65 फीसदी मुसलमानों का कहना है कि उनका उन लोगों के साथ अच्छी तरह उठना-बैठना है जो कि प्रवासी पृष्ठभूमि से नहीं आते हैं. जो लोग ऐसे नहीं थे, उनकी इच्छा भी यही थी कि वे ऐसे लोगों के नजदीकी संपर्क में रहें.
हालांकि यह शोध भेदभाव जैसे मुद्दों पर फोकस नहीं करता है लेकिन यह भी पता चला है कि 70 फीसदी मुस्लिम महिलाएं जर्मनी में बुर्का नहीं पहनतीं और इनमें एक तिहाई यह कहती हैं कि ऐसा उन्होंने किसी डर से नहीं किया है. लेकिन यहां सबसे अहम मुद्दा उम्र का है. 65 साल से ज्यादा की करीब 62 प्रतिशत महिलाओं का कहना है कि वे बुर्का पहनती हैं जबकि 16 से 25 की उम्र की सिर्फ 26 फीसदी महिलाएं ही बुर्का पहनती हैं.
रिपोर्ट में एक अहम समस्या यह भी पाई गई है कि मस्जिदों से संबंध रखने वालों की क्या भूमिका है जो कि जर्मनी में बहुत कम हैं. ऐसे समूहों में से कुछ सीधे तौर पर तुर्की से नियंत्रित होते हैं. जूनियर मंत्री मार्कस कर्बर के मुताबिक, यह एक ऐसी प्रथा है जिसे निश्चित तौर पर खत्म होना चाहिए.
रिपोर्ट स्पष्ट करती है कि जर्मनी में बहुत से मुस्लिम कुछ खास चुनौतियों का सामना करते हैं और उन्हें बराबरी का दर्जा देने के लिए इन चुनौतियों में कमी लाना बहुत जरूरी है. लेकिन जब पचास लाख लोगों के समूह के संबंध में बात होती है तो धार्मिक आधार पर ऐसी चुनौतियों को नजरअंदाज कर देना चाहिए, क्योंकि वहां सिर्फ धर्म के आधार पर ऐसा आकलन सही नहीं लगता.
जर्मनी में स्नान संस्कृति का इतिहास
सामूहिक रूप से स्नान का इतिहास प्राचीन काल तक जाता है. रोमन काल के गरम सोतों से लेकर मध्य युग के स्नानगृहों से होकर सागर तटों पर नहाने तक इसने लंबा सफर तय किया है. आइए नहाने के इतिहास पर एक नजर डालें.
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स्विमिंग सूट उठाओ...
ये 1950 के दशक की एक लोकप्रिय जर्मन धुन से टेक था. गर्म पानी, नीला आसमान और अंतहीन धूप लाखों जर्मनों को उत्तरी सागर के समुद्र तटों की ओर आकर्षित कर रहा था. और जिनके घर के आसपास कोई समुद्र तट नहीं होता, वे पड़ोस की सबसे नजदीकी झील या सार्वजनिक पूल में तैरने चले जाते थे. लोग हजारों वर्षों से पानी से रोमांचित होते रहे हैं और हर युग की अपनी स्नान संस्कृति रही है.
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रोमन पूल परिसर
रोमन साम्राज्य के शुरुआती दिनों में लोग सार्वजनिक स्नान के बड़े प्रशंसक थे. इसे यहां जीर्णोद्धार किए गए उस काल के स्पा में देखा जा सकता है. रोमन काल के पुरुष और महिलाएं पानी के गर्म, गुनगुने और ठंडे पूलों के बीच बारी-बारी से पसीना बहाया करते थे. उन दिनों वे एक साथ नहीं अलग-अलग हिस्सों में नहाया करते थे. रोमन स्पा मुख्य रूप से स्नान के अलावा गपशप, विश्राम और कारोबार के लिए मुलाकातों की जगह भी थे.
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स्नान घर और पाप की तपिश
रोमन साम्राज्य के पतन के बाद स्पा संस्कृति का पतन होने लगा. मध्य युग के दौरान लोग पानी से कतई नहीं डरते थे. इस तरह के स्नानघरों में लोग टबों में नहाया करते थे, हालांकि कैथोलिक चर्च अत्यधिक स्नान को पाप बताता था. रोम की ही तरह मध्ययुग में भी स्नानागार मुलाकातों और आपस में घुलने मिलने की जगह होते थे. और कभी-कभी यह पाप के केंद्र बन जाते थे जहां पुरुष और महिलाएं एक साथ मिलते.
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स्पा की लोकप्रियता
पानी सिर्फ पानी नहीं होता. 15 वीं सदी में खनिजों से भरे सोते बीमारी का तेज इलाज चाहने वाले अमीरों के लिए बड़ा आकर्षण थे. उस समय का मंत्र था कि "बहुत ज्यादा बहुत मदद करता है." स्पा आने वाले मेहमान अपना समय लंबे समय तक विशेष टब में डूबकर बिताते थे. खूब सारा भोजन, पीने के लिए कई तरह की ड्रिंक और जमकर पार्टी सेहत की तैयारियों का हिस्सा था.
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अमीरों के लिए नहाने का मजा
सदियों पहले से ही स्पा जाने वाले अपने टबों से बाहर निकलकर समुद्र की ओर जाने लगे थे. बाल्टिक तट पर स्थित हाइलिगेनडम 1793 में जर्मनी का पहला आउटडोर स्पा था और वह आज भी मौजूद है. यह रूस के जार सहित दुनिया भर के मेहमानों में बहुत ही लोकप्रिय था. हाइलिगेनडम बहुत ही महंगा ठिकाना था जहां केवल अमीर लोग ही जा सकते थे. बाकी की आबादी झीलों या नदियों में तैरने जाती थी.
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महिलाओं के लिए स्नान गाड़ियां
समुद्र तट पर और नए स्पा बनने में ज्यादा वक्त नहीं लगा. हालांकि उन दिनों महिलाओं के लिए पुरुषों के आस-पास कहीं भी स्नान करना असभ्य माना जाता था. एक विकल्प था नहाने के लिए खासतौर से बनी घोड़ा गाड़ियां. वह मेहमानों को समुद्र तट से पानी तक ले जाती थीं, जहां महिलाएं चुपचाप समुद्र के पानी में नहा सकती थीं. बाद में समुद्र से दूर के शहरों ने भी नदी के किनारे सार्वजनिक स्नानघर बनाना शुरू कर दिया.
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गर्मियों की छुट्टियां
ऊजेडोम द्वीप पर ली गई इस तस्वीर में लिखा है, आलबेक पुरुष स्पा में पुरुष सौंदर्य. बाल्टिक रिसॉर्ट 20 वीं सदी की शुरुआत में गर्मियों में छुट्टियां बिताने की किफायती जगह थी जहां अधिक से अधिक लोग आ सकते थे. लेकिन, यहां महिलाएं नहीं आया करती थीं. महिलाओं के नहाने का अपना इलाका मुख्य समुद्र तट से दूर था. 1920 में जर्मनी में विवाहित जोड़ों को एक साथ नहाने की अनुमति मिली.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
सभी के लिए सार्वजनिक स्नान
उसके बाद जल्द ही साथ नहाना जर्मनी में लोकप्रिय होने लगा. 1900 के आसपास जर्मनी के कई शहरों में सार्वजनिक स्विमिंग पूल बन गए जहां कोई भी जा सकता था. जो लोग खर्च नहीं करना चाहते थे उनके लिए बर्लिन में वान्न लेक की तरह अक्सर पास में तैरने की जगह हुआ करती थी. तैराकी आम लोगों का शगल बन गया. 1870 से डॉक्टर कहने लगे थे कि "हर जर्मन को हफ्ते में एक बार स्नान करना चाहिए."
तस्वीर: Aktuelle-Bilder-Centrale, Georg Pahl-by-sa
'स्वीडिश बाथ'
जब सामूहिक रूप से नहाने की प्रथा विकसित हो रही थी तो नग्न स्नान का आंदोलन भी शुरू हुआ. यह बहुत से लोगों के लिए चौंकाने वाली बात थी. हिप्पी आंदोलन से आधी सदी पहले ही नग्न होकर नहाने के आंदोलन ने नैतिकता के रखवालों को परेशानी में डाल दिया. जर्मनी में स्वीडिश बाथ कहा जाने वाला नग्न स्नान 1900 के आसपास दिखाई दिया और इसे सहज व्यवहार के खिलाफ माना जाता था.
तस्वीर: Deutsche Fotothek
'हंगेरियन सी' पर छुट्टियां
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद कम्युनिस्ट पूर्वी जर्मनी के निवासी भी छुट्टियां बिताने और गर्मियों में तैरने के लिए बाल्टिक से बाहर दूसरे समुद्र तटों पर जाना चाहते थे. लेकिन, पश्चिम जर्मनी के भाइयों के विपरीत, उन्हें पश्चिम में छुट्टी बिताने की अनुमति नहीं थी. हंगरी में बालाटोन लेक एक विकल्प था. पैसे बचाने के लिए यहां छुट्टियां बिताने वाले पूर्वी जर्मन हमेशा डिब्बाबंद सामान साथ ले जाते थे.
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बीच पर जगह की कमी
आजकल तैरना नियमित व्यायाम का हिस्सा है. जगह जगह स्विमिंग पूल बने हैं और दूसरे देशों में छुट्टियां बिताना भी सामान्य है. गर्मियों में कई समुद्र तटों पर लोगों की ऐसी भीड़ होती है कि वे पानी में सार्डिन मछली की तरह दिखते हैं. लेकिन अगर भीड़ से बचना हो तो हर कहीं समुद्र तटों पर सुनसान इलाके अभी भी मिल जाते हैं. प्राथमिकता चाहे जो हो, लोगों को हर कहीं अपने लिए एक स्नान संस्कृति मिल ही जाती है.