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जर्मनी में रह रहे 250,000 लोगों की नागरिकता की जानकारी नहीं

११ जनवरी २०२१

जर्मनी में 2,50,000 से ज्यादा लोगों के पास अपनी नागरिकता साबित करने के लिए दस्तावेज नहीं है. बिना कागजों के इन्हें वापस भी नहीं भेजा जा सकता. नागरिकता का पता लगाने के लिए जर्मनी दूसरे देशों के दूतावासों को पैसा देता है.

Deutschland Symbolbild Asylantrag
तस्वीर: C. Ohde/blickwinkel/McPHOTO/picture alliance

नवंबर 2020 की बात है. एमादू जब अपने कमरे पर लौटा तो एक चिट्ठी को देख कर डर से कांपने लगा. चिट्ठी में लिखा था कि उसे अपने देश गिनी के कॉन्सुलेट में पेश होना है. एमादू शरणार्थियों के लिए बनाए गए एक अस्थाई बसेरे में रहता है. डीडब्ल्यू से बात करते हुए उसने कहा कि चिट्ठी देखते ही वह उसका मतलब समझ गया था, "क्योंकि मेरे पास कागज नहीं हैं. इसलिए जर्मन अधिकारी मुझे वहां भेजना चाह रहे हैं, ताकि मुझे कागज मिल जाएं और वे मुझे यहां से डिपोर्ट कर दें. लेकिन क्यों? मैंने कुछ भी गलत नहीं किया है." एमादू इनका असली नाम नहीं है. क्योंकि ये अपनी पहचान जाहिर नहीं करना चाहते, इसलिए हमने इनका नाम बदल दिया है.

एमादू की असायलम की अर्जी रद्द कर दी गई थी. और अब गिनी के कॉन्सुलेट में जाते हुए उसे डर लग रहा है, "मुझे लगता है कि अब मुझे यहां से जाना पड़ेगा. अपने इस कमरे को, अपने दोस्तों को पीछे छोड़ना पड़ेगा, लगता है जैसे मेरे लिए अब कुछ बचा ही नहीं है. बस अब जर्मनी की जेल, फिर कोनाक्री की और उसके बाद मौत." यह कहते हुए एमादू का गला भर आता है.

जर्मनी में इसे "एम्बेसी हियरिंग" का नाम दिया जा रहा है और ये देश भर में हो रही हैं. अधिकारियों को इन लोगों पर जिस देश के होने का शक होता है, उस देश के दूतावास को जर्मनी पैसे देता है ताकि वे उन्हें बुला कर पूछताछ कर सकें. इनमें सबसे ज्यादा अफ्रीकी देशों के लोग हैं. 2019 और 2020 में नाइजीरिया के 1,100 और घाना के 370 लोगों को इस तरह से बुलाया गया. साथ ही गाम्बिया के 146 और गिनी के 126 लोगों को भी बुलाया गया. जर्मनी की लेफ्ट पार्टी की सांसद उला येल्पके की मांग पर जर्मन सरकार ने ये आंकड़े जारी किए हैं.

सरकार का दावा है कि यह कानूनी भी है और अनिवार्य भी. डॉयचे वेले ने जब इस बारे में पूछा तो गृह मंत्रालय ने बयान दिया, "लोगों की नागरिकता का पता लगाने के लिए ये 'हियरिंग' अहम हैं ताकि तय किया जा सके कि किसे देश छोड़ने के लिए कहना है. कागजात तभी बनाए जा सकते हैं, जब उनकी राष्ट्रीयता का पता लगाया जा सके. जर्मनी में इस तरह की सुनवाइयां सालों से होती आई हैं, ये कानूनी हैं और इनकी उपयोगिता सिद्ध की जा चुकी है." गृह मंत्रालय की प्रवक्ता ने अपने जवाब में लिखा है कि यूरोपीय संघ के अन्य देशों में भी इस तरह की प्रक्रियाएं होती हैं.

अफ्रीकी देशों पर दबाव

जर्मन काउंसिल ऑन फौरन रिलेशंस के अनुसार 2020 में देश में करीब ढाई लाख लोग गैरकानूनी रूप से रह रहे थे. 2018 में गृह मंत्रालय का भार संभालते हुए गृह मंत्री होर्स्ट जेहोफर ने कहा था कि वे इस संख्या को कम करेंगे और 2019 में करीब 22 हजार लोगों को डिपोर्ट भी किया गया.

जर्मन अधिकारियों का कहना है कि असायलम ना मिलने के मामले में देशों की जिम्मेदारी बनती है कि वे अपने लोगों को वापस लें और इसके लिए जरूर दस्तावेज भी जल्द से जल्द तैयार करें. अधिकारियों का आरोप है कि अफ्रीकी देश इस काम में काफी ढील दे रहे हैं और कागज तैयार करने में लंबा वक्त लगा रहे हैं. जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल के हर अफ्रीका दौरे में यह मुद्दा उठता रहा है और अफ्रीकी सरकारें भी लगातार आरोप लगाती रही हैं कि जर्मनी उन पर दबाव बना रहा है.

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देश में विपक्षी दल भी इसकी आलोचना करते रहे हैं. लेफ्ट पार्टी की उला येल्पके ने डीडब्यलू से इस बारे में कहा, "इस प्रक्रिया में कोई पारदर्शिता नहीं होती है और लोग अकसर अपने अधिकारों के उल्लंघन की शिकायत करते हैं." उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि इस बारे में कोई जानकारी नहीं है कि जर्मन अधिकारी किस तरह से लोगों की नागरिकता के बारे में पता लगाते हैं. उन्होंने ऐसे भी मामले बताए जब सिएरा लियोन के व्यक्ति को नाइजीरिया भेज दिया गया था.

गृह मंत्रालय ऐसे आरोपों का खंडन करता है. मंत्रलाय की प्रवक्ता का कहना है, "लोगों को तभी किसी देश भेजा जाता है जब उनकी नागरिकता की ठीक तरह से पुष्टि हो जाती है. साथ ही वे चाहें तो वकील के जरिए फैसले को चुनौती दे सकते हैं.

जिंदगियों के साथ खिलवाड़

2018 में जर्मन सरकार ने एमादू के देश गिनी के साथ एक करार किया था जिसके तहत गिनी के नागरिकों को जर्मनी से डिपोर्ट करने की प्रक्रिया को तेज किया जाना था. अक्टूबर 2020 तक इस समझौते के तहत 40 लोगों को वापस भेजा जा चुका है, लेकिन यह देश बुरे दौर से गुजर रहा है. राष्ट्रपति अल्फा कोंडे ने पिछले साल मार्च में संविधान में बदलाव किए हैं और लगातार तीसरी बार देश के राष्ट्रपति बने हैं.

येल्पके कहती हैं, "पिछले महीनों और सालों में वहां नागरिक मारे जा रहे हैं या उन्हें जबरन कैद में डाला जा रहा है. उस देश में लोगों को डिपोर्ट करने का मतलब होगा उनकी जिंदगी के साथ खिलवाड़ करना, उनकी जान को खतरे में डालना."

एमादू का कहना है कि गिनी के एक प्रभावशाली कमांडर के बेटे ने सालों तक उसे प्रताड़ित किया और जब उसने इसकी शिकायत की तो उसे जेल में डाल दिया गया. जेल में उसके साथ बुरा बर्ताव किया गया और वहां से निकलने के बाद भी उसकी जान पर हमेशा खतरा रहा. यह भी एक वजह है कि वह अपने देश की कॉन्सुलेट में जाने से डर रहा है, "मुझे उन पर भरोसा नहीं है. मुझे उनसे डर लगता है. वो लोग सरकार के साथ मिले हुए हैं."

रिपोर्ट: डानिएल पेल्स/आईबी

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