जर्मनी में 2015 के दौरान जन्म लेने वाले हर पांच बच्चों में से एक ऐसा था जिसकी मां के पास किसी अन्य देश की नागरिकता है. विदेश मरीजों के मामले में जर्मन अस्पतालों में नौकरशाही से जुड़ी कई अड़चनों का सामना करना पड़ता है.
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महमूद का जन्म बर्लिन के मेडिकल कॉलेज अस्पताल शेरिटे में हुआ. जन्म के बाद बेटे को गोद में लिए हुए उसके पिता ने बताया, "सब कुछ ठीक रहा. हम बहुत खुश हैं. यहां हमें बहुत ही अच्छे लोग मिले.” महमूद का परिवार एक साल पहले सीरिया से जर्मनी पहुंचा और अब महमूद बर्लिन में ही रहेगा.
जर्मनी के संघीय सांख्यिकी कार्यालय का कहना है कि 2015 में जर्मनी में पैदा होने वाले हर पांच बच्चों में एक बच्चा विदेशी मां का है. इस संख्या में 20 फीसदी की बढ़ोत्तरी की वजह जर्मनी में शरणार्थियों और पूर्व यूरोप से प्रवासियों के आगमन को माना जा रहा है.
जर्मनी में 2015 में 4,800 सीरियाई महिलाओं ने बच्चों को जन्म दिया जबकि 2014 में इनकी संख्या 2,300 थी. आंकड़ों के मुताबिक रोमानियाई महिलाओं से पैदा होने वाले बच्चों की संख्या (2015 में 8,154, 2014 में 5,552) में 47 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. वहीं बुल्गारियाई महिलाओं से पैदा होने वाले बच्चों की संख्या 2014 में जहां 3,135 थी वहीं पिछले साल ये बढ़कर 4,202 हो गई और इस तरह वहां वृद्धि दर 34 प्रतिशत दिखाई पड़ती है.
बॉलीवुड की मम्मियां
कभी भारतीय फिल्म उद्योग में काम करने वाली अभिनेत्रियां शादी के बाद पर्दे और लोगों की स्मृति से गायब हो जाती थीं. लेकिन अब हालात बदल गए हैं. बॉलीवुड की मम्मियां बच्चों के अलावा करियर पर भी ध्यान दे रही हैं.
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करीना कपूर
करीना कपूर भी बॉलीवुड की मम्मियों में शामिल हो गई हैं. हालांकि बेटे का नाम तैमूर रखने को लेकर खूब विवाद भी हुआ.
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रानी मुखर्जी
बेटी आदिरा के जन्म के साथ रानी मुखर्जी बॉलीवुड की मांओं में सबसे नया नाम बन गई हैं. प्रमुख फिल्मकार आदित्य चोपड़ा से शादी के बाद भी वे स्वतंत्र रूप से फिल्में करती रही हैं.
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ऐश्वर्या राय
बॉलीवुड की सबसे जानीमानी मां ऐश्वर्या राय हैं. मेगास्टार अमिताभ बच्चन की वजह से भी अभिषेक, ऐश्वर्या और उनकी बेटी आराध्या अक्सर सुर्खियों में रहते हैं.
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काजोल
अजय देवगन के साथ शादी करने के बाद काजोल परिवार पर ध्यान देने लगी थीं. लेकिन बीच बीच में वे सिनेमा में सक्रिय रहती हैं और हर बार दर्शकों का दिल जीतने में कामयाब रहती हैं.
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शिल्पा शेट्टी
सिने करियर भले ही खत्म हो गया है लेकिन क्रिकेट फ्रेंचाइजी की खरीद के साथ शिल्पा ने परिवार के साथ साथ अपने पति राज कुंद्रा के साथ अपना कारोबारी करियर जारी रखा है.
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माधुरी दीक्षित
शादी के बाद माधुरी दीक्षित ने अपना पूरा जीवन परिवार को समर्पित कर दिया था. लेकिन बच्चों के बड़े होने के बाद वे फिर से ग्लैमर की दुनिया में लौट आईं हैं. अब वे टेलीविजन में ज्यादा दिखती हैं.
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कोंकणा सेन शर्मा
कोंकणा सेन ने बेटे के जन्म के बाद फिल्म इंडस्ट्री से नाता नहीं तोड़ा. काफी वक्त से पति रणवीर शोरी से साथ संबंध खराब होने की खबरें आ रही थीं. दोनों से आखिरकार अलग होने का फैसला कर लिया.
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मलाइका अरोड़ा खान
सलमान खान से संबंधित होने के बावजूद उनके भाई की पत्नी ने मनोरंजन की दुनिया में खुद अपनी जगह बनाई है. परिवार संभालने के साथ साथ वे करियर पर भी ध्यान दे रही हैं.
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सुष्मिता सेन
मिस यूनिवर्स रह चुकीं सुष्मिता सेन बॉलीवुड की अकेली मां हैं जिन्होंने अभी तक शादी नहीं की है. दो बेटियों को गोद लेने वाली सुष्मिता अपने बच्चों की परवरिश पर पूरा ध्यान लगा रही हैं.
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वहीं इस दौरान जर्मनी में अपने बच्चे को जन्म देने वाली तुर्क मांओं की संख्या कुछ कम हुई है, लेकिन उनकी संख्या ज्यादा होने के कारण 21,555 जन्मों के साथ वे इस सूची में सबसे ऊपर हैं. वहीं ऐसी पोलिश महिलाओं से पैदा होने वाले बच्चों की संख्या 10,831 है.
शेरिटे अस्पताल के डॉ. वोल्फगांग हाइनरिश कहते हैं कि वो तो सभी मरीजों को बराबर समझते हैं, लेकिन अलग नागरिकता की वजह से वित्तीय और अन्य तरह की दिक्कतें होती हैं. वह कहते हैं, "बेशक शरणार्थी माओं की संख्या में इजाफा हो रहा है. हमें जो एक बड़ी समस्या आती है वो है भाषा. ऐसे में, हमें या तो कोई इंटरप्रेटर तलाशना पड़ता है या फिर अस्पताल में ही कोई ऐसा व्यक्ति जो उस भाषा को समझ सके.”
कैसे मनाते हैं बच्चे स्कूल का अपना पहला दिन
स्कूल का पहला दिन यादगार होता है. कुछ बच्चे उत्साहित और रोमांचित होते हैं तो कुछ दूसरे डरे हुए होते हैं. जर्मनी में स्कूल का पहला दिन परंपराओं से भरा है जिनमें कुछ तो सैकड़ों साल पुरानी हैं.
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तोहफों का डब्बा
जर्मनी में पहले दिन स्कूल जाने वाले बच्चों का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होता है तोहफों से भरा कोणदार डब्बा जिसे जर्मन में शूलटुइटे कहते हैं. बचपन भुलाकर अगले 12-13 साल रोज स्कूल जाने की तकलीफ कम करने के लिए बच्चों को चॉकलेट और मिठाइयों का उपहार दिया जाता है. ये परंपरा 19वीं सदी के शुरू से चली आ रही है.
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नई जिंदगी
जब अगस्त या सितंबर में स्कूल शुरू होता है तो पहली क्लास में जाने वाले ज्यादातर बच्चे छह साल के होते हैं. उनमें से अधिकांश प्री-स्कूल या किंडरगार्टन में कुछ साल गुजार चुके होते हैं. ये जर्मनी में शिक्षा व्यवस्था का हिस्सा नहीं हैं. शिक्षा देने की शुरुआत पहली क्लास से ही होती है. इसलिए बच्चों और माता-पिता के लिए स्कूल का पहला साल चुनौतियों वाला होता है.
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सही बस्ता
स्कूल शुरू होने के पहले माता-पिता अपने बच्चों के लिए स्कूल बैग खरीदते हैं. इसे जर्मन में शूलरांसेन कहा जाता है. यह इस तरह बना होता है कि किताबें टेढ़ी न हों और लंच बॉक्स का खाना ना बिखरे. बाद में चलकर जींस से बने स्कूल बैग अहम हो जाते हैं लेकिन पहली क्लास के बच्चों के लिए सबसे ट्रेंडी बैग खरीदना महत्वपूर्ण होता है. इस साल स्टार वॉर्स ट्रेंड में हैं.
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जरूरी चीजें
स्कूल बैग खरीदने के बाद स्कूल में काम आने वाली जरूरी चीजों की खरीदने की बारी आती है. आखिरकार स्कूल बैग में पेन, पेंसिल, रूलर और फोल्डर जैसे सारे जरूरी औजार तो होने ही चाहिए. जर्मनी में आमतौर पर छोटे बच्चे स्कूल में लंच नहीं करते. वे सुबह का नाश्ता घर में करते हैं, दोपहर से पहले का स्नैक या पाउजेनब्रोट साथ ले जाते हैं और दिन का खाना या तो घर पर या डेकेयर सेंटर में करते हैं.
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यादगार दिन
दुनिया भर में बहुत से बच्चे स्कूल के पहले दिन क्लास के साथ फोटो खिंचवाते हैं. जर्मनी में वे अपना तोहफों का डब्बा हाथ में लिए होते हैं जो अक्सर उनसे ज्यादा बड़ा होता है. और उस पर लिखा होता है, स्कूल में मेरा पहला दिन. ज्यादातर बच्चों के लिए ये उनके बड़े दिन की पराकाष्ठा नहीं होती. इसलिए अक्सर वे उन्हें स्कूल पहुंचाने आए माता-पिता या रिश्तेदारों से तस्वीर खिंचवाने में उत्साह नहीं दिखाते .
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धार्मिक परंपरा
जर्मनी में स्कूल का पहला दिन क्लास के साथ नहीं बल्कि बच्चों के लिए एक स्वागत समारोह के साथ मनाया जाता है. इसमें बच्चों के माता-पिता, रिश्तेदार और परिवार के साथी भाग लेते हैं. इस परंपरा में ईसाई बहुल जर्मनी में गिरजे में प्रार्थना सभा की परंपरा भी शामिल है जहां बच्चों को शिक्षा के सफर पर शुभकामनाएं दी जाती हैं. कुछ स्कूल मुस्लिम छात्रों के लिए अंतरधार्मिक सभा का आयोजन करते हैं.
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अनुभवियों से मिलता निर्देश
स्कूल के पहले दिन होने वाले स्वागत समारोह में दूसरी क्लास के बच्चे और टीचर प्रदर्शनों के जरिये बताते हैं कि स्कूल कैसे चलता है. कुछ स्कूलों में पहले क्लास के बच्चों की देखभाल और मदद की जिम्मेदारी तीसरी या चौथी क्लास के बच्चों को दी जाती है ताकि वे छोटे बच्चों के तंग करने के बदले ज्ञान की खोज की नई राह पर उनका साथ दें और उनकी मदद करें.
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अपना घर समझो
स्वागत समारोह का एक हिस्सा स्कूल का भ्रमण भी होता है. पहली क्लास के बच्चों को स्कूल टूर के दौरान उनका क्लास दिखाया जाता है. स्कूल के आकार के हिसाब से क्लास 1ए, 1बी और 1सी जैसे सेक्शनों में बंटा होता है. यहां बोर्ड पर लिखा है कक्षा 1ए के बच्चों का स्वागत है. बच्चों को क्लास के अलावा वे जरूरी चीजें भी बताई जाती है जिनकी उन्हें स्कूल में आने वाले दिनों में जरूरत होगी.
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पारिवारिक समारोह
स्कूल का औपचारिक समारोह खत्म हो जाने के बाद परिवार में जश्न मनाने की बारी आती है. मात-पिता अक्सर नाना-नानी, दादा-दादी और दूसरे रिश्तेदारों को खाने पर या शाम में केक पर बुलाते हैं ताकि वे युवा छात्र को शिक्षा की साहसिक डगर पर सम्मान के साथ विदा कर सकें. बच्चों के लिए यह मौका तंग होने के बदले खुशी का होता है क्योंकि मेहमान उनके लिए तोहफे लेकर आते हैं.
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असली पहला दिन
समारोह खत्म हो जाने, केक खा लिए जाने और तोहफों के डब्बे खोल लिए जाने के बाद आता है स्कूल का सचमुच का पहला दिन. बच्चों को अकेले अपनी क्लास खोजनी होती है. जर्मनी में प्राइमरी स्कूलों में आम तौर पर पहली से चौथी क्लास तक की पढ़ाई होती है. उसके बाद छात्र माध्यमिक शिक्षा के लिए तीन प्रकार के स्कूलों में से एक का चुनाव करते हैं.
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हर साल 5000 से ज्यादा बच्चों के जन्म को देखते हुए शेरिटे ने अपने चारों अस्पतालों में कम से कम एक सीरियाई डॉक्टर को नियुक्त किया है. डॉ हाइनरिश कहते हैं कि इंटरप्रेटर रखना बहुत महंगा पड़ता है. लेकिन अस्पताल में तो इराक, ईरान, अफगानिस्तान और अन्य अफ्रीकी देशों की महिलाएं भी आ रही हैं, ऐसे में उनके लिए कई बार तत्काल इंटरप्रेटर का इंतजाम करना मुश्किल होता है.
जर्मन शहर कासेल में लेबोरेट्री फिजिशियन डॉ. फोल्कर म्यूलर बताते हैं कि शरणार्थी या फिर गैर यूरोपीय संघ देशों से आए मरीजों का इलाज करना उनके लिए एक दुविधा वाली स्थिति होती है. वह कहते हैं, "इंटरप्रेटर को पैसे देने के अलावा कई बार यह तय करना भी मुश्किल होता है कि उनके इलाज का खर्च कौन उठाएगा.”