जर्मनी में शरणार्थियों की संख्या सीमित करने पर छिड़ी बहस
१० अक्टूबर २०१७
जर्मनी की रुढ़िवादी सीडीयू/सीएसयू पार्टियां देश में आने वाली शरणार्थियों की संख्या को सीमित करने पर सहमत हो गयी हैं. कुछ लोग इसे असंवैधानिक बता रहे हैं तो कुछ की राय में यह वैध है, लेकिन इसे लेकर कई सवाल उठ रहे हैं.
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सीडीयू की नेता और चांसलर अंगेला मैर्केल और उनकी बवेरियन सहयोगी पार्टी सीएसयू के नेता होर्स्ट जेहोफर ने सोमावार को एक नीतिगत सुझाव पेश किया जिस पर लगभग दो साल से बात हो रही है. दोनों पार्टियां इस बात पर सहमत हो गयी हैं कि जर्मनी में आने वाले शरणार्थियों से किस तरह निपटा जाए.
आम चुनाव के बाद सरकार बनाने के लिए ग्रीन पार्टी और उदारवादी एफडीपी से बात शुरू करने से पहले दोनों पार्टियों के बीच इस सहमति का मकसद एकजुटता पेश करना है. सीडीयू और सीएसयू ऐसे दिशानिर्देश चाहती हैं जिनके मुताबिक मानवीय आधार पर जर्मनी में एक साल के भीतर दो लाख से ज्यादा लोगों को ना लिए जाए. जोहोफर ने कहा है कि इस संख्या में शरण के लिए आवेदन करने वाले, जिनेवा समझौते के तहत शरणार्थी के रूप में परिभाषित लोग और अपने परिवार के साथ रहने के लिए जर्मनी में आने वाले लोग, सभी शामिल हैं. लेकिन दो लाख की इस सीमा में उच्च दक्षता प्राप्त कामगार शामिल नहीं हैं.
कैसे बना जर्मनी शरणार्थियों की पहली पसंद
जब शरणार्थी यूरोप का रुख कर रहे थे तब जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने इनके लिये "ऑपन डोर पॉलिसी" अपनाई. मैर्केल की नीति ने शरणार्थियों के लिए तो राह आसान की वहीं विरोधियों को राजनीतिक जमीन दे दी. एक नजर पूरे मसले पर.
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25 अगस्त 2015
जर्मनी ने सीरियाई लोगों के लिये डबलिन प्रक्रिया को निलंबित करने का निर्णय लिया. इसके तहत शरणार्थियों को यूरोपीय संघ के उन देशों में रजिस्ट्रेशन कराना पड़ता है जहां वे सबसे पहले दाखिल हुए थे. जर्मनी ने उन्हें उन देशों में वापस न भेजने का फैसला लिया.
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31 अगस्त 2015
जर्मन चांसलर मैर्केल ने कहा कि "हम यह कर सकते हैं". यह वही वक्त था जब शरणार्थी संकट यूरोप के लिए सबसे बड़ा नजर आ रहा था. मध्य-पूर्व में छिड़े युद्ध के कारण जर्मन सरकार ने सैकड़ों शरणार्थियों को संरक्षण प्रदान किया और मैर्केल ने इसे राष्ट्रीय कर्तव्य बताया.
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4 सितंबर 2015
जर्मनी और ऑस्ट्रिया ने हंगरी में फंसे शरणार्थियों के लिये सीमायें खोल दीं. म्यूनिख के मुख्य रेलवे स्टेशन पर जर्मन वालंटियर्स ने सैकड़ों शरणार्थियों का स्वागत किया. इसने जर्मनी की स्वागत करने की संस्कृति को उजागर किया और फिर क्या था, जर्मनी, यूरोप में शरण चाहने वालों का पंसदीदा देश बन गया.
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13 सितंबर 2015
जर्मनी ने आस्ट्रिया के साथ सीमा नियंत्रण मजबूत करना शुरू किया. दोनों देशों के बीच दो घंटे तक ट्रेनों को रोक दिया गया. उस वक्त जर्मनी में हजारों शरणार्थी दाखिल हो रहे थे लेकिन जर्मनी के कई छोटे शहरों के लिये इससे निपटना आसान नहीं था.
15 अक्टूबर 2015
यूरोपीय संघ और तुर्की ने तुर्की से यूरोप आने वाले शरणार्थियों की समस्या से निपटने के लिये संयुक्त एक्शन प्लान तय किया. जर्मन संसद के निचले सदन बुंडेस्टाग ने शरणार्थी कानून में परिवर्तन किया और अल्बानिया, कोसोवो और मोंटेनिग्रो को सुरक्षित देश घोषित किया. इसके बाद इन देशों के शरणार्थियों को वापस भेजना संभव हुआ.
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दिसंबर 2015
जर्मनी ने शरणार्थियों को जगह दी थी. आम लोग सामने आकर उनकी मदद कर रहे थे, लेकिन एक हिस्से में विरोध की भावना भी पनप रही थी. 2015 के अंत तक तकरीबन 8.90 लाख शरणार्थी जर्मनी में आ चुके थे.
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मार्च 2016
स्लोवेनिया, क्रोएशिया, सर्बिया और मैसेडोनिया ने अपनी सीमाएं आप्रवासियों के लिये बंद कर दी. जर्मनी आने के लिये शरणार्थियों द्वारा इस्तेमाल किये जाने वाले बाल्कन मार्ग पर सख्ती कर दी गयी. इसी वक्त धुर दक्षिणपंथी पार्टी अल्टरनेटिव फॉर जर्मनी (एएफडी) ने तीन प्रांतीय चुनावों में सीटें जीती. यूरोपीय संघ और तुर्की ने ग्रीस पहुंचे आप्रवासियों को तुर्की वापस भेजने के लिये एक समझौते पर हस्ताक्षर किया.
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मई 2016
यूरोप में शरणार्थी बड़ी तादाद में आ गये थे, लेकिन कुछ देश उनके आने का पुरजोर विरोध कर रहे थे. इस वक्त यूरोपीय कमीशन ने एक अहम प्रस्ताव रखा. कमीशन का प्रस्ताव उन सदस्य देशों पर जुर्माना लगाने का था जो अपने कोटे के शरणार्थियों को लेने के लिए तैयार नहीं थे.
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जुलाई 2016
इस समय तक शरणार्थियों पर कुछ छुटपुट हमलों की भी खबर आई. 19 जुलाई को एक 17 वर्षीय अफगान शरणार्थी ने जर्मनी के वुर्त्सबर्ग के निकट एक ट्रेन में 20 यात्रियों पर चाकू से हमला किया. इसके छह दिन बाद एक सीरियाई शरणार्थी ने भी विस्फोटक डिवाइस का इस्तेमाल किया.
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दिसंबर 2016
14 दिसंबर को जर्मनी ने कुछ अफगान शरणार्थियों को वापस भेज दिया. 19 दिसंबर को जर्मनी में शरण को इच्छुक ट्यूनीशिया के एक शख्स ने बर्लिन के क्रिसमस मार्केट में ट्रक से हमला कर दिया. इसमें 12 लोग मारे गये थे और 56 घायल हुए. इन घटनाओं ने मैर्केल की शरणार्थी नीति को सवालों के घेरे में ला दिया.
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फरवरी 2017
बर्लिन में हुए हमले के बाद चांसलर मैर्केल ने शरण लेने में असफल रहे लोगों को वापस भेजे जाने की नई योजना पेश की. इस योजना के केंद्र में अफगानिस्तान से आये लोग थे.
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3 मार्च 2017
चांसलर अंगेला मैर्केल ने ट्यूनीशिया के साथ एक समझौता किया, इसके अंतर्गत 1500 ट्यूनीशियाई प्रवासियों को वापस भेजा जाना तय किया गया था.
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11 अगस्त 2017
मैर्केल ने संयुक्त राष्ट्र रिफ्यूजी कमीशन के आयुक्त फिलिपो ग्रांडी से मुलाकात की और यूएनएचसीआर को 5 करोड़ यूरो की मदद का आश्वासन दिया. मैर्केल ने भूमध्य सागर के जरिये होने वाली मानव तस्करी से लड़ने वाले का भी समर्थन किया.
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28 अगस्त 2017
मैर्केल ने यूरोपीय और अफ्रीकी नेताओं से मुलाकात कर आप्रवासियों के मुद्दे पर चर्चा की. इस मुलाकात में अफ्रीकी हॉटस्पॉट और रिसेप्शन सेंटर्स पर चर्चा हुई साथ ही शरणार्थियों के लिये अफ्रीकी विकल्प की संभावनाओं को भी खंगाला गया. (एए/वेस्ली डॉकरी)
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सीएसयू ने धमकी दी थी कि शरणार्थियों की मुद्दे पर वह कोई समझौता नहीं करेगी. हालांकि सीडीयू-सीएसयू दोनों ने अब भी "प्रवासियों की सीमा" शब्द का इस्तेमाल नहीं किया है, जिसे लेकर बरसों से जर्मनी में गर्म बहस चल रही है. सीएसयू जहां इसके बिना सरकार में शामिल होने को तैयार नहीं है, वहीं ग्रीन पार्टी ऐसे किसी भी विचार को साफ तौर पर खारिज करती है.
लेकिन प्रवासियों की संख्या को सीमित करने के मुद्दे पर कई विशेषज्ञों की राय अलग है. जर्मनी की जारलैंड यूनिवर्सिटी में यूरोपीय और अंतरराष्ट्रीय कानून के प्रोफेसर थॉमस गीकेराइश कहते हैं, "हमारे यहां यूरोपीय संघ की साझा शरणार्थी नीति और नियम हैं जो बताते हैं कि शरणार्थी के तौर पर संरक्षण की चाह में आने वाले लोगों के साथ किस तरह का व्यवहार होना चाहिए." वह कहते हैं, "यूरोपीय संघ का कानून संरक्षण की तलाश में आने वाले लोगों की संख्या पर कोई सीमा नहीं लगाता. अगर कोई व्यक्ति गृह युद्ध झेल रहे देश से भागकर आता है और यह साफ है कि वह वहां वापस नहीं जा सकता, तो उसे संरक्षण पाने का अधिकार है और उसे वापस नहीं लौटाया जाना चाहिए."
ये हर रोज 20 हजार रोहिंग्या का पेट भरते हैं
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इस तरह, किसी व्यक्ति को सिर्फ एक निर्धारित कोटे की वजह से युद्ध झेल ऐसे देश में वापस भेजना, जहां उसकी जान खतरे में हो, यह यूरोपीय संघ के कानून का उल्लंघन होगा. लेकिन सीडीयू और सीएसयू पार्टियों ने जो समझौता सोमवार को पेश किया, उसे कुछ इस तरह से तैयार किया गया है कि दोनों पार्टियां उस स्थिति को रोकना चाहती हैं जहां जर्मनी को प्रवासियों के लिए अपने दरवाजे बंद करने पड़ जाएं.
उन्होंने कहा है कि वे हर साल दो लाख शरणार्थियों की सीमा को "हासिल" करना चाहते हैं, लेकिन अगर कोई अभूतपूर्व स्थिति पैदा होती है तो फिर इस संख्या को बढ़ाया-घटाया जा सकता है.
शरणार्थियों के लिए सक्रिय संगठन प्रो असाइल की कानूनी सलाहकार मारेई पेल्सर कहती हैं, "किसी व्यक्ति के मानवाधिकारों के साथ एक कोटे की वजह से छेड़छाड़ नहीं हो सकती." उनका कहना है, "प्रवासी कामगारों से जुड़े कानूनों पर यह अलग तरह से लागू होता है. वहां सरकार निश्चित क्षेत्रों के मांग के मुताबिक आने वाले लोगों की संख्या को सीमित कर सकती है. लेकिन बात जब मानवाधिकारों की रक्षा करने की हो तो आपके पास यह विकल्प नहीं है."
कौन सा समंदर कितने शरणार्थियों को खा गया
शरण की तलाश में सब कुछ दांव पर लगा देने वाले बहुत से लोग अक्सर मंजिल पर पहुंचने से पहले ही इस दुनिया को छोड़ देते हैं. पिछले कुछ वर्षों के दौरान कितने प्रवासी मारे गए, कहां मारे गए और उनका संबंध कहां से था, जानिए.
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'प्रवासियों का कब्रिस्तान'
इस साल दुनिया के विभिन्न भागों में लापता या मारे जाने वाले शरणार्थियों की संख्या 1,319 है. सबसे ज्यादा मौतें भूमध्य सागर में हुईं, जहां अप्रैल के मध्य तक 798 लोग या तो मारे गये हैं या लापता हो गये हैं. शरण की तलाश में अफ्रीका या अन्य क्षेत्रों से यूरोप पहुंचने की कोशिशों में हजारों लोग अब तक भूमध्य सागर में समा चुके हैं.
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सैकड़ों लापता या मारे गये
इस साल जनवरी से लेकर मध्य अप्रैल तक दुनिया भर में 496 ऐसे लोग मारे गये हैं या लापता हुए हैं जिनकी पहचान स्पष्ट नहीं है. इनमें सब सहारा अफ्रीका के 149, हॉर्न ऑफ अफ्रीकी क्षेत्र के देशों के 241, लैटिन अमेरिकी क्षेत्र के 172, दक्षिण पूर्व एशिया के 44 और मध्य पूर्व और दक्षिण एशिया के पच्चीस लोग शामिल हैं.
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2016 का हाल
सन 2016 में वैश्विक स्तर पर लापता या मारे गये शरणार्थियों की कुल संख्या 7,872 रही. पिछले साल भी सबसे ज्यादा लोग भूमध्य सागर में ही मारे गये या लापता हुए. इनकी कुल संख्या 5,098 रही. 2016 के दौरान उत्तरी अफ्रीका के समुद्र में 1,380 लोग, अमेरिका और मैक्सिको की सीमा पर 402 लोग, दक्षिण पूर्व एशिया में 181 जबकि यूरोप के 61 प्रवासी मारे गये या लापता हो गये.
अफ्रीका पर सबसे ज्यादा मार
पिछले साल अफ्रीका के 2,815 प्रवासी मारे गये या लापता हो गये. मध्य पूर्व और दक्षिण एशियाई क्षेत्र के 544, दक्षिण पूर्व एशिया के 181 जबकि लैटिन अमेरिका और कैरेबियन क्षेत्र के 675 शरणार्थी 2016 में मौत के मुंह में चले गये. पिछले साल बिना नागरिकता वाले 474 प्रवासी भी लापता हुए या मारे गये.
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दक्षिण पूर्व एशिया भी प्रभावित
2015 में शरण के लिए अपनी मंजिल पर पहुंचने से पहले ही दुनिया को अलविदा कह देने वालों की संख्या 6,117 रही. उस साल भी सबसे ज्यादा 3,784 मौतें भूमध्य सागर में ही में हुईं. इसके बाद सबसे अधिक मौतें दक्षिण पूर्व एशिया में हुईं, जहां 789 शरणार्थियों के बेहतर जीवन के सपने चकनाचूर हो गये.
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रोहिंग्या भी शरण दौड़ में खो गए
सन 2015 के दौरान भूमध्य सागर के तट पर स्थित देशों के 3784 प्रवासी, दक्षिण पूर्व एशिया के 789 प्रवासी जबकि उत्तरी अफ्रीका के 672 प्रवासी मारे गये या लापता हो गये थे. यूएन की शरणार्थी संस्था यूएनएचसीआर के मुताबिक शरण के लिए समंदर में उतरने वाले हजारों रोहिंग्या भी काल के गाल में जा चुके हैं.
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पहचान स्पष्ट नहीं है
दुनिया के विभिन्न भागों में लापता या मारे गये प्रवासियों की संख्या सन 2014 में 5,267 थी. मौतों के मामले में इस साल भी भूमध्य सागर और दक्षिण पूर्व एशियाई क्षेत्र सबसे ऊपर हैं जहां 3,279 और 824 मौतें हो चुकी हैं. इस साल मारे गये करीब एक हजार लोगों की पहचान नहीं हो सकी थी.
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17 साल में 46,000 मौतें
'मिसिंग माइग्रेंट्स प्रोजेक्ट' पलायन करने वाले लोगों को लेकर शुरू की गयी एक अंतरराष्ट्रीय परियोजना है. इस संस्था के अनुसार सन 2000 से लेकर अब तक लगभग 46,000 लोग शरण की आस में जान गंवा चुके हैं. यह संस्था सरकारों से इस समस्या का हल तलाशने को कहती है.
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पेल्सर मानती हैं किशरणार्थियों की संख्या को सीमित करने की योजना पर अगर जर्मनी की अगली सरकार अमल करती है तो फिर उसे अपने खिलाफ बड़ी कानूनी कार्रवाई के लिए तैयार रहना होगा. उनके मुताबिक अगर शरणार्थियों को लेने से इनकार किया जाता है तो फिर वे जर्मन संविधान में शरण के बुनियादी अधिकार और मानवाधिकारों पर यूरोपीय संघ के नियमों का हवाला देंगे. पेल्सर कहती हैं, "बेशक वे मुकदमा कर सकते हैं."
लेकिन इससे पहले की हालात यहां तक पहुंचे, सीडीयू-सीएसयू को अपने संभावित गठबंधन साझीदारों को शरणार्थियों की संख्या सीमित करने वाले इस प्रस्ताव पर राजी करना होगा. फिलहाल इसकी संभावना कम ही दिखती है.