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समाजजर्मनी

जर्मनी में हर पांचवां बच्चा गरीबी का शिकार

२२ जुलाई २०२०

जर्मनी यूरोप के सबसे संपन्न देशों में शामिल है. फिर भी जर्मनी का हर पांचवां बच्चा गरीबी में पलने बढ़ने पर मजबूर है. जानकारों का मानना है कि कोरोना संकट इस स्थिति को और बिगाड़ सकता है.

Deutschland Schulkinder mit Schulranzen
तस्वीर: picture-alliance/W. Rothermel

जर्मनी के बेर्टल्समन फाउंडेशन की ताजा रिपोर्ट के अनुसार देश में 28 लाख बच्चे अपना जीवन गरीबी में बिता रहे हैं. रिपोर्ट में कहा गया है, "सालों से बच्चों की गरीबी का मुद्दा जर्मनी के लिए सबसे बड़ी सामाजिक चुनौतियों में से एक रहा है." साल 2014 से इस मामले में बहुत ही कम सुधार देखा गया है. इस रिपोर्ट के अनुसार 18 साल से कम उम्र के कुल 21.3 फीसदी बच्चे फिलहाल गरीबी का शिकार हैं.

इस शोध के लिए बच्चों की जिंदगी से जुड़े कई कारकों पर ध्यान दिया गया है. जिन परिवारों के पास आय का कोई जरिया नहीं है और जो सरकार द्वारा दी जाने वाली सोशल सिक्यूरिटी पर निर्भर हैं, उनके अलावा ऐसे परिवारों पर भी ध्यान दिया गया जिनकी आमदनी देश की औसत आमदनी की 60 प्रतिशत या उससे कम है. जर्मनी में उसे गरीबी रेखा माना जाता है और औसत राष्ट्रीय आय के 60 प्रतिशत के करीब रहने वाले लोगों के गरीबी रेखा के नीचे जाने का खतरा लगातार बना रहता है. 

बैर्टल्समन फाउंडेशन की रिपोर्ट ने पाया कि गरीबी में रह रहे दो तिहाई बच्चे कभी इससे बाहर नहीं आ पाते हैं. भारत की तुलना में जर्मनी में गरीबी पहचानने के पैमाने अलग हैं. यहां उन लोगों को गरीब माना गया है जिनके पास ना गाड़ी है और ना ही घर में इस्तेमाल होने वाला जरूरी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण. ये लोग बाकियों की तरह छुट्टी बिताने के लिए कहीं घूमने नहीं जा पाते हैं और ना ही सिनेमा इत्यादि का खर्च उठा सकते हैं.

ताजा रिपोर्ट में कहा गया है, "बच्चों में गरीबी एक ऐसी समस्या है जिसे सुलझाया नहीं जा पा रहा है और जिसका बच्चों के भविष्य पर, उनके कल्याण और शिक्षा पर बुरा असर हो रहा है." रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया है कि कोरोना संकट इस स्थिति को बदतर कर सकता है. दरअसल गरीबी में बच्चों को पाल रहे ज्यादातर लोग वे हैं जो किसी तरह की पार्ट टाइम नौकरियां करते हैं. कोरोना संकट के दौरान ऐसे लोगों की आमदनी पर सबसे ज्यादा असर पड़ा है.

बेर्टल्समन फाउंडेशन के अध्यक्ष यॉर्ग ड्रेगर का कहना है कि लॉकडाउन के दौरान सरकार द्वारा दी जाने वाली कई सेवाएं भी लोगों तक नहीं पहुंच सकी. ऐसे में गरीबी में जी रहे इन बच्चों पर काफी असर पड़ा. इन बच्चों के लिए घर पर रह कर पढ़ाई करना भी मुश्किल था क्योंकि स्कूल ऑनलाइन क्लास चला रहे थे और इन बच्चों के परिवारों के पास ऑनलाइन पढ़ाई के सभी जरूरी साधन नहीं थे. रिपोर्ट के अनुसार सोशल सिक्यूरिटी पाने वाले परिवारों में 24 फीसदी बच्चों के पास कंप्यूटर और इंटरनेट नहीं था. ड्रेगर का आरोप है कि सरकार इस समस्या से निपटने के लिए कुछ भी नहीं कर रही है. उन्होंने कहा, "बच्चों को गरीबी से बाहर निकालना राजनीतिक प्राथमिकता होनी चाहिए, खास कर कोरोना के इस दौर में."

आईबी/एमजे (डीपीए, एएफपी)

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