जर्मनी में 16 की उम्र में मतदान का अधिकार देने की बहस
१९ सितम्बर २०२०जर्मनी में 1960 के दशक में ही ये बहस चली थी कि क्या टीनएजरों को मतदान का हक होना चाहिए? विख्यात समाजवादी नेता विली ब्रांट देश के चांसलर बने थे और उनका नारा था, ज्यादा लोकतंत्र की हिम्मत दिखाओ. उस समय मतदान की उम्र 21 साल थी और 1970 में इसे घटाकर 18 कर दिया गया था. अब करीब पांच दशक बाद फिर से यही बहस हो रही है कि क्यों ना मतदान की आयु घटाकर 16 कर दी जाए. पिछले साल पर्यावरण के लिए ग्रेटा थुनबर्ग के आंदोलन में स्कूली छात्रों के आंदोलन फ्राइडे फॉर फ्यूचर से इस मांग को और बल मिला है और खासकर कोरोना संकट के दौरान किशोरों के संयमित बर्ताव के बाद सामाजिक राजनीतिक जीवन में उनका योगदान राजनीतिक बहस के केंद्र में आ गया है.
पिछले दिनों में हुए सर्वे के अनुसार एक तिहाई किशोरों का कहना है कि वे सामाजिक मुद्दों पर सक्रिय हैं और विभिन्न संगठनों के साथ काम कर रहे हैं. युवाओं पर होने वाले शेल सर्वे में 15 से 25 साल के युवाओं में से 40 फीसदी ने कहा था कि राजनीतिक विषयों में उनकी दिलचस्पी है. कुछ दूसरे सर्वे के अनुसार करीब 40 प्रतिशत राजनीतिज्ञों और राजनीति को विश्वसनीय नहीं मानते जबकि करीब 60 प्रतिशत का कहना है कि राजनीति उनके मुद्दों को गंभीरता से नहीं लेती.
मतदान की आयु घटाने के समर्थकों का कहना है कि 16 साल की उम्र तक बच्चे राजनीतिक फैसला लेने के योग्य हो जाते हैं. जर्मनी में माध्यमिक शिक्षा अनिवार्य है और 16 की उम्र तक बच्चे दसवीं क्लास पास कर लेते हैं. इस उम्र में बहुत से वोकेशनल ट्रेनिंग शुरू कर देते हैं और कुछ तो काम भी करने लगते हैं. एक दलील ये भी है कि आबादी की स्थिति बदल रही है और आबादी में बुजुर्ग लोगों का हिस्सा बढ़ रहा है. इसकी वजह से ज्यादातर फैसले उनके हक में लिए जा रहे हैं और युवाओं के भविष्य की पर्याप्त चिंता नहीं हो रही है. मतदान का हक मिलने से किशोरों के जुड़े मुद्दों पर ज्यादा ध्यान दिया जा सकेगा.
इस मांग के पीछे एक दलील ये भी है कि वोकेशनल ट्रेनिंग या काम करने वाले बच्चे भी टैक्स भरते हैं, तो उन्हें भी सरकारी फैसलों में हिस्सेदारी का हक है. किशोरों के मतदाता बनने से राजनीति भी प्रभावित होगी और राजनीतिज्ञ उनके मुद्दों पर ज्यादा ध्यान देंगे. इसके अलावा मतदान की आयु कम करने से स्कूल से बाहर भी राजनीतिक शिक्षा संभव होगी. किशोर राजनीतिक मुद्दों पर बहस कर पाएंगे, जानकारी इकट्ठा कर पाएंगे और अपनी राय बना पाएंगे. इससे उनके जिम्मेदार नागरिक बनने में मदद मिलेगी. राजनीतिक बहस में भागीदारी से लोकतंत्र के साथ उनके रिश्ते मजबूत होंगे और वे अपने को उसके साथ जोड़ पाएंगे. इससे लोकतंत्र को मजबूत बनाने में मदद मिलेगी.
मांग के विरोधियों की दलील
विरोधियों की सबसे प्रमुख शिकायत ये है कि 16 की उम्र में बच्चे परिपक्व नहीं होते कि उन्हें अपना प्रतिनिधि चुनने का अधिकार दिया जा सके. उनकी राय में किशोरों को आसानी से बरगलाया जा सकता है या माता-पिता या शिक्षकों द्वारा प्रभावित किया जा सकता है, जो लोकतंत्र को कमजोर करेगा. एक शिकायत ये भी है कि किशोर वय के लोग अपनी सूचना सोशल मीडिया से लेते हैं और सही खबर और फेक न्यूज में अंतर नहीं करते. वे अक्सर अतिवादी रुख अपनाते हैं जिसकी वजह से उग्रपंथी और पोपुलिस्ट तबकों के झांसे में आ सकते है. यह भी कहा जाता है कि वे राजनीतिक फैसलों के अंतर्संबंधों को समझने की हालत में नहीं है.
कानूनी तौर पर 16 की उम्र में मताधिकार का विरोध करने वालों का कहना है कि मतदान के अधिकार और वयस्क होने की आयु समान होनी चाहिए. राजनीतिक तौर पर यह दलील दी जाती है कि वे राजनीति में इतनी दिलचस्पी नहीं लेते. मताधिकार की आयु घटाने से भी इस पर कोई असर नहीं होगा. इसके विपरीत अगर वे मतदान नहीं करते हैं तो चुनावों में भागीदारी घटेगी और चुनावों की वैधता प्रभावित होगी.
किशोरों को मताधिकार देने का मुद्दा राजनीतिक भी है. कम से कम जर्मनी में किशोर और युवा अपने सामाजिक सरोकारों के कारण आम तौर पर एसपीडी, ग्रीन या वामपंथी पार्टियों के करीब हैं. सीडीयू जैसी दक्षिणपंथी पार्टियों को लगता है कि इससे उनका समर्थन कम होगा. लेकिन जिस तरह पार्टी के अंदर भी युवा लोग अपने हकों के लिए लड़ रहे हैं और पार्टी नेतृत्व से उद्योग को पूरा समर्थन देने के बदले टिकाऊ विकास की मांग कर रहे हैं, कंजरवेटिव पार्टियां भी इस मांग का खुला विरोध नहीं कर पा रही हैं.
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