जर्मनी में द्वितीय विश्न युद्ध के बाद से ही अमेरिकी सेना तैनात है. जर्मनी से अमेरिकी सैनिकों को बाहर करने का फैसला दोनों देशों के बीच रक्षा संबंधों में एक बड़े बदलाव को चिह्नित करेगा.
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द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद से जर्मनी यूरोप में अमेरिका की रक्षा रणनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है. युद्ध के खत्म होने के बाद जर्मनी पर 10 साल तक मित्र देशों का कब्जा रहा था और अमेरिकी सेना इसका हिस्सा थी. हालांकि सेना की संख्या धीरे-धीरे कम होती गई लेकिन अमेरिकी सेना आज भी यहां मौजूद है. बीच के दशकों में अमेरिकी सेना ने जर्मनी में कई शहरों का भी गठन किया.
अमेरिका के लिए जर्मनी का रणनीतिक महत्व दक्षिण-पूर्वी शहर श्टुटगार्ट स्थित अमेरिकी यूरोपीय कमांड (ईयूसीओएम) के मुख्यालय से दिखता है. इस जगह से यूरोप के 51 देशों में मौजूद अमेरिकी सेना के बीच समन्वय स्थापित किया जाता है. ईयूसीओएम का मिशन संघर्ष को रोकना और नाटो जैसे सहयोगी से साझेदारी और अंतरराष्ट्रीय खतरों से अमेरिका की रक्षा और बचाव करना है. इसकी कमान में यूएस आर्मी यूरोप, यूएस एयर फोर्स इन यूरोप और यूएस मरीन कॉर्प्स फोर्सेज यूरोप हैं, जिनके सभी प्रतिष्ठान जर्मनी में हैं.
पूरे यूरोप में सबसे ज्यादा अमेरिकी सैनिक जर्मनी में हैं. यहां 38,600 अमेरिकी सैनिक तैनात हैं. हालांकि यह संख्या घटती-बढ़ती रहती है क्योंकि वे अकसर एक देश से दूसरे देश में जाते रहते हैं. जापान के अलावा इतनी ज्यादा संख्या में अमेरिकी सेना के जवान और कहीं नहीं है. हाल के वर्षों में इस संख्या में कमी भी हुई है. जर्मन सरकार के आंकड़े दिखाते हैं कि 2006 और 2018 के बीच अमेरिकी सैनिकों की संख्या 72,400 से घटकर 33,250 हो गई है.
कारों की विरासत
जर्मनी शानदार कारों के लिए जाना जाता है, जहां पहली कार बनाई गई थी. देखते हैं कुछ ऐसे मॉडलों को, जो बरसों पहले तैयार हुईं, लेकिन कभी पुरानी नहीं पड़ीं.
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पहला पहला पोर्शे
वह साल था 1898, जब 23 साल के फर्डीनांड पोर्शे ने इस कार को तैयार किया. इलेक्ट्रिक कार. नाम रखा पी1, अपने नाम पोर्शे परः पोर्शे 1. तीसरी सदी में प्रवेश के बाद भी कार की चमक देखिए. कहते हैं बग्घीनुमा यह गाड़ी 25 किलोमीटर की रफ्तार से कुलांचे भर सकती थी.
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बिंदास बीटल
साल था 1937 और फोक्सवागन ने बनाया बीटल का प्रोटोटाइप 'केफर'. कहते हैं कि इसकी डिजाइनिंग में पोर्शे के संस्थापक फर्डीनांड पोर्शे ने भी अहम भूमिका निभाई. लक्ष्य था, हर किसी को कार मिले. 2003 तक इसका उत्पादन हुआ और कंपनी ने दो करोड़ से ज्यादा बीटल कारें बेचीं.
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पूर्वी जर्मनी की कार
जर्मनी अलग हुआ तो कार कंपनियों का नुकसान हुआ. पूर्वी जर्मनी में ट्राबांट कार बनी. यह 1958 का मॉडल है. यह कार भी आम लोगों की कार के रूप में लोकप्रिय हुई और इसे प्यार से कहा गया "ट्राबी".
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शान की पहचान
जर्मनी से बाहर अमेरिका कार का गढ़ बना. फोर्ड ने 1972 में टिन लिजी कार तैयार की, जो उस वक्त दुनिया में सबसे ज्यादा बिकने वाली कार बन गई. अमेरिका में 1908 से 1927 के बीच कोई डेढ़ करोड़ कारें बन गई थीं.
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हवा के साथ...
14 नवंबर, 1945. दूसरे विश्व युद्ध के बावजूद जर्मनी की डायमलर बेंज कंपनी एक स्पोर्ट्स कार तैयार करने में लगी थी. मर्सिडीज के इस मॉ़डल की रफ्तार उस जमाने में भी 450 किलोमीटर प्रति घंटा थी. ये पांच टीले दिख रहे हैं, जिनमें चार पहिए हैं और पांचवां ड्राइवर के बैठने की जगह.
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फ्रांस की देवी
सिट्रोएन का फ्रांसीसी भाषा में मतलब होता है देवी. यह देश की सबसे बड़ी कार कंपनी है. यह मॉडल 1955-1975 के बीच बनता था और इस तरह की कारें तो उस वक्त की फिल्मों में खूब दिखाई देती थीं.
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जर्मन स्पोर्ट्स कार
पोर्शे 911 रफ्तार और शान की पहचान बन गई. जर्मनी की इस कार ने अपना अलग बाजार बनाया. पहली बार इसे 1963 में फ्रैंकफर्ट कार मेले में दिखाया गया. बाद में यह पूरी दुनिया में मशहूर हुई.
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और तेज, और आगे..
फोक्सवागन ने भी स्पोर्ट्स कार पर हाथ आजमाया और साल 2001 में कुछ इस तरह की "डब्ल्यू 12 कूपे" तैयार हुई. इटली में इसकी टेस्टिंग हुई और 295 किलोमीटर प्रति घंटा की औसत रफ्तार से कार ने दौड़ लगाई.
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तेज लेकिन किफायती
जर्मनी की एक और मशहूर कार कंपनी बीएमडब्ल्यू ने अपने आई8 मॉडल को 2009 में फ्रैंकफर्ट मोटर शो में पेश किया. इस हाइब्रिड कार को ईंधन बचाने के उद्देश्य से तैयार किया गया है.
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जर्मनी में अमेरिकी सेना
यूरोप में अमेरिकी सेना के सात ठिकाने हैं, जिनमें से पांच जर्मनी में हैं. अन्य दो में एक बेल्जियम और एक इटली में है. अमेरिकी आर्मी यूरोप का मुख्यालय मध्य पश्चिमी जर्मनी के फ्रैंकफर्ट के समीप स्थित शहर वीजबाडेन में स्थित है.
यूएस मिलिट्री द्वारा डीडब्ल्यू को दिए गए आंकड़ों के अनुसार इन पांच ठिकानों में प्रत्येक में अलग-अलग जगहों पर विभिन्न प्रतिष्ठान हैं. यहां वर्तमान में करीब 29 हजार सेना के जवान हैं, जिसमें यूरोप और अफ्रीका के अमेरिकी मरीन कॉर्प्स फोर्सेज भी शामिल हैं. इसके अतिरिक्त करीब 9600 अमेरिकी एयरफोर्स के जवान जर्मनी के विभिन्न क्षेत्रों में फैले हुए हैं. इसमें अमेरिकी एयरफोर्स को दो ठिकाने रामश्टाइन और श्पांगडालेम भी शामिल है.
स्थानीय लोगों को रोजगार
अमेरिकी सैन्य प्रतिष्ठान अमेरिकी नागरिकों को भी रोजगार देते हैं. यहां काम करने वाले लोग परिवारों को भी अपने साथ ला सकती हैं. इस वजह से ठिकानों के आसपास एक बड़ा आवासीय परिसर बन जाता है. रामश्टाइन के निकट स्थापित अमेरिकी ठिकाना एक छोटा शहर बन चुका है. इसमें न केवल बैरक, हवाई क्षेत्र, व्यायाम क्षेत्र और सामग्री रखने के डिपो हैं, बल्कि शॉपिंग मॉल, स्कूल, डाक सेवा और पुलिस थाना भी है. कहीं कहीं तो अमेरिकी मुद्रा भी वैध होती है.
इन ठिकानों पर बड़ी संख्या में स्थानीय लोगों को भी रोजगार दिया जाता है. इससे ठिकानों के आसपास रहने वाले लोगों की आर्थिक स्थिति भी अच्छी होती है. 2014 में जब बामबेर्ग में आर्मी ठिकाना बंद हुआ था तो स्थानीय लोगों ने काफी विरोध किया था.
जर्मनी में अमेरिकी सैन्य उपस्थिति जवानों की संख्या तक सीमित नहीं है. अमेरिका जर्मनी में गैर-अमेरिकी ठिकानों पर भी अपने जहाजों को रखता है. नाटो के परमाणु साझेदारी समझौते के तहत माना जाता है कि पश्चिमी जर्मनी में बुशेल एयरबेस में अनुमानित 20 परमाणु हथियार रखे गए हैं. जर्मनी के लोगों ने कई बार इसकी आलोचना भी की है. एक व्यवस्था यह है कि यमन और अन्य जगहों पर ड्रोन हमलों के लिए एक नियंत्रण केंद्र के रूप में रामश्टाइन एयरबेस का उपयोग किया जाता है. इस व्यवस्था पर काफी विवाद होता है.
कब्जे की विरासत
जर्मनी में अमेरिकी सैन्य उपस्थिति द्वितीय विश्व युद्ध के बाद कब्जे की विरासत के रूप में है. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद 1945 से 1955 तक करीब 10 वर्षों तक जर्मनी मित्र देशों के कब्जे में रहा था. इस दौरान अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, सोवियत संघ के लाखों सैनिक जर्मनी में तैनात थे. जर्मनी का उत्तर-पूर्व हिस्सा जो कि अक्टूबर 1949 में आधिकारिक तौर पर पूर्वी जर्मनी बना, सोवियत संघ के नियंत्रण में था.
पूश्चिम जर्मनी का गठन अप्रैल 1949 में हुआ. इसी महीने में ऑक्यूपेशन स्टेटस पर हस्ताक्षर हुआ. इसी के तहत देश को नियंत्रित किया जाने लगा. इस कानून के वजह से ही फ्रांस, ब्रिटेन और अमेरिका को देश में सेना को रखने और पश्चिम जर्मनी के मौजूदा सेना तथा हथियार हटाने पर पूर्ण नियंत्रण बनाए रखने की अनुमति मिली.
कितना सोते हैं जर्मन लोग
शरीर के लिए जिस तरह खाना जरूरी है, उसी तरह सोना भी बहुत जरूरी है. इससे हमें ऊर्जा मिलती है. जर्मन लोग अपनी जिंदगी में औसतन कितना सोते हैं और किसके लिए कितनी नींद जरूरी है, चलिए जानते हैं.
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चैन की नींद
जर्मनी में लोग अपनी जिंदगी में औसतन 24 साल और तीन महीने सोने में बिताते हैं. इसका मतलब है कि जिंदगी का एक तिहाई हिस्सा सोने में ही बीतता है.
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बसंत का असर
बसंत का मौसम शुरू होते ही 50 से 70 फीसदी जर्मन लोग कुछ हफ्तों तक अन्य मौसमों की तुलना में ज्यादा थकान महसूस करते हैं. इसकी सही वजह तो पता नहीं, लेकिन तापमान बढ़ने के कारण शरीर में हार्मोनल बदलाव इसका कारण हो सकता है.
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अच्छी नींद
जर्मनी में 52 फीसदी व्यस्क कहते हैं कि उन्हें अच्छी नींद आती है. 13 प्रतिशत लोग कहते हैं कि वे बहुत अच्छे से सोते हैं. औसत नींद वाले 28 फीसदी लोग हैं जबकि छह प्रतिशत लोग ऐसे भी हैं जिन्हें अच्छी नींद नहीं आती.
एक नवजात बच्चे को एक दिन में 15 घंटे सोना चाहिए. स्कूल जाने वाले बच्चे 9 से 11 घंटे सोएंगे तो तरोताजा रहेंगे. वहीं किशोरावस्था में पहुंचने पर हमें आठ से दस घंटे की नींद चाहिए.
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ये जवानी
जवानी की दहलीज पर पहुंचते पहुंचते इंसान बहुत व्यस्त हो जाता है. कॉलेज, यार दोस्ती के साथ साथ करियर की चिंता भी सताने लगती है. फिर भी आठ घंटे नीद लेनी बहुत जरूरी है.
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इतना भी ना सोना
अच्छी नींद से बड़ी कोई नेमत नहीं होती. लेकिन अगर आप 25 की उम्र को पार कर गए हैं तो एक दिन में दस घंटे से ज्यादा किसी हालत में न सोएं. यह सेहत के लिए सही नहीं है.
जर्मनी में हर चौथे व्यक्ति को औसतन तीन साल या उससे भी ज्यादा समय तक नींद से जुड़ी समस्याओं के कारण दवाएं लेनी पड़ी हैं. हालांकि लंबे समय तक ऐसी दवाओं को लेना खतरनाक हो सकता है.
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जब आधिकारिक रूप से पश्चिमी जर्मनी से सैन्य कब्जा हट गया, देश को फिर से अपनी रक्षा नीति मिली. हालांकि एक अन्य समझौते द्वारा अपने नाटो सहयोगियों के साथ ऑक्यूपेशन स्टेटस को आगे बढ़ाया गया. इसे जर्मनी में विदेशी सेनाओं की उपस्थिति पर कन्वेंशन के रूप में जाना जाता है. 1954 में पश्चिमी जर्मनी ने इस पर हस्ताक्षर किया. इसके बाद अमेरिका सहित नाटो के 8 सदस्यों को जर्मनी में नियमित रूप से अपनी सेना रखने की इजाजत मिली. यह संधि आज भी जर्मनी में तैनात नाटो सैनिकों के नियमों और शर्तों को नियंत्रित करती है.
1990 में शीत युद्ध की समाप्ति के बाद अमेरिकी सैनिकों की संख्या में कमी आनी शुरू हुई. जर्मन सरकार के अनुसार उस समय करीब चार लाख विदेशी सैनिक जर्मनी में थे. इसमें करीब आधे अमेरिकी सैनिक थे. लेकिन जैसे ही रूस से तनाव घटा, अमेरिकी सैनिकों की संख्या कम हो गई. अन्य जगहों पर भी टकराव के दौरान उन्हें बुलाया जाता रहा है, जैसे कि इराक में पहले खाड़ी युद्ध के दौरान.
अमेरिकी हिरासत केंद्र से छूटने के बाद आप्रवासी कहां जाते हैं?
अमेरिका में प्रतिदिन हजारों की संख्या में आप्रवासियों को हिरासत केंद्रो से छोड़ा जा रहा है. यहां से निकलने के बाद इन आप्रवासियों की जिंदगी कैसी होती है? वे क्या करते हैं? एक नजर उनकी जिंदगी पर.
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सुनवाई पूरी होने तक रहने की इजाजत
टेक्सास के मैक ऐलन में दिन भर बसें आती रहती है. इनमें इमिग्रेशन और कस्टम इनफोर्समेंट (आईसीई) डिटेंशन सेंटर से रिहा किए गए आप्रवासी होते हैं. जब तक इनके मामले की सुनवाई पूरी नहीं हो जाती, तब तक इन्हें अमेरिका में रहने की इजाजत रहती है. अमेरिकी सीमा अधिकारियों के अनुसार अक्टूबर 2018 से मार्च 2019 तक सीमा पर 2,68,044 आप्रवासी हिरासत में लिए गए थे.
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वॉलंटियर के हवाले
होमलैंड सिक्युरिटी बस से उतरने के बाद, आप्रवासी बॉर्डर पेट्रोलिंग एजेंट का इंतजार करते हैं, जो उन्हें कैथोलिक चैरिटीज ऑफ द रियो ग्रैंड वैली (सीसीआरजीवी) के वॉलंटियर को सौंप देते हैं. सीमा पार करने वाले परिवारों की भारी संख्या को देखते हुए टेक्सास-मैक्सिको बॉर्डर पर आप्रवासियों की मदद के लिए नागरिक संगठनों को लगाया गया है.
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संगठित अस्तव्यस्तता
सीसीआरजीवी के राहत केंद्र में लोगों को खाना दिया जाता है, यहां वे नहा धो सकते हैं और सो भी सकते हैं. इसके बाद वे अमेरिका में रह रहे अपने परिवारजनों या मित्रों के पास जा कर रह सकते हैं. उन्हें यह सुनिश्चित करना होता है कि वे अदालत में सुनवाई के लिए जरूर पहुंचें. इस केंद्र पर प्रत्येक दिन 800 आप्रवासी पहुंचते हैं.
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लंबी दूरी की यात्रा
एक बार जब अप्रवासी बस टिकट प्राप्त कर लेते हैं तो उन्हें ग्रेहाउंड स्टेशन पर वापस ले जाया जाता है. ये टिकट वे आमतौर पर अमेरिका में रहने वाले किसी परिचित के माध्यम से ही खरीदते हैं. यहां स्वयंसेवक मेलानी डोमिंगेज अप्रवासियों को अमेरिकी मानचित्र का उपयोग कर बताते हैं कि उन्हें कहां पर बस बदलने की जरूरत है.
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कम हुई संख्या
मैक ऐलन के पूर्व में सीमा के साथ मीलों तक फैला एक दीवार है जेसे साल 2000 में बनाया गया था. उस समय हर महीने औसतन 81,550 आप्रवासी गिरफ्तार होते थे. इसमें ज्यादातर अकेले पुरुष होते थे. अब यह औसत 32,012 प्रति महीने पर आ गया है. और अब आने वाले ज्यादातर आप्रवासी परिवार हैं. बच्चों समेत इन परिवारों को हिरासत में लेना और वापस भेजना कठिन होता है.
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बंटवारे की नदी
रियो ग्रैंड मेक्सिको के साथ अमेरिकी सीमा पर स्थित शहर टेक्सास को जोड़ती है. मध्य अमेरिका में हिंसा से भाग रहे लोगों के साथ काम करने वाली जेनिफर कहती हैं, "हर सप्ताह किसी के डूबने की खबर सुनती हूं. एक मां ने अपने तीन बच्चों के साथ नदी पार करने के लिए तस्कर को पैसे दिए. लेकिन हंगामे की वजह से उसका दो साल का बेटा नदी में गिर गया. नाविक ने कहा कि बीच नदी में नाव नहीं रोक सकते."
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अमेरिका के कदम
इंटरनेशनल गेटवे ब्रिज के मैक्सिकन छोर पर लगी सूचियों में आप्रवासी अपने नाम खोजते हैं ताकि पता कर सकें कि किसे अमेरिका जाने की अनुमति मिली है. यह तरीका प्रवासियों को अनुमति देने के लिए ट्रम्प प्रशासन द्वारा शुरू की गई कई नई नीतियों में से एक है. जानकारों को कहना है यह अमेरिका और अंतरराष्ट्रीय शरण कानूनों दोनों का उल्लंघन करती हैं.
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आर्थिक प्रवासी बनाम शरण चाहने वाले
एक अन्य पुल पर निकारागुआ से आईं मां और बेटी इंतजार कर रही हैं. उन्हें उम्मीद है कि वे शरण का दावा कर सकती हैं. अमेरिकी आप्रवासन को लेकर बहस में यह भी शामिल है कि क्या आर्थिक कठिनाई के बजाय उत्पीड़न से भागकर आने वालों को शरण मिलनी चाहिए. निकारागुआ के 27 वर्षीय एरविंग कहते हैं, "मेरे पास एक सिविल इंजीनियर की नौकरी थी, इसके बावजूद मैं यहां आया हूं. हम हिंसा की वजह से भागे हैं, नौकरी के लिए नहीं."
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डर के साथ उम्मीद
मैक ऐलन के ग्रेहाउंड बस स्टेशन के पीछे होंडुरास का 9 वर्षीय वलेरिया बस का इंतजार कर रहा है जो उसे और उसके परिवार को उत्तर में ले जाएगी. आराम करने और सीसीआरजीवी केंद्र में खाना खाने के बाद आप्रवासी अकसर बेहतर महसूस कर रहे होते हैं. होंडुरास की एक महिला कहती हैं, "लेकिन यहां भी डर है. मैं नहीं जानती कि कोर्ट में सुनवाई के बाद हमें यहां रहने की इजाजत मिलेगी या वापस भेज दिया जाएगा."(जेम्स जेफ्री/आरआर)