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जर्मनी रूस से मुंह मोड़ेगा, तो तेल, गैस, कोयला कहां से लाएगा

विशाल शुक्ला
२६ मार्च २०२२

रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद जर्मनी समेत दुनिया के तमाम देशों ने रूस पर पाबंदियां लगाई हैं. हालांकि, रूस से गैस खरीदने पर जर्मनी नरम है. जर्मनी के लिए तेल और गैस का रातों रात विकल्प खोज लेना आसान नहीं है.

गैस के आयात के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर रातों रात नहीं बन सकता
गैस के आयात के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर रातों रात नहीं बन सकतातस्वीर: Michael Sohn/AP Photo/picture alliance

जर्मनी के चांसलर ओलाफ शॉल्त्स ने जब एक इंटरव्यू में कहा कि वह ऊर्जा को लेकर रूस पर जर्मनी की निर्भरता घटाना चाहते हैं, तो उनसे पूछा गया कि वह ऐसा कर क्यों नहीं देते. रूस जर्मनी समेत यूरोपीय संघ का बड़ा कारोबारी साझेदार है. यूक्रेन युद्ध के मद्देनजर रूस पर कई पाबंदियां लगाई गई हैं, जिनका मकसद उसे आर्थिक रूप से कमजोर करना है. यूरोपीय संघ और खासकर जर्मनी रूस से खूब तेल, गैस और कोयला खरीदते हैं. इसी रोशनी में उनसे पूछा गया कि अगर इरादा रूस को आर्थिक नुकसान पहुंचाना है, तो यह खरीदारी रोक क्यों नहीं दी जाती.

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शॉल्त्स ने जवाब में कहा, "अभी जर्मनी कोयला, तेल और गैस के आयात में रूस पर बहुत निर्भर है. हमारा लक्ष्य अपनी ऊर्जा आपूर्ति में विविधता लाकर रूस पर से निर्भरता तेजी से घटाना है. हालांकि, यह कुछ दिनों में नहीं हो सकता. रूस से अचानक आपूर्ति रोकना खतरनाक हो सकता है. तब शायद हम अपार्टमेंट, अस्पताल, केयर होम और स्कूलों को गर्म ही ना रख पाएं. कंपनियों को ऊर्जा संसाधन ना मिल पाएं. हजारों नौकरियां खतरे में पड़ जाएंगी. हमारा इरादा तेल, गैस और कोयले का आयात बंद करना नहीं, बल्कि इनके नए स्रोत खोजना है. रूस पर लगाए गए प्रतिबंध हमारे मुकाबले उसे ज्यादा नुकसान पहुंचाने के लिए बनाए गए हैं."

नॉर्ड स्ट्रीम 2 पर अनिश्चितकाल के लिए रोक लग गई हैतस्वीर: Stefan Sauer/dpa/picture alliance

शॉल्त्स की इस चिंता की गवाही जर्मनी के ऊर्जा आयात के आंकड़े देते हैं. जर्मनी साल में जितना तेल, गैस और कोयला इस्तेमाल करता है, उसका 60 फीसदी आयात करता है. 2021 में जर्मनी ने 80 अरब यूरो का जीवाश्म ईंधन और बिजली आयात किया, जो उसकी GDP के दो फीसदी से कुछ ज्यादा है. रूस के यूक्रेन पर हमला करने से पहले जर्मनी अपनी कुल जरूरत का एक तिहाई तेल, आधा कोयला और आधे से ज्यादा नेचुरल गैस रूस से आयात कर रहा था. जर्मनी यह निर्भरता जल्द से जल्द खत्म करने की योजना पर काम कर रहा है.

जर्मनी ने क्या किया

जर्मनी के वित्तमंत्री रॉबर्ट हाबेक ने बताया कि रूस के यूक्रेन पर हमला करने के बाद से ही रूस से आयात घटाना शुरू कर दिया गया है. उन्होंने बताया कि अगले कुछ हफ्तों में जर्मनी की रूसी तेल पर निर्भरता 25 फीसदी कम और कोयले पर निर्भरता 50 से घटकर 25 फीसदी हो जाएगी.

साथ ही, उन्होंने कहा कि जर्मनी की योजना सर्दियां आने तक रूसी कोयले से मुक्त होने और मौजूदा साल खत्म होते-होते रूसी तेल पर निर्भरता खत्म करने की है. मसला सिर्फ गैस को लेकर है, जिसके बारे में हाबेक ने कहा कि जर्मनी को 2024 तक रूस से गैस खरीदनी पड़ सकती है.

गैस के मामले में जर्मनी क्यों फंसा है

जर्मनी में जो गैस आयात होकर आती है, उसका 36 फीसदी उद्योग इस्तेमाल करते हैं. 31 फीसदी गैस घरों में इस्तेमाल होती है और 13 फीसदी कारोबार में खर्च होती है. गैस के साथ मसला यह है कि यह पाइपलाइन के जरिए भेजी और मंगाई जाती है. अब रूस और जर्मनी के बीच लंबे वक्त से कारोबार हो रहा था, तो पाइपलाइन का इन्फ्रास्ट्रक्चर भी है. अब अगर जर्मनी तुरंत रूस के बजाय किसी और देश से गैस खरीदना चाहे, तो उसके लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर की जरूरत होगी. गैस सप्लाई करने का तंत्र रातों-रात तो खड़ा नहीं किया जा सकता. ऐसे में जर्मनी गैस को लेकर रूस पर नरम है.

जर्मनी को घर गर्म करने से लेकर उद्योगों तक के लिए गैस की भारी जरूरत हैतस्वीर: Michael Bihlmayer/CHROMORANGE/picture alliance

कोयला और तेल तो कहीं से भी जहाजों पर पानी के रास्ते मंगाया जा सकता है. नेचुरल गैस के साथ ऐसा नहीं है. हां, नेचुरल गैस को अगर लिक्विफाई नेचुरल गैस यानी एलएनजी में बदल दिया जाए, तो इसे जहाजों के जरिए पानी के रास्ते भी पहुंचाया जा सकता है. पर इसके लिए भी बंदरगाह पर खास किस्म के इंतजाम करने होते हैं. जर्मनी दो बंदरगाहों पर ऐसे ही निर्माण को मंजूरी दे चुका है, लेकिन इनका 2026 से पहले इस्तेमाल में आना मुश्किल है.

यह भी पढ़ेंः रूस से ऊर्जा आयात को लेकर उलझन में है जर्मनी

तो जर्मनी किन देशों का रुख कर सकता है

रूस के अलावा जर्मनी नॉर्वे, कतर, अल्जीरिया और अजरबैजान से गैस खरीद सकता है या जो गैस पहले खरीद रहा है, उसे बढ़ा सकता है. स्पेन और पुर्तगाल भी इस मामले में जर्मनी के मददगार साबित हो सकते हैं. हालांकि, नॉर्वे, अल्जीरिया और अजरबैजान से जो गैस पाइप के जरिए ईयू तक आती है, उसकी आपूर्ति बढ़ाने पर इसकी कीमत रूस से खरीदी जा रही गैस के मुकाबले पांच गुना बढ़ सकती है. जाहिर है कि कोई भी देश ऐसा कदम नहीं उठाना चाहेगा, जो देश में मंदी को हवा दे.

जहां तक कतर की बात है कि इसी जरूरत की वजह से जर्मनी के वित्तमंत्री बीते दिनों कतर के दौरे पर गए थे. इसके बाद कतर और जर्मनी की कुछ कंपनियों के बीच ऊर्जा समझौते भी हुए. 'यूटिलिटीज यूनीपर' और 'RWE' समुद्र के रास्ते गैस मंगाने के लिए 'लिक्विफाइड नेचुरल गैस टर्मिनल' तैयार करने पर काम कर रहे हैं.

तो जहां तक तेल की बात है, जर्मनी कजाखस्तान, नॉर्वे और अमेरिका जैसे देशों से अपनी जरूरत पूरी कर सकता है. कोयले के लिए जर्मनी की निर्भरता अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया पर है. इसके अलावा उसे नए विकल्प खोजने होंगे. वहीं गैस के मामले में जर्मनी को अमेरिका, नॉर्वे और कतर से मदद मिल सकती है. पड़ोसी मुल्कों में आने वाली गैस भी कुछ हद तक खरीदी जा सकती है. हालांकि, आशंका यही है कि यह नाकाफी होगा.

ओलाफ शॉल्त्स ने कहा है कि वह तेल, गैस के लिए रूस पर निर्भरता खत्म कर देंगेतस्वीर: ODD ANDERSEN/AFP/Getty Images

अमेरिका से क्या मदद मिल सकती है

रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच अमेरिका की भूमिका भी अहम है. बीते दिनों अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कई यूरोपीय देशों का दौरा भी किया. उन्होंने ईयू और नाटो के सम्मेलन में भी हिस्सा लिया, जिसमें दुनिया के तमाम बड़े नेताओं का जमघट लगा था. समाचार एजेंसी रॉयटर्स के सूत्रों के मुताबिक ब्रसेल्स में हुए सम्मेलन में बाइडेन ने यूरोपीय संघ के नेताओं से वादा किया है कि अमेरिका इस साल यूरोप को पिछले समझौते से इतर 15 अरब क्यूबिक मीटर (बीसीएम) एलएनजी और देगा.

हालांकि, इसमें देखने वाली बात यह होगी कि अमेरिका की मदद यूरोप या जर्मनी के कितने काम आ सकती है. इसमें संदेह इसलिए है, क्योंकि 2021 में रूस ने ईयू को कुल 155 बीसीएम गैस की आपूर्ति की थी, जिसमें से ज्यादातर गैस पाइपलाइन के जरिए आई थी. वहीं इसी साल अमेरिका ने ईयू को 22 बीसीएम एलएनजी सप्लाई की थी. अब रूस से आपूर्ति रोकने के मुद्दे पर ईयू के सदस्य बंटे हुए हैं. अगर रूस पर प्रतिबंध लगाना है, तो इसके लिए ईयू के सभी 27 सदस्यों को इस पर सहमत होना होगा.

जानकारों का क्या है मानना

जर्मनी स्वच्छ ऊर्जा के लिए प्राकृतिक स्रोत अपनाना चाहता है, लेकिन इसमें वक्त लगेगा और इसके लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार करना होगा. रिस्क कन्सल्टेंसी वेरिस्क मैपलक्रॉफ्ट की सीनियर एनालिस्ट फ्रैंका वुल्फ कहती हैं, "जर्मनी के सामने दो मुख्य विकल्प हैं. यह मौजूदा सप्लायरों से पाइप के जरिए आने वाली गैस का आयात बढ़ाए या एलएनजी का इस्तेमाल बढ़ाए. दोनों के अपने-अपने नुकसान हैं. नॉर्वे और नीदरलैंड्स नेचुरल गैस के दूसरे और तीसरे बड़े सप्लायर हैं, लेकिन नॉर्वे में गैस का उत्पादन चरम पर है और नीदरलैंड्स उत्पादन घटाने पर विचार कर रहा है."

जर्मनी रूस से भारी मात्रा में पेट्रोलियम आयात करता हैतस्वीर: Rolf Poss/imago images

कुछ जानकार सलाह दे रहे हैं कि जर्मनी को कोयले और परमाणु ऊर्जा पर निर्भरता कुछ वक्त के लिए बढ़ानी चाहिए और गैस का इस्तेमाल घटाना चाहिए. हालांकि, यह भी तय है कि यह कोई लंबे समय के लिए उपाय नहीं हो सकता. कुछ विश्लेषक मानते हैं कि एलएनजी मंगाने का इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार होने पर इसे मंगाना मुश्किल नहीं होगा. ऐसे में जर्मनी अमेरिका और कतर जैसे देशों से नए समझौते करके समुद्र के रास्ते गैस मंगा सकता है.

हां, एक दिलचस्प बात जरूर विश्लेषकों के हवाले से सुनने को मिल रही है कि रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से वैश्विक स्तर पर एक संकट तो जरूर पैदा हुआ है. लेकिन, जर्मनी और यूरोपीय देशों ने कार्बन न्यूट्रल होने को लेकर जो लक्ष्य निर्धारित किए हैं, यह संकट इन देशों के इस दिशा में बढ़ने की रफ्तार को एक नई गति दे सकता है.

रूस दुनिया को क्या क्या बेचता है

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