जर्मनी वर्ल्ड कप से बाहर, अब कोच की छुट्टी का वक्त
मैट पियर्सन
२८ जून २०१८
2014 में जब जर्मनी ने फुटबॉल का वर्ल्ड कप जीता, तो कोच योआखिम लोएव को इसका श्रेय गया. इसमें कोई शक नहीं कि वे एक बेहतरीन कोच रहे हैं लेकिन उन्होंने गलतियां भी बहुत की हैं. अब उनकी छुट्टी का वक्त आ गया है.
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"जिम्मेदारी मेरी है" - दक्षिण कोरिया के खिलाफ मैच हार जाने के बाद ये जर्मन कोच योआखिम लोएव के शब्द थे. 1938 के बाद पहली बार ऐसा हुआ है कि जर्मनी पहले राऊंड में ही बाहर हो गया. ये एक अहम बयान था. हालांकि दोष टीम के सीनियर सदस्यों का भी रहा - सेमी केदिरा, मात्स हुमेल्स, मेसुत ओएजिल, मानुएल नॉयर और थोमस मुलर ने बेहद बुरा प्रदर्शन किया. लेकिन जिम्मेदारी फिर भी उसी व्यक्ति की बनती है जिसने टीम की अगुवाई की.
लोएव हमेशा अपनी कोर टीम का साथ देते दिखे हैं और इसे उनकी ताकत भी माना जाता रहा है. लेकिन दुर्भाग्यवश यही उनकी कमजोरी बन गया. हुमेल्स, ओएजिल और केदिरा को बुधवार को ठंडे बस्ते से बाहर निकाला गया. भले ही उनका प्रदर्शन मेक्सिको के खिलाफ खेले गए मैच की तुलना में बेहतर रहा लेकिन कुल मिला कर उनमें से कोई भी उन ऊंचाइयों को नहीं छू पाया जिसे उन्होंने चार साल पहले छुआ था.
पूरे टूर्नामेंट के दौरान खिलाड़ी सुस्त नजर आए. बस टीमो वैर्नर में थोड़ी फुर्ती देखने को मिली. साथ ही यूलियान ब्रांट ने जो थोड़ा बहुत वक्त फील्ड पर बिताया उसमें उनके प्रदर्शन की भी कुछ झलक दिखी. लेकिन मैनचेस्टर सिटी के लोरोआ सने की कमी खलती रही. माना के सने अकेले ही गेम को बदल नहीं सकते थे लेकिन उनकी मौजूदगी से टीम में कुछ बदलाव जरूर दिखता. और ये लोएव का एकमात्र गलत फैसला नहीं था. चोटिल नॉयर को भी दोबारा टीम में शामिल किया गया. वह पूरा वक्त थके हुए दिखाई दिए. दक्षिण कोरिया के फ्री-किक का भी वह ठीक तरह से सामना नहीं कर सके.
लोएव ने और भी जो फेरबदल किए वे सब उनके खिलाफ ही गए. मेक्सिको के खिलाफ ओपनर में उन्होंने केदिरा की जगह मार्को रॉयस को दे दी. इससे मिडफील्ड को भारी नुकसान पहुंचा. इसके बाद उन्होंने मार्विन प्लाटेनहार्ट की जगह मारियो गोमेस को फील्ड में भेजा. लेकिन ऐसा 79वें मिनट में हुआ. बाकी दोनों मैचों में भी यही सब देखा गया. लोएव ने या तो बहुत देर से खिलाड़ियों को बदला या फिर उनके खिलाड़ी बदलने की रणनीति पर सवाल उठते रहे और कई मामलों में तो दोनों ही बातें लागू होती हैं.
मैच खत्म हो जाने के बाद उसके बारे में सोचने से कोई फायदा तो नहीं होगा लेकिन ऐसे मौके पर आगे के बारे में सोचना भी तो जरूरी है. जर्मनी के स्टार खिलाड़ियों के भविष्य पर सवालिया निशान लग गए हैं. सने, ब्रांट, निकलास जुइले और गोरेत्सका जैसे युवा खिलाड़ी कतार में लगे हैं. और अब बदलाव का वक्त आ गया है. मैच के बाद लोएव ने कहा, "मुझे कुछ बातों को समझने के लिए कुछ घंटों की जरूरत है. हम बहुत निराश हैं. इस बारे में कल बात करेंगे." जाहिर है आने वाले दिनों में लोएव पर बहुत दबाव होगा.
पिछले 12 सालों से चली आ रही इस कहानी का यह एक दुखद अध्याय है. लेकिन अच्छी से अच्छी प्रतिभा को भी कभी ना कभी ताजगी की जरूरत पड़ती है. लोएव को बहुत देर हो जाने के बाद इस बात का अहसास हो रहा है. ये वो विदाई नहीं होगी जिसकी लोएव ने उम्मीद की होगी या जिसके वो योग्य हैं. लेकिन ये वो विदाई होगी जिसकी जर्मनी को सख्त जरूरत है.
फुटबॉल खिलाड़ियों के अजब-गजब अंधविश्वास
कोई नमक छिड़कता है, तो कोई बाल संवारता है. कोई दाहिना पैर उठाता, तो कोई जमीन चूमता है. विज्ञान कुछ भी कहे, खिलाड़ियों से लेकर टीम के कोच तक मैच जीतने के लिए न सिर्फ खेल कौशल पर, बल्कि इन बातों पर भी विश्वास जताते हैं.
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क्रिस्टियानो रोनाल्डो
पुर्तगाल के स्टार स्ट्राइकर क्रिस्टियानो रोनाल्डो अपनी मान्यताओं को पूरा करने का कोई मौका नहीं छोड़ते. रियाल मैड्रिड की टीम बस में वह हमेशा सबसे पीछे बैठते हैं. वहीं प्लेन में वह सबसे आगे की सीट लेते हैं. फुटबॉल फील्ड में वह हमेशा दाहिना पैर उठा कर घुसते हैं. इतना ही नहीं हाफ टाइम में वह अपने बाल जरूर संवारते हैं. इन सब के पीछे क्या कारण हैं, ये तो रोनाल्डो हीं जानते हैं.
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नेमार
नेमार की गिनती फुटबॉल की दुनिया के सबसे बेहतरीन खिलाड़ियों में होती है. हालांकि वह स्वयं कई मौकों पर कह चुके हैं कि क्रिस्टियानो रोनाल्डो और लियोनेल मैसी दूसरे ग्रह से आए हैं. खैर, नेमार की भी अपनी मान्यताएं कम नहीं. वह हर मैच के पहले अपने पिता को याद करते हैं. फील्ड में प्रवेश करने के लिए वह हमेशा पहले दाहिना पैर ही उठाते हैं. इसके बाद वह घास छूकर प्रार्थना भी करते हैं.
साल 1990 के विश्वकप में अर्जेंटीना के खिलाड़ी सर्जियो ने विपक्षी टीम के पेनल्टी किक को रोकने के लिए फील्ड में पेशाब करना अपनी आदत बना लिया था. यह विपक्षी टीम को असहज करने का एक तरीका था. अर्जेंटीना के इस खिलाड़ी की यह ट्रिक फाइनल मैच में पहुंचने तक तो कामयाब रही. लेकिन फाइनल में जर्मनी ने अर्जेंटीना को 1-0 से हरा कर ट्रॉफी अपने नाम कर ली.
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मानुएल नॉयर
जर्मन टीम के गोलकीपर और कप्तान नॉयर भी कुछ तरह की बातों में विश्वास करते हैं. आमतौर पर नॉयर की एक्शन साफ-सुथरा और अच्छा नजर आता है. वह मैच शुरू होने से पहले दोनों टीम के गोल पोस्ट को छूते हैं. इतना ही नहीं, सेंकड हाफ के पहले भी नॉयर ऐसा ही करते हैं.
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बास्टियान श्वाइनश्टाइगर
साल 2014 के फुटबॉल विश्वकप के हीरो रहे बास्टियान आज भी करिश्माई खेल के जादूगर माने जाते हैं. पूर्व जर्मन कप्तान अब अमेरिका की शिकागो फायर क्लब के लिए खेलते हैं. बास्टियान गीले मोजे और जूते पहनकर खेलते थे. उन्हें लगता था कि इससे उनकी टीम मैच जीत जाएगी.
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लोरां ब्लाँ और फैबियन बार्थेज
लोरां कई साल तक फ्रांस की टीम की कप्तानी संभालते रहे. हर अंतरराष्ट्रीय मैच के पहले वह अपने साथी खिलाड़ी फाबियान बार्थेज के गंजे सिर को चूमते. शायद यह टीम के लिए गुडलक लेकर आया. इसके बाद टीम कई मैच जीती, जिसके चलते टीम के अन्य खिलाड़ी भी फाबियान के सिर पर चूमने लगे. फिर क्या, सारे खिलाड़ी मैच के पहले फाबियान के गंजे सिर को चूमने के लिए लाइन लगा कर खड़े हो जाते.
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गैर्ड मुलर
फुटबॉल जूते हमेशा फिट होने चाहिए. लेकिन पूर्व जर्मन खिलाड़ी मुलर मैच में हमेशा अपने साइज से तीन साइज बड़े जूते पहनते. उनका मानना था कि वे इस तरह से अपने पैर का बेहतर इस्तेमाल कर पाते हैं. वहीं ऑस्ट्रियाई खिलाड़ी योहान एटमायर हमेशा अपने साइज से छोटे जूते पहन कर खेलने पर जोर देते थे. उनका कहना था जूते को पैरों में कंडोम की तरह फिट होना चाहिए.
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गैरी लिनेकर
गैरी इंग्लैंड में फुटबॉल का एक जाना-माना चेहरा रहे हैं. 80 के दशक में इनका नाम इंग्लैंड के शानदार स्ट्राइकर में शामिल रहा. लिनेकर वॉर्मअप सेशन के दौरान गोल नहीं करते थे. उनका मानना था कि अगर वह ऐसा करेंगे तो असल मैच में गोल नहीं कर सकेंगे.
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एरिक काँतोना
अमूमन डॉक्टर फुटबॉल खिलाड़ियों को मैच के पहले सॉना स्नान या गर्म पानी से नहाने से मना करते हैं. डॉक्टरों के मुताबिक गर्म पानी का स्नान खिलाड़ियों के लिए नुकसानदायक हो सकता है. लेकिन फ्रेंच खिलाड़ी एरिक डॉक्टरों की इस सलाह को दरकिनार करते हुए मैच के दिन सुबह तकरीबन 8 बजे पांच मिनट गर्म पानी में जरूर नहाते.
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रियाल मैड्रिड
आज रियाल मैड्रिड के लिए दुनिया का कोई भी खिताब पाना बड़ी बात नहीं है. टीम ने 2018 की चैपिंयस ट्रॉफी भी अपने नाम की है. लेकिन 1912 में टीम के लिए ये मुकाबले आसान नहीं थे. पांच साल तक टीम ने कोई मैच नहीं जीता था. अपनी हार के फेर को खत्म करने के लिए टीम ने फुटबॉल मैदान के बीच में एक लहसुन को गाड़ दिया. यकीन मानिए, इस सीजन में टीम ने स्पेनिश क्लबों की लीग कोपा डेल रे जीत ली.
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रोमेयो अंकोनितानी
रोमेयो इटली के एसी पीसा क्लब में 1978 से 1994 तक कप्तान रहे. उनका मानना था कि नमक की उनकी टीम की जीत में अहम भूमिका है. वह मैच के पहले फील्ड पर नमक डालते थे. जितना अहम मैच, फील्ड पर उतना ज्यादा नमक. एक मौके पर टीम विपक्षी टीम के साथ बहुत ही अहम मुकाबले में उलझी थी, उस वक्त अंकोनितानी ने फील्ड पर 26 किलो नमक डाल दिया.
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मारियो जगालो
ब्राजील के पूर्व खिलाड़ी और कोच मारियो का 13 नंबर के साथ अटूट प्रेम था. मिस्र के सेंट एंटोनी की मारियो पूजा करते थे. मारियो एक बिल्डिंग के 13वें माले पर रहते थे. उन्होंने महीने की 13 तारीख को शादी की थी. जब वह फुटबॉल खेलते थे, तो हमेशा 13 नंबर की जर्सी पहनते थे. साल 1994 में मारियो की कप्तानी में ब्राजील की टीम ने विश्वकप अपने नाम किया था.
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कार्लोस बिलार्डो
1986 में अर्जेंटीना के कप्तान कार्लोस बिलार्डो ने अपनी टीम को पोल्ट्री आइटम मसलन चिकन, अंडे आदि खान से मना कर दिया था. वे इसे अपशगुन मानते थे. वह हर मैच से पहले खिलाड़ियों को टूथपेस्ट के ट्यूबों का आदान-प्रदान करने के लिए भी कहते, क्योंकि उन्होंने जिस मैच के पहले एक साथी खिलाड़ी से टूथपेस्ट उधार ली थी, टीम वह मैच जीत गई थी. खैर, अर्जेंटीना विश्वकप तो जीत ही गया था.
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जोवानी त्रापातोनी
महान इतालवी कोच जोवानी त्रापातोनी को लेकर कहा जाता है कि वह काफी अंधविश्वासी थे. यह भी माना जा सकता है वह काफी धार्मिक थे. अपनी टीम को फील्ड में भेजने से पहले वह पवित्र जल उस फील्ड पर छिड़कते थे. उनकी बहन नन थी.
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योआखिम लोएव
जर्मन टीम के फुटबॉल कोच योआखिम लोएव भी लकी चार्म में विश्वास करते हैं. सालों तक नीला स्वेटर उनका पसंदीदा बना रहा. उनकी इस पसंद की साल 2010 के विश्वकप में कई फुटबॉल फैंस ने जमकर नकल भी की. नतीजतन, कई दुकानों में ऐसा नीला स्वेटर खत्म हो गया. चैंपियनशिप के बाद उन्होंने यह असली स्वटेर डीएफबी सॉकर म्यूजियम को दान कर दिया. वह आज भी नीले रंग में नजर आते हैं.