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जर्मनी से सीखें, नदियों को जीवित करना

२८ जून २०११

भारत में नदियों को साफ करने की परियोजनाएं पता नहीं कितने सालों से चल रही है लेकिन जर्मनी में इसकी कामयाब मिसालें हैं जब नदियों और झीलों को साफ किया गया है. वैज्ञानिक मानते हैं कि ईमानदार कोशिशें नदियों को जीवन देती हैं.

राइन नदीतस्वीर: picture-alliance / Bildagentur Huber

बवेरिया प्रांत में जर्मनी की सबसे बड़ी झीलों में शामिल कॉन्सटेंस लेक को भी सफलतापूर्वक प्रदूषणमुक्त किया गया है, जिसका पानी अब इतना साफ है कि इसे बिना किसी ट्रीटमेंट के ही पिया जा सकता है.

भारत में गंगा सफाई परियोजना पर करोड़ों रुपये और कई बरस लग गए लेकिन गंगा साफ नहीं हुई, बल्कि और मैली हो गई. पर्यावरण जानकार इसके लिए संघर्ष कर रहे हों लेकिन एक बड़ा तबका कहने लगा है कि गंगा की सफाई संभव नहीं है. पर ऐसा नहीं है. जर्मनी में इसकी मिसाल है कि किस तरह नदी या झील के पानी को साफ किया जा सकता है. भौतिकशास्त्री प्रोफेसर मैक्स जी ह्यूबर बताते हैं, "यहां नाटकीय बदलाव देखा गया. यह पूरे क्षेत्र के लिए बड़ी चुनौती थी क्योंकि दस लाख लोग इस झील के आस पास रहते हैं और करीब चालीस लाख लोग यहां का पानी पीते हैं."

कॉन्सटेंस लेकतस्वीर: AP

साफ पानी की झील कॉन्सटेंस लगभग 16,000 साल पुरानी है और उसमें 40 प्रजाति की मछलियां पाई जाती हैं. हर साल करीब एक हजार टन मछलियां मारी जाती हैं, जिनका मजा झील किनारे मशहूर रेस्त्रां में लिया जा सकता है. लेकिन 30-40 साल पहले यह झील बुरी तरह प्रदूषित हो गई. औद्योगिक और घरेलू कचरे की वजह से पानी गंदा हो गया और साफ पानी में रहने की आदी मछलियां खत्म होने लगीं. पर प्रशासन और वैज्ञानिकों ने मिल कर झील को बचा लिया. 63 किलोमीटर लंबी और लगभग 15 किलोमीटर चौड़ी झील को प्रदूषण मुक्त किया गया.

प्रोफेसर ह्यूबर का कहना है. "सबसे पहले तो इसके लिए नियम बनाए जाने की जरूरत है. कानूनी तौर पर. आपको पता होना चाहिए कि क्या करना है और क्या नहीं. खास तौर पर खेती बाड़ी और केमिकल इंडस्ट्री के मामले में. दूसरा लोगों की जागरूकता जरूरी है."

चूंकि यह झील जर्मनी, स्विटजरलैंड और ऑस्ट्रिया तीन देशों की सीमा पर स्थित है, लिहाजा तीनों देशों ने मिल कर झील के संरक्षण की योजना बनाई. कॉन्सटेंस झील के लिए अंतरराष्ट्रीय जल संरक्षण एजेंसी यानी आईजीकेबी बनाई गई, जिसकी मदद से झील को साफ किया गया. इसे साफ करने के लिए फीजिक्स, केमिस्ट्री और बायोलॉजी के साथ साथ दूसरी बारीकियों को भी ध्यान में रखा गया. लोग मिल कर काम करने के लिए तैयार हुए. विज्ञान, तकनीक और इंजीनियरिंग का मिला जुला इस्तेमाल हुआ. उसके बाद वित्तीय समस्या और कानूनी पहलुओं से निपटा गया. और इस तरह मुश्किल सुलझी.

गोमुख के पास भागीरथीतस्वीर: CC/Sandip Sengupta

बरसों की मेहनत और करोड़ों यूरो खर्च करने के बाद झील का पानी एक बार फिर साफ हो गया है. मछलियां लौट आई हैं और सैलानियों का जायका बढ़ गया है. अब तो कॉन्सटेंस झील का पानी इतना साफ है कि चालीस लाख लोगों को यहीं से पीने का पानी मिलता है. झील से पीने का पानी बिना किसी ट्रीटमेंट के आस पास के शहरों श्टुटगार्ट, फ्राइबुर्ग और मनहाइम में सप्लाई किया जाता है. प्रोफेसर ह्यूबर कहते हैं कि जर्मनी को झील की सफाई पर गर्व है और वे अपनी तकनीक दूसरे देशों को भी देने के लिए तैयार है.

"हम अपनी जानकारी और अनुभव बांटने को तैयार हैं. जो भी इसमें रुचि दिखाता है, चाहे वह आपके देश (भारत) का हो या चीन का या कहीं और का. चाहे मेकांग डेल्टा की बात हो या कहीं और की. हम बहुत खुश होंगे अगर हमें अपनी एक्सपर्टीज बांटने का मौका मिले और जो तकनीक हमने विकसित किया है, वह जरूरतमंद लोगों के काम आए."

हालांकि जल संरक्षण में तकनीक और राजनीतिक फैसले के साथ जनता की इच्छाशक्ति और जागरूकता का भी बड़ा रोल होता है. यह खर्चीला भी है लेकिन जनता इतनी तो समझदार जरूर है कि वह कूड़ा कचरा झील के पास नहीं फेंकती और न ही अपने कपड़े धोती है.. हां, अगर तैराकी का शौक है, तो शहर के अंदर भी झील में लोग तैरते नजर आ जाएंगे.

रिपोर्ट: अनवर जे अशरफ, लिंडाऊ (जर्मनी)

संपादन: ओ सिंह

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