जर्मनी को एक नया आदर्श मिला जब एक युवती ने अपनी जिंदगी खो दी. तुर्क मूल की टूचे की लड़कियों को बचाने के दौरान चोट लगने से मौत हो गई. डॉयचे वेले की वेरिचा श्पासोव्स्का का मानना है कि टूचे की मौत जाया नहीं जाएगी.
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साहसी छात्रा टूचे अलबायराक को कमजोर लोगों की मदद की कीमत जान देकर चुकानी पड़ी. वह एक लड़की को गुंडों से बचाने के चक्कर में खुद हिंसा का शिकार बन गई. बर्बर हमले में लगी चोट के कारण 23वें जन्मदिन के दिन टूचे की मौत हो गई. सारा जर्मनी इस साहसी और जिंदादिल लड़की की मौत का शोक मना रहा है. सारा जर्मनी उसके सामने आदर के साथ नतमस्तक है.
मौत की शाम उस अस्पताल के सामने हजारों लोगों ने मौन प्रदर्शन किया, जिसमें टूचे का इलाज चल रहा था. लाखों लोगों ने सोशल मीडिया में अपनी सहानुभूति और सराहना का इजहार किया. जर्मन राष्ट्रपति योआखिम गाउक ने टूचे के माता पिता को पत्र लिख कर न सिर्फ अपने शोक का इजहार किया, बल्कि वे टूचे को उनके साहस के लिए मरणोपरांत देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भी देने पर विचार कर रहे हैं.
डोमिनिककामामला
युवा टूचे की मौत ने पांच साल पहले हुए इस तरह के एक और मामले की याद ताजा कर दी है. उस समय मैनेजर डोमिनिक ब्रूनर ने एक सिटी ट्रेन में स्कूली बच्चों को बचाने की कोशिश की थी लेकिन खुद उन्हें पीट पीट कर मार डाला गया था. कमजोर की रक्षा में जान गंवाने के इस मामले के बाद जर्मनी में कई हफ्तों तक किसी को बचाने के लिए हिम्मत दिखाने के महत्व पर बहस छिड़ गई थी. डोमिनिक ब्रूनर के लिए भी सहानुभूति और आदर की लहर फैल गई थी.
कल की तरह आज भी हर कोई यह सवाल कर सकता है कि किसी को खतरे में देखकर उसकी क्या प्रतिक्रिया होगी? क्या वह हिम्मत दिखाने और जोखिम उठाने का खतरा मोल लेगा? उस समय की तरह आज भी ज्यादातर लोगों की राय है कि भले ही कीमत कितनी भी ज्यादा हो, बीच बचाव करना जरूरी है. ब्रूनर का मामला बहुत जल्द सुर्खियों से बाहर हो गया था, क्या टूचे का मामला भी जल्द ही भुला दिया जाएगा? उम्मीद है कि ऐसा नहीं होगा. दोनों मामलों के एक जैसा होने के बावजूद टूचे के मामले में एक और बात की भूमिका है, टूचे की त्रासद मौत में एक संभावना है क्योंकि यह आप्रवासियों की नकारात्मक बहस में हमारा नजरिया बदल सकता है.
घुलेमिलेआप्रवासी
जर्मनी में अक्सर आप्रवासियों की बहस में समस्याएं प्रमुख होती हैं, छोटे समूहों की चर्चा होती है, ऐसे आप्रवासियों की जो समाज में घुलना मिलना नहीं चाहते, समांतर समाज में जीते हैं. लेकिन इस बार समाज का एक आदर्श आप्रवासी पृष्ठभूमि का था. तुर्क मूल की एक युवती, जो टीचर बनना चाहती थी और समाज में आगे बढ़ना चाहती थी. एक स्टूडेंट जिसने एक दूसरे के साथ शांतिपूर्ण व्यवहार का रास्ता अपनाया था.
विदेशी मूल के एक बड़े समूह का प्रतिनिधि जो जर्मनी के सामाजिक विकास में अहम भूमिका निभा रहा है. और जर्मनी को जिसका भारी फायदा पहुंच रहा है, आबादी के लिहाज से, आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से. कई सारे सर्वे इसकी पुष्टि करते हैं. लेकिन आंकड़ों और तथ्यों का आम तौर पर भावनात्मक सार्वजनिक बहस में कोई असर नहीं होता. हमें एकल घटनाएं प्रभावित करती हैं. इस मामले में एक साहसी, सुंदर और युवा तुर्क जर्मन महिला है जिसे जर्मनों के दिल में जगह मिली है.
जांबाज छात्रा को जर्मनी का सलाम
जर्मनी के एक रेस्तरां में संकट में फंसी दो लड़कियों को बचाने के लिए आगे आने वाली 23 वर्षीय छात्रा टूचे ए की इस घटना में लगी चोट के कारण मौत हो गई है. इस बहादुर लड़की की मौत से पूरा जर्मनी सदमे में है.
तस्वीर: Getty Images/R. Orlowski
नम आंखों से कहा अलविदा
जर्मनी में तुर्क मूल की 23 वर्षीय छात्रा टूचे अलबायराक के अंतिम संस्कार में हिस्सा लेने भीड़ उमड़ पड़ी. नम आंखों से लोगों से जांबाज को विदाई दी.
तस्वीर: Reuters//K. Pfaffenbach
उमड़ी भीड़
मस्जिद के बाहर लोगों ने टूचे की याद में फूलमालाएं चढ़ाईं. शोक समारोह में शामिल होने 20 बसों में सवार होकर लोग पहुंचे.
तस्वीर: Getty Images/R. Orlowski
जान पर खेलकर की मदद
शनिवार सुबह पुलिस ने इस बहादुर छात्रा की मौत की पुष्टि की. फ्रैंकफर्ट के पास ओफेनबाख शहर के अस्पताल के बाहर जमा लोग जांबाज की मौत से बेहद सदमे में हैं. टूचे की मौत उसके 23वें जन्मदिन पर हुई. उन्हें अपनी जान गंवानी पड़ी क्योंकि वे मदद करना चाहती थी.
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मोमबत्ती जलाकर श्रद्धांजलि
जिस अस्पताल में टूचे का इलाज चल रहा था उसके बाहर करीब 1500 लोग इकट्ठा हुए और उसकी याद में फूल रखे और मोमबत्तियां जलाकर श्रद्धांजलि अर्पित की. टूचे मूल रूप से तुर्की की रहने वाली थी.
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दिल पर पत्थर रखकर फैसला
ओफेनबाख पुलिस के मुताबिक शुक्रवार रात छात्रा को जीवन रक्षक प्रणाली से हटाने का फैसला किया गया. जीवन रक्षक प्रणाली से हटाने के बाद छात्रा की मौत शनिवार को हो गई. टूचे के माता पिता ने यह फैसला तब लिया जब डॉक्टरों ने उसे ब्रेन डेड घोषित कर दिया.
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गहरा सदमा
जर्मन राष्ट्रपति योआखिम गाउक और हेसे प्रांत की सरकार ने टूचे के परिवार को अपनी संवेदनाएं भेजी हैं. मुख्यमंत्री फोल्कर बॉउफिये और उप मुख्यमंत्री तारीक अल वजीर ने कहा, "एक बेटी को खोना भयानक है जिसके सामने पूरी जिंदगी पड़ी थी."
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रेस्तरां में झगड़ा
दो हफ्ते पहले पश्चिम जर्मनी की गिजेन यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाली छात्रा पर एक नौजवान ने हमला कर दिया था जिसके बाद टूचे जमीन पर गिर गई. चोट लगने के कारण टूचे कोमा में चली गई और फिर कभी नहीं लौटी. टूचे लड़कियों की मदद करने की कोशिश कर रही थी.
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आरोपी की चुप्पी
पूरी वारदात सीसीटीवी कैमरे में कैद हो गई है. अभियोजन पक्ष के मुताबिक पहली पूछताछ में आरोपी ने चोट पहुंचाना कबूल किया था. उसके बाद से ही उसने चुप्पी साध ली है और अब आरोपी से इस मामले में पूछताछ हो रही है कि उसने शारीरिक नुकसान पहुंचाया जिस कारण छात्रा की मौत हो गई.
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सहानुभूति और एकता
ओफेनबाख में सना क्लिनिक के बाहर जमा हुए लोग टूचे की याद में तख्तियां लेकर आए थे. एक तख्ती पर संदेश लिखा, "आज हम सब टूचे हैं."
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ऑर्डर ऑफ मेरिट की मांग
हजारों लोगों ने सोशल मीडिया पर अपने दुख और अविश्वास का इजहार किया. फेसबुक पर खास पेज बनाया गया है, जिसे अब तक एक लाख पच्चीस हजार से ज्यादा लाइक मिल चुके हैं. जर्मनी के ऑर्डर ऑफ मेरिट मरणोपरांत से सम्मानित करने वाली इंटरनेट याचिका पर पचास हजार से ज्यादा हस्ताक्षर किए जा चुके हैं.