बैर्टल्समन फाउंडेशन का एक सर्वे बताता है कि सभी धर्मों के 89 फीसदी लोग मानते हैं कि लोकतांत्रिक व्यवस्था सरकार के लिए अच्छी होती है. वहीं तकरीबन 50 फीसदी लोगों ने इस्लाम को लेकर चिंता जताई है.
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बैर्टल्समन फाउंडेशन की अर्द्धवार्षिक रिपोर्ट, "रिलीजन मॉनीटर" में छपे सर्वे के मुताबिक जर्मनी में धार्मिक सहिष्णुता अब भी कायम हैं. वहीं इस्लाम को लेकर लोग मुश्किलें महसूस करते हैं और लोगों में इसे लेकर नकारात्मकता है. आप्रवासन और वैश्वीकरण के चलते जर्मनी में धार्मिक विविधता बढ़ी है. इस स्टडी में ये भी निकल कर आया है कि लोगों का अब भी लोकतंत्र पर विश्वास बरकरार है.
इस स्टडी के लेखक और धार्मिक समाजशास्त्री ग्रेट पिकेल मानते हैं, "किसी भी धर्म के सदस्य अच्छे डेमोक्रेट बन सकते हैं." सर्वे में शामिल तीन समूहों में विभाजित किए गए लोगों में से तीनों ने लोकतांत्रिक व्यवस्था पर भरोसा जताया है. पहले समूह में शामिल ईसाईयों में से 93 फीसदी ने लोकतंत्र को बेहतरीन व्यवस्था माना. वहीं 91 फीसदी मुसलमानों और 83 फीसदी अन्य धर्म के लोगों ने भी लोकतंत्र पर भरोसा जताया.
स्टडी में यह भी कहा गया है कि कठोर धार्मिक मान्यताएं, अन्य धर्मों के प्रति असहिष्णुता लंबे समय में लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए खतरा हो सकती हैं. स्टडी के लेखकों ने इस बात पर चिंता जरूर जताई कि सर्वे के लिए इंटरव्यू किए गए कुल लोगों में तकरीबन आधों ने इस्लाम को एक खतरा बताया.
जर्मनी के पू्र्वी हिस्से में कम मुस्लिम आबादी है. पूर्वी इलाकों में रहने वाले लोगों के मन में इस्लाम को लेकर संकीर्ण भावनाएं भी हैं. सर्वे में कहा गया है कि पूर्व में रहने वाले 30 फीसदी लोगों ने कहा कि वे मुस्लिम समुदाय को अपने आस-पड़ोस में नहीं देखना चाहते हैं. वहीं पश्चिमी इलाकों में रहने वाले 16 फीसदी लोगों ने भी यही बात कही.
जर्मनी में सेंट्रल काउंसिल ऑफ मुस्लिम के अइमान मत्सियेक ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा कि उन्हें तो ऐसी स्टडी में इस्लाम के खिलाफ और भी खराब नतीजों की उम्मीद थी. उन्होंने बताया कि समस्या का एक हिस्सा ये है कि पूर्व में धुर दक्षिणपंथी और पॉपुलिस्ट नेता ज्यादा लोकप्रिय हैं जो इस्लाम को लेकर झूठा प्रचार करते हुए उसे कोई धर्म नहीं बल्कि एक विचारधारा बताते हैं. मत्सियेक का ये भी मानना है कि ऐसे नेता लोगों के सामने इस्लाम को एक ऐसी विचारधारा के रूप में पेश करते हैं जो कि पश्चिमी संस्थानों के आदर्शों से उलट है.
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक जर्मनी में करीब 50 लाख मुसलमान रहते हैं. जर्मनी के पश्चिमी राज्य नार्थ राइन-वेस्टफेलिया में सबसे अधिक 15 लाख मुसलमान रहते हैं. हालांकि स्टडी से जुड़ी बैर्टल्समन फाउंडेशन की यास्मीन एल-मेनोर कहती हैं कि इस्लाम को लेकर व्यक्त किए गए संदेह को इस्लामोफोबिया नहीं समझा जाना चाहिए क्योंकि अगर ऐसा होता तो केवल 13 फीसदी लोग ही आप्रवासियों को रोकने के पक्ष में नहीं होते.
जर्मनी की सबसे बड़ी मस्जिद कोलोन शहर में है. कंट्रीट और कांच से तैयार इस मस्जिद को मेल मिलाप के प्रतीक के तौर पर बनाया गया था, लेकिन यह बड़े विवाद की जड़ बन गई है.
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फूल की कली
मस्जिद के निर्माण में कांच का इस्तेमाल खुलेपन का संदेश देने के लिए किया गया है, ताकि सभी धर्मों के लोग यहां आ सकें. कांच और कंट्रीट से तैयार मस्जिद का गुंबद किसी फूल की कली जैसा लगता है. मस्जिद परिसर में 55 मीटर ऊंची दो मीनारें भी हैं.
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अलग अलग संस्कृतियां
मस्जिद कोलोन शहर के एरेनफेल्ड इलाके में है. यह इलाका कभी कामगार तबके के लोगों का गढ़ था. लेकिन अब इस इलाके में नामी गिरामी कलाकार रहते हैं. यहां कई मशहूर गैलरियां और थिएटर हैं. यहां रहने वाले 35 प्रतिशत लोग विदेशी मूल के हैं.
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प्रभावशाली प्लान
मस्जिद के निर्माण में बहुत सारे मुस्लिम संगठनों ने मदद दी. इसके अलावा जर्मनी में तुर्क सरकार के धार्मिक मामलों के संगठन डिटिब से भी मदद मिली. कोलोन की नगरपालिका ने 2008 में इसे मंजूरी दी, हालांकि चांसलर मैर्केल की सीडीयू इसके खिलाफ थी.
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हट गए आर्किटेक्ट
के निर्माण का कॉन्ट्रैक्ट 2005 में जर्मन आर्किटेक्ट पॉल बोएम को मिला, जिन्हें चर्चों के निर्माण में महारथ है. उन्होंने इस इमारत को सहिष्णुता का प्रतीक समझा. लेकिन बाद में डिटिब के साथ उनके मतभेद हो गए और 2011 में वह इस प्रोजेक्ट से हट गए.
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2017 में खुले दरवाजे
मस्जिद के दरवाजे नमाजियों के लिए पहली बार 2017 में रमजान के महीने में खोले गए. लेकिन इसका आधिकारिक उद्घाटन तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैयप एर्दोवान ने सितंबर 2018 में किया. हालांकि इस मौके पर शहर में एर्दोवान के विरोध और समर्थन में बड़ी रैलियां हुईं.
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1,200 नमाजियों के लिए जगह
मस्जिद में नमाज पढ़ने के लिए ग्राउंड के अलावा एक अपर फ्लोर भी है. यहां पर एक समय में 1,200 लोग नमाज पढ़ सकते हैं. यहां पर एक इस्लामी लाइब्रेरी भी है. यहां कई दुकानें और स्पोर्ट्स सेंटर भी हैं ताकि विभिन्न धर्मों के लोगों के बीच आपसी संवाद को बढ़ाया जा सके.
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नई स्काईलाइन
शुरू में कई लोगों ने मस्जिद के निर्माण का विरोध किया था. उन्हें डर था ऊंची ऊंची मीनारों से "ईसाई शहर" कोलोन की स्काईलाइन बदल जाएगी. उस वक्त कोलोन के आर्कबिशप कार्डिनल योआखिम माइसनर ने भी इस प्रोजेक्ट को लेकर अपनी "असहजता" जाहिर की थी.
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मस्जिद का विरोध
धुर दक्षिणपंथियों ने इस मुद्दे को लपका और जर्मनी में मुसलमानों के घुलने मिलने को लेकर एक नई बहस छेड़ दी. लेखक राल्फ जोरडानो ने कहा कि यह मस्जिद "जर्मनी में तेजी से फैलते इस्लामीकरण की एक अभिव्यक्ति" होगी. मस्जिद के खिलाफ कई बड़े प्रदर्शन हुए.
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इमाम या जासूस?
2017 में जर्मन अधिकारियों ने डिटिब के इमामों की गतिविधियों को लेकर जांच शुरू की. तुर्की में शिक्षित इमाम तुर्की की सरकार के कर्मचारी होते हैं. मस्जिद के कर्मचारियों पर संदेह था कि वे तुर्की की सरकार को जर्मनी में रहने वाले तुर्कों के बारे में जानकारी देते हैं.