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कानून और न्याय

जर्मन अदालत ने महिलाओं को बदनाम करने को बताया ‘हेट स्पीच’

१६ जून २०२०

एक जर्मन कोर्ट ने अपने आदेश में साफ किया है कि देश के हेट स्पीच कानून में महिलाओं को बदनाम करने की कोशिशें भी शामिल हैं. मामला एक ऐसे पुरुष का था जो अपनी वेबसाइट पर महिलाओं को “दोयम दर्जे" वाली और “कमतर” बताया करता था.

Deutschland - Protest gegen Sexismus in Hamburg
तस्वीर: picture alliance/dpa/C. Charisius

कोलोन के अपील कोर्ट के जज ने अपने आदेश में कहा कि विश्व-युद्ध खत्म होने के बाद जर्मनी में घृणा भाषण या भड़काने वाले भाषण के खिलाफ बने कानूनों के अंतर्गत महिलाओं कों भी सुरक्षा मिलती है, जिन्हें महिला होने के कारण अपमान का सामना करना पड़े. जज ने कानून की व्याख्या करते हुए कहा कि इसका सबसे बड़ा मकसद मानव गरिमा की रक्षा करना है.

अपील कोर्ट में जज के सामने जो मामला था वह एक ऐसे पुरुष के बारे में था जिस पर आरोप है कि वह अपनी वेबसाइट पर महिलाओं के बारे में लिखते हुए उन्हें "दोयम दर्जे" वाली, "जानवरों जैसी" और "कमतर इंसान” बताता था. इसकी शिकायत पर पहले तो एक निचली अदालत ने उस पर जुर्माना लगाया फिर बॉन की अपील कोर्ट में जाकर उससे भी छुटकारा पा चुका था. फिर कोलोन के अपील कोर्ट में पहुंचे मामले में जज के इस ताजा फैसले के बाद अब इस केस को बॉन शहर के हाई कोर्ट में दोबारा सुनवाई के लिए भेज दिया गया है. निचली अदालत ने माना था कि जर्मन दंड संहिता के अनुच्छेद 130 में हेट स्पीच के खिलाफ अल्पसंख्यकों को तो सुरक्षा दी गई है लेकिन उसमें महिलाओं का कोई जिक्र नहीं है.

एक समूह के रूप में महिलाओं पर भी लागू

इससे सहमत ना होते हुए कोलोन की उच्च स्थानीय अदालत ने कानून की व्याख्या करते हुए बताया कि कानून आबादी के ऐसे किसी भी हिस्से को सुरक्षा देता है जिसे भेदभाव का शिकार होना पड़े और इस संदर्भ में महिलाएं भी शामिल हैं. अदालत ने अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक होने की समय और परिस्थिति के साथ बदलती परिभाषा का भी जिक्र किया क्योंकि संख्या के लिहाज से तो जर्मनी में महिलाएं पुरुषों से ज्यादा हैं (52:48 का अनुपात).

जर्मनी के सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य नॉर्थराइन वेस्टफेलिया की तीन सबसे बड़ी अदालतों में शामिल कोलोन कोर्ट ने आरोपी द्वारा अपनी वेबसाइट के होमपेज पर महिलाओं को "गौण या "अधीन” बताने को बराबरी के सिद्धांत का उल्लंघन और मानव गरिमा पर हमला बताया. अगर अगली अदालत ने भी इसे घृणा भाषण माना तो आरोपी को किसी समूह विशेष को भड़काने के लिए 3 महीने से लेकर 5 साल तक की सजा सुनाई जा सकती है. अब तक देश में ऐसे ज्यादातर मामले अल्पसंख्यकों के खिलाफ दक्षिणपंथी घृणा भाषण के ही रहे हैं.

आरपी/एए (डीपीए, एएफपी)

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