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समाज

जर्मन एकीकरण का तराना भारतीय संगीतकारों के सुर में

महेश झा
२ अक्टूबर २०२०

जर्मन एकीकरण को तीस साल पूरे हो गए. इस मौके पर भारत में जर्मन राजदूत वाल्टर लिंडनर ने बर्लिन दीवार गिरने के समय मशहूर रहे गाने विंड ऑफ चेंज गाने को भारतीय संगीतकारों के साथ रिकॉर्ड किया है.

Feier der deutschen Wiedervereinigung vor dem Berliner Reichstag
तस्वीर: picture-alliance/dpa

जब 1989 में बर्लिन की दीवार गिरी तो वह आकस्मिक घटना थी. बहुत से लोगों को इस दिन का इंतजार था और वे इस दिन को लाने के लिए संघर्ष कर रहे थे लेकिन जब दीवार गिरी वह घटना कल्पना से परे थी. उस दिन किसी ने भी नहीं सोचा था कि एक साल के अंदर द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद से विभाजित जर्मनी का एकीकरण हो जाएगा. तत्कालीन जर्मन चांसलर हेल्मुट और उनकी टीम के प्रयासों से अगले सात महीनों के अंदर ही बहुत सारी बाधाएं दूर कर ली गईं और एकीकरण तय हो गया. 3 अक्तूबर 1990 को एकीकरण का दिन तय किया गया दिन था और वह जर्मनी के लिए तो बदलाव लेकर आया ही था, पूरे यूरोप और दुनिया के लिए भी उम्मीदें लेकर आया था.

तत्कालीन सोवियत संघ और यूरोप में बदलाव की हवा कई महीनों से चल रही थी. जर्मन एकीकरण और शीतयुद्ध की समाप्ति उसकी पराकाष्ठा थी. जर्मन रॉकबैंड स्कॉर्पियंस बैंड के क्लाउस माइने ने मॉस्को की यात्रा के बाद विंड ऑफ चेंज गाना लिखा था. यह गाना उस जमाने का राष्ट्रगान बन गया. अब तीस साल बाद इस गाने को जर्मन राजदूत वाल्टर लिंडनर ने भारतीय संगीतकारों के साथ मिलकर, भारत में फिर से रिकॉर्ड किया है, वाल्टर लिंडनर खुद संगीतकार है और आज कहते हैं कि यदि कोई गाना उस समय के माहौल का वर्णन करता है तो वह यही गाना है.

राजदूत वाल्टर जे लिंडनरतस्वीर: picture-alliance/dpa/K. Nietfeld

जब दीवार गिरी तो वाल्टर लिंडनर तो जर्मन विदेश मंत्रालय में राजनयिक के तौर पर काम शुरू कर चुके थे और जब एकीकरण हुआ तो वे नए एकीकृत देश का दुनिया में प्रतिनिधित्व करने के लिए तैयार थे. उसके दस साल पहले ही अपने प्यारे भारत का दौरा कर चुके थे, छात्र के रूप में. भारत के रंगों ने, उसके संगीत ने और उसकी लय ने उनका दिल जीत लिया था. इसलिए जब दशकों बाद उन्हें भारत में राजदूत बनाया गया तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा. सबसे पहले उन्होंने पूरे भारत का दौरा किया. और हर उम्र के भारतीय संगीतकारों से फिर से संपर्क किया.

वे आज भी दिल से अपने को संगीतकार ही मानते हैं. इसलिए स्वाभाविक था कि अपने करियर की शुरुआत के विश्वगान को वे फिर से याद करते. इस गाने को रिक्रिएट करने का विचार कैसे आया, यह पूछे जाने पर जर्मन राजदूत ने डीडब्ल्यू हिंदी को बताया, "मई जून में ही साफ हो गया था कि एकीकरण की वर्षगांठ पर सभा का आयोजन संभव नहीं होगा. मैं किसी वेबिनार, डिजिटल वर्कशॉप या इंटरनेट क्विज का आयोजन नहीं करना चाहता था."

मॉस्को में क्लाउस माइने का कंसर्टतस्वीर: picture-alliance/dpa/J. Kalaene

तो फिर संगीत की बाकायदा ट्रेनिंग पाए राजदूत के लिए ऐतिहासिक गाने को स्थानीय कलाकारों का साथ लेकर प्रोड्यूस करने से बेहतर आइडिया क्या हो सकता था. आइडिया तो आ गया था, अब उस पर अमल कैसे हो. वाल्टर लिंडनर बताते हैं, "पहला कदम था गीत के कंपोजर क्लाउस माइने से ओके लेना." ये काम किसी राजदूत के लिए इतना मुश्किल नहीं है. असल काम था म्यूजिक कंपोज करना. कोरोना का लॉकडाउन चल रहा था, भारत में और सख्ती थी, फिर कलाकारों को इकट्ठा करना था, वीडियो बनाना था. वाल्टर लिंडनर बताते हैं, "मैंने बेसिक ट्रैक अपने स्टूडियो में रिकॉर्ड किए, सारे इंस्ट्रूमेंट खुद बजाए, ड्रम न्यूयॉर्क के एक दोस्त ने बजाया. फिर गाने को ऐसे एरेंज करना था कि भारतीय इम्प्रोवाइजेशन की संभावना रहे, फिर संगीतकारों का बंदोबस्त करना था और फिर लीड गायक को चुनना था.”

 

गायकी में सात साल से सक्रिय पंक गायक चेतन अवस्थी भी हैं जो म्यूजिक सर्किल में चेजिन के नाम से जाने जाते हैं. उनके लिए इस प्रोजेक्ट का हिस्सा बनना तो जैसे सपने का सच होना था. वे पश्चिमी संगीत सुनते रहे हैं और स्कॉर्पियन के फैन हैं. स्कॉर्पियन के एक गाने का हिस्सा होने के बारे में वे कहते हैं, "ये मेरे लिए बड़े सम्मान की बात है.” गाने के लिए चेतन को बहुत तैयारी नहीं करनी पड़ी, क्योंकि वे इसे सालों से सुनते आ रहे थे. उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती रिकॉर्डिंग की थी. लॉकडाउन के कारण कहीं आना जाना संभव नहीं था. लेकिन अच्छी बात ये थी कि चेतन का अपना रिकॉर्डिंग स्टूडियो भी है. उन्होंने वहीं ये गाना रिकॉर्ड कर भेज दिया.

लेख वालेंसा और गोर्बाचोव के साथ क्लाउस माइनेतस्वीर: picture-alliance/dpa/M. Markov

अब सब को इकट्ठा कर म्यूजिक वीडियो बनाने का काम वाल्टर लिंडनर का था. वे बताते हैं, "ज्यादातर संगीतकारों ने अपने घर पर रिकॉर्डिंग की और मुझे उसकी क्लिप भेज दी, जिन्हें स्टूडियो की रिकॉर्डिंग में इंसर्ट कर दिया गया. ज्यादातर स्टूडियो कोरोना के समय यही कर रहे थे.” और आधुनिक तकनीक तथा सॉफ्टवेयर के कारण ये काम मुश्किल नहीं रहा है. 

इस एकीकरण वीडियो के लिए कुछ बड़े नामों ने भारतीय संगीत इंस्ट्रूमेंट बजाए हैं, मसलन बांसुरी राकेश चौरसिया ने, सरोद पंडित विकास महाराज ने, तबला प्रभास महाराज ने और सितार अभिषेक महाराज ने. सबसे दिलचस्प ये है कि उन्होंने भारतीय रागों से इस गाने को पूर्वी और पश्चिमी संगीत के दिलचस्प फ्यूजन में बदल दिया. यह गाना भारतीय शास्त्रीय संगीत और रटक संगीत के फ्यूजन का बेहतरीन नमूना है. राकेश चौरसिया पहले भी डॉयचे वेले के साथ एक सफल कोप्रोडक्शन कर चुके हैं. गाने के रचयिता क्लाउस माइने को ये इतना पसंद आया कि वे भी इस नए गाने से जुड़ गए. बर्लिन में राजदूत लिंडनर ने उनसे मुकालात की और गाना सुनने के बाद वे इसे इंट्रोड्यूस करने को राजी हो गए. वाल्टर लिंडनर को विश्वास है कि ये गाना आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना तीस साल पहले था. तीस साल पहले हवा में आजादी की तंरग थी, आज हवा में उम्मीद का तराना है. उम्मीद का ये तराना इस जर्मन भारतीय रॉक गीत में भी झलकता है.

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