जर्मनी की घरेलू गुप्तचर सेवा ने दक्षिणपंथी राजनीतिक पार्टी अल्टरनेटिव फॉर जर्मनी (एएफडी) को लेकर अपने पर्यवेक्षण का दायरा बढ़ा दिया है. पार्टी में व्याप्त अतिवादी सोच को लेकर चिंता जताई जा रही थी.
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इस तरह से नजर रखने का मतलब होगा कि पार्टी के सदस्यों के बयानों और किसी अतिवादी गुट के साथ उनके संबंधों को बारीकी से देखा जाएगा. हालांकि इन पर गुप्त रूप से निगरानी नहीं रखी जाएगी.
घरेलू गुप्तचर सेवा के प्रमुख थोमाल हाल्डेनवांग ने बताया कि जिस तरह से एएफडी नाजी काल के अत्याचारों को हल्का करके बता रही है और इसके कुछ सदस्य अपने राजनीतिक लक्ष्यों को पाने के लिए जैसे "क्रांतिकारी" उपायों की बात करते हैं, उन्हें लेकर चिंता है. यही कारण हैं कि इस जर्मन दल पर नजर रखने का फैसला लिया गया.
एएफडी की युवा इकाई और पूर्वी जर्मनी के एक प्रमुख नेता ब्योर्न होएके से जुड़े पार्टी के ही एक गुट पर विशेष रूप से निगरानी रखी जाएगी. हाल्डेनवांग ने बताया कि इनकी गुपचुप तरीके से निगरानी भी की जाएगी.
पार्टी के सह-प्रमुख अलेक्जांडर गाउलांड ने आरोप लगाया है कि खुफिया सेवा का यह कदम राजनीति से प्रेरित है. उन्होंने इसे गलत बताया और कहा कि इसके खिलाफ पार्टी कानूनी कार्रवाई करेगी.
सिंती और रोमा के नाजी नरसंहार की याद
भारत से आई बंजारा जातियां सिंती और रोमा 600 साल से अधिक से यूरोप में रहती हैं. नाजी जर्मनी में उनके साथ भारी भेदभाव हुआ, जबरन नसबंदी की गई और बहुतों को मार डाला गया. बाद में जर्मन समाज ने भी उनके उत्पीड़न को नकारा.
तस्वीर: Dokumentations- und Kulturzentrum Deutscher Sinti und Roma
मातृभूमि की सेवा
बहुत से जर्मन सिंतियों ने सिर्फ प्रथम विश्वयुद्ध में ही नहीं, बल्कि 1939 के बाद नाजी सेना में भी लड़ाई लड़ी. 1941 में जर्मन हाई कमान ने सभी जिप्सियों और अर्ध जिप्सियों को नस्लवादी कारणों से सेना की सक्रिय सेवा ने निकालने का फैसला किया. अलफोंस लाम्पर्ट और उनकी पत्नी एल्जा को यातना शिविर आउशवित्स भेज दिया गया जहां उन्हें मार डाला गया
तस्वीर: Dokumentations- und Kulturzentrum Deutscher Sinti und Roma
नस्ली नाप और रजिस्ट्रेशन
नर्स एवा जस्टिन ने सिंती और रोमा का विश्वास जीतने के लिए रोमानी भाषा सीखी. वैज्ञानिक नस्लवाद की विशेषज्ञ के रूप में उसने पूरे जर्मनी में घूम घूमकर लोगों के नाप लिए और "जिप्सी" तथा "अर्द्ध जिप्सी ब्रीड" का पूरा रजिस्टर तैयार किया. ये बाद में सिंती और रोमा के नरसंहार का आधार बना. उन्होंने पारिवारिक संबंधों और चर्च के रिकॉर्ड की जांच की.
तस्वीर: Bundesarchiv
गिरफ्तारी और कुर्की
1930 के दशक में सिंती और रोमा परिवारों को उनके घरों से निकालकर शहर के बाहर बाड़े में घिरे कैंपों में रहने को विवश किया गया. दक्षिण पश्चिमी जर्मनी के रावेंसबुर्ग कैंप की तरह कैंपों की सुरक्षा कुत्तों वाले पुलिसकर्मी करते थे. उन्हें कैंप से बाहर नहीं निकलने दिया जाता और बंधुआ मजदूरों की तरह काम करना पड़ता था. बहुतों की जबरदस्ती नसबंदी कर दी गई.
तस्वीर: Stadtarchiv Ravensburg
लोगों के सामने डिपोर्टेशन
मई 1940 में दक्षिण पश्चिमी जर्मन शहर आस्पैर्ग में सिंती और रोमा परिवारों को शहर की गलियों से होते हुए स्टेशन तक ले जाया गया और वहां से उन्हें सीधे नाजी कब्जे वाले पोलैंड में भेज दिया गया. बाद में एक पुलिस रिपोर्ट में लिखा गया कि उन्हें डिस्पैच करने की कार्रवाई बिना किसी बाधा के पूरी हुई. डिपोर्ट किए गए ज्यादातर लोग लेबर कैंपों में मारे गए.
तस्वीर: Bundesarchiv
स्कूल से आउशवित्स
कार्ल्सरूहे के एक स्कूल की 1930 के दशक की इस तस्वीर में कार्ल क्लिंग भी हैं. उन्हें 1943 में स्कूल से उठाया गया और आउशवित्स के "जिप्सी कैंप" में भेज दिया गया जहां वे नाजी नरसंहार के शिकार हुए. पीड़ित बताते हैं कि डिपोर्ट किए जाने से पहले स्कूलों में भी उनके साथ भेदभाव किया जाता था और कई बार तो क्लास में शामिल भी नहीं होने दिया जाता था.
झूठी उम्मीद
नौ साल का हूगो होएलेनराइनर जब मवेशी गाड़ी में सवार होकर अपने परिवार के साथ 1943 में आउशवित्स पहुंचा तो उसने सोचा था, "मैं काम कर सकता हूं." कैंप के बाहर बोर्ड लगा था, "काम आजाद करता है." बाद में होएलेनराइटर ने बताया कि इससे उम्मीद बंधी थी. वह अपने पिता की मदद करना चाहता था ताकि वे सब आजाद हो सकें. लेकिन आउशवित्स भेजे गए सिर्फ 10 फीसदी लोग बचे.
तस्वीर: DW/A. Grunau
बंदियों के साथ बर्बर प्रयोग
नाजी संगठन एसएस का कुख्यात डॉक्टर जोसेफ मेंगेले आउशवित्स में काम करता था. वह और उसके साथी बंदियों को कठोर यातना देते थे. वे बच्चों के शरीर की चीड़फाड़ करते, उन्हें बीमारियों का इंजेक्शन देते और जुड़वां बच्चों पर बर्बर प्रयोग करते. मेंगेले ने उनकी आंखें, शरीर के अंग और पूरे के पूरे शरीर बर्लिन भेजे. बाद में वह यूरोप से भाग गया और उस पर कभी मुकदमा नहीं चला.
तस्वीर: Staatliches Museum Auschwitz-Birkenau
Liberation comes too late
जब रूस की रेड आर्मी ने 27 जनवरी 1945 को आउशवित्स के यातना कैंप को आजाद कराया तो कैद में बच्चे बचे थे. सिंती और रोमा बंदियों के लिए आजादी की रात देर से आई थी. 2-3 अगस्त 1944 की रात को कैंप के प्रभारी अधिकारी ने सिंती और रोमा बंदियों को गैस चैंबर में भेजने का आदेश दिया था. अगले दिन "जिप्सी कैंप" से दो बच्चे रोते हुए बाहर निकले, उन्हें भी मार दिया गया.
तस्वीर: DW/A. Grunau
नस्लवादी उत्पीड़न
नाजी यातना शिविरों को आजाद कराए जाने के बाद मित्र देशों की सेना और जर्मन अधिकारियों ने जिंदा बचे लोगों को नस्लवादी उत्पीड़न और कैद होने का सर्टिफिकेट दिया. बाद में उनसे कहा गया कि उन्हें अपराधों के लिए सजा मिली है और हर्जाने की उनकी मांग ठुकरा दी गई. हिल्डेगार्ड राइनहार्ट ने आउशवित्स में अपनी तीन छोटी बेटियों को खोया है.
तस्वीर: Dokumentations- und Kulturzentrum Deutscher Sinti und Roma
मान्यता की अपील
1980 के दशक के आरंभ में सिंती और रोमा समुदायों के प्रतिनिधियों ने डाखाऊ के पूर्व यातना शिविर के सामने भूख हड़ताल की. वे अपने समुदाय को अपराधी बताने और नाजी यातना को मान्यता दिए जाने की मांग कर रहे थे. 1982 में तत्कालीन चांसलर हेल्मुट श्मिट ने पहली बार औपचारिक रूप से स्वीकार किया कि सिंती और रोमा समुदाय के लोग नाजी नरसंहार के शिकार हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
बर्लिन में स्मारक
2012 में बर्लिन में जर्मन संसद बुंडेसटाग के निकट नाजी उत्पीड़न के शिकार सिंती और रोमा लोगों के लिए स्मारक बना. ये स्मारक दुनिया भर के सिंती और रोमा के लिए भेदभाव के खिलाफ लंबे संघर्ष की निशानी है. इस समुदाय के लोगों को आज भी जर्मनी और यूरोप के दूसरे देशों में भेदभाव का शिकार बनाया जा रहा है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/K. Nietfeld
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जर्मन संसद को कमतर आंकने वाले किसी भी दल या गुट को रोकना खुफिया सेवा की जिम्मेदारी है. एएफडी पर निगरानी के फैसले तक पहुंचने से पहले एजेंसी ने कई महीने पार्टी से जुड़ी जानकारियां जुटाने में लगाए थे. हाल्डेनवांग ने कहा कि एजेंसी के पास इसके पर्याप्त प्रमाण हैं कि पार्टी के कुछ तत्व संवैधानिक मूल्यों के विरुद्ध काम कर रहे हैं.
धुर राष्ट्रवादी पार्टी एएफडी को 2017 के जर्मन आम चुनावों में तीसरा स्थान मिला था. अपनी स्थापना के छह सालों में ही वह संसद में प्रमुख विपक्षी दल बन चुकी है. बीते समय में पार्टी के कई वरिष्ठ सदस्यों ने यह कह कर एएफडी को छोड़ दिया कि वहां अब दक्षिणपंथी अतिवादियों का बोलबाला है.
एएफडी ने हाल ही में अपने उन तीन सदस्यों को पार्टी से निकाल दिया, जिन्होंने एक नव-नाजी समारोह में हिस्सा लिया था.
आरपी/एनआर (एपी)
जर्मन राजनीति में 'भूकंप'
जर्मनी के इतिहास में द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद यह पहला मौका है जब धुर दक्षिणपंथी पार्टी का संसद में प्रवेश हो रहा है. दिग्गज नेताओं के बयानों ने भी इस राजनीतिक भूचाल की तसदीक कर दी है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/G. Breloer
अंगेला मैर्केल (CDU)
"संसद में AFD का प्रवेश एक बड़ी चुनौती है. हमें इससे बेहतर नतीजे की उम्मीद थी."
तस्वीर: Reuters/K. Pfaffenbach
मार्टिन शुल्त्स (SPD)
"आज एक मुश्किल और कड़वा दिन है. हम संघीय चुनाव हार चुके हैं. हम अपने परंपरागत वोटरों को बचाने और वोटरों को बढ़ाने में नाकाम रहे."
तस्वीर: picture-alliance/dpa/W. Kumm
अलेक्जांडर गाउलांड (AFD)
"हमारी पार्टी के इतिहास में यह बड़ा दिन है, हम संसद में हैं. हम इस देश को बदल देंगे. हम मैर्केल या कोई भी हो, उसका पीछा करेंगे. हम अपना देश वापस लेकर रहेंगे."
तस्वीर: Reuters/W. Rattay
क्रिस्टियान लिंडनर (FDP)
"हम अपने देश के ट्रेंड को उल्टा करना चाहते हैं और अगर बातचीत में यह साफ होगा कि ऐसा किया जा सकता है तो हम गठबंधन के लिए उपलब्ध रहेंगे, अगर ऐसा नहीं हुआ तो हम विपक्ष की जिम्मेदारी संभालेंगे."
तस्वीर: Reuters/R. Orlowski
चेम ओएज्देमिर (ग्रीन पार्टी)
"ग्रीन पार्टी को सरकार में शामिल करने के लिए जलवायु परिवर्तन और सामाजिक न्याय की नीतियों का होना जरूरी है."
तस्वीर: picture-alliance/dpa/R. Hirschberger
सारा वागेनक्नेष्ट (डी लिंके)
"अगर हमें एएफडी को मजबूत होने से रोकना है तो हमें सामाजिक लोकतांत्रिक नीतियों वाली सोशल डैमोक्रैटिक पार्टी चाहिए."