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जर्मन चुनाव का तरीका

६ सितम्बर २०१३

जर्मन चुनाव में भले ही अंगेला मैर्केल और पेयर श्टाइनब्रुक का नाम छाया रहा हो. लेकिन मुकाबला सिर्फ इन्हीं दोनों में नहीं था. यहां चुनाव का तरीका काफी जटिल है और संसद में हिस्सेदारी के कई दूसरे मापदंड हैं.

तस्वीर: picture alliance / dpa

"जो व्यक्ति पार्टी का सदस्य नहीं है, संसद में उसका शामिल होना काफी कठिन है और लगभग 600 सांसदों में से एक होने की भी उसकी संभावना कम है." जर्मन संसद देखने आई एक युवती को वहां की गाइड यह कहते हुए जर्मन चुनाव का तरीका समझा रही थी.

जर्मन संविधान में लिखा है, "राजनीतिक पार्टियां फैसला लेने की प्रक्रिया में मदद करती हैं." लेकिन इस बीच कई नेताओं ने मान लिया है कि पार्टियां केवल मदद नहीं करतीं, बल्कि वही तय करती हैं कि राजनीति कौन करेगा. बिना किसी पार्टी के सहयोग के एक अकेला इंसान जर्मन संसद में तभी आ सकता है जब उसे कई तबकों का समर्थन मिले. यह जर्मन चुनाव प्रक्रिया में पहले और दूसरे मतदान पर निर्भर है.

जर्मनी में वे महिलाएं और पुरुष वोट दे सकते हैं जो जर्मन नागरिक हैं और जिनकी उम्र 18 साल से ज्यादा है. इस साल छह करोड़ 18 लाख जर्मन नागरिक वोट डाल रहे हैं. इनमें से 30 लाख पहली बार वोट डालेंगे. जर्मन सांख्यिकी विभाग इन आंकड़ों को सार्वजनिक करता है और विभाग के प्रमुख जर्मन चुनावों की भी प्रमुखता करते हैं.

मतदान केंद्रतस्वीर: picture-alliance/dpa/Frank May

चुनाव में हिस्सा लेने वाली सभी पार्टियां चुनाव प्रमुख के पास रजिस्टर होती हैं. अगर पार्टियां जर्मन संविधान, लोकतंत्र और कानून सम्मत राज्य के सिद्धांतों के अनुकूल चलती हैं तो उन्हें चुनाव में हिस्सा लेने से प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता, चाहे उनमें से कुछ पार्टियों के लक्ष्य कितने भी अजीब हों. 22 सितंबर 2013 को 34 पार्टियों में से मतदाता अपने पसंदीदा प्रतिनिधि चुन सकेंगे.

60 साल पुराने नियम

सैद्धांतिक तौर पर बड़ी पार्टियों के अलावा छोटी पार्टियां भी संसद में आ सकती हैं. लेकिन एक लोकतंत्र में कानून पारित करने के लिए बहुमत की जरूरत होती है जिसके लिए छोटी पार्टियां आए दिन नए नए गठबंधन बनाने की कोशिश में रहती हैं. जर्मन गणतंत्र को स्थापित करने वाले नेताओं का मानना था कि इससे बहुत अराजकता फैलेगी और 1920 की तरह घातक फैसले किए जाएंगे. वे चाहते थे कि चुनाव के बाद ऐसी सरकार बने जो चार साल चले और काफी हद तक स्थिर रहे. इसके लिए तय किया गया कि केवल वे पार्टियां संसद में अपने प्रतिनिधि भेज सकती हैं, जिन्हें पांच प्रतिशत से ज्यादा वोट मिलें. इसे 'पांच प्रतिशत की सीमा' कहते हैं.

जर्मन चुनाव सामान्य बहुमत चुनाव और समानुपातिक चुनाव प्रक्रिया का मिश्रण है. इसमें केवल पार्टियां अपने भीतर उम्मीदवार तय नहीं करतीं, बल्कि मतदाता भी अपने उम्मीदवार सीधे चुन सकते हैं. इसकी वजह यह है कि अपने इलाकों के राजनीतिज्ञ अक्सर दिखा चुके हैं कि चुने जाने के बाद वे अपने चुनाव क्षेत्र के लिए काम करते हैं. इससे आम लोग राजनीति के करीब आते हैं. जर्मनी में 299 चुनाव क्षेत्र हैं, जिनमें से प्रतिनिधि चुने जाते हैं. इस प्रणाली के मुताबिक हर जर्मन नागरिक को पहले और दूसरे हिस्से के मतदान के लिए दो मतपत्र दिए जाते हैं. पिछले 60 साल में इस सिस्टम में बहुत कम बदलाव किए गए हैं.

जर्मन चुनाव व्यवस्था

दो हिस्सों में मतदान

हर जर्मन मतदाता के पास दो वोट होते हैं. 'पहले वोट' में वह बैलट पेपर पर किसी एक पार्टी के उम्मीदवार को वोट करता है जो उसके चुनाव क्षेत्र से खड़ा है. यानी यह उसके इलाके का नेता है और जरूरी नहीं है कि यह नेता उस पार्टी का हो जिसे वोटर अपने 'दूसरे वोट' में चुनता है. दूसरा मत वास्तव में जरूरी होता है क्योंकि इसमें मतदाता किसी पार्टी को अपना वोट देता है. एक पार्टी को दूसरे मतदान में जितने वोट मिलेंगे, संसद में उसकी उपस्थिति उतनी ही ताकतवर होगी, वह संसद में ज्यादा प्रतिनिधि भेज पाएगा. दूसरे मतदान के दौरान मतदाता का वोट तय करता है कि पार्टियों के बीच वोट कैसे बंटेंगे. पार्टी संसद में आएगी या नहीं, यह उसके पक्ष में डाले गए वोटों पर निर्भर है. जिन पार्टियों को पांच प्रतिशत से कम वोट मिलता है, वह संसद में शामिल नहीं हो सकती.

बहुमत का सवाल पहले मतदान में आता है. यहां केवल वही उम्मीदवार संसद जा सकते हैं, जिन्हें जनता से सबसे ज्यादा मत मिले हों. बाकी सारे उम्मीदवार पीछे रह जाते हैं. फिर पहले मतदान से 299 और दूसरे से 299 उम्मीदवार संसद में आते हैं.

सहायकों की मदद से गिनतीतस्वीर: picture-alliance/dpa

असली चुनाव का विकल्प नहीं

जर्मन चुनाव प्रणाली अक्सर आलोचकों का निशाना बनती है. एक बड़ा तर्क यह है कि अगर पार्टियां 50 प्रतिशत उम्मीदवारों के बारे में खुद तय करती है, तो चुनाव सचमुच लोकतांत्रिक नहीं है. पार्टियां अपने उम्मीदवार पार्टी बैठकों में तय करती हैं जिनमें सारे पार्टी सदस्य भी शामिल नहीं होते. इनमें केवल पार्टी के वरिष्ठ नेता हिस्सा लेते हैं और यह जर्मन संसद के लिए भावी उम्मीदवारों की एक सूची बनाते हैं. इन उम्मीदवारों को उनकी प्राथमिकता के अनुसार एक क्रम में डाला जाता है. इसमें परेशानी यह है कि अगर एक वोटर अपने दूसरे वोट से एक पार्टी को चुनता है तो वह नहीं जानता कि संसद में इस पार्टी का प्रतिनिधित्व कौन सा नेता करेगा.

वोटर को यह सुरक्षा केवल अपने पहले वोट से मिलती है जहां उसे पता होता है कि वह किस व्यक्ति को अपना वोट दे रहा है. उम्मीदवारों के नाम मतपत्र पर लिखे होते हैं.

पहले और दूसरे मतदान के वोट एक दूसरे को किस तरह प्रभावित करते हैं, यह भी आलोचकों को खल रही है. मिसाल के तौर पर दूसरे मतदान के दौरान एक पार्टी को बहुत कम वोट मिले लेकिन पहले मतदान में इसके प्रतिनिधियों को बहुमत मिला. इससे संसद में इस पार्टी को कम सीटें मिलेंगी.

यहां तक कि 2008 में जर्मन संवैधानिक अदालत ने चुनाव में कई चीजों को असंवैधानिक बताया है. इस प्रक्रिया में कुछ बदलाव लाए गए हैं लेकिन बहुदलीय व्यवस्था वाले देशों की काफी आलोचना हुई है.

रिपोर्टः वोल्फगांग डिक/एमजी

संपादनः अनवर जे अशरफ

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