जर्मन सरकार ने तुर्की के राष्ट्रपति की जर्मनी के बारे में की गई टिप्पणी को अस्वीकार कर दिया है. डॉयचे वेले के क्रिस्टॉफ श्टार्क का कहना है कि ऐसे तनावपूर्ण मौकों पर सख्ती नहीं स्पष्टता की जरूरत होती है.
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जर्मन सरकार के प्रवक्ता श्टेफेन जाइबर्ट ने कहा, "नाजियों के साथ तुलना हमेशा असंगत और बेतुकी है." उन्होंने चेतावनी दी कि इनका नतीजा "मानवता के खिलाफ अपराध को कमतर" करना होगा. और इसे स्पष्ट करने की कवायद अंगेला मैर्केल के प्रवक्ता का उनके कार्यकाल का सबसे लंबा विदेशनैतिक बयान था. ये दिखाता है कि जर्मन सरकार जर्मनी में और उसके खिलाफ माहौल बनाने की तुर्की के राजनीतिज्ञों की कोशिशों पर कितनी चिंतित है.
जाइबर्ट ने जर्मनी में तुर्की के जनमत संग्रह के प्रचार में तुर्की के राजनीतिज्ञों की भागीदारी पर भी टिप्पणी की. उन्होंने चेतावनी दी कि तुर्क पक्ष को इस मामले में खुले कार्ड खेलने चाहिए यानि गलत वजहों के लिए हॉल बुक नहीं करना चाहिए. यह अपने आप में दिलेर बयान लगता है.
जर्मन राजनीतिज्ञों को भी चेतावनी
सरकारी प्रवक्ता ने अपने बयान में जर्मन पक्ष को भी चेतावनी दी है. खुलेपन की चेतावनी का मतलब यह भी है कि आम शर्तों के पालन की स्थिति में तुर्की के नेताओं को भी जर्मनी में सार्वजनिक रूप से बोलने का हक है. यह उन जर्मन राजनीतिज्ञों के लिए चेतावनी है जो तुर्क राजनीतिज्ञों के भाषणों पर पूरी तरह रोक लगाने की मांग कर रहे हैं और समर्थन पा रहे हैं.
ऐसे सांसद चांसलर अंगेला मैर्केल की पार्टी में भी हैं. जब जाइबर्ट प्रेस कॉन्फ्रेंस में अपनी बात रख रहे थे, मैर्केल की पार्टी के संसदीय दल के विदेशनैतिक प्रवक्ता जर्मनी में तुर्क राष्ट्रपति एर्दोवान और उनके मंत्रियों की चुनावी सभाओं को अवांछनीय बता रहे थे. इसके विपरीत जाइबर्ट ने कहा कि जर्मन सरकार तुर्क राजनीतिज्ञों के जर्मनी आने पर रोक की नहीं सोच रही है और एर्दोवान के प्रचार अभियान को अपनी ओर से नहीं रोकेगी.
मेयर से बड़ी चेयर तक
अपने कार्यकाल में मेयर का पद संभाल चुकीं तमाम हस्तियां आज राष्ट्र प्रमुखों के पद तक पहुंच गई हैं. देखिए, कौन है जो पहले मेयर बना फिर राष्ट्राध्यक्ष...
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कोनराड आडेनावर
पश्चिम जर्मनी के संस्थापक चांसलर कोनराज आडेनावर द्वितीय विश्वयुद्ध से पहले कोलोन के मेयर थे.
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रोड्रिगो डुटेर्टे
फिलीपींस के मौजूदा राष्ट्रपति रोड्रिगो डुटेर्टे भी दवाओ शहर मेयर रह चुके हैं.
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रेजब तैयप एर्दोवान, तुर्की
कभी इस्तांबुल के मेयर रहे रेजब तैयप एर्दोवान आज तुर्की का राष्ट्रपति पद संभाल रहे हैं.
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महमूद अहमदीनेजाद, ईरान
तेहरान के मेयर रहे महमूद अहमदीजेनाद ईरान के राष्ट्रपति रह चु्के हैं
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फ्रांसोआ ओलांद, फ्रांस
टयूल के मेयर रह चुके फ्रांसोआ ओलांद आज फ्रांस के राष्ट्रपति हैं.
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विली ब्रांट, जर्मनी
1969 से 1974 तक पश्चिमी जर्मनी के चांसलर रहे विली ब्रांट भी बर्लिन के मेयर थे.
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अमाडो गोन
आइवरी कोस्ट के नए प्रधानमंत्री अमाडो गोन कूलीबेली भी दक्षिणी शहर कॉरहोगो के मेयर हुआ करते थे.
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मातेयो रेन्सी, इटली
पिछले साल दिसंबर तक इटली के प्रधानमंत्री पद पर काबिज मातेयो रेन्सी फ्लोरेंस के मेयर रह चुके हैं.
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होजे सेरा, ब्राजील
ब्राजील के विदेश मंत्री होजे सेरा राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ चुके हैं. वह साओ पाउलो के मेयर थे.
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एहुद ओलमर्ट
इस्राएल के पूर्व प्रधानमंत्री एहुद ओलमर्ट भी 1993 से 2003 तक येरूशलेम के मेयर थे.
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विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने तुर्की के वाणिज्य मंत्री की सभा पर टिप्पणी रूखी और व्यंग्यपूर्ण थी, "वह जर्मनी के स्वतंत्र लोकतांत्रिक व्यवस्था के खिलाफ बिना किसी हनन के संपन्न हुई."
संतुलन की कोशिश
जर्मन सरकार इस मामले में संतुलन की कोशिश कर रही है. एक ओर स्पष्ट रुख तो दूसरी ओर खुला रवैया. राजनीतिक सहयोगियों के बीच कूटनीति और सख्त शब्द शांति के समय में अच्छे और अशांत समय में महत्वपूर्ण होते हैं. दुनिया और यूरोप इस समय अशांत दौर से गुजर रहे हैं.
अब मौलिक सवाल यह है कि तुर्की किस राह पर आगे बढ़ रहा है और जर्मनी का रुख क्या होना चाहिए. नाटो के एक सहयोगी की सहबंध की क्षमता भी सवालों के घेरे में है. समझना मुश्किल है कि यूरोपीय देशों और जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल को शरणार्थियों के आने को रोकने के लिए इसी तुर्की के साथ आदान प्रदान की सौदेबाजी करनी पड़ी थी. अच्छे जर्मन-तुर्क संबंधों के नारे अब अतीत बन गये हैं. तुर्क जर्मन पत्रकार डेनिस यूजेल की तुर्की में गिरफ्तारी के बाद दोहरे पासपोर्ट के मायने पर भी नई बहस शुरू हो रही है.
स्थिर तुर्की में जर्मनी की दिलचस्पी
ये सब बहुत ही गंभीर मामला है. मध्य अप्रैल में तुर्की में नये संविधान पर होने वाले चुनाव में जो भी हो, जर्मनी को स्पष्ट और जरूरत पड़ने पर अत्यंत स्पष्ट शब्दों से परहेज नहीं करना चाहिए. और उसे दिखाना चाहिए कि लोकतंत्र और अभिव्यक्ति तथा सभा की स्वतंत्रता के क्या मायने हैं. हर कहीं, सिर्फ जर्मनी में ही नहीं.
लेकिन बर्लिन को इस पर भी नजर रखनी होगी कि सैनिक विद्रोह और विरोधी सत्तापहरण से प्रभावित तुर्की को, राष्ट्रपति एर्दोवान के साथ या उनके बिना, स्थिरता आने के बाद किन यूरोपीय मदद की जरूरत है. इसलिए यह सही है कि इस समय अक्खड़ प्रतिक्रिया न दी जाए.
कितना बदल गया तुर्की
बीते 15 साल में तुर्की जितना बदला है, उतना शायद ही दुनिया का कोई और देश बदला होगा. कभी मुस्लिम दुनिया में एक उदार और धर्मनिरपेक्ष समाज की मिसाल रहा तुर्की लगातार रूढ़िवाद और कट्टरपंथ के रास्ते पर बढ़ रहा है.
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एर्दोवान का तुर्की
इस्लामी और रूढ़िवादी एकेपी पार्टी के 2002 में सत्ता में आने के बाद से तुर्की बहुत बदल गया है. बारह साल प्रधानमंत्री रहे रेचेप तैयप एर्दोवान 2014 में राष्ट्रपति बने और देश को राष्ट्रपति शासन की राह पर ले जा रहे हैं.
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बढ़ा रूढ़िवाद
तुर्की इन सालों में और ज्यादा रूढ़िवादी और धर्मभीरू हो गया. जिस तुर्की में कभी बुरके और नकाब पर रोक थी वहां हेडस्कार्फ की बहस के साथ सड़कों पर ज्यादा महिलायें सिर ढंके दिखने लगीं.
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कमजोर हुई सेना
एकेपी के सत्ता में आने से पहले तुर्की की राजनीति में सेना का वर्चस्व था. देश की धर्मनिरपेक्षता की गारंटी की जिम्मेदारी उसकी थी. लेकिन एर्दोवान के शासन में सेना लगातार कमजोर होती गई.
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अमीर बना तुर्की
इस्लामी एकेपी के सत्ता में आने के बाद स्थिरता आई और आर्थिक हालात बेहतर हुए. इससे धनी सेकुलर ताकतें भी खुश हुईं. लेकिन नया धनी वर्ग भी पैदा हुआ जो कंजरवेटिव था.
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अक्खड़ हुआ तुर्की
एर्दोवान के उदय के साथ राजनीति में अक्खड़पन का भी उदय हुआ. खरी खरी बातें बोलने की उनकी आदत को लोगों ने इमानदारी कह कर पसंद किया, लेकिन यही रूखी भाषा आम लोगों ने भी अपना ली.
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नए सियासी पैंतरे
विनम्रता, शिष्टता और हया को कभी राजनीति की खूबी माना जाता था. लेकिन गलती के बावजूद राजनीतिज्ञों ने कुर्सी से चिपके रहना और दूसरों की खिल्ली उड़ाना सीख लिया. एर्दोवान के दामाद और उर्जा मंत्री अलबायराक.
तस्वीर: Reuters/M. Sezer
नेतृत्व की लालसा
कमालवाद के दौरान तुर्की अलग थलग रहने वाला देश था. वह दूसरों के घरेलू मामलों में दखल नहीं देता था. लेकिन एर्दोवान के नेतृत्व में तुर्की ने मुस्लिम दुनिया का नेतृत्व करने की ठानी.
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लोकतांत्रिक कायदों से दूरी
एकेपी के शासन में आने के दो साल बाद 2004 में यूरोपीय संघ ने तुर्की की सदस्यता वार्ता शुरू करने की दावत दी. तेरह साल बाद तुर्की लोकतांत्रिक संरचना से लगातार दूर होता गया है.
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ईयू से झगड़ा
तुर्की ने 2023 तक यूरोपीय संघ का प्रभावशाली सदस्य बनने का लक्ष्य रखा है. लेकिन अपनी संरचनाओं को ईयू के अनुरूप ढालने के बदले वह लगातार यूरोपीय देशों से लड़ रहा है.
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तुर्की में धर पकड़
2016 में तख्तापलट की नाकाम कोशिश के बाद तुर्की में हजारों सैनिक और सरकारी अधिकारियों को बर्खास्त कर दिया गया है और सैकड़ों को जेल में डाल दिया गया है.
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एर्दोवान की ब्लैकमेलिंग?
2016 के शरणार्थी संकट के बाद एर्दोवान लगातार जर्मनी और यूरोप पर दबाव बढ़ा रहे हैं. पिछले दिनों जर्मनी के प्रमुख दैनिक डी वेल्ट के रिपोर्टर डेनिस यूशेल को आतंकवाद के समर्थन के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/A. Arnold
इस्लामिक देश होगा तुर्की?
अप्रैल 2017 में तुर्की में नए संविधान पर जनमत संग्रह हुआ, जिसने देश को राष्ट्रपति शासन में बदल दिया. अब एर्दोवान 2034 तक राष्ट्रपति रह सकेंगे. सवाल ये है कि क्या तुर्की और इस्लामिक हो जाएगा.