अफगानिस्तान में एक जर्मन नागरिक को गिरफ्तार किया गया है. अफगान अधिकारियों का आरोप है कि जर्मन नागरिक तालिबान की एलीट "रेड यूनिट" का सदस्य है.
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अफगान पुलिस ने कुल चार लोगों को गिरफ्तार किया है. इनमें एक जर्मन नागरिक और तीन तालिबान लड़ाके हैं. कार्रवाई हेलमंद प्रांत के गेरेश्क जिले में हुई. प्रांतीय गर्वनर के प्रवक्ता ओमर स्वाक के मुताबिक, जर्मन नागरिक ने काले रंग की पगड़ी बांधी थी और उसकी लंबी दाढ़ी भी थी.
गेरेश्क के पुलिस प्रमुख इस्माइल खपलवाक का कहना है कि जर्मन नागरिक तालिबान के बड़े कमांडरों में शुमार "मुल्ला नासिर का सैन्य सलाहकार" रहा चुका है. मुल्ला नासिर तालिबान के एलीट "रेड यूनिट" का कमांडर था. जर्मन प्रशासन की तरफ से अभी इस गिरफ्तारी की पुष्टि नहीं की गई है.
अफगानिस्तान का अंतहीन संघर्ष
अफगानिस्तान पर अमेरिकी आक्रमण को 16 साल बीत गये हैं. युद्ध प्रभावित यह देश आज भी इस्लामी आतंक की चपेट में है. वहां लगातार आतंकी हमले होते रहते हैं.
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'ग्रीन जोन'
काबुल के सबसे सुरक्षित माने जाने वाले इलाके डिप्लोमैटिक क्वार्टर में घुसकर 31 मई को आतंकियों ने बड़ा धमाका किया. कम से कम 90 लोगों की जान गयी. जर्मन दूतावास को खासतौर पर नुकसान पहुंचा. इसकी जिम्मेदारी किसी ने भी नहीं ली है.
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हमलों की लंबी श्रृंखला
अफगान राजधानी पर पहले भी ऐसे हमले होते आये हैं. मई में इसके पहले भी आईएस के एक हमले में आठ विदेशी सैनिक मारे गये थे. मार्च में विद्रोहियों के एक हमले में अफगान सेना के अस्पताल में कम से कम 38 लोगों की जान गयी थी.
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"ऑपरेशन मंसूर"
इसी साल अप्रैल में अफगान तालिबान ने प्रण लिया था कि वे अफगान सुरक्षा बलों और गठबंधन सेनाओं पर हमले तेज करेंगे. इसे वे सालाना वसंत आक्रमण कहते हैं, जिसे उन्होंने "ऑपरेशन मंसूर" नाम दिया. मंसूर तालिबानी नेता था, जो 2016 में अमेरिकी ड्रोन हमले में मारा गया.
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ट्रंप की अफगान नीति
अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने अब तक इसकी घोषणा नहीं की है. लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि उनकी नीति काफी हद तक पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा जैसी ही होगी. वे भी अफगान सरकार और तालिबान के बीच सुलह का रास्ता चाहेंगे.
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अफगान शांति प्रक्रिया
अफगानिस्तान पर्यवेक्षक कहते हैं कि आतंकी समूह इस समय शांति वार्ता में दिलचस्पी नहीं दिखाएगा क्योंकि फिलहाल वे अफगान सरकार पर भारी पड़ रहे हैं. 2001 के बाद से इस समय उनके कब्जे में सबसे ज्यादा अफगान जिले हैं.
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पाकिस्तानी मदद
पाकिस्तान पर आरोप लगते हैं कि वह तालिबान का इस्तेमाल कर अफगानिस्तान में भारत का असर कम करना चाहता है. हाल ही में पाकिस्तान तालिबान के पूर्व प्रवक्ता एहसानुल्लाह एहसन (तस्वीर में) पकड़ा गया लेकिन फिर पाकिस्तान ने उसे माफ कर दिया जब उसने भारत पर तालिबान की मदद का आरोप लगाया.
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वारलॉर्ड्स की भूमिका
तालिबान के अलावा अफगान वारलॉर्ड्स का आज भी देश में काफी प्रभाव है. 20 साल बाद हिज्बे इस्लामी के नेता गुलबुद्दीन हिकमत्यार राजनीति में कदम रखने के लिए काबुल लौटे. सितंबर 2016 में अफगान सरकार ने उनके साथ समझौता किया ताकि दूसरे वारलॉर्ड्स और आतंकी समूह अफगान सरकार के साथ काम करें.
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जुड़े हैं रूस के हित
रूस ने अफगानिस्तान के साथ अपने संबंध प्रगाढ़ करने पर ध्यान दिया है. कई सालों तक दूरी बनाये रखने के बाद अब रूस अफगानिस्तान पर "उदासीन" रवैया नहीं रखना चाहता. रूस ने अफगानिस्तान में कई वार्ताएं आयोजित कीं, जिसमें चीन, पाकिस्तान और ईरान को शामिल किया.
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अप्रभावी सरकार
राष्ट्रपति अशरफ गनी को व्यापक समर्थन हासिल नहीं है और अफगान सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहते हैं. देश में सत्ता हथियाने को लेकर एक अंतहीन सा दिखने वाला संघर्ष जारी है. (शामिल शम्स/आरपी)
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रेड यूनिट तालिबान की खास यूनिट है, जो अफगान सेना और पुलिस पर घातक हमले करती रही है. दिसंबर 2017 में अफगान सेना ने मुल्ला नासिर उर्फ मुल्ला शाह वली या हाजी नासिर को मारने का दावा किया.
जर्मन नागरिक की अफगानिस्तान में गिरफ्तारी से पश्चिमी खुफिया एजेंसियों के कान खड़े होंगे. यूरोप के कई युवा सीरिया और इराक में इस्लामिक स्टेट की तरफ से लड़ने गए, इसका पता सबको है. लेकिन अब अफगानिस्तान में भी उनकी मौजूदगी का पता चल रहा है. अफगानिस्तान में तालिबान और अल कायदा के लिए लड़ने वाले ज्यादातर विदेशी लड़ाके अब तक पाकिस्तान, चेचन्या और उज्बेकिस्तान से आते रहे हैं. हेलमंद प्रांत तालिबान का गढ़ है, वहां अफीम की अथाह खेती होती है. इससे तालिबान काफी पैसा भी कमाता है.
हाल के समय में तालिबान ने अफगानिस्तान में कई बड़े हमले किए हैं. 2014 में नाटो के अफगानिस्तान से निकलने के बाद वहां हिंसा में तेजी आई है. अब अमेरिका और अफगानिस्तान सरकार के साथ तालिबान से शांति वार्ता की इच्छा जता रहे हैं.
नशीला खाट सोमालीलैंड की रग रग में
नशीला पौधा खाट अफ्रीकी राज्य सोमालीलैंड की संस्कृति का गहरा हिस्सा है. विशेषज्ञ परिवार पर पड़ने वाले इसके बुरे असर के बारे में बताते आए हैं, लेकिन स्थानीय लोग इसे अपनी अर्थव्यवस्था का अहम हिस्सा मानते हैं.
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अनुमान है कि सोमालीलैंड के 90 फीसदी पुरुष खाट चबाते हैं. सोमालीलैंड के निवासी प्रतिदिन खाट पर करीब 10 लाख डॉलर खर्च करते हैं. बेरोजगार अब्दीखालिद बताते हैं, "मैं अपने दोस्त से पैसे उधार लेता हूं. दोबारा नौकरी करने लगा तो उसका कर्ज चुका दूंगा."
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देर रात तक काम करने वाली नफयार कहती हैं, "मुझे सेहत पर असर की चिंता है लेकिन इससे मुझे काम करने में मदद मिलती है." स्थानीय पत्रकार अब्दुल बताते हैं कि जब काम खत्म करने की समय सीमा करीब होती है तब वह खाट चबाते हैं, "यह शराब से बेहतर है, आप इसके बाद भी सामान्य रूप से काम कर सकते हैं." खाट चबाने से उनका मुंह और दांत हरे हो गए हैं.
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ग्राहक सड़क के किनारे लगी गुमटियों में महिलाओं से खाट खरीदते हैं. जाहरे ऐदीद कहती हैं, "मेरी एक दुकान और कैफे था, मैंने यहां खाट बेचना भी शुरू कर दिया क्योंकि मैं अपना व्यवसाय बढ़ाना चाहती थी."
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ऐदीद बताती हैं, "कई महिलाओं ने गृह युद्ध के बाद खाट बेचना शुरू किया ताकि वे इस व्यवसाय से अपने परिवार के लिए पैसे कमा सकें. जब उन्होंने इसे बेचना शुरू किया तो धीरे धीरे वे इस काम में बेहतर होती गईं. इस समय इस काम में अनगिनत महिलाएं लगी हैं." सोमालीलैंड की 20 फीसदी महिलाएं भी खाट चबाती हैं.
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खाट उत्तरी पूर्वी इथियोपिया में उगाई जाती है और वहीं से सोमालीलैंड तक ट्रकों पर लाई जाती है.
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सोमालीलैंड की खाट पर निर्भर अर्थव्यवस्था इतनी मजबूत हो गई है कि इससे सोमालीलैंड की सरकार को भारी टैक्स मिलता है. सोमालीलैंड के वित्त मंत्रालय के वेली दाऊद के मुताबिक, "2014 में सरकार का बजट 15.2 करोड़ डॉलर था जिसमें से 20 फीसदी योगदान खाट का था."
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राजनीतिक सलाहकार फातिमा सईद इसके कुप्रभावों के बारे में बात करते हुए कहती हैं, "बात यहां तक आ जाती है कि आदमी घर का हिस्सा नहीं रह जाता औरत को अकेले सब कुछ करना पड़ता है. मर्द घंटों बैठे खाट चबाते रहते हैं, इसकी लत लग जाती है. इससे भ्रम, नींद ना आना, भूख ना लगना और अन्य समस्याएं भी होती हैं."
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अब्दुल कहते हैं, "खाट लोगों को करीब लाता है, लोग साथ बैठकर चर्चा करते हैं और जानकारी बांटते हैं." वह मानते हैं कि इससे समाज के लोग एक साथ आते हैं, उन्हें एक दूसरे की समस्याओं के बारे में पता चलता है.
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सईद कहते हैं कि मौजूदा सरकार किसी तरह की पाबंदी नहीं लगाएगी, यानि यह कारोबार जारी रहेगा. हर रोज स्थानीय पुरुष एक दूसरे के साथ घंटों तक इकट्ठे बैठकर खाट चबाते हैं. नफयार कहती हैं, "खाट क्या है यह आप तभी जानेंगे जब इस चबाएंगे."