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जर्मन पुलिस को हमलों का डर

१५ फ़रवरी २०१३

पुलिस का काम लोगों को सुरक्षा देना है, लेकिन उनकी सुरक्षा चिंताओं के लिए कौन जिम्मेदार है. डेढ़ साल पहले जर्मन शहर ऑग्सबुर्ग में एक पुलिसकर्मी की ड्यूटी पर हत्या कर दी गई थी.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

ऑग्सबुर्ग शहर की छोर पर जहां जंगल शुरू होता है, एक हरे रंग का दिल और एक स्मारक ड्यूटी कर रहे पुलिसकर्मी मथियास फीथ की हत्या की याद दिलाते हैं. अक्टूबर 2011 में 41 वर्षीय फीथ को ह्त्यारों ने गोली मार दी थी, उनके साथ ड्यूटी दे रही सहकर्मी गंभीर रूप से घायल हो गई थी.

जर्मनी में पुलिस बल का सम्मान है. उनकी छवि नागरिकों के दोस्त और मददगार की है. इसलिए उन पर हमले भी आम नहीं हैं. लेकिन जब ऐसा कुछ हो जाए तो उसका असर पुलिसबल की मानसिकता पर भी पड़ता है. ऑग्सबुर्ग पुलिस के प्रवक्ता मानफ्रेड गॉटशाल्क कहते हैं, "इस भयानक घटना ने हम सबको संवेदनशील बना दिया है. अभी भी पुलिसकर्मियों के बीच अक्सर उसकी बात होती है." उस घटना के बाद पुलिसकर्मियों को इस बात का अहसास हुआ कि उन्हें हर पल इस जोखिम के साथ जीना होगा कि पुलिस अभियान के दौरान कभी भी उनकी जान जा सकती है.

मदद जरूरी

इस तरह की घटना भय और आशंका पैदा करती है. वारदात के बाद फीथ के साथियों और उनके परिवार वालों को इस शोक से निबटने के लिए कई महीनों तक पुलिस के मनोवैज्ञानिकों की मदद दी गई. प्रांतीय पुलिस के डीन आंद्रेयास सिम्बेक कहते हैं, "हमारे यहां बहुत से ऐसे पुलिकर्मी भी फोन करते हैं जिन पर हमला हुआ है या जिन्हें हथियार से धमकाए जाने का डर है." उनका कहना है कि साथी की हत्या पुलिसकर्मियों के लिए बहुत भावनात्मक होती है.

जर्मन प्रांत बवेरिया के गृह मंत्रालय का कहना है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से प्रांत के 63 पुलिसकर्मी ड्यूटी के दौरान मारे गए हैं. करीब 65 साल में 63 लोग, लेकिन डर बढ़ रहा है. पुलिस का मानना है कि खतरे बढ़ रहे हैं. प्रांतीय पुलिस ट्रेड यूनियन के उपाध्यक्ष पेटर शाल का कहना है कि पिछले सालों में पुलिस अधिकारियों के खिलाफ हिंसा में आम तौर पर बहुत तेजी आई है.

तस्वीर: dapd

हमले बढ़े

पेटर शाल का कहना है कि कार्रवाईयों के दौरान पुलिस को अपमानित करने, थूकने या धक्का-मुक्की की घटनाएं बढ़ रही हैं. "यह बर्ताव समझ से बाहर है, इसकी वजह अल्कोहल का बढता उपयोग और सामाजिक मूल्यों में गिरावट हो सकती है." गृह मंत्रालय के अनुसार बवेरिया में 2011 में पुलिसकर्मियों पर हमले के 6909 मामले दर्ज किए गए. यह एक साल पहले के मुकाबले 10 प्रतिशत ज्यादा था. हालत ऐसी हो तो आश्चर्य हो सकता है कि अभी भी बहुत से युवा लोग पुलिस बल में भर्ती होना चाहते हैं. बवेरिया के गृह मंत्रालय के प्रवक्ता के अनुसार भर्ती के हर पद के लिए सात लोग आवेदन देते हैं.

मथियास फीथ के साथ घायल होने वाली पुलिसकर्मी इस बीच ड्यूटी पर वापस लौट आई हैं. उन्हें कूल्हे में गोली लगी थी. उन्हें अभी भी मनोवैज्ञानिक मदद दी जा रही है. सिम्बेक कहते हैं कि उसकी हालत अब स्थिर है. संदिग्ध अपराधियों के खिलाफ मुकदमा शुरू होने वाला है. सिम्बेक का कहना है, "मुकदमे से पुराने जख्म फिर से खुल सकते हैं."

तेज मदद की मांग

बवेरिया पुलिस में मौत, जीवन और हत्या जैसे मामलों पर डर और चिंता की स्थिति में पुलिसकर्मियों की मदद के लिए 29 पादरी हैं. उनमें से 19 कैथोलिक पादरी हैं और 10 प्रोटेस्टेंट पादरी हैं. पुलिस ट्रेड यूनियन का कहना है कि देश भर में कठिन पुलिस कार्रवाईयों के बाद पादरियों और मनोचिकित्सकों की मदद लेने वाले पुलिसकर्मियों की संख्या बढ़ रही है. उस पर कोई औपचारिक आंकड़ें नहीं हैं. पुलिस ट्रेड यूनियन के प्रवक्ता रूडीगर होलेचेक कहते हैं, "हम देख रहे हैं कि पुलिस पर बढ़ते हमलों के साथ उनके बीमार रहने के दिन और बर्न आउट के मामले भी बढ़ रहे हैं."

पुलिस हिम्मत, साहस और जज्बे का पेशा है, जिसमें डर की कोई जगह नहीं हो सकती. लेकिन इस बीच पेशेवर मदद लेने को कमजोरी का लक्षण नहीं बल्कि पेशेवर होने का सबूत माना जाता है. लेकिन यह तो समस्या का इलाज हुआ, पुलिस की सुरक्षा के लिए क्या किया जा रहा है. पुलिस ट्रेड यूनियन हर गश्ती जीप में डिजिटल वायरलेस की मांग कर रही है ताकि जरूरत पड़ने पर बिना मुश्किल के तेजी से मदद मंगवाई जा सके.

राजधानी म्यूनिख में पुलिस की हर गाड़ी को डिजिटल वायरलेस से लैस किया जा चुका है. बाकी शहरों में इस पर काम चल रहा है. इसके अलावा प्रदर्शन और रैलियों और हिंसक घटनास्थलों पर पहुंचने वाले पुलिसकर्मियों की टोपी, सुरक्षा जैकेट और दूसरे साज सामानों का नियमित परीक्षण भी किया जा रहा है. पेटर शाल कहते हैं कि पुलिसिया साज सामान दुरुस्त न होने पर तुरंत बदल दिए जाते हैं. मथियास फीथ की जान सुरक्षा जैकेट भी नहीं बचा पाया था. उन्हें गले में गोली लगी थी.

एमजे/एएम (डीपीए)

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