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जर्मन प्रेस में सत्य साई बाबा

२ मई २०११

जर्मनभाषी प्रेस में भी इस हफ्ते के दौरान भारत की चर्चा के अंतर्गत सुरेश कलमाड़ी और सत्य साई बाबा छाये रहे. घरेलू जर्मन राजनीति की बहस के चलते जैतापुर के परमाणु संयंत्र के विरोध पर भी अच्छा खासा ध्यान दिया गया.

सुरेश कलमाड़ीतस्वीर: UNI

मसलन दैनिक फ्रांकफुर्टर अलगेमाइने त्साइटुंग में कहा गया कि कांग्रेस पार्टी कई महीनों से अरबों भारी स्कैंडलों के दबाव में है. आगे कहा गया है -

इसमें राजनीतिज्ञ, ऊंचे सैनिक अधिकारी और अर्थजगत के बड़े नाम शामिल हैं. कॉमनवेल्थ गेम्स की तैयारी के दौर से ही कलमाड़ी को बहुतेरे लोग दागी मानते थे. लगभग 6 अरब महंगे इन खेलों को उपमहाद्वीप की मजबूती के साइनबोर्ड के तौर पर पेश करने का इरादा था. शुरू में इनका खर्च दो अरब डॉलर के बराबर आंका गया था. तैयारी के दौर में ही 71 देशों की भागीदारी वाले इन गेम्स में स्कैंडल, धोखाधड़ी और योजना में गलतियों का तांता लग चुका था. कई देशों ने खेलों से दूर रहने की धमकी दी थी. रिश्वतखोरी के इन स्कैंडलों के चलते सरकार अब जान बचाने की कोशिश कर रही है और पहली बार अपने ही लोगों से पल्ले छुड़ा रही है.

निर्माणस्थल पर दुर्घटनातस्वीर: AP

और बर्लिन से प्रकाशित डी वेल्ट में कहा गया है कि लगभग एक तिहाई धन धांधली की बलि चढ़ा है. समाचार पत्र का कहना है -

खेलकूद में पारदर्शिता का अभाव सबसे बड़ी समस्या है, खास कर जब विशाल गेम्स आयोजित किये जाते हैं. अभी हाल में सन 2018 और 2022 के लिये रूस और कतर को विवादास्पद रूप से विश्वचैंपियनशिप की जिम्मेदारी सौंपते हुए फुटबॉल विश्व संगठन फिफा ने दिखाया है कि भ्रष्ट खेल अधिकारी क्या क्या कर सकते हैं. यह एक विरोधाभास ही है कि स्विटजरलैंड में बसे कई खेल संगठन आर्थिक संस्थानों की तरह काम करते हैं और उनकी करोड़ों यूरो की आमदनी है, लेकिन कानून उन्हें इस नजर से नहीं देखता.

दूसरा महत्वपूर्ण विषय था धर्मगुरू सत्य साई बाबा का देहांत. पिछले रविवार को 86 वर्ष की उम्र में उन्होंने अंतिम सांस ली. दैनिक फ्रांकफुर्टर अलगेमाइने त्साइटुंग का कहना है कि एक आध्यात्मिक और व्यवहारिक जीवन का अंत हो गया. समाचार पत्र का कहना है -

सत्य साईं बाबातस्वीर: AP

सत्य साईं बाबा की शिक्षा सरल, लगभग घिसी पिटी थी, और उनके व्यक्तित्व के करिश्मे की वजह से असरदार. भारत व दूसरे देशों के दसियों लाख घरों की दीवारों पर घने बालों और मोटे होठों वाली तस्वीरें टंगी देखी जा सकती है. अमीर गरीब सब उनके भक्त थे और इस प्रकार वे राष्ट्रीय एकता के चंद प्रतीकों में से एक थे. एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में वे आधुनिक थे, उनकी एक दृष्टि थी, और ऐसा कहा जा सकता है कि सामाजिक संरचनाओं को बदलने के लिये उन्होंने अपनी राजनीतिक ताकत का इस्तेमाल नहीं किया. 96 साल तक जीने की उनकी भविष्यवाणी पूरी नहीं हुई. उनकी दैवी शक्ति काम न आई.

म्युनिख से प्रकाशित दैनिक सुएडडॉएचे त्साइटुंग में इस तथ्य की ओर ध्यान दिलाया गया है कि उनके भक्तों में अनेक स्पोर्टस् व फिल्मस्टारों के अलावा पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेई और पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम भी शामिल थे. आगे कहा गया है -

अपने भक्तों के लिए साई बाबा उन्नीसवीं सदी के इसी नाम के संत के अवतार थे, हिंदू और मुस्लिम दोनों जिनकी पूजा करते थे. मीडिया की रिपोर्टों के अनुसार उनकी मां ने एक बार कहा था कि ईसा मसीह की तरह उनका जन्म भी कुंवारी मां के गर्भ में हुआ है. उनके भक्तों को पूरा विश्वास था कि उनमें दैवी शक्ति है और वे असाध्य बीमारियों को दूर कर सकते हैं. इसके विपरीत कुछ एक पूर्व भक्तों ने उन पर लड़कों और नौजवानों के साथ यौन दुर्व्यवहार का आरोप लगाया था. एक बार घर के अंदर उन पर हमला किया गया था और इस मामले का आज तक खुलासा नहीं हुआ है.

परमाणु ऊर्जा का विरोधतस्वीर: AP

जापान के फुकुशिमा की परमाणु दुर्घटना के बाद आणविक रिएक्टरों के प्रति संदेह बढ़ गया है. जर्मनी में तो कई रिएक्टर बंद कर दिये गये हैं, बाकी को बंद करने पर तेज बहस चल रही है. भारत के जैतापुर में दुनिया का सबसे बड़ा परमाणु बिजलीघर बनाया जाने वाला है. इसके खिलाफ हिंसक विरोध हो रहा है. 10 अरब डॉलर की लागत से बनने वाले इस बिजली घर में भविष्य में 9900 मेगावाट बिजली पैदा की जाएगी. नोये त्स्युरिषर त्साइटुंग में कहा गया है कि यह मुंबई की वर्तमान खपत की तीन गुनी है. आगे कहा गया है -

ऊर्जा के भूखे भारत में इस समय 22 आणविक रिएक्टर हैं. विशेषज्ञों के अनुसार भारत में आने वाले वर्षों में भी तेज आर्थिक वृद्धि होने वाली है, लेकिन अभी ही वहां ऊर्जा की भारी कमी महसूस की जा रही है. भारत में भूकंप और सुनामी का खतरा काफी अधिक है. सन 1985 से 2005 के बीच वहां 95 भूकंप दर्ज किये गये हैं. सरकार इससे पीछे नहीं हटने वाली है, जैतापुर में रिएक्टर के निर्माण पर कोई बहस नहीं होगी. लेकिन स्थानीय निवासियों के हिंसक विरोध से देर हो सकती है, खर्च बढ़ सकता है. हिंदू राष्ट्रवादी शिव सेना इस आंदोलन में कूद पड़ी है. यह पार्टी अपने विरोध के जरिये महाराष्ट्र में अब तक कई परियोजनाओं को रोकने में सफल रही है.

संकलन: अना लेमान्न/उभ

संपादन: एमजी

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