जर्मनी के बैर्टेल्समन फाउंडेशन ने कहा है कि विश्व में ऐसे लोकतांत्रिक देशों की तादाद बढ़ी है जहां कानून का राज और लोगों की राजनैतिक आजादी कम हुई है.
विज्ञापन
र्बैर्टेल्समन फाउंडेशन की एक स्टडी में बताया गया है कि पहले के मुकाबले अब ज्यादा लोगों पर गैरलोकतांत्रिक शासन चल रहा है. स्टडी में पाया गया है कि ऐसे दमनकारी शासन और बढ़ती असमानता के कारण विश्व की अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ रहा है.
जर्मन फाउंडेशन ने दुनिया में लोकतंत्र के कमजोर होते जाने का कारण सत्ता द्वारा शक्तियों का दुरुपयोग और अपने करीबियों को अहम पदों पर नियुक्त करने के चलन को ठहराया है. विशेषज्ञों का मानना है कि इससे सामाजिक और आर्थिक असमानता की खाई और गहराती जाती है. फिलहाल जिस कोरोना वायरस की महामारी की चपेट में पूरा विश्व आया हुआ है, फाउंडेशन उसे भी वैश्विक लोकतंत्र के लिए खतरा बढ़ाने वाला बताता है.
भारत में कैसे हैं हाल
स्टडी के लेखकों ने पाया कि भारत में हिन्दू राष्ट्रवाद के बढ़ने के कारण "कभी स्थिर लोकतंत्र वाले देश में कानून और नागरिक स्वतंत्रता का शासन ध्वस्त हुआ है.” रिसर्चरों ने ऐसी ही टिप्पणी दक्षिणपंथी पॉपुलिज्म के उत्थान के चलते ब्राजील और यूरोपीय देश हंगरी के बारे में भी की है. कहा गया है कि वहां "अधिनायकवादी मार्ग" पर बढ़ा जा रहा है. लेखकों ने बताया कि ऐसे बदलाव राजनैतिक ध्रुवीकरण की ओर इशारा करते हैं और इसके साथ ही वहां विपक्ष के अलावा जातीय या धार्मिक अल्पसंख्यकों का दमन भी होता है.
र्बैर्टेल्समन फाउंडेशन के एक्जीक्यूटिव बोर्ड की सदस्य ब्रिगिटे मोन का कहना है, "राष्ट्रवाद और भाईभतीजावाद कोई नई बात नहीं है लेकिन अब दुनियाभर में जैसे इसे स्वीकार्यता मिल गई है. यहां तक कि पोलैंड और हंगरी जैसे देश जो पहले लोकतंत्र के मामले में आगे हुआ करते थे, यूरोप के दिल में बसे इन देशों में भी अब कानून के राज और लोकतंत्र की क्वालिटी को लेकर खतरे की चेतावनी देने वाले झटके मिल रहे हैं.”
आज तक की सबसे खराब रेटिंग
फाउंडेशन ने 2004 में ‘ग्लोबल ट्रांसफॉर्मेशन इंडेक्स' (बीटीआई) की शुरुआत की थी. तब से लेकर हर दो साल में फाउंडेशन ऐसे सर्वे निकालती है जिसमें विकासशील और बदलावों से गुजर रहे देशों में राजनैतिक और आर्थिक प्रगति का अध्ययन किया जाता है.
सर्वे के छठवें संस्करण में एक बार फिर लोकतंत्र, अर्थव्यवस्था और शासन की गुणवत्ता कम होती नजर आई है. यानि जब से यह सर्वे शुरु हुए तब से लेकर अब तक की सबसे कम रेटिंग दर्ज हुई है. इसमें कुल 137 देशों को देखा गया, जिसमें से 74 को बीटीआई लोकतंत्र और 63 को ऑटोक्रेसी यानि निरंकुश शासन वाले देश मानता है.
नए प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में चार स्कैंडेनेवियाई देशों को पत्रकारों के लिए सबसे अच्छा माना गया है. भारत, पाकिस्तान और अमेरिका में पत्रकारों का काम मुश्किल है. जानिए रिपोर्टस विदाउट बॉर्डर्स के इंडेक्स में कौन कहां है.
तस्वीर: Getty Images/C. McGrath
1. नॉर्वे
दुनिया भर में प्रेस की स्वतंत्रता के मामले में नॉर्वे पहले स्थान पर कायम है. वैसे दुनिया में जब भी बात लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आती है तो नॉर्वे बरसों से सबसे ऊंचे पायदानों पर रहा है. हाल में नॉर्वे की सरकार ने एक आयोग बनाया है जो देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की परिस्थितियों की व्यापक समीक्षा करेगा.
तस्वीर: Fotolia/Alexander Reitter
2. फिनलैंड
नॉर्वे का पड़ोसी फिनलैंड पिछले साल की तरह इस बार भी प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में दूसरे स्थान पर है. जब 2018 में हेलसिंकी में अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की मुलाकात हुई तो एयरपोर्ट से लेकर शहर तक पूरे रास्ते पर अंग्रेजी और रूसी भाषा में बोर्ड लगे थे, जिन पर लिखा था, "श्रीमान राष्ट्रपति, प्रेस स्वतंत्रता वाले देश में आपका स्वागत है."
डेनमार्क प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में एक साल पहले के मुकाबले दो पायदान की छलांग के साथ पांचवें से तीसरे स्थान पर पहुंचा है. 2015 के इंडेक्स में भी उसे तीसरे स्थान पर रखा गया था. लेकिन राजधानी कोपेनहागेन के करीब 2017 में स्वीडिश पत्रकार किम वाल की हत्या के बाद उसने अपना स्थान खो दिया था.
तस्वीर: AP
4. स्वीडन
1776 में दुनिया का पहला प्रेस स्वतंत्रता कानून बनाने वाला स्वीडन इस इंडेक्स में चौथे स्थान पर है. पिछले साल वह तीसरे स्थान पर था. वहां कई लोग इस बात से चिंतित हैं कि बड़ी मीडिया कंपनियां छोटे अखबारों को खरीद रही हैं. स्थानीय मीडिया के 50 फीसदी से ज्यादा हिस्से पर सिर्फ पांच मीडिया कंपनियों का कब्जा है.
तस्वीर: Reuters
5. नीदरलैंड्स
अंतरराष्ट्रीय मानकों के हिसाब से नीदरलैंड्स में मीडिया स्वतंत्र है. हालांकि स्थापित मीडिया पर चरमपंथी पॉपुलिस्ट राजनेताओं के हमले बढ़े हैं. इसके अलावा जब डच पत्रकार दूसरे देशों के बारे में नकारात्मक रिपोर्टिंग करते हैं तो वहां की सरकारें डच राजनेताओं पर दबाव डालकर मीडिया के काम में दखलंदाजी की कोशिश करती हैं.
तस्वीर: Reuters/F. Lenoir
6. जमैका
कैरेबियन इलाके का छोटा सा देश जमैका प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में छठे स्थान पर है. वहां 2009 से प्रेस की स्वतंत्रता को कोई खतरा और फिर पत्रकारों के खिलाफ हिंसा का कोई गंभीर मामला देखने को नहीं मिला है. हालांकि रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स कुछ कानूनों को लेकर चिंतित है जिन्हें पत्रकारों के खिलाफ इस्तेमाल किया जा सकता है.
तस्वीर: imago/Ralph Peters
7. कोस्टा रिका
पूरे लैटिन अमेरिका में मानवाधिकारों और प्रेस स्वतंत्रता का सम्मान करने में कोस्टा रिका का रिकॉर्ड सबसे अच्छा है. यह बात इसलिए भी अहम है क्योंकि पूरा इलाका भ्रष्टाचार, हिंसक अपराधों और मीडिया के खिलाफ हिंसा के लिए बदनाम है. लेकिन कोस्टा रिका में पत्रकार आजादी से काम कर सकते हैं और सूचना की आजादी की सुरक्षा के लिए वहां कानून हैं.
तस्वीर: picture alliance/maxppp/F. Launette
8. स्विट्जरलैंड
मोटे तौर पर स्विटजरलैंड में राजनीतिक और कानूनी परिदृश्य को पत्रकारों के लिए बहुत सुरक्षित माना जा सकता है, लेकिन 2019 में जिनेवा और लुजान में कई राजनेताओं ने पत्रकारों के खिलाफ मुकदमे किए. इससे मीडिया को लेकर लोगों में अविश्वास पैदा हो सकता है. पहले वहां मीडिया की आलोचना तो होती थी लेकिन शायद ही कभी मुकदमे होते थे.
तस्वीर: dapd
9. न्यूजीलैंड
न्यूजीलैंड में प्रेस स्वतंत्र है लेकिन कई बार मीडिया ग्रुप मुनाफे के चक्कर में अपनी स्वतंत्रता और बहुलतावाद का ध्यान नहीं रखते हैं जिससे पत्रकारों के लिए खुलकर काम कर पाना संभव नहीं होता. जब मुनाफा अच्छी पत्रकारिता की राह में रोड़ा बनने लगे तो प्रेस की स्वतंत्रता प्रभावित होने लगती है. फिर भी, न्यूजीलैंड का मीडिया बहुत से देशों से बेहतर है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Melville
10. पुर्तगाल
180 देशों वाले इस इंडेक्स में पुर्तगाल दसवें पायदान पर है. हालांकि वहां पत्रकारों को बहुत कम वेतन मिलता है और नौकरी को लेकर भी अनिश्चित्तता बनी रहती है, लेकिन रिपोर्टिंग का माहौल तुलनात्मक रूप से बहुत अच्छा है. हालांकि कई समस्या बनी हुई हैं. यूरोपीय मानवाधिकार न्यायालय के आदेशों के बावजूद पुर्तगाल में अपमान और मानहानि को अपराध के दायरे में रखा गया है.
तस्वीर: picture alliance/Global Travel Images
11. जर्मनी
प्रेस की आजादी को जर्मनी में संवैधानिक संरक्षण प्राप्त है लेकिन दक्षिणपंथी लगातार जर्मन मीडिया को निशाना बना रहे हैं. हाल के समय में पत्रकारों पर ज्यादातर हमले धुर दक्षिणपंथियों के खाते में जाते हैं, लेकिन कुछ मामलों में अति वामपंथियों ने भी पत्रकारों पर हिंसक हमले किए हैं. दूसरी तरफ डाटा सुरक्षा और सर्विलांस को लेकर भी लगातार बहस हो रही है.
तस्वीर: picture-alliance/ZB
भारत और दक्षिण एशिया
प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत को बहुत पीछे यानी 142वें स्थान पर रखा गया है. रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के मुताबिक 2019 में बीजेपी की दोबारा जीत के बाद मीडिया पर हिंदू राष्ट्रवादियों का दबाव बढ़ा है. अन्य दक्षिण एशियाई देशों में नेपाल को 112वें, श्रीलंका को 127वें, पाकिस्तान को 145वें और बांग्लादेश को 151वें स्थान पर रखा गया है.
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/N. Kachroo
अमेरिका, चीन और रूस
इंडेक्स के मुताबिक अमेरिका 42वें स्थान पर है. वहां प्रेस की आजादी को राष्ट्रपति ट्रंप के कारण लगातार नुकसान हो रहा है. लेकिन दो अन्य ताकतवर देशों चीन और रूस में स्थिति और भी खतरनाक है. रूस की स्थिति में पिछले साल के मुकाबले कोई बदलाव नहीं हुआ और वह 149 वें स्थान पर है जबकि चीन नीचे से चौथे पायदान यानी 177वें स्थान पर है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/D. Irungu
पत्रकारों के लिए सबसे खराब देश
इंडेक्स में उत्तर कोरिया (180), तुर्कमेनिस्तान (179) और इरीट्रिया सबसे नीचे है. किम जोंग उन के शासन वाले उत्तर कोरिया में पूरी तरह से निरंकुश शासन है. वहां सिर्फ सरकारी मीडिया है. जो सरकार कहती है, वही वह कहता है. इरीट्रिया और तुर्कमेनिस्तान में भी मीडिया वहां की सरकारों के नियंत्रण में ही है.