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जर्मन मुस्लिमों को रिझाने में कामयाब हुए पोप

२५ सितम्बर २०११

पांच साल पहले जर्मन शहर रेगेनबर्ग में पोप बेनेडिक्ट 16वें का दिया भाषण जर्मन मुस्लिमो को आहत कर गया पर बर्लिन में पोप ने सारा हिसाब चुकता कर दिया. अब जर्मनी के मुसलमान पोप से खुश हो गए हैं.

तस्वीर: dapd

मुस्लिम नेताओं ने बर्लिन में एक बैठक के दौरान पोप की तारीफ करते हुए कहा है कि वह मुस्लिम समुदाय तक पहुंचने में कामयाब हुए हैं. मुस्लिम लोगों की जर्मन संस्था मुस्लिम काउंसिल ऑफ जर्मनी के प्रमुक आयमान माजयेक ने समाचार एजेंसी डीपीए से कहा, "निश्चित रूप से एक नया अध्याय शुरू हुआ है. उन्होंने साफ कर दिया है कि हमारी बहुत सारी नीतियां एक जैसी हैं." बैठक में शामिल 15 सदस्यों वाले मुस्लिम विद्वानों और समासेवियों के प्रतिनिधिमंडल में माजयेक भी हैं. उन्होंने कहा,"जर्मन समाज में मुस्लिम परिवारों को इज्जत देना खासतौर से सबसे बड़ी बात है. उन्होंने कहा कि मुस्लिम इसका अहम हिस्सा हैं और उनकी धार्मिकता पर होने वाले हमलों से उन्होंने बचाव भी किया."

तस्वीर: dapd

पिछला विवाद

2006 में जब पिछली बार पोप जर्मनी आए थे तब उन्होंने अंकारा में छपी एक किताब की कुछ लाइनों का जिक्र कर मुस्लिम समुदाय की भावनाओं को आहत कर दिया था. उनके खिलाफ दुनियाभर में तब प्रदर्शन हुआ. बाद में उन्हें इसके लिए माफी भी मांगनी पड़ी. उन्होंने कहा कि उनका इरादा मुस्लिमों का अपमान करने का नहीं था और वह उन बातों को नहीं मानते बल्कि वह तो धार्मिक बातचीत को बढ़ावा देना चाहते हैं. इसके बाद से ही दोनों धर्मों के बीच पैदा हुई इस दरार को भरने के लिए लगातार कोशिशें हो रही हैं. रिश्ते सुधारने के लिए पोप ने तुर्की की यात्रा की और इस दौरान इस्तांबुल की नीली मस्जिद में मुफ्ती मुस्तफा कागरिची के साथ नंगे पांव गए.

2009 में जॉर्डन की यात्रा के दौरान पोप ने किंग अब्दुल्लाह द्वीतीय से कहा कि उनके मन में , "इस्लाम के लिए बहुत आदर है." शुक्रवार को बर्लिन में पोप ने कहा, "जीवन में धार्मिक आयामों के लिए बहुत से मुस्लिमों का बड़ा योगदान है. कभी कभी इसे भड़काऊ समझ लिया जाता है जिससे कि धर्म अलग थलग पड़ जाता है लेकिन ज्यादातर मामलों में यह लोगों की निजी पसंद में शामिल है. कैथोलिक चर्च इस बात की पुरजोर वकालत करता है कि धार्मिक लगावों के सार्वजनिक आयामों को जरूरी महत्व दी जानी चाहिए." पोप ने कहा कि 1970 से ही जर्मनी के लिए मुस्लिम समुदाय एक महत्वपूर्ण पहचान बन गया है.

तस्वीर: dapd

जर्मनी के लिए संवेदनशील मसला

जर्मनी के लिए इस्लाम एक संवेदनशील विषय है. यहां की 8.2 करोड़ की आबादी में करीब 38-43 लाख लोग मुस्लिम हैं. इनमें से दो तिहाई तुर्क मूल के हैं और 45 फीसदी जर्मन नागरिक हैं. पिछले साल जर्मनी के केंद्रीय बैंक के बोर्ड के सदस्य और विपक्षी सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी नेता थिलो साराजिन ने एक किताब के जरिये हलचल मचा दी थी. डॉयलैंड शाफ्ट सिष अब नाम की इस किताब में दलील दी गई कि मुस्लिम देशों से आए प्रवासी जर्मनी के लिए खतरा हैं.

इस किताब के आने के बाद साराजिन को जर्मन बैंक से इस्तीफा देना पड़ा और सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी ने भी उन्हें पद से हटाने की कोशिश की. बहुत से जानकारों का कहना है कि उन्होंने जो कहा वह बहुत से लोग कहना चाहते हैं लेकिन इतनी ऊंची आवाज में बोलने से डरते हैं. जर्मनी जानता है कि अफगानिस्तान में नाटो के नेतृत्व में चल रही कार्रवाई में शामिल होने के कारण वह आतंकवादियों के निशाने पर आ गया है. जर्मनी में इस्लामिक आतंकवादियों से प्रेरणा पाकर हुए पहले हमले में एक 21 साल के जर्मन मुस्लिम ने दो अमेरिकी वायुसैनिकों को मार डाला जो अफगानिस्तान जा रहे थे. फ्रैंकफर्ट के हवाई अड्डे पर मारने से पहले उनसे पूछा गया कि वह कहां जा रहे हैं.

पिछले हफ्ते बर्लिन में दो मुस्लिम युवकों को गिरफ्तार किया गया जिन के बारे में माना जाता है कि उनके अफगानिस्तान के आतंकवादी संगठन से संबंध हैं. इनकी गिरफ्तारी 11 सितंबर को न्यूयॉर्क पर हुए हमलों की 10वीं बरसी से ठीक पहले हुई.

तस्वीर: dapd

जर्मनी में मुस्लिम

राष्ट्रपति क्रिस्टियान वुल्फ ने पिछले साल एकीकरण दिवस पर दिए अपने भाषण में एलान कर दिया कि इस्लाम जर्मनी का नहीं है उधर चांसलर अंगेला मैर्केल ने कहा कि धर्म का स्वागत है लेकिन मुस्लिमों को जर्मन मान्यताओं में आस्था दिखानी होगी. फ्रांस, बेल्जियम और नीदरलैंड्स समेत यूरोप के बाकी देशों में सार्वजनिक रूप चेहरा ढकने पर पाबंदी लगा दी गई है. बहुत सारे लोग इसे मुस्लिमों की धार्मिक आजादी में दखलंदाजी के रूप में देखते हैं.

शुक्रवार को दिए अपने भाषण में पोप ने हाल में हुए बदलावों पर ज्यादा कुछ नहीं कहा उनका सारा जोर इस बात पर ही रहा कि ईसाइयों और मुस्लिमों को मिल कर काम करना चाहिए. पोप ने कहा, "एक बेहतर दुनिया बनाने में हम जैसे लोगों की बड़ी भूमिका है जो ये मानते हैं कि हमारे काम प्रभावशाली हों इसके लिए हमारे बीच वार्ता और एक दूसरे के लिए सम्मान होना चाहिए."

म्यून्सस्टर यूनिवर्सिटी में इस्लाम पढ़ाने वाले प्रोफेसर मौहानाद खोरशिडे भी इस बैठक में शामिल थे. वह मुस्लिम प्रतिनिधिमंडल के प्रवक्ता हैं. उन्होने कहा, "मुस्लिमों और ईसाइयों ने इस बैठक में इस बात पर जोर दिया कि हम सब एक ही खुदा में भरोसा करते हैं." खोरशिडे के मुताबिक यह अहम है कि, "हम ईश्वर के बारे में ही बात कर रहे हैं, किसी और विषय या राजनीतिक सत्ता के बारे में नहीं."

रिपोर्टः एजेंसियां/एन रंजन

संपादनः वी कुमार

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