1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

जर्मन विदेश मंत्री की नई आलोचना

२७ अगस्त २०११

जर्मन विदेश मंत्री गीडो वेस्टरवेले एक बार फिर आलोचनाओं में घिर गए हैं. वेस्टरवेले के मुताबिक संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों के चलते ही लीबियाई शासक मुअम्मर गद्दाफी का पतन शुरू हुआ. उनके इस बयान से साथी और जनता चिढ़ी.

तस्वीर: dapd

'मुझे सब पता है' वाले अंदाज के लिए मशहूर हो चुके जर्मन विदेश मंत्री को ताजी आलोचना देश के बाहर और भीतर झेलनी पड़ रही है. गीडो वेस्टरवेले ने शुक्रवार को कहा कि गद्दाफी का पतन संयुक्त राष्ट्र के लगाए आर्थिक प्रतिबंधों की वजह से हुआ. वेस्टरवेले ने लीबिया में गद्दाफी के खिलाफ विद्रोहियों के संघर्ष और नाटो की हवाई मदद को नजरअंदाज किया.

विदेश मंत्री ने यह भी कहा, "प्रतिबंधों और अंतरराष्ट्रीय मंच पर अलग थलग पड़ जाने से महत्वपूर्ण नतीजे आए. इसकी वजह से गद्दाफी शासन को नई चीजों की खेप नहीं मिल पाई." बयान ने नाटो के सदस्य देशों को नाराज किया है. मार्च में भी जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में लीबिया के खिलाफ कार्रवाई पर मतदान हो रहा था तो जर्मनी ने खुद को इससे दूर रखा. बर्लिन के रुख से सहयोगी देशों की भौंहें टेढ़ी हुई. वेस्टरवेले अपने फैसले का बचाव कहते रहे. माना जाता है कि जर्मनी की  जनता युद्ध से नफरत करती है. वेस्टरवेले और उनकी पार्टी को लगा कि लीबिया के मामले से दूर रहकर वह जनता के पसंदीदा बने रहेंगे.

तस्वीर: dapd

लीबिया पर फंसा जर्मनी

प्रांतीय चुनावों में वेस्टरवेले की पार्टी एफडीपी की करारी हार ने कई नई बातें सामने रखीं. ओपिनियन पोल में कई लोगों ने माना कि जर्मनी खुद को लीबिया से दूर रख रहा है, इसे गलत करार दिया गया. चुनावों में खराब प्रदर्शन के बाद वेस्टरवेले को एफडीपी के मुखिया का पद भी छोड़ना पड़ा. उन्हें द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद से अब तक जर्मनी का सबसे अलोकप्रिय विदेश मंत्री माना जा चुका है.

लीबिया पर उनके ताजा बयान ने जर्मनी के लोगों को भी नाराज किया है. कई लोग मानने लगे हैं कि वेस्टरवेले अपने ही सब्जबाग में जीते हैं. लीबिया में विद्रोहियों की मिलती सफलता के बीच अब जर्मन सरकार भी पसोपेश में पड़ गई है. गद्दाफी का राज करीबन खत्म हो चुका है. इन बदलावों के बाद जर्मनी का कहना है कि वह नया लीबिया बनाने में मदद देगा.

तस्वीर: dapd

क्या करे जर्मनी

जर्मन विदेश नीति से जुड़े नेताओं और अधिकारियों को एहसास हो गया है कि अब उन्हें गद्दाफी के बाद वाले लीबिया के साथ संबंध बनाने हैं. विद्रोहियों को जर्मनी ने सीधी मदद नहीं दी, लिहाज मधुर संबंध बनाने में जर्मनी को ज्यादा मेहनत करनी पड़ेगी. फ्रांस, ब्रिटेन, इटली, अमेरिका और तुर्की पहले ही विद्रोहियों की आंखों की तारे बन चुके हैं. आने वाले वर्षों में लीबिया की तरफ से दी जाने वाली रियायतें इन देशों को ही मिलेंगी. चीन भी मौका भुनाने के लिए स्थिति पर बारीक नजर रखे हुए है.

दरअसल लीबिया के पास कच्चे तेल का अकूत भंडार है. अभी यह साफ नहीं है कि लीबिया की नई सत्ता तेल नीति कैसे बनाएगी. लेकिन यह तय है कि शांति बहाल होते ही लीबिया दूसरे देशों को तेल बेचने लगेगा. शांति के लिए लीबिया के सभी समुदायों और कबायली समूहों को एक होना होगा. उम्मीद है कि शांति बहाली के लिए नाटो पहल करेगा. जर्मन रक्षा मंत्रालय ने संकेत दिए हैं कि अगर नाटो ने जर्मनी से मदद मांगी तो बर्लिन अब दोस्ताना रुख अपनाएगा.

रिपोर्ट: एजेंसियां/ओ सिंह

संपादन: एन रंजन

 

 

 

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें
डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें