मजबूत मैर्केल कमजोर विपक्ष
१७ दिसम्बर २०१३चांसलर अंगेला मैर्केल के नेतृत्व में जर्मनी में नई सरकार बनने के साथ राजनीतिक मंच पर नए विपक्ष ने भी जगह ली है. लेकिन नई संसद में विपक्ष इतना कमजोर है, जितना पिछले 40 साल में पहले कभी नहीं देखा गया. पिछले साल गठबंधन सरकार में शामिल रही एफडीपी पार्टी इस बार संसद में नहीं है और एसपीडी ने सबसे बड़ी पार्टी सीडीयू-सीएसयू के साथ महागठबंधन बना लिया है.
विपक्ष में सिर्फ छोटी पार्टियां वामपंथी डी लिंके और ग्रीन पार्टी रह गई है. 631 सदस्यों वाली संसद में दोनों विपक्षी पार्टियों के कुल 127 सदस्य हैं. इस लिहाज से उनकी ताकत करीब 20 प्रतिशत के बराबर है. जर्मन संसद के नियमों के अनुसार अल्पसंख्यक अधिकारों का इस्तेमाल करने के लिए यह काफी नहीं है. हालांकि यूनियन पार्टियां और एसपीडी विपक्ष को काम करने की परिस्थितियां देने को तैयार हैं, लेकिन ऐसा किस रास्ते से किया जाए इस पर विवाद है.
इससे पहले भी जर्मनी में ऐसा मौका आया है जब विपक्ष बहुत ही कमजोर रहा है. साठ के दशक में जब पहली बार महागठबंधन सरकार बनी थी, तो न तो डी लिंके का और ना ही ग्रीन पार्टी अस्तित्व में थी. उस समय एकमात्र विपक्षी पार्टी एफडीपी थी और उसे भी सिर्फ 10 प्रतिशत सीटें मिली थीं. संसद में सिर्फ 10 प्रतिशत सांसदों के साथ सरकारी दलों का मुकाबला करना संभव नहीं था. 2005 से 2009 के बीच जब जर्मनी में दूसरी बार महागठबंधन सरकार बनी तो सत्ताधारी मोर्चे के पास 73 प्रतिशत सीटें थीं जबकि एफडीपी, ग्रीन और लिंके को मिलाकर एक चौथाई विपक्षी सांसद थे.
विपक्ष के कमजोर होने का संसद पर यह असर होगा कि वह ठीक से काम नहीं कर पाएगी. विपक्ष को संविधान और संसदीय नियमावली में बहुत से अधिकार दिए गए हैं, लेकिन उनमें से ज्यादातर अधिकारों के इस्तेमाल के लिए एक चौथाई सांसदों का समर्थन जरूरी है. उनमें से सबसे महत्वपूर्ण है सरकार की गलतियों की जांच करने के लिए संविधान की धारा 44 के तहत जांच आयोग का गठन. सरकार द्वारा बनाए गए कानूनों की संवैधानिकता की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट में अपील करने के लिए भी 25 प्रतिशत सांसदों का समर्थन जरूरी है.
संवैधानिक अधिकारों के अलावा संसदीय अधिकारों के इस्तेमाल की राह में भी बाधाएं हैं. संसदीय नियमावली के अनुसार संसद का विशेष अधिवेशन बुलाने के लिए भी 25 प्रतिशत सांसदों का समर्थन आवश्यक है. यह बात जांच आयोग में खुली सुनवाई के फैसले के लिए भी जरूरी है. इसके अलावा विपक्षी दल संसद में बहस के दौरान आनुपातिक आधार पर मिलने वाले समय से ज्यादा समय की मांग कर रहे हैं. मौजूदा नियमों के अनुसार विपक्ष को सरकार के विपरीत घंटे में सिर्फ 12 मिनट मिलेंगे.
हालांकि सत्ताधारी मोर्चे ने गठबंधन समझौते में तय किया है कि संसद में विपक्ष को अल्पमत अधिकारों की रक्षा की संभावना देने का प्रस्ताव पास किया जाएगा और भाषण के समय के मामले में विपक्षी सांसदों का ध्यान रखा जाएगा. मोर्चे ने लिंके को घंटे में 16 मिनट विपक्ष के लिए देने का वादा किया है लेकिन ग्रीन पार्टी को यह मंजूर नहीं है. विपक्षी दलों के बीच भी मतभेद हैं. लिंके विपक्ष के अधिकारों की सुरक्षा के लिए संवैधानिक संशोधन की मांग कर रहा है तो ग्रीन पार्टी का कहना है कि संसदीय नियमावली में संशोधन काफी है. एक बात पर सब सहमत हैं कि सरकारी मोर्चे पर विपक्ष की निर्भरता नहीं होनी चाहिए.
एमजे/एजेए (डीपीए)