जर्मन सेना अपने बेड़े में इस्राएली हैरोन टीपी ड्रोन विमानों को शामिल करने का इरादा कर चुकी है. पहली बार बुंडेसवेयर के पास हथियार ले जाने में सक्षम ड्रोन होंगे. लेकिन उसे इनकी जरूरत क्या है?
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जर्मन सेना लंबे समय से हथियार ले जाने में सक्षम ड्रोन हासिल करना चाहती थी. लगता है अब उसकी यह इच्छा पूरी होने जा रही है. इसके लिए रकम मुहैया कराने के लिए चांसलर अंगेला मैर्केल की सरकार को लगभग राजी कर लिया गया है.
जर्मन अखबार ज्यूडडॉयचे साइटुंग को मिली लीक जानकारी के मुताबिक जर्मन सेना ने सरकार से 90 करोड़ यूरो मांगे हैं ताकि वह अगले नौ साल के लिए इस्राएल से पांच हैरोन टीपी ड्रोन लीज पर ले सके. अभी जर्मन सेना निगरानी के लिए हैरोन 1 ड्रोन इस्तेमाल करती है. हैरोन टीपी ड्रोन इससे ज्यादा सक्षम और आधुनिक हैं. जिन हथियारों को हैरोन टीपी ले जाने में सक्षम हैं, वे इस डील का हिस्सा नहीं होंगे.
देखिए ड्रोन में उड़ेगा इंसान
ड्रोन में उड़ेगा इंसान
इंसान को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने वाले यातायात साधनों की दुनिया में एक नई खोज क्रांति ला सकती है. जानिए ड्रोन जैसे दिखने वाले वोलोकॉप्टर की खूबियां.
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एक जर्मन कंपनी शहरी यातायात के नए युग में प्रवेश की तैयारी कर रही है. इसके आविष्कार दुनिया के पहले सर्टीफाइड मल्टीकॉप्टर में इंसान को उड़ाना चाहती है.
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मल्टीकॉप्टर को केवल एक हाथ या यूं कहें कि केवल एक जॉयस्टिक से उड़ाया जा सकता है. निर्माता मानते हैं कि इस सरल कंट्रोल सिस्टम के कारण उड़ान में मानव त्रुटियों की संभावना कम होगी.
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इसमें ऑटोमेटिक आल्टीट्यूड कंट्रोल है जिससे वोलोकॉप्टर एक खास ऊंचाई पर बिना ड्राइवर के हाथ लगाए उड़ता रह सकता है. यह भविष्य में एयर टैक्सी के रूप में भी काम आ सकता है.
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दूसरे हेलिकॉप्टरों की ही तरह इसमें सीधी टेकऑफ और लैंडिंग होती है. मगर पायलटों के लिए वोलोकॉप्टर VC200 को उड़ाना सीखना बेहद आसान होगा.
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इसमें रीचार्जेबल बैटरियां लगाई गई हैं जो पर्यावरण के लिहाज से एक अच्छी तकनीक है. बैटरी से चलने वाले टू-सीटर वोलोकॉप्टर में 20 से 30 मिनट लंबी उड़ान भरी जा सकती है.
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इसे ई-वोलो कंपनी ने डिजायन किया है. फरवरी 2016 में जर्मन प्रशासन ने इसे एक बेहद हल्के एयरक्राफ्ट के तौर पर 'परमिट टु फ्लाई' भी दे दिया. टीम ने इसे बनाने की शुरुआत तीन साल पहले की थी.
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इसे स्पोर्ट्स फ्लाइंग के लिए पहले ही सर्टिफिकेट मिल चुका है. हेलिकॉप्टर के ऊपर 18 रोटर लगे हैं जो बैटरी से चलते हैं. निर्माता इसे आज तक का सबसे इको-फ्रेंडली हेलिकॉप्टर बता रहे हैं.
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हैरोन टीपी मानव रहित विमानों की हैरोन श्रृंखला में अत्याधुनिक ड्रोन विमान हैं जिन्हें इस्राएल की सरकारी कंपनी इस्राएल एयरोस्पेस इंडस्ट्री (आईएआई) ने तैयार किया है. 14 मीटर लंबे और 26 मीटर चौड़े ये विमान लगातार 36 घंटे की उड़ान भरने में सक्षम हैं और ये 12,500 फुट की ऊंचाई तक जा सकते हैं. इनमें 1,200 हॉर्सपावर का इंजन लगा है.
यूरोपियन काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस (ईसीएफआर) में ड्रोन मामलों की विशेषज्ञ उलरिके फ्रांके का कहना है, "क्षमता के मामले में यह ड्रोन प्रीडेटर या रीपर ड्रोनों के बराबर है, जिनका इस्तेमाल अमेरिका करता है." उनके मुताबिक, "लेकिन प्रीडेटर ड्रोन इसके मुकाबले पुराने हैं और जर्मन इंजीनियर उनकी आलोचना करते हैं क्योंकि उनका सिस्टम उतना अत्याधुनिक नहीं है."
दुनिया में कई देशों की सेनाएं और पुलिस हैरोन ड्रोनों का इस्तेमाल कर रही हैं जिनमें भारत, ब्राजील, कनाडा, ग्रीस, तुर्की और अमेरिकी नौसेना शामिल हैं.
हैरोन टीपी ड्रोन हथियार ले जाने में सक्षम हैं, इसीलिए जर्मन सेना कई साल से उन्हें अपने बेड़े में शामिल करना चाहती थी. हालांकि सरकार की तरफ से इस बारे में कोई जानकारी नहीं है कि किस तरह की मिसाइलों से इन ड्रोन विमानों को लैस किया जाएगा.
ड्रोन का मुकाबला करेंगे फ्रांस के बाज, देखिए
ड्रोन का मुकाबला करेंगे फ्रांस के बाज
फ्रांस की सेना ने ड्रोन से लड़ने के लिए बाजों की फौज बनाई है. इसके लिए बाजों को बकायदा ट्रेनिंग दी जा रही है. आतंकवादी ड्रोन का इस्तेमाल कर रहे हैं, उन्हीं को रोकने के लिए सेना ने यह कदम उठाया है.
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खास तैयारी जन्म के पहले से ही
बाज के चार अंडों को ड्रोन पर रख कर ही उनमें से बच्चों के निकलने की प्रक्रिया पूरी कराई गई. पैदा होने के बाद भी बाजों को इन्हीं ड्रोन पर रख कर खिलाया जाता था. नतीजा यह हुआ कि वे ड्रोन से अच्छी तरह परिचित हो गए.
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बाजों की ट्रेनिंग
पिछले साल जन्मे चार गोल्डेन ईगल यानी सुनहरे बाजों को सेना की निगरानी में ड्रोन से लड़ने के लिए ट्रेनिंग दी जा रही है. इनके नाम हैं अथोस, पोर्थोस, अरामिस और डे आर्टांगनान
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ड्रोन का पीछा
इन बाजों ने हरे घास के मैदानों में पिछले दिनों ड्रोन का पीछा किया और फिर चोंच के वार से उन्हें गिरा दिया, इस कामयाबी पर उन्हें पुरस्कार में मांस मिला जिसे उन्होंने उन्हीं ड्रोन के ऊपर बैठ कर खाया.
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तेज रफ्तार
बाजों ने ड्रोन का पीछा करते हुए 20 सेकेंड में 200 मीटर तक की दूरी तय कर ली. फिर गोता लगा कर उसके साथ साथ ही घास के मैदान पर नीचे आ गए.
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फ्रांस का डर
फ्रांस को पहले ड्रोन से डर नहीं लगता था, शहरों में और दूसरी जगहों पर भी वे अकसर उड़ान भरते थे लेकिन 2015 में ड्रोन को सैन्य ठिकानों और राष्ट्रपति के आवास के आसपास उड़ते देख सेना सजग हो गई.
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आतंकवादी हमले
2016 में हुए आतंकवादी हमलों के बाद से फ्रांस खासतौर से चिंतित हुआ है. उसे डर है कि ड्रोन का इस्तेमाल आतंकवादी अपने मंसूबों के लिए कर सकते हैं और उसी से बचने के लिए बाजों को तैयार किया जा रहा है.
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शिकारी बाज
तेज रफ्तार, तीखी नजर और चोंच के वार से हड्डियों को चूर कर देने की ताकत बाज को बेहतरीन शिकारी बनाते हैं. शिकार के लिए इनका इस्तेमाल सदियों से हो रहा है जो इस इंटरनेट दौर में भी जारी है.
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शिकारी बाजों का अगला बैच
बहुत जल्द ही अगले बैच के लिए बाज के अंडों से बाज पैदा करने के लिए उसी प्रक्रिया को दोहराया जाएगा. बाज के नाखूनों और चोंच की रक्षा के लिए खास तरह के चमड़े के दस्ताने भी बनवाए गए हैं.
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निगरानी और टोह लेने की जर्मन सेना की जरूरतों को हैरोन 1 बखूबी पूरी करता है, तो फिर हैरोन टीपी ड्रोनों की क्या जरूरत है? फ्रांके का कहना है कि ड्रोन पायलटों की लंबे समय से शिकायत रही है कि जमीन पर मौजूद सैनिकों पर हमला होने की स्थिति में वे उन्हें बचाने में सक्षम नहीं हैं.
वह बताती हैं, "मैंने कई जर्मन हैरोन 1 के पायलटों से बात की है और उन्होंने बताया कि वे कितने हताश होते हैं जब वे जमीन पर मौजूद सैनिकों के ऊपर हवा में होते हैं, तो उन्हें बता रहे होते हैं कि क्या हो रहा है, लेकिन जब इन सैनिकों पर हमला होता है तो वे सिर्फ इतना ही बताने की स्थिति में होते हैं कि उन पर हमला कहां से हुआ है."
उन्होंने डॉ़यचे वेले से बातचीत में कहा, "मुझे उम्मीद है कि अमेरिका की तरह जर्मन सेना इन ड्रोनों का इस्तेमाल आधिकारिक युद्धक्षेत्र से बाहर टारगेट किलिंग के लिए नहीं करेगी."
एक से एक ड्रोन बनाता चीन
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फिलहाल जर्मन सेना माली और अफगानिस्तान में इन ड्रोनों का इस्तेमाल कर सकती है जहां उसके सैनिक तैनात हैं. एक सवाल यह भी है कि एक हैरोन टीपी ड्रोन की कीमत एक करोड़ यूरो है तो फिर इनके लिए 90 करोड़ यूरो किसलिए चाहिए?
मार्च में आई जर्मन रक्षा मंत्रालय की एक रिपोर्ट कहती है कि 72 करोड़ यूरो में से ज्यादातर रकम हैरोन टीपी विमानों को जर्मन जरूरतों के मुताबिक ढालने, निश्चित उड़ान घंटों के लिए विमानों को लीज पर लेने, ट्रेनिंग और दूसरी सेवाओं पर खर्च की जाएगी. बाकी 18 करोड़ की रकम जर्मन सेना और इस्राएल के बीच अन्य डीलों पर खर्च होगी.
इस बीच जर्मन सरकार को यह भी चिंता है कि इस्राएल से अत्याधुनिक ड्रोनों को लीज पर लेने के कारण उसे आलोचना का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि ड्रोन हमलों में आम लोगों की मौतों को लेकर दुनिया में अमेरिका की खूब बदनामी होती रही है.
चांसलर मैर्केल की सीडीयू और एसपीडी पार्टी के बीच के पिछले दो गठबंधन समझौतों में कहा गया है कि सरकार ड्रोन समेत अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन करते हुए होने वाले मौतों को खारिज करती है. यही वजह है कि पिछली सरकार में एसपीडी ने ऐन वक्त पर हैरोन टीपी से जुड़े प्रस्ताव को रोक दिया था.
इस बीच जर्मन रक्षा मंत्रालय ड्रोनों के इस्तेमाल को बढ़ाना चाहता है. अप्रैल में जर्मन रक्षा मंत्री उर्सुला फॉन डेय लाएन ने फ्रांस और यूरोपीय साझीदारों के साथ मिल कर ड्रोन और नए सैन्य विमान विकसित करने की योजना पेश की है.
व्हेलों पर ड्रोन से नजर
व्हेलों पर ड्रोन से नजर
दुनिया में कुछ समुद्री इलाकों में अगर आप दूरबीन लगाए कुछ घंटे इंतजार करें जो शायद व्हेल को देख पाएं. अमेरिकी वैज्ञानिकों ने व्हेल देखने के लिए एक तेज और पक्का तरीका इजाद किया है - जो है ड्रोन की मदद से व्हेल स्पॉटिंग.
तस्वीर: NOAA, Vancouver Aquarium
ऊपर का विज्ञान
व्हेलों के व्यवहार के बारे में ज्यादा जानकारी इकट्ठा करने के लिए नेशनल ओशेनिक एंड एटमोस्फियरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) के रिसर्चर ड्रोनों का इस्तेमाल कर रहे हैं. इस हाईटेक उपकरण से व्हेलों की शिकार करने की तकनीक और सामाजिक बर्ताव के बारे में कई अहम जानकारियां मिली हैं.
तस्वीर: NOAA, Vancouver Aquarium.
दिखीं "किस" करती व्हेलें
व्हेलों की बढ़िया तस्वीर लेने के लिए छह रोटरों और एक शक्तिशाली कैमरे से लैस ड्रोन समुद्र से करीब 130 फीट (40 मीटर) की ऊंचाई पर मंडराता है. इतनी ऊंचाई पर रहने से व्हेलें परेशान नहीं होतीं और उनके बीच होने वाले ऐसे अंतरंग पल भी कैमरे में कैद हो जाते हैं.
तस्वीर: NOAA, Vancouver Aquarium
नई संभावनाएं खुलीं
किसी भी इलाके में व्हेलों की पूरी आबादी पर नजर रखने में ड्रोनों से बड़ी मदद मिली है. रिसर्चरों को जानवरों की संख्या और उनकी शारीरिक हालत के बारे में लंबे समय तक जानकारी रखने और दूसरी जगहों से इकट्ठा किए डाटा के साथ उसकी तुलना करने में आसानी हो रही है.
तस्वीर: NOAA, Vancouver Aquarium.
जितनी बड़ी, उतनी बेहतर
आर्कटिक में लंबी लंबी यात्राओं के दौरान व्हेलें कुछ भी नही खातीं, इसलिए वे पहले से ही अपने शरीर में ब्लबर का पर्याप्त स्टॉक रखती हैं. ब्लबर एक खास तरह का बॉडी फैट होता है. यह नवजात बच्चों की मांओं के लिए खास तौर पर जरूरी है, जो बच्चों को दूध पिलाती हैं. तस्वीर में दिख रही कई मादा व्हेल कई टन भारी होने के बावजूद शायद थोड़ी कुपोषित हो.
तस्वीर: NOAA
कितने करीब जा सकते हैं?
एनओएए के वैज्ञानिकों के पास काली-सफेद धारियों वाली ओरका व्हेल और ग्रे व्हेलों के पास जाने का खास परमिट है. इन विशाल और शानदार जीवों को बचाने के लिए व्हेल वॉचरों को आमतौर पर 300 मीटर की दूरी बनाए रखने का निर्देश होता है. इसका मतलब हुआ कि ऐसी नजदीकी तस्वीरें बेहद खास रहेंगी.